Sunday, August 28, 2011

वाणी श्रवण से मिल सकता है वैराग्यः आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि मनुष्य में धार्मिक कार्यक्रमों से प्रवाहित होने वाली वाणी से भी वैराग्य का भाव उत्पन्न हो सकता है। नवसार ने साधुओं की संगति में आकर उनके मुखवृंद से धर्म की बातों को श्रवण किया और सम्यक् को प्राप्त किया। ऐसा पुण्य आत्माओं में ही संभव है। आचार्यश्री ने यह उद्गार रविवार को तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे आगमों के स्वाध्याय को याद करने का प्रयास करें। इससे हमारी वाणी पर नियंत्रण होगा और विचारों में शुद्धता आएगी। अच्छे विचार आचार का प्रादुर्भाव होगा और व्यवहार में आशातीत परिवर्तन का बोध होगा। पांच कर्मों में बंध हो सकता है। इसके लिए संयम रखने की आवश्यकता है। इससे कर्मों की निर्जरता हो सकती है। जिस तरह आदमी का भाव होगा उसी के अनुरुप वह कर्मों के बंधन में बंधता है। कर्म वह चेतना है जो आकर्षण को पैदा करता है। इसे दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने तपस्या को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मनुष्य को इसका पालन करने के लिए संयम बरतने की जरूरत है। तपस्या हमें निर्मलता की ओर ले जाती है। हमारा स्वभाव निर्मल होगा तो परिवार में भी शांति की अनुभूति होगी। नैतिकता, संयमता, शालीनता और व्यवहार में मधुरता जीवन को सुन्दर
बनाती है। नेक व अच्छे कर्म करने में विश्वास करे। मन ही मनुष्य के बंधन और कर्मों को उजागर करता है। जैसा भाव होगा, मनुष्य का कर्म भी उसी अनुरुप सामने आएगा। जन्म-मरण का चक्र हमेशा चलता रहता है। जिस व्यक्ति में धर्मयुक्त और त्याग की भावना का समावेश होता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
उन्होंने कहा कि श्रावक समाज स्वाध्याय को कंठस्थ करने की भावना मन में जागृत करें। इसे करने के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। यह हम अंधेरे में भी कर सकते है। अच्छा जीव तभी जी सकता है, जब वह बाहरी गतियों को दमन करें। देवता मनुष्यों के पास भी आ सकते हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि वह धर्मयुक्त हो। जिस मनुष्य के चित्त में निर्मल का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। उन्होंने भगवती सूत्र आगम को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि साधु के मन के भीतर चंदन का लेप लगा है। मनुष्य अपने बाहरी काया पर इस लेप को लगाने का प्रयास करें।
कर्म निर्धारित करते है गति
आचार्यश्री ने कहा कि एकाग्रचित्त होकर ध्यान-साधना करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। जो व्यक्ति आत्मीयता के बलबूते आराधना करता है उसे निर्वाण की प्राप्ति होती है। संबोधि काल में जिस व्यक्ति का ध्यान धर्म और समाज की ओर जाग्रत होता है उसे निर्वाण का मार्ग अवश्य मिलता है। इसके लिए आवश्यक है कि वह मन को स्थिर रखकर ईश्वर का ध्यान करें।
यह कर्मों का स्वभाव है कि वर्तमान में हम कौनसी गति के प्राणी है। इसकी विवेचना कर सकते है। मृत्यु के बाद आदमी की आत्मा किस रुप में जन्म लेगी। इसका भी एक विधान है। मनुष्य अगले जन्म में पुनः मनुष्य के रुप में अवश्य जन्म लेता हैं, लेकिन देवता वापस देव रुप में जन्म नहीं ले सकता है। उन्होंने तीन कर्मों से सदैव बचने का आहृान करते हुए गति को भी विधान बताया और कहा कि मनुष्य के कर्म में जैसा भाव होगा, उसे कर्मों का वैसा ही फल मिलता है। आयुष कर्म से अगली गति का निर्धारण संभव हो सकता है। मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे पानी के महत्व को समझते हुए इसके अपव्यय को रोकने की दिशा में अभियान चलाएं। पानी का दुरुपयोग इसी तरह से होता रहा तो आने वाली पीढी को बडी कठिनाईयों का सामना करना पडेगा। आज की स्थिति को देखते हुए हमें थोडे पानी में ज्यादा कार्य करने के प्रति जागरूकता लानी होगी। हमें स्नानादि करते समय कम पानी उपयोग करने की आदत विकसित करने की महत्ती आवश्यकता है। कम पानी में किस तरह से ज्यादा कार्य संपादित किए जाए। इस ओर मनन करने की जरूरत है। सभी कार्यों के निष्पादन के बाद यदि कुछ पानी शेष रह जाए तो उसे फेंके नहीं, बल्कि उसका संग्रहण करके पुनः उसका उपयोग करने की आदत डालें।
सर्वज्ञान का खजाना है भगवती सूत्र
मंत्री मुनि सुमेरमल ने भगवती सूत्र को सर्वज्ञान के खजाने के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि वर्तमान में उपलब्ध आगमों में भगवती सूत्र सबसे बडा है। इसे पढने से जीव अजीव को सतद्रव्य का ज्ञान होता है। यह ऐसा गं्रथ है जिसमें प्रश्नोत्तर शैली में रचा गया है। इसमें 36 हजार प्रश्न और उत्तर है। इससे हमारे ज्ञान में आशातीत वृद्धि होती है। इसमें अनेक विषयों के समावेश कर विवेचन किया गया है। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।


अन्ना की जीत पर जश्न व रैली निकाली

गांधी वादी अन्ना हजारे की तीनो मुद्धो पर सहमति बनने पर एवं अनशन तोडे जाने की जानकारी मिलने पर जन लोकपाल सत्याग्रह समिति के बेनर तले अन्ना समर्थको द्वारा जश्न मनाया गया इस अवसर पर भव्य आतिस बाजी जगह जगह करते हुए रैली निकाली गई। रैली में अन्ना हजारे जिन्दाबाद,जब तक सुरज चॉद रहेगा -अन्ना तेरा नाम रहेगा इत्यादि नारे लगाते हुए युवा नागरिक चल रहे थे। रैली जल मन्दिर से शुरू होकर सुरज पोल,चारणा की खाली, सदर बाजार होते हुए छतरी चौक,मादरेचा कि गली,बडी स्कुल,भिक्षु विहार, दोलत कोलानी होते हुए पुन जल मन्दिर पहुची। जल मदिर पहुच कर सभा मे परिवर्तित हो गई। जन लोकपाल सत्याग्रह समिति राजसंमद के सदस्य कैलाश जोशी ने कहा कि यह देश की जनता की जीत है,अन्ना का अन्ना का अनशन खत्म हुआ है आधी लडाई अभी बाकी है।लोकसभा में अन्ना के प्रस्ताव के पास हासेने को ऐतिहासिक कदम बताया इसमें सरकार ही नही अपितु पुर्ण ससंद नतमस्तक हो गया जो जनतन्त्र की जीत है,देश वासियो की जीत है इस अवसर पर कैलाश जोशी,रेवानाथ मिक्षा,सुरेश सोनी,मनोज झावडीया, देवेन्द पालीवाल, किशन पालीवाल,गोकुल सावरिया,आनन्द जोशी,जगदीश नुवाल, विनोद पालीवाल, लाला सोनी,रमेंश बोराणा,बसंत पालीवाल,सानिध्य पालीवाल सहित हजारो अन्ना समर्थक उपस्थित थे।

Saturday, August 27, 2011

केलवा में दीक्षा महोत्सव 7 को

तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में आगामी सात सितम्बर को तेरापंथ की उदगम स्थली के रुप में विख्यात केलवा में दीक्षा महोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस महोत्सव के दौरान गुजरात राज्य के सूरत निवासी मुमुक्षु चेतना और पंजाब के जगराओं निवासी मुमुक्षु अश्विनी कुमार को दीक्षा दी जाएगी। कार्यक्रम की सफल क्रियान्विति को लेकर प्रारंभिक तैयारियां शुरू हो गई है।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि सूरत निवासी मुमुक्षु सुश्री चेतना की शोभायात्रा तेरापंथ समाज केलवा के तत्वावधान में 6 सितम्बर को दोपहर दो बजे निकाली जाएगी। मंगल भावना समारोह शाम साढे सात बजे शांतिदूत आचार्यश्री के सान्निध्य में आयोजित होगा। कोठारी ने बताया कि मुमुक्षु चेतना का जन्म 12 मई 1991 को उदयपुर जिले के सायरा कस्बे में हुआ था। बीए द्वितीय वर्ष तक अध्ययन कर चुकी इस मुमुक्षु के मन में वैराग्य का भाव 10 वर्ष की उम्र में उत्पन्न हुआ था। इन्हंे वैराग्य की प्रेरणा मुनिश्री देवराज स्वामी और उनके दादा-दादी, मम्मी-पापा से मिली। चांदमल-राजश्रीबेन कावडिया की सुपुत्री चेतना ने आचारबोध, व्यवहारबोध, संस्कारबोध, भक्तामर, श्रावक प्रतिक्रमण, श्रावक बोल, तत्व चर्चा, कालू तत्वशतक, आलम्बनसूत्र, संघीयगीत, इक्कीस द्वार,जैन तत्व प्रवेश, कर्तव्य षट्त्रिशिता, साधु प्रतिक्रमण, तेरापंथ प्रबोध और 50 श्लोक का ज्ञान अर्जित है। उन्हे प्रतिक्रमण आदेश चूरू जिले के राजलदेसर कस्बे में 8 फरवरी 2011 को और दीक्षा आदेश 9 जुलाई को राजसमंद जिले के रीछेड गांव में दिया गया था।
कोठारी ने बताया कि मुमुक्षु अश्विनी का जन्म एक सितम्बर 1983 को पंजाब जिले के जगराओं गांव में हुआ था। प्रेमचंद और संतोष जैन के परिवार में जन्में इस मुमुक्षु ने स्नातक तक शिक्षा और छट्ठी तक तत्वज्ञान द्वितीय वर्ष का ज्ञान अर्जित किया है। इन्होंने भक्तामर स्त्रोत, कल्याण मंदिर, आलम्बन सूत्र, रत्नाकर-पंचविंशिका, कर्तव्य-षद् त्रिंशिका, चतुर्विंशति-गुण,गेय गीति, पच्चीस बोल, पच्चीस बोल पर चर्चा, कालू तत्व शतक, इक्कीस द्वार, पच्चीस बोल पर चतुर्भंगी, आचार बोध, व्यवहार बोध, संस्कार बोध, तेरापंथ प्रबोध, अष्टकम् चार, विघ्नहरण ढाल, मुणिन्द मोरा ढाल, सिन्दूर प्रकार और श्रमण प्रतिक्रमण का ज्ञान अर्जित किया है। कोठारी ने बताया कि इन्होंने 11 मार्च 2011 को संस्था में प्रवेश किया था। 20 जून को चारभुजा में प्रतिक्रममण और 27 जुलाई को केलवा में दीक्षा का आदेश हुआ था।





सम्यक् ज्ञान सबसे बडा रत्नः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने सम्यक् ज्ञान को सभी रत्नों में सबसे बडा बताते हुए कहा कि पृथ्वी पर तीन रत्न माने गए है पानी, अन्न और संयमित वाणी, लेकिन सम्यक् हमें मोक्ष के मार्ग की ओर प्रशस्त करता है। सम्यक् दर्शन के सामने अन्य सभी रत्न तुच्छ है। हम जितनी धर्म की आराधना और उपासना करने में तल्लीन रहेंगे उतनी ही सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होगी। अभी पर्युषण का समय चल रहा है। इन दिनों में जितनी साधना की जाए उतनी ही व्यक्ति के लिए अच्छी है। आचार्यश्री ने उक्त उद्गार शनिवार को यहां तेरापंथ समवसरण में पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का वर्णन प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम लागे जिस लोक में जीव का निर्वाह कर रहे है। वह जंबू द्वीप है। इस लोक में तीर्थंकर नहीं हो ऐसा नहीं हो सकता। 20 तीर्थंकर तो होंगे ही। इससे भी ज्यादा 170 तीर्थंकर हो सकते है। जैन वागडम में उल्ल्ेखित है कि जो व्यक्ति कर्माें से मुक्त होता है उसे निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि सम्यक् दर्शन है तो सम्यक् ज्ञान है। यर्थाथ दृष्टि ही हमें सम्यक् दर्शन का बोध कराती है। जिसे ज्ञान और दर्शन प्राप्त नहीं होता उसे कर्मों से मुक्ति नहीं मिल सकती है। जो इनमें युक्त नहीं होता उसे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त नहीं हो पाता। नव तत्व को परिभाषित करते हुए श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे इसका ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करें। आत्म साधना, तप और संयम करने से भी सम्यक् की प्राप्ति की जा सकती है। इसके अलावा किसी के माध्यम से मिलने वाले ज्ञान से भी इसे प्राप्त किया जा सकता है। सांसारिक जगत में यदा कदा मिलने वाले धोखे को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि इससे व्यक्ति को कठिनाई होती है। वह प्राणांत तक भी पहुंच सकता है। उन्होंने एक वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि मार्ग में मिलने वाले साधुओं की सेवा अपने हाथों से करने की प्रवृति से भी आत्मा की अनुभूति का अहसास होता है। नवसार को साधुओं ने धर्म की बातें बताई। इन बातों को सुनकर उन्हें सम्यक की प्राप्ति हो गई। हालांकि उन्हें इसका बोध अल्प समय तक ही रहा, लेकिन ज्ञान मिल गया। परिमाणित भाव है तो व्यक्ति साधु का वेश धारण कर सकता है। वह सभी साधु-साध्वियों का नेता बन सकता है।
विशेष स्वाध्याय करने की आवश्यकता
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस की महत्ता को परिभाषित करते हुए कहा कि इसमें विशेष स्वाध्याय करने की आवश्यकता है। प्राचीन साहित्य में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि बारह प्रकार के तत्व उपदिष्ट है। स्वाध्याय करने से व्यक्ति को आलोक मिलता है। उसके अंधकारमय जीवन में प्रकाश फैलता है। इससे ज्ञान में अपेक्षाकृत वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने अनेक साहित्यों को कंठस्थ कर अपने ज्ञान में आशातीत वृद्धि की थी। इसी क्रम में आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी साहित्यों को कंठस्थ किया। इसी परपंरा को आज साधु-साध्वी आगे बढाने में लगे हुए है। श्रावक-श्राविकाओं को भी चाहिए कि वे साहित्य को याद कर अपने ज्ञान की क्षमता को बढाएं। उत्तराध्यन का 29 वां अध्याय पठनीय है। प्रत्येक व्यक्ति को इसका पाठन करना चाहिए और हो सके तो
इसे याद करने का प्रयास करना चाहिए। पूरा होने के बाद इसका पुनरार्वतन करने की आवश्यकता है। उन्होंने 32 आगमों को पठनीय बताते हुए कहा कि स्वाध्याय करने से संयम और मन में निर्मलता का बोध होता है। जीवन में स्वाध्याय का प्रयास करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने भी प्रवचन प्रस्तुत किया। आचार्यश्री के प्रवचन सुनने के लिए श्रावक-श्राविकाओं की भीड उमड रही है। पांडाल में सुबह स्थिति यह है कि लोगों को बैठने की जगह तक नहीं मिल रही है। मुनि किशनलाल ने संस्कार निर्माण प्रतियोगिता की जानकारी दी। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।

Friday, August 26, 2011

धर्म आराधना का श्रेष्ठ समय पर्युषण: आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि पर्युषण का समय धर्म आराधना करने के लिए श्रेष्ठ है। इन आठ दिनों के दरम्यान श्रावक समाज विशेष रुप से साधना करने में तल्लीन रहें, ताकि विकृतियों को नाश हो सके। श्रावण-भादौ में विशेष रूप से धर्म की साधना करने की आवश्यकता है। इन दो माह में होने वाली धार्मिक क्रिया से मन के साथ शरीर को भी शुद्ध किया जा सकता है। पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। हमें अपनी उच्च साधना के लिए आहार पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।
आचार्यश्री यहां तेरापंथ समवसरण में शुक्रवार को शुरू हुए पर्युषण महापर्व के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में देशभर से आए श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी धर्म आराधना का क्रम व्यवस्थित बना रहें।एकागचित्त होकर की गई साधना का फल प्राप्त करने के लिए हमें इसके प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। संवत्सरी मूल पर्व है। इससे पहले सात दिन जोडे गए है। इसके पीछे किसी की भी भविष्य को देखकर कुछ भी मंशा रही हो, लेकिन जिसने भी पर्युषण पर्व मनाने का आगाज किया, वह साधुवाद का पात्र है। आचार्यश्री ने पर्युषण के दौरान प्रातःकालीन सत्र में शुरू हुए विभिन्न उपक्रमों की जानकारी देते हुए भगवान महावीर को नमन किया और महावीर के चरणों में श्रद्धा के पुष्प गीत का संगान कर अपने प्रवचन का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर नाम नहीं अपितु एक आत्मा है। उन्होंने परमात्मा बनने के लिए न जाने कितने वर्षों तक धर्म की साधना की और मोक्ष को प्राप्त हुए और तीर्थंकर बन गए। उनका चरित्र हमें यह शिक्षा देता है कि व्यक्ति आत्मा की साधना करते करते परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। आत्मा कभी एक शरीर में नहीं टिकती। वह एक योनि का शरीर समाप्त होने पर दूसरे शरीर में समाहित हो जाती है। जन्म मरण का यह सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है।
सम्यकत्व की प्राप्ति महत्वपूर्ण
आचार्यश्री ने आत्मा में सम्यकत्व की प्राप्ति को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हमारा जीवन यहीं तक सीमित होकर रहने वाला नहीं है। इसके आगे भी मोक्ष का मार्ग है। उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपना अधिकांश समय संयम और साधना में लगाने की आवश्यकता है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का मार्ग हमारे लिए प्रशस्त करता है। जीवन को अच्छा बनाने के लिए सम्यक् का ज्ञान होना आवश्यक है। यह हमारी आत्मा का शास्वश्त है। इससे आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव होती है। यह पुस्तक अध्ययन या चलचित्र देखने से संभव नहीं बल्कि धर्म की आराधना, तप, साधना करने से संभव होती है। व्यक्ति को हमेशा धर्म मे रम जाना चाहिए। इसी से उसका कल्याण हो सकता है।
जीवन शैली को उजागर करता है पर्युषण महापर्व
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि जैन परपंरा में पर्युषण महापर्व एक महान पर्व के रूप में प्रख्यात है। इसका जैन परंपरा में क्या महत्व है। यह बताने की कतई आवश्यकता नहीं है, तथापि इतना अवश्य कह सकते है कि यह जैन समाज की जीवन शैली को उजागर करता है। इसके प्रारंभ होने से पहले ही जैनेत्तर लोग त्याग-तपस्या और संयम की चेतना जागृत करने में तल्लीन हो जाते है। उनकी जीवन शैली में अपेक्षित बदलाव आना शुरू हो जाता है। यह अच्छा संकेत है। एक तरह से यह कहना भी उचित होगा कि यह हमें रूपांतर की ओर ले जाता है। आचार्यश्री तुलसी ने भी इस पर्व को महापर्व की संज्ञा दी थी। यह सभी पर्वों का राजा है। बारह मास की प्रतीक्षा के बाद आने वाला यह महापर्व जैनेत्तर लोगांे में विशिष्ट स्थान रखता है।
साध्वी प्रमुखा ने कहा कि जैन शास्त्रों में चातुर्मास को पोशाक के रूप में परिभाषित किया जाता है, जबकि शेष आठ माह को अष्टांग माना जाता है। पर्युषण पर्व को आभूषण की संज्ञा दी गई है। साधु के लिए इसका बडा महत्व है। कालांतर में इसके प्रति केवल साधु-साध्वियां ही सजग रहते थे। अब स्थिति यह हो गई है कि श्रावक-श्राविकाएं भी इसे लेकर काफी गंभीर नजर आती है। श्रावक समाज के साथ कब से और क्यों इस तरह का गहरा संबंध बना। इस पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में यंू तो अनेक पर्व मनाए जाते हैं कुछ भौतिकता से ओतप्रोत भी होते है। नाच गाना इत्यादि भी देखने को मिलता है, लेकिन पर्युषण ऐसा पर्व है जिसमें यह सब कुछ नहीं होता। यह अलौकिक है इसमें आराधना भी अलौकिक होती है। त्याग और प्रत्याखान का पर्व है। एक तरह से यह भी कहना उचित होगा कि यह धर्म के द्वार से प्रवेश कराने का मार्ग है। इससे शांति, मुक्ति, आर्जव और मार्डव की अनुभूति होती है। इसके प्रारंभ और वर्तमान स्वरूप में काफी अंतर आया है। इस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है। इसे चातुर्मास की स्थापना का उपक्रम भी माना गया है।
उन्होंने कहा कि हम तो अध्यात्म के यात्री है। प्रायः देवी देवताओं और तीर्थस्थलों पर जाने का उपक्रम बना रहता है अभी केलवा में देखा कि श्रद्धालुओं को हुजूम सेंकडों किलोमीटर की यात्रा करते हुए जा रहा है। पूछने पर उन्होंने कहा कि रूणेचा जा रहे है। पर हमारा सफर इनसे कहीं अधिक लंबा है। हम बीज से बरगद का रूप अख्तियार करते हैं असत्य से सत्य, अंधकार से आलोक और मृत्यु से अमृत कलश सीखने की यात्रा करते है। श्रावक समाज के जुडने से यह जाहिर होता है कि इसका कितना महत्व है। चातुर्मास के तीन स्वरूपों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि यह तीन तरह के होते है। पहला जघन्य चातुर्मास जो 70 दिन का होता हैं दूसरा मध्यम जो चार माह और तीसरा उत्कृष्ठ जो छह माह का होता है। इनमें से पहले दो अक्सर देखने को मिलते है। तीसरा यदा-कदा ही होता है। इसके पीछे मूल कारण यह होता है कि कोई भी साधु-संत एक ही स्थान पर छह माह तक नहीं ठहरता। उन्होंने कहा कि शरीर ही ब्रह्नाण्ड है। इसमें सत्य के साथ ज्योति पर्व, अमृत पर्व निहित है। इसे खोजने की ओर कहीं जरूरत नहीं है। यह हमारी काया में ही विद्यमान है। इसे वहीं ढंूढने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
मंत्री मुनि सुमरेमल ने कहा कि पर्युषण के दौरान विभिन्न विषयों पर चिंतन-मनन होगा और कई विषय हमारे सामने आएंगे। इसमें जैनागम भगवती का आना बहुत अच्छा माना गया है। इसमें जीवन चरित्र सहित अनेक विषयों की व्याख्या की गई है। इसमें प्रत्येक आगम का खजाना भरा पडा है। यह स्वयं में बहुत बडी है। 11 अंगों में से भगवती को पांचवा स्थान दिया गया है। वहीं 84 आगम प्राचीन ग्रंथों के रूप में स्वीकार किए गए है। इस अवसर पर सांयों का खेडा निवासी सरिता कोठारी की 11 की तपस्या, पुष्पा मादरेचा को 8 की तथा भाण निवासी शांताबाई को 6 की तपस्या का प्राख्यान दिया गया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
आचार्यश्री महाश्रमण ने कराया केशलोंच
तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रातः केशलोंच करवाया। बिना किसी आधुनिक उपकरण से हाथ से केशलांच करवाते देख श्रद्धालुओं से जयकारों से गगन गुंजायमान हो उठा। जैन धर्म में कष्ट सहिष्णुता की अनेक कसौटियों में एक केंशलोंच को निर्जरा के लिए माना जाता है। आचार्यश्री के लोचन के दौरान मुनिजनों ने सस्वर स्वाध्याय कर वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया। लोंच के पश्चात् श्रद्धालुओं ने सुसवृच्छा की आर्यप्रवर के निर्जरा में सहभागिता के लिए स्वाध्याय की प्रेरणा दी।
जयाचार्य आध्यात्म वेत्ता पुरुष थे
आचार्यश्री महाश्रमण ने तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य के निर्वाण दिवस का उल्लेख करते हुए कहा कि जयाचार्य अध्यात्म वेत्ता पुरुष थे। उन्होंने तेरापंथ के विकास में चार चांद लगाए। वे स्वाध्याय को ज्यादा महत्व देते थे। उनके द्वारा रचित लाखों राजस्थानी साधना को समृद्ध बना रहे है।

Thursday, August 25, 2011

पर्युषण में बढाएं अपनी साधनाः आचार्यश्री महाश्रमण

तेासपंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने श्रावक समाज से आहृान किया कि वे शुक्रवार से शुरु हो रहे पर्युषण महापर्व के दरम्यान भौतिक संसाधनों से परे रहकर संयम की आराधना में अपना चित्त लगाएं और अपनी साधना में आशातीत इजाफा करने का प्रयास करें। वर्षभर में महज एक मर्तबा जीवन में आने वाला यह महापर्व व्यक्ति के अर्न्तःमन को पूरी तरह से धर्ममय बनाता है। एक तरह से यह भी कह सकते है कि यह संयम की आराधना का समय है। इसका पूरा-पूरा लाभ अर्जित करने की आवश्यकता है।
उक्त उद्गार आचार्यश्री ने यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान गुरुवार को दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लोग धर्म की साधना करने के लिए घरों की सुख-सुविधाओं को छोडकर यहां उपासना कर रहे है। अस्थाई रुप से निर्मित कुटीर में रहकर साधारण जीवन व्यतीत करने में लगे हुए है। धर्मोपासना कर रहे है। यह सिनेमा, चलचित्र टेलीविजन और भौतिक संसाधनों से यह दूर है। इनकी ओर से की जा रही आराधना उन्हें कुछ अंशों में साधु जीवन व्यतीत करने की दिशा में अग्रसर कर रही है।
उन्होंने कहा कि संयम का अभ्यास करना और धर्म आराधना में तल्लीन रहना भी एक साधना है। व्यक्ति को अपने रहन-सहन, खान-पान के प्रति संयमता बरतने की आवश्यकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी कालातंर में पर्युषण महापर्व की महत्ता को जानते हुए इस दौरान पूरी तरह से धर्ममय जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी थी। उसी की पालना करते हुए आज पर्युषण को आराधना महाशिविर के रुप में मनाया जाने लगा है। इसलिए श्रावक-श्राविकाओं को चाहिए कि वे इस महापर्व के आठ दिनों में अपने जीवन को पूरी तरह से संयमित रखने का प्रयास करें।
फिर भी लोग जमीन से उगने वाली सब्जियों यथा मूली, आलू, गाजर, जमीकंद इत्यादि का प्रयोग करने से बचे। सूर्यास्त के बाद भोजन करने की प्रवृति को त्यागने की आवश्यकता है। उन्होंने समता की साधना को पुष्ट करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि पर्युषण में साधना का अच्छा समय है। केलवा चातुर्मास में इस दौरान प्रतिदिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा तय हो चुकी है। बस आवश्यकता है पूरे दिन होने वाले कार्यक्रमों का लाभ उठाने की।
कषाय विजय की साधना करें
आचार्यश्री ने व्यक्तियों के मन में व्याप्त होने वाले कषायों को मंद करने का आहृान करते हुए कहा कि इस पर विजय पाना भी एक तरह से साधना है। आदमी जितना विकृतियों से दूर रहने का प्रयास करेगा उतनी ही उसकी धार्मिक भावना पुष्ट होगी। इस पर नियंत्रण हो जाता है तो व्यक्ति को आत्मा की अनुभूति का अहसास होता है। संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित सहजानंद को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह वाणी का विषय नहीं हैं इसे अनुभव किया जाता है। यह अपने आप में विशिष्ट है। किसी व्यक्ति से बात करने के लिए भी एक तरीका होता है। बात में सारगर्भिता न हो तो सामने वाला प्रभावित नहीं हो सकता। व्यक्ति यह सोचता है कि जैसा मैंने दिया उसी के अनुरुप उसे मिले। यह संभव नहीं है। उन्होंने एक वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि जीवन में जिस तरह से मनुष्य स्वप्न को देखता है, लेकिन उसे किसी के हाथ पर रखकर साबित नहीं कर सकता कि जो उसने देखा है वह सही है। उसी तरह आत्मा का अनुभव किया जा सकता है, उसे दिखाया नहीं जा सकता। इसी तरह सहजानंद की अनुभूति ही की जा सकती है। मन संयमित रखने से आत्मानंद को भोगा जा सकता है। अर्थात् उसका आनंद उठाया जा सकता है। व्यक्ति के जीवन में स्वयं के ऊपर कभी अहंकार का भाव नहीं आना चाहिए। जितना हम विनम्र रहने का प्रयास करेंगे उतना ही हमारी वैशिष्ट्य प्रदर्शित होगी। शास्त्रों में गुरु को महान् माना गया है। यदि गुरु रूष्ट हो जाए तो उसे मनाने का प्रयास व्यक्ति को करना चाहिए। उलाहना देना उनका काम है। हमें उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयत्न करने की आवश्यकता है। हमसे जो गल्ती हुई है उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इससे समता का विकास होगा। यह उलाहने को झेलने से ही संभव हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पर्युषण के दौरान प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा धर्म की आराधना करने की जरूरत है। यह महापर्व अतीत का प्रतिक्रमण करने का पर्याय है। हमें स्वयं को देखने का प्रयास करना चाहिए। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जीवन प्रकृति का नाम है। प्रवृति जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है। धार्मिक व्यक्ति को प्रवृति के साथ निवृति का अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन के घोष संयमः खलु जीवनम् का उल्लेख करते हुए कहा कि संयम के जागरण से जीवन सफल हो सकता हे। व्यक्ति को लक्ष्य पूर्वक चलना चाहिए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
खाद्य संयम दिवस आज
आचार्यश्री के सान्निध्य में शुक्रवार से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रुप में मनाया जाएगा। इस दौरान सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।



Wednesday, August 24, 2011

स्वफूर्त बंद रहा केलवा, छात्रों ने निकाली रैली

KELWA RAJSAMAND
गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे के आन्दोलन के समर्थन में बुधवार को केलवा कस्बे के बाजार पूरी तरह बंद रहे और विद्यार्थियों ने रैली निकालकर ग्रामीणों के उत्साह में जोश भर दिया। इस दौरान उन्होंने नारेबाजी कर वातावरण को गुंजायमान कर दिया। सत्याग्रह आंदोलन समिति के आहृान पर व्यापारियों ने स्वतः ही अपने प्रतिष्ठान बंद रखते हुए आंदोलन के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।
सुबह से ही बस स्टेण्ड, सूरजपोल, केलवा चौपाटी पर तो हालात यह थे कि चाय-पान की थडिया और सब्जियां बेचने वालों ने भी अपना समर्थन दिया। इससे चाय, गुटके की तलब वाले दिनभर इनके लिए तरस गए। बंद के दौरान पूरे कस्बे में रैली निकाली गई। इसमें शामिल विद्यार्थी व गणमान्य नागरिक तख्तियां लेकर गगनभेदी नारों के स्वर के साथ चल रहे थे। रैली जलमंदिर से प्रारंभ होकर भिक्षु विहार मार्ग से हायर सैकण्डरी स्कूल, पालीवाल मोहल्ला, छतरी चौक, खटीक मोहल्ला, रेगर बस्ती होते हुए पुनः जलमंदिर पहुंची और आमसभा में परिवर्तित हो गई। सभा को डॉ. महेन्द्र कर्णावट, कैलाश जोशी, रेवानाथ मिश्रा, भगवान शर्मा आदि ने संबोधित किया। रैली में पूर्व सरपंच श्यामलाल सांवरिया, राजकुमार पालीवाल, सुरेश सोनी, देवेन्द्र पालीवाल, सुरेश जोशी, मोहनलाल टेलर, दिनेश बोराणा हुक्मीराम साहू आदि उपस्थित थे।


दूसरों पर गलत आरोप लगाना पाप हैः आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि दूसरों पर गलत आरोप लगाना पाप है। दूसरों की निंदा करना, आलोचना करना सरल है, पर स्वयं की पहचान करना कठिन है। व्यक्ति दूसरों के संदर्भ में सत्य जानकारी न करने के बावजूद आरोप लगा देता है यह उचित नहीं है।
आचार्यश्री ने यह उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान बुधवार को दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक समाज को संबोधित करते हुए कहा कि किसी की गल्ती होती है तो उसे फैलाना अनुचित है। उस गल्ती का अहसास व्यक्ति को करा देना चाहिए, पर असत्य आरोप नहीं लगाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा गतिशील मन है। मन को साधने का अभ्यास होना चाहिए। शरीर यहां बैठा रहता है और अमरीका की यात्रा करके आ जाता है। मन को नियंत्रित करना आ जाता है तो व्यक्ति दूसरों की गलत आलोचना नहीं करेगा और केवल दूसरों को ही नहीं देखेगा, स्वयं की पहचान करने का प्रयास करेगा। मन नियंत्रित होने से क्रिया करते हुए भी साधना कर सकते है। जिस समय जो क्रिया कर रहे है उसी में मन रम जाए तो एकाग्रता साथ रहती है। भावक्रिया हो सकती है।
आचार्यश्री ने व्यस्त जीवन चर्या में बिन समय नियोजित किए धर्म को कैसे अपनाएं पर चर्चा करते हुए कहा कि ईमानदारी, नैतिकता ऐसे सूत्र है जिनकों जीवन में उतारने के लिए अलग समय नहीं लगाना चाहिए। जब व्यापार में, कार्यों में ईमानदारी, नैतिकता होगी तो धर्म की आराधना अपने आप होने लग जाएगी। अणुव्रत यही सिखाता है कि उसको अपनाने के लिए विशेष समय देने की जरुरत नहीं है। आज की अनेक समस्याओं का समाधान इस अणुव्रत से हो सकता है। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रेक्षाध्यान आत्मिक सुखों को पाने में योगदूत बन सकता है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से हम मन, वचन, काया की प्रवृति को संतुलित कर सकते है। अनावश्यक प्रवृति से बचा जा सकता है। अनावश्यक प्रवृति से बचना बहुत बडी साधना है।
इस मौके पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि मनुष्य जीवन दुधारी तलवार है। मनुष्य बहुत शक्तिशाली प्राणी है। उसके पास मन, वचन और काया की बहुत बडी शक्ति है। आवश्यकता है कि वह इस शक्ति का उपयोग बंधन को तोडने में करें। इसका उपयोग आत्मा को उज्जवल बनाने में हो। 9 की तपस्या करने वाले सुमित सांखला ने भी इस मौके पर अपने विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
पर्युषण पर्व दिवस कल से
आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में 26 अगस्त से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार रोड केलवा में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। 26 अगस्त को पहले दिन खाद्य संयम दिवस, 27 अगस्त को स्वाध्याय दिवस, 28 अगस्त को सामायिक दिवस, 29 अगस्त को वाणी संयम दिवस, 30 अगस्त को अणुव्रत चेतना दिवस, 31 अगस्त को जप दिवस, एक सितम्बर को ध्यान दिवस, दो सितम्बर को संवत्सरी महापर्व तथा तीन सितम्बर को क्षमापना दिवस मनाया जाएगा। इस दरम्यान प्रतिदिन सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।
सुखी बनों पुस्तक के प्रति बढती जा रही तादाद
आचार्यश्री महाश्रमण की पुस्तक सुखी बनों के प्रति पाठकों की तादाद में निरन्तर वृद्धि जारी हैं। इस पुस्तक के प्रथम दो संस्करण के हाथों हाथ बिक जाने के बाद तीसरा संस्करण विक्रय के लिए यहां उपलब्ध है। पुस्तक के लिए पाठकों की कतार हर समय देखी जा सकती है।


Tuesday, August 23, 2011

दुःख के मूल पर ध्यान केन्द्रित करेंः आचार्यश्री महाश्रमण



आचार्यश्री महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे भौतिक सुखों को त्यागने की प्रवृति विकसित करें। आज उन्हें विभिन्न आसक्तियों ने अपने मोहपाश में बांध लिया है। इससे छुटकारा पाने के लिए धर्म, आराधना, तपस्या की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करें। यह हमें परम सुखों की अनुभूति से पीछे की ओर धकेलती है। स्वाध्याय और ध्यान से भी सुख को प्राप्त किया जा सकता है। हमें दुःख के मूल पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। मूल तक जाने से ही समाधान मिल सकता है। दुःख को दूर करने के लिए उपाय पर ध्यान दिया जा सकता है।
आचार्यश्री ने यह उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान मंगलवार को दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मुक्त आत्माओं को जिस प्रकार का सुख मिलता है उस तरह के सुख की अनुभूति किसी व्यक्ति और देवों को भी नहीं होती। व्यक्ति अपनी इंन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेता है तो वह विकास के पथ पर अग्रसर हो जाता है। अगर इंन्द्रियां उसके वश में नहीं रहती है तो वह पतन की ओर चला जाता है। हमारे विचार, आचार और व्यवहार अच्छे होने चाहिए। इससे मन में शुद्धता आएगी और समाज एवं स्वयं का विकास हो सकेगा। आचार्यश्री ने राग और द्वेष को आसक्ति का पर्याय बताते हुए कहा कि आदमी को चाहिए कि वह सुख और दुःख के मूल को समझने का प्रयास करें। अनाशक्ति में वीतरागता में सुख है पर बाहृय पदार्थों में नहीं हो सकता। पदार्थों की आसक्ति दुःख की ओर ले जाती है।
उन्होंने एक मां और बेटे का वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम अपने मूल को समझेंगे तो कभी परेशानियों का सामना नहीं करना पडेगा। आदमी को अपनी साधना का मूल्यांकन करना चाहिए। अध्यात्म की साधना करना हमें विशिष्टता का अहसास कराता है। इसे लेकर अपना-अपना दृष्टिकोण हो सकता है। अध्यात्म के आगे चिंतामणि रत्न भी फीका पड जाता है। राग द्वेष की भावना रखना हमें दुख की ओर धकेलता है। इससे दूर रहने के लिए संयम की साधना करने की आवश्यकता है। साधना के विकास की आवश्यकता जताते हुए उन्होंने कहा कि हम मूल लक्ष्यों की प्राप्ति में आगे बढते रहे। हमें यह जानने की जरूरत है कि अनाशक्ति की साधना में अभी क्या स्थिति है।
इसके लिए आत्म परीक्षण कर भीतर व्याप्त कषाय को दूर करना होगा। साथ ही निर्धारित आचार के प्रति जागरूक रहकर इसकी उपेक्षा से बचना होगा। हम अपने जीवन को ऊपरी तौर पर सींचित करेंगे तो मुरझा जाएंगे और मूल से संस्कारों को सीचेंगे तो परिवार और समाज का भी विकास कर सकेंगे।
श्रावक जीवन में आए 12 व्रत
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अपने जीवन में 12 व्रत अपनाने का प्रयास करें। इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। इस जन्म में किए गए व्रत का फल अगले जन्म में मिलता है। ग्रिहस्थ को भी कुछ अंशों में साधना करने की आवश्यकता है। इससे आत्मा का कल्याण हो सकेगा। संबोधि में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि परम् सुख वीतराग को प्राप्त होता है। दिखावे के तौर पर की जाने वाली साधना से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। वास्तविक साधना और आध्यात्म की आराधना से हम कषायों को मंद करते है। हमारी इंन्द्रियां शांत रहती है और हमें आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। उन्होंने अगले माह आने वाले संवत्सरी महापर्व को लेकर कहा कि यह महापर्व हमारे जीवन में वर्षभर के दौरान जाने-अंजाने में होने वाली गल्तियों को सुधारने का दिन है। एक तरह से गं्रथियों को खोलने का अवसर हमें प्राप्त हो रहा है। इस दिन खमत खामना कर अपनी गल्तियों का शोधन करें और अगले वर्ष में अच्छा करने का प्रण लेकर जीवन मार्ग को प्रशस्त करें। जिस तरह से कपडे मैले हो जाते है और हम उन्हें साफ करने के लिए धोते है। उसी तरह से साधना के माध्यम से व्यक्ति को अपनी गल्तियों को धोने की आवश्यकता है। प्रतिक्रमण को भी उन्होंने मन में व्याप्त कषाय का धोने के उपक्रम की संज्ञा दी। उन्होंने शरीर सुख को प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह बाहरी तौर पर दिखने वाली अनुभूति है। आत्मिक तौर पर अनुभव किया जाने वाला सुख हमें श्वाश्वत रुप से मिलता है।
अध्यात्म और व्यवहार अलग-अलग
मंत्री मुनि सुमेरमल ने आध्यात्म और व्यवहार को अलग-अलग रुप में प्रतिपादित करते हुए कहा कि अध्यात्म पर चलने वाला व्यक्ति जीवन को बाहर से समेटता है और व्यवहार के मार्ग पर चलने वाला बाहरी दुनियां के चकाचौंध को अपने जीवन में शामिल करने का प्रयास करता है। इस प्रवृति से उसे कुछ समय के लिए सुख की अनुभूति हो सकती है, लेकिन लंबे सुख के लिए हमें बाहर से नजर आने वाली दुनियां के क्रियाकलापों को त्यागने की आवश्यकता है। व्यक्ति अन्य लोगों अथवा दुनियां से उसके सम्मान में की जाने वाली प्रशंसा को सुनकर गदगद हो उठता है और उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास करता है। एक तरह से वह दुनियां की कठपुतली बनकर रह जाता है। इससे सापेक्ष सुख की अनुभूति होती है। हम बाहर की दुनियां में जितना रहेंगे उतना ही अपने जीवन के विकास को अवरुद्ध करेंगे। आध्यात्म बाहरी क्रियाओं को समेटकर भीतर का विकास करता है। स्वयं की अनुभूति के लिए हमें इंद्रियों को शांत रखने की जरूरत है। इससे मन नहीं भटकेगा और परम सुख की अनुभूति होगी। व्यवहार में इतना न रचे कि हम आध्यात्म के सुख को ही भूल जाए। बाहर से हटेंगे तो भीतर देख पाएंगे। उन्होने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अपने जीवन को भौतिक सुखों से दूर रखने का प्रयास करें। बोलते समय अपनी वाणी पर संयम रखे। इससे व्यवहार में कमी नहीं बल्कि ओर अधिक प्रगाढता आएगी। इस मौके पर संस्कार सुगंध पत्रिका के अमृत महोत्सव विशेषांक को पत्रिका की संपादिका प्रभा जैन ने आचार्यश्री महाश्रमण को भेंट की। सुमित सांखला को 9 की तपस्या एवं हिनल सांखला को 8 की तपस्या का प्रत्याखान दिया। संचालन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।

Monday, August 22, 2011

राजसमन्द भी अन्ना क्रांति के समर्थन में पूरी तरह कूद पड़ा


राजसमन्द I भ्रष्टाचार का जड़मूल से खात्मा करने के संकल्प के साथ अब राजसमन्द भी अन्ना क्रांति के समर्थन में पूरी तरह कूद पड़ा है। शनिवार को स्वयंसेवी संगठनों ने स्वैच्छिक बंद का आह्वान किया जो सफल रहा हालाकि बाजारों में सोमवार का साप्ताहिक अवकाश होने से अधिकांश दुकानें तो वैसे ही बंद थी लेकिन आम तौर पर सोमवार को अवकाश के दिन भी खुली रहने वाली छोटी मोटी दुकानें भी पूरी तरह बंद रहने से बंद पूर्णतया सफल रहा। शहर ही नहीं आसपास के क्षेत्र में बंद का व्यापक असर देखा गया। इस दौरान भ्रष्टाचार के विरोध एवं अन्ना क्रांति के समर्थन में जिला मुख्यालय पर निकली महारैली में अन्ना समर्थकों का सैलाब उमड़ पड़ा। चहुंओर अन्ना टोपी पहने समर्थक दिखाई दिए और खास बात यह कि ये लोग स्वैच्छा से रैली में पहुंचे और सभी में भ्रष्टाचार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश था।
जन लोकपाल सत्याग्रह समिति के साथ विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं ने आमजन से अन्ना के आंदोलन को समर्थन करने की अपील की थी। इसके तहत सुबह से ही चाय, पान के केबिन, होटल, रेस्टोरेंट सहित सभी छोटी मोटी दुकानें बंद थी। इस दौरान सुबह करीब 10 बजे राजनगर सर्कल से रैली प्रारम्भ हुई जिसमें शहर के सभी क्षेत्रों के अलावा विभिन्न गांवों से आए लोग शामिल हुए। केलवा क्षेत्र से कई मार्बल खदान मालिक एवं अन्य लोग भी पहुंचे। रैली में सैकड़ों दुपहिया वाहनों पर अन्ना समर्थक सवार थे तो कई ऑटोरिक्शा और अनेक चार पहिया वाहनों पर सवार लोग अपने सर पर अन्ना टोपी पहने हुए थे। कई संगठनों के सैकड़ों पदाधिकारी पीछे की ओर पैदल ही चल रहे थे। अधिकांश समर्थकों के हाथों में तिरंगे लहरा रहे थे तो शेष लोग अपने हाथों में भ्रष्टाचार और केन्द्र सरकार विरोधी नारे लिखी तख्तियां थामे हुए थे। चारों ओर अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है, मैं भी अन्ना तू भी अन्ना-सारा देश है अन्ना, भारत छोड़ो भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार हाय हाय, सोनिया गांधी हाय हाय, मनमोहन हाय हाय आदि के गगनभेदी नारे लगाते हुए अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे थे। रैली मुख्य मार्गो पर होते हुए जलचक्की तिराहा पहुंची जहां दूसरी ओर से पहुंची ग्रामीणों की वाहन रैली से समागम हुआ। आमने सामने से दो रैलियों के समागम के दौरान पूरा जलचक्की तिराहा अन्ना समर्थकों से अट गया और इस दौरान जन सैलाब के कारण अनोखा नजारा पेश हुआ।
जलचक्की पर करीब 15 मिनट तक जमकर नारेबाजी हुई और वंदे मातरम, इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लगाए गए। यहां से भी बड़ी संख्या में और लोग मुख्य महारैली में शामिल हो गए जबकि मुखर्जी चौराहे की ओर से आई रैली नाथद्वारा रोड़ एवं सौ फिट रोड़ होते हुए आगे निकली। इधर महारैली बस स्टेण्ड और चौपाटी पहुंची और इन दोनों जगहों पर भी जमकर प्रदर्शन किया गया। बाद में जेके मोड़ होकर मुखर्जी चौराहा और फिर वहां से मुख्य मार्ग पर होते हुए निकली। रैली में विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी शामिल थे।


क्षणिक सुखों को त्यागने की आवश्यकताः आचार्यश्री महाश्रमण



आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि मानव जीवन को इंद्रियगत, मनोगत और पदार्थगत के क्षणिक सुखों से विरत् रहकर आत्मिक और शाश्वत सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही अपनी सभाओं-संस्थाओं तथा अपने क्षेत्र में स्थित परिवारों को यह प्रेरणा दें कि अपने कार्यों में इसी आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए चेष्टारत रहे। उक्त उद्गार आचार्यश्री ने सोमवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने 26 अगस्त से शुरू हो रहे पयुर्षण महापर्व के दौरान श्रावक-श्राविकाओं को धर्माराधना करने की प्रेरणा देते हुए पौषध, उपवास, चारित्रात्माओं के व्याख्यान, अखंड जप आदि को नियमित दैनिक क्रम बनाने की बात कही। उन्होंने समाज में योगक्षेम की प्राप्ति के लिए यह पाथेय दिया कि सभी पदाधिकारी एवं संपूर्ण श्रावक-श्राविका समाज श्रावक संबोध को सीखने और कंठस्थ करने का प्रयास करने की बात कही। साथ ही बारहव्रत को धारण करने का प्रयास करने का आहृान करते हुए उन्होंने अपने परिवार के लोगों में भी विशेषकर युवाओं को प्रेरणा देने की बात कही। आचार्यश्री ने कहा कि तीन दिनों के इस सम्मेलन के दौरान मैंने समय-समय पर जो विचार व्यक्त किए है उन्हें सभी प्रतिनिधिगण ध्यान में रखें और उसके अनुरूप अपनी सभाओं में कार्य करें, तभी हम अपने समाज, परिवार और संघ के योगक्षेम के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर पाएंगे। इससे पूर्व मुनि किशनलाल ने महासभा और सभाओं की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि महासभा जिस प्रकार पूरी निष्ठा के साथ मां के दायित्व का निर्वहन करती है उसी प्रकार सभाओं का भी यह दायित्व है कि अपनी मां के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करें। महासभा जिस ममत्व और जागरूकता के साथ सभाओं का ध्यान रखती है उनके संवर्धन और विकास के प्रति सजग रहती है। सभाओं में महासभा और केन्द्र के प्रति आभार कृतज्ञता का भाव आवश्यक है। मुनि मोहजीतकुमार ने कहा कि यह सम्मेलन जिन प्रयोजनों से आयोजित किया गया है उसकी उपलब्धि का प्रयास करने की आवश्यकता है। महासभा के अध्यक्ष चैनरुप चिंडालिया ने सम्मेलन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने आभार प्रकट किया।
समाज के आध्यात्मिक उन्नयन की महत्ती आवश्यकता
तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन 2011 का समापन
केलवाः 22 अगस्त
तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में सोमवार को तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का समापन हुआ। तीन दिन तक चले सम्मेलन में समाज के आध्यात्मिक उन्नयन के विभिन्न पहलुओं पर गहनता से विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार रात तक चले कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने समाज के विकास के सूत्र और योगक्षेम का प्रवर्तन करते हुए कहा कि जिन संस्थाओं के पास ठोस परियोजनाएं होती है वे दीर्घायु होती है। वे अपनी विकासमान परियोजनाओं के माध्यम से अपने सदस्यों और समाज के लोगों का हितचिंतन करती है।
महासभा के अध्यक्ष चैनरुप चिंडालिया ने महासभा द्वारा संचालित विभिन्न प्रवृतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समाज को संस्कारित बनाने में मील का पत्थर साबित हो रही है। संस्कारित समाज के बिना किसी तरह की प्रगति कोई मायने नहीं रखती। इसीलिए महासभा ज्ञानशाला के संचालन पर विशेष बल दे रही है। उपासक श्रेणी के विकास के संदर्भ में उन्होंने कहा कि समाज के आध्यात्मिक उन्नयन की महत्ता को महसूस करते हुए महासभा आचार्यश्री महाश्रमण के दिशा निर्देश में इसके विकास के लिए प्रयासरत है। महासभा के प्रधान न्यासी राजेन्द्र बछावत ने कहा कि महासभा की आर्थिक स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने पदाधिकारियों एवं सदस्यों से आग्रह किया कि वे महासभा की सभी गतिविधियों को सुचारू रुप से संचालित करने और भावी योजनाओं की क्रियान्विति में समर्पण भाव से सहयोग करें। महासभा के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय विसर्जन प्रभारी रतन दुगड ने विसर्जन के मूल उद्देश्य को उद्घाटित किया और कहा कि हमें विसर्जन उपक्रम के माध्यम से समाज के हर परिवार को जोडने का प्रयास करने की आवश्यकता है। मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना के संयोजक एवं जैन विश्व भारती के अध्यक्ष सुरेन्द्र चोरडिया ने मेधावी छात्रों को आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ और आचार्यश्री महाश्रमण के नाम से दिए जाने वाले पदकों का उल्लेख करते हुए बताया कि आज तक कुल 154 पदक प्रदान किए जा चुके है। ज्ञानशाला के प्रभारी मुनि उदितकुमार ने कहा कि ज्ञानशाला का प्रभाव अचूक है। इसने आचार्यश्री तुलसी द्वारा देखे गए सपनों को साकार किया है। आज ज्ञानशाला एक मिशन बन गया है। इसका निरन्तर विकास हमारा सामूहिक दायित्व है। मुनिश्री ने कहा कि ज्ञानशाला की प्रशिक्षिका के रूप में हमारे समाज की जिन महिलाओं का योगदान है वे अधिकांशतः गृहणियां है। उन्हें प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। उन्होंने बडी सभाओं का आहृान किया कि वे अपने आस पास के गांवों में ज्ञानशाला के प्रचार प्रसार में सहयोगी बनें। इस अवसर पर जय तुलसी फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी सुरेन्द्र दुगड, ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चौपडा, प्रदीप चौपडा आदि ने भी विचार प्रकट किए।

Sunday, August 21, 2011

आत्म साधना की पुष्टता आवश्यक-आचार्यश्री महाश्रमण


तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज के परिवेश में जिस व्यक्ति की आत्म साधना जितनी पुष्ट होगी उतनी ही उसे आनंद की अनुभूति का अहसास होगा। मानव जाति में शांति का भाव बनाए रखने के लिए व्यापक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें यह प्रयास करना है कि सहज, निरपेक्ष, निर्विकार आनंद का महसूस करें। इसकी प्राप्ति तभी हो सकती है जब हमारा चित्त विशुद्ध हो। हम सभी को अपने दायित्व के प्रति जागरुक और सेवा की भावना प्रबल होनी चाहिए। हमें अपने जीवन को सदाचार और सत्याचरण से जोडना होगा। उक्त उद्गार आचार्यश्री ने रविवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
उन्होंने साधु-संतों की वाणी को एक पंखें की हवा के माफिक बताते हुए कहा कि जिस तरह से पंखा हवा को चहुंओर फैंकता है और लोगों को राहत प्रदान करता है उसी तरह धर्म की वाणी को जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता हैं, ताकि इसका विकास और विस्तार संभव हो सके। संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित भगवान महावीर की बातों को प्रकट करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति में यह भावना होनी अत्यंत आवश्यक है कि वह शांति से अपना जीवन व्यतीत करें। इससे समाज और देश में अशांति की स्थिति कभी उत्पन्न होने की संभावना क्षीण हो जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति को यह चिंतन करना चाहिए कि समाज के विकास में कैसे योगदान कर सकते है। व्यक्ति को अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में हालात को देखते हुए ढालने की आवश्यकता है। अनुकूल हालत में अत्यधिक हर्षित होने की जरुरत नहीं है और प्रतिकूल स्थिति में समता रखने का प्रयास करें। एक साधु को अपने जीवन में जितने आनंद की अनुभूति होती है उतनी देवता को भी नहीं होती।
रक्षक और रोहिणी बनने का प्रयास करें
उन्होंने तेरापंथी महासभा को महत्वपूर्ण संस्था बताते हुए कहा कि महासभा के पदाधिकारी निष्ठावान हो। जीवन अच्छा हो और महासभा को समय दे सकें, तभी यह विकास के पथ पर आगे बढ सकता है। यह स्थिति महासभा के कार्यकाल में पदाधिकारियों के समक्ष नहीं आने चाहिए कि जिस समय उन्होंने गरिमामय पद की बागडोर संभाली और महासभा की स्थिति थी वही बरकरार रहे। उन्हें चाहिए कि वे संख्या को बढाने के साथ ही समाज को संभालने का काम करें। उन्होंने एक सेठ और चार बहुओं का वृतांत प्रस्तुत करते हुए महासभा के पदाधिकारियों से आहृान किया कि वे रक्षक और रोहिणी बनने का प्रयास करें। फंड को बरकरार रखें। इसे घटाने की अपेक्षा इसमें आशातीत वृद्धि का प्रयास करें। निर्वाचित पदाधिकारी यह देखे कि उनके समय में ज्ञानशाला के बच्चों की संख्या, उपासकों की स्थिति पर ध्यान रखें। पदाधिकारियों का यह प्रयास होना चाहिए कि वे स्वयं सामायिक आदि धार्मिक कार्य करते हुए लोगों को उसके लिए प्रेरणा दें।
आचार्यश्री ने तेरापंथ भवन के उपयोग को लेकर कहा कि भवन का कुछ अंश भले ही सामाजिक कार्यों में उपयोग के लिए दिया जाए, किंतु एक स्थान ऐसा अवश्य होना चाहिए जहां उपासना, सामयिक, आसन, प्राणायाम, प्रेक्षाध्यान एवं अन्य धार्मिक कार्य संचालित हो सके। पदाधिकारियों से उन्हांेने कहा कि वे अणुव्रत के काम में सहयोगी बने। एक अणुव्रत प्रकोष्ठ का गठन कर संयोजक की नियुक्ति की जानी चाहिए। उन्होंने संपूर्ण तेरापंथी श्रावक समाज को सुझाव दिया कि वे अपने कार्यों, व्यवहारों से जैनत्व का भाव प्रकट करें और अपने कार्यालयों, प्रतिष्ठानों, दुकानों आदि में भगवान महावीर, आचार्य भिक्षु और तेरापंथ के अन्य आचार्यों के चित्र लगाएं। इस अवसर पर मुनि विजयकुमार, मुनि जयंत कुमार, मुनि प्रशन्नकुमार, मुनि पानमल, मुनि किशनलाल, मुनि सुखलाल आदि ने विचार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने अमरीका यात्रा के लिए रवाना हुए समण सिद्धप्रज्ञ को आशीर्वाद प्रदान किया। उदयपुर जिले के कानोड कस्बे के निवासी शिवराज बाबेल की सपत्नीक 30 की तपस्या करने पर प्राख्यान दिया। इनके अनुमोदना में कानोड महिला मंडल की सदस्याओं ने गीत प्रस्तुत किया। संचालन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
छोटा पड गया पांडाल
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण के मुखवृंद से बहने वाली प्रवचन की रसधारा का श्रवण करने के लिए रविवार को देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए हजारों लोगों की भीड उमड पडी। इससे पांडाल छोटा पड गया। अनेक महिला एवं पुरुषों की हालत तो यह थी कि उन्हें बैठने की जगह ही नहीं मिली। ऐसे में उन्हें डेढ घंटे तक खडे रहकर प्रवचन सुनना पडा। यही नहीं आचार्यश्री के दर्शन के लिए लोगांे की लंबी कतार थी।
योगक्षेम निर्वहन विषय पर व्यापक चर्चा
केलवाः 21 अगस्त
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के पहले दिन दोपहर बाद से देर रात तक चले सत्र में योगक्षेम निर्वहन विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चैनरूप चिण्डालिया ने योगक्षेम की परिकल्पना और पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला और तेरापंथ धर्मसंघ के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और मानव कल्याण के क्षेत्र में अब तक हुए विकास को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हम सौभाग्यशाली है कि हमें तेरापंथ धर्मसंघ जैसा महान धर्मसंध प्राप्त हुआ है। क्रांतद्रष्टा आचार्य भिक्षु और परवर्ती आचार्यांे द्वारा प्रदत परंपरा का पालन करते हुए इस धर्मसंघ ने क्रमशः नई ऊंचाई प्राप्त की। गणाधिपति गुरूदेव श्री तुलसी ने शुद्धाचार के पालन और स्वयं तथा दूसरांे के कल्याण के लिए कार्य करने का सूत्र दिया। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अहिंसा जीवन विज्ञान जैसे मानव मूल्यों की प्रतिष्ठापना की। आचार्यश्री महाश्रमण के नेतृत्व में तेरापंथ नवोत्थान की ओर प्रस्थित है। उन्होंने योगक्षेम निर्वहन के लिए अनुशासन, संस्कार, निर्माण, सामाजिक पारिवारिक सामजंस्य, समाज के प्रति उत्तरदायित्व, स्वस्थ और सक्षम समाज की संरचना आदि पर जोर डाला।
मुनि कुमारश्रमण ने तेरापंथ धर्मसंघ के अभ्युदय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और योगक्षेम की प्राप्ति के संदर्भ में कहा कि हम अपने जीवन में उन चीजों का संग्रह करने का प्रयास करते है और सुरक्षित रखते है जो हमारे लिए उपयोगी है। उन चीजों का त्याग करते है जो हमारे लिए हितकर नहीं है। उन्होंने ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी, मेधावी छात्र प्रोत्साहन योजना को महत्वपूर्ण बताते हुए ऐसे उपक्रमों के विस्तार की आवश्यकता जताई। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय की कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा ने योगक्षेम प्रबंधन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। इसके लिए सकारात्मक प्रवृति पर विशेष बल दिया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की कोषाध्यक्ष श्रीमती कल्पना बैद ने कहा कि महिलाएं आज घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र में अपना सक्रिय योगदान देना शुरू कर दिया है। महलाओं को उनका अपेक्षित देय प्राप्त होना चाहिए और उन्हें भी सेवा का उत्तरदायित्व प्रदान करने की पहल होनी चाहिए। तृतीय सत्र में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष सुरेन्द्र चोरडिया ने सभा के विकास सूत्र की जानकारी दी। इस अवसर पर जैन श्वैताम्बर तेरापंथी महासभा के राष्ट्रीय संगठन प्रभारी विजयसिंह चोरडिया, आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के संयोजक और महासभा के उपाध्यक्ष ख्यालीलाल तातेड, जैन श्वैताम्बर तेरापंथी महासभा के निवर्तमान अध्यक्ष जसकरण चोपडा आदि ने विचार व्यक्त किए।
अणुव्रत महासमिति कार्यसमिति के पदाधिकारियों की घोषणा
तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में रविवार को अध्यक्ष बाबूलाल गोलछा {दिल्ली} ने अणुव्रत महासमिति कार्यसमिति के पदाधिकारियों की घोषणा की। इसमें उपाध्यक्ष कन्हैयालाल गीडिया{ बैंगलौर}, डालचंद कोठारी{ मुंबई}, कमलेश भादानी {तिरिपुर} महामंत्री सम्पत शामसुखा {भीलवाडा}, कोषाध्यक्ष रतनलाल सुराणा {दिल्ली}, संयुक्त मंत्री श्रीमती सुमन नाहटा{दिल्ली}, शिक्षा मंत्री श्रीमती रोजी गोयल{जगराओ}, संगठनमंत्री प्रो. देवेन्द्र जैन { भिवानी}, श्रीमती पुष्पा सिंघी {कटक} तथा अशोकभाई सिंघवी {पसाडा, गांधीधाम} को शामिल किया गया। इसके अलावा संरक्षक में राजसमंद के डा. महेन्द्र कर्णावट, कोयम्बटूर के निर्मल एम रांका तथा जयपुर के जीएल नाहर को मनोनीत किया गया। कार्यसमिति में 20 जनों को आमंत्रित सदस्य तथा 24 जनों को बतौर सदस्य के रुप में शामिल किया गया है।

सभी माइंसें आज रहेगी बंद, नहीं होगा लदान
केलवाः 21 अगस्त
गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे की ओर से देशभर में भ्रष्टाचार के विरोध में चल रहे आंदोलन के समर्थन में राजसमंद मार्बल माइन ऑनर्स एसोसिएशन ने सोमवार को सभी माइंसें बंद रखने का निर्णय किया। एसोसिएशन के अध्यक्ष तनसुख बोहरा ने बताया कि बंद के दौरान सभी माइंसों पर डिस्पेच और लदान का कार्य नहीं होगा। सुबह 10 बजे माइंस ऑनर्स राजसमंद जिला मुख्यालय स्थित पुरानी कलक्ट्री एकत्र होंगे, जहां से वे जुलूस के रुप में कलक्टर कार्यालय पहुंचेंगे और उन्हें ज्ञापन सौंपेंगे। बोहरा ने सभी माइंस ऑनर्स से अधिक से अधिक संख्या में पहुंचे की अपील की।


Saturday, August 20, 2011

नवाल के केलवा पहुंचने पर जोरदार स्वागत

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अशोक नुवाल ने सेठ रंगलाल कोठारी राजकीय महाविद्यालय में शनिवार को हुए छात्रसंघ के चुनावों में उपाध्यक्ष पद पर एनएसयूआई के प्रत्याशी को पराजित किया। जीत के बाद नुवाल के अपने पेतृक निवास केलवा पहुंचने पर कार्यकर्ताओं और संगी साथियों ने जोरदार स्वागत किया और आतिशबाजी कर खुशी का इजहार किया। इस दौरान नुवाल का बैण्डबाजों के साथ कस्बे में जुलूस निकाला गया।

नशामुक्त व्यक्ति संस्थाओं के अध्यक्ष न बनेंः आचार्यश्री महाश्रमण



आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि तेरापंथी सभाओं आदि संघीय संरचनाओं के अध्यक्ष आदि पदों पर नशायुक्त व्यक्ति दूर रहना चाहिए। संस्थाओं के पदाधिकारी अनिवार्यत रुप से नशामुक्त हो। यह अपेक्षित है। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता सेवा करता है यह अच्छी बात है। पर सेवा करने की योग्यता अर्जित करनी चाहिए। संस्थाओं के पदों पर आने वाले आवेश पर नियंत्रण रखें, नशा मुक्त हो और चरित्रशुद्धि हो। यह अपेक्षित है। ऐसी अर्हताएं रखने वाला संस्थाओं के साथ जुडकर सेवा करने के योग्य होता है। जिसको सेवा करने का दायित्व मिलता है वह अपने दायित्व के प्रति जागरुक रहे। समाज और संघ में अपना चिंतन नियोजित करें। संगठन संस्था का नेतृत्व कर्ता अपने जीवन को त्याग, संयम और सादगी से स्थापित कर दूसरों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें तो समाज का चहेता बन सकता है और सम्मान पाने की योग्यता पा सकता है।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शनिवार को दैनिक प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कार्यकर्ता को तीन रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि एक कार्यकर्ता वह होता जो केवल काम में विश्वास करता है। इसे मैं उच्च श्रेणी में रखता है। दूसरा काम और नाम दोनों में विश्वास करता है। यह मध्यम श्रेणी में आता है और तीसरा काम तो करता नहीं, बस उसे नाम की चेष्टा रहती है। यह निम्न स्तर का कार्यकर्ता होता है। इसलिए व्यक्ति को सदैव कर्म में विश्वास रखना चाहिए। इससे ही उसकी समाज और देश में अपनी पहचान कायम हो सकेगी। कार्यकर्ता सेवा करें और कभी भी फल की इच्छा मन में न आने दंे। उन्होंने ने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित मुनि मेघ और भगवान महावीर की बातचीत का वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि आनंद चार तरह का होता है। पहला सहजन आनंद, दूसरा निरपेक्ष, तीसरा निरविकारण और चौथा अतिन्द्रिय। चौथे आनंद में इंन्द्रियों से भोगा जाने वाला आनंद नहीं होना चाहिए। भोग से अर्जित किए जाने वाले आनंद की अनुभूति क्षणिकभर की होती है। इसलिए भौतिकता की वस्तुओं को त्यागने की आवश्यकता है। जीवन में आनंद के कई स्त्रोत है। कुछ आनंद पदार्थों और इंन्द्रियों के सेवन से प्राप्त होते है, कुछ आनंद स्वतः ही प्राप्त हो जाते है कुछ विकार सहित होते है और कुछ आनंद अतीन्द्रिय होते है। हमें यह प्रयास करना है कि सहज, निरपेक्ष, निर्विकार और अतीन्द्रिय आनंद का महसूस करें। इसकी प्राप्ति तभी हो सकती है जब हमारा चित्त विशुद्ध हो। तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का आधार विषय योगक्षेम की प्राप्ति है। अतीन्द्रिय और आत्मानंद की प्राप्ति ही सबसे बडा योगक्षेम है। हम सभी को अपने दायित्व के प्रति जागरुक होना चाहिए और हममें सेवा की भावना प्रबल होनी चाहिए। हमें अपने जीवन को सदाचार और सत्याचरण से जोडना होगा। खान-पान, आचार-व्यवहार, आतम नियंत्रण और दर्शन। इन सबके प्रति जागरुक रहकर कार्य करना होगा। तेरापंथ धर्मसंघ के प्रत्येक व्यक्ति को यह चिंतन करना चाहिए कि समाज के विकास के लिए कैसे योगदान कर सकते है।
जमीकंद का करें त्याग
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अहिंसा के मद्देनजर जमीन से पैदा होने वाली सब्जियों और फलों का परित्याग करें। समय-समय पर होने वाले समाज के भोज के दौरान भी इनके उपयोग से बचने का प्रयास करें। मांगलिक कार्यों के आयोजन के दौरान यदि व्यक्ति इन वस्तुओं के परिहार करने का प्रयास करता है तो उसके जीवन में अहिंसा का भाव सदैव बना रहेगा। यह परिवार और समाज के लिए भी अच्छा साबित हो सकता है। व्यवस्थाओं में उचित परिहार करना आज के परिवेश में महत्ती आवश्यकता बन गया है।
मां के समान है महासभा
उन्होंने तेरापंथ महासभा के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वह एक मां की तरह कार्य कर रही है जो अपने बच्चों को संरक्षण प्रदान करती है। आचार्यश्री ने पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को तेरापंथ की आचार संहिता का पालन करना चाहिए। सामायिक, नशामुक्ति, कषायमुक्ति आदि को संघीय प्रवृति का पालन करना चाहिए। तीन दिनों के इस सम्मेलन में खूब चिंतन-मंथन होना चाहिए और कार्यकर्ताओं को अच्छी खुराक मिलनी चाहिए, ताकि वे संघ और समाज के विकास के लिए निर्धारित कार्यक्रमों को लागू करने में पूरी सक्रियता दिखा सकें।
अपने दायित्व के प्रति सचेष्ट हो
मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनंू ने तेरापंथी सभा के प्रतिनिधि सम्मेलन को एक विशेष उपलब्धि मानते हुए कहा कि सभी प्रतिनिधि एवं संपर्ण श्रावक समाज आज अपने दायित्व के प्रति सचेष्ट हों और समाजहित में कार्य करें। योगक्षेम अपने आप में एक महत्वपूर्ण विषय है। इसकी उपलब्धि वात्सल्य और परस्पर हित चिंतन से ही संभव है। योगक्षेम का निर्वाह धार्मिक और व्यावहारिक कल्याण की रक्षा के द्वारा ही हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ से जुडी संस्थाएं यह प्रयास करें कि समाज में शिक्षा का विकास हो। कोई भी छात्र अर्थ के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहे। तभी हमारे धर्मसंघ की नींव मजबूत होगी।
परपंराओं से नई पीढी को अवगत कराएं
साध्वी प्रमुख कनकप्रभा ने कहा कि तेरापंथ का ध्वज तेरापंथ के आधार का प्रतीक है। उसमें जुडे हुए दोनों हाथ भगवान महावीर के प्रति नमन और तेरापंथ के प्रति आस्था और विश्वास दर्शाते है। आज संपूर्ण जैन समाज तेरापंथ का आशाभरी नजरों से देख रहा है। आज हम विचार करें कि हम किस स्तर तक पहुंचे है और कहां पहुंचना है। हम अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य का निर्माण करें। योगक्षेम शब्द पर चर्चा करते हुए साध्वी प्रमुखा ने कहा कि यह तेरापंथ के लिए बहुत परिचित शब्द है जिसका प्रयोग आचार्यश्री तुलसी ने संघ विकास के लिए किया था। हमें विचार करना है कि संघीय आस्था को और अधिक कैसे मजबूत कर सकते है। योगक्षेम की प्राप्ति के लिए यह जरुरी है कि हम आत्म चिंतन करें। यदि बदलाव की जरूरत है तो उस पर भी विचार करें। क्योंकि युगीन बदलाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तेरापंथ का 250 वर्षों का इतिहास स्वयं इसका प्रमाण है। इसमें समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं। आचार्यों ने समय की नब्ज को पहचानते हुए युगीन परिवर्तन किए। आज का युग बौद्धिक और वैज्ञानिक युग है। समाज के विकास के लिए धर्म और अध्यात्म के साथ ही जीवन की वास्तविकताओं का ध्यान रखना आवश्यक है। समय गतिशील है हम उसके साथ गतिमान होकर आगे बढे तो सफलता प्राप्त कर सकते है। साध्वी प्रमुखा ने कहा कि योगक्षेम की उपलब्धि के लिए हमें चार बातों पर विचार करना है। सबसे पहले यह कि हमें जो अब तक प्राप्त नहीं है उसके लिए प्रयास करना है। जो प्राप्त है उसकी सुरक्षा करनी है। जो प्राप्त हो चुका है उसी से आत्म संतुष्ट नहीं होना है। उसे भावी विकास के लिए विनियोजित करना है।
महासभा के प्रभारी मुनि धजंयकुमार ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की शीर्षस्थ संस्था होने का गौरव प्राप्त है। वह अनेक परियोजनाओं का आयोजन कर संघ और समाज के विकास के लिए कार्य करती है। इस प्रतिनिधि सम्मेलन में योगक्षेम प्राप्ति के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार विमर्श किया जाएगा। तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चैनरूप चिंडालिया ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि योगक्षेम की पावना भावना से अणुपा्रणित यह तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन अपनी कई विशिष्टताओं के लिए इतिहास स्वर्णिम पृष्ठ बनेगा। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय योगक्षेम है, जो वर्तमान में हमारे संघ, समाज के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रसंग है। मेवाड कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश बसंती लाल बाबेल ने आचार्यश्री महाश्रमण के प्रज्ञावान व्यक्तित्व और अमृत धारा प्रवाहिनी की अभिवंदना की। तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने सभा प्रतिनिधि सम्मेलन की प्रस्तावना प्रस्तुत की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चिंडालिया ने तेरापंथ का ध्वजारोहण और सम्मेलन के सूत्र वाक्य योगक्षेमं प्राप्स्याम के प्रतीक चिन्ह का अनवारण किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने स्वागत की रस्म अदा की। महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी ने आभार जताया। तीन दिन तक चलने वाले प्रतिनिधि सम्मेलन में देशव्यापी सभाओं के लगभग 650 से अधिक प्रतिभागी शिरकत कर रहे है। कार्यक्रम का प्रारंभ आचार्यश्री की ओर से पेश मंगलपाठ से हुआ।

Friday, August 19, 2011

नैतिक एवं ईमानदार हो देश का शासक

आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि देश का नेतृत्व करने वाला, शासन करने वाला नैतिक एवं ईमानदार होना चाहिए। मेरे सामने बच्चे है, भविष्य में कोई बच्चा ही तो बड़ा होकर देश का नेतृत्व करेगा। जब भावीपीढ़ी में नैतिकता के प्रति निष्ठा होगी, ईमानदारी में विश्वास होगा और कार्य क्षमता हो तो भविष्य उज्जवल होगा। उन्होंने कहा कि राजनीति में जाना बूरी बात नहीं है। उसमें चरित्र की मूल्यवता बनी रहे, भ्रष्टाचार को मूल्य न दें इस बात की अपेक्षा है।
इससे पूर्व मंत्री मुनि सुमेरमल ने सभा को संबोधित किया। मुनि किशनलाल ने बालकों के जीवन में धैर्य सहनशीलता एवं ग्रहणशीलता को जरूरी बताया। मुनि महावीरकुमार ने ‘‘श्रेष्ठ बालक वह सुगुणों का जो अमीर भण्डार है’’.... गीत को प्रस्तुत किया। आलोक स्कूल की छात्रा हिनल सांखला ने स्कूल की गतिविधियों की जानकारी दी। प्रधानाचार्य त्रिपाठी ने आचार्य महाश्रमणजी द्वारा मिले अमूल्य समय के लिए आभार जताया। छात्र गौरव गुंदेचा ने गीत प्रस्तुत किया। संचालन मुनि मोहजीतकुमार ने किया। कार्यक्रम के पश्चात मुनि किशनलाल ने जीवन विज्ञान का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया।


तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन आज से
सम्पूर्ण देश से 650 प्रतिनिधि भाग लेंगे

तेरापंथ धर्मसंघ की सर्वोच्च संगठनात्मक संस्था तेरापंथी महासभा के द्वारा त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का आयोजन आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में आज प्रातः 9.30 बजे प्रारम्भ होगा। उक्त जानकारी देते हुए महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने बताया कि इस सम्मेलन में देशभर की सभाओं से 650 प्रतिनिधि भाग लेंगे। सम्मेलन के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए बताया कि सम्मेलन में समाज की सामूहिक शक्ति का सुसंगठित नियोजन, सभा के पदाधिकारियों को केन्द्रीय दिशा निर्देशों के प्रति जागरूकता, संघीय अनुशासन के अनुरूप एकरूपता के साथ संस्थाओं के संचालन पर विचार विमर्श, युगीन अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य प्रणाली में सुधार एवं परिवर्तन पर विचार विमर्श, अगले वर्ष के लक्ष्यों पर चिंतन, समाज में विद्यमान विसंगतियां, विकृतियों और विवाह विच्छेद, नशा सेवन जैसी समस्याओं के समाधान हेतु विचार विमर्श एवं आचार्य श्री महाश्रमण अमृत महोत्सव वर्ष में पंचाचार की आराधना हेतु सभाओं के माध्यम से परिवारों को जागरूक करने के संदर्भ में चिंतन मंथन चलेगा।


भ्रष्टाचार उन्मूलन में क्या अन्ना का तरीका सही है?

आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में पहुंची आलोक स्कूल
सीधे संवाद में बच्चों ने की प्रश्नों की बोछार

आलोक स्कूल के बालक बालिका आज अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में पहुंचे। आचार्य महाश्रमण से बच्चों ने सीधा संवाद करते हुए प्रश्नों की बोछार कर दी। किसी ने भ्रष्टाचार उन्मूलन में अन्ना के तरीके सही है या नहीं तो किसी ने कहा भ्रष्टाचार अमीरों की वजह से है? किसी ने स्वयं की पहचान के सन्दर्भ में प्रश्न पूछे तो किसी ने भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न किये। बच्चों, प्रश्नों का सहज रूप से जवाब देते हुए अणुव्रत अनुशास्ता ने कहा कि अगर किसी के द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाई जाति है तो वो सही है। यह आवाज उठनी चाहिए। भ्रष्टाचार का विरोध होना चाहिए। इस विरोध का तरीका अपना अपना होता है। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, पर मैं भ्रष्टाचार के विरूद्ध में उचित तरीके से उठने वाली आवाज को सही मानता हूं। अन्नाजी आन्दोलन कर रहे है, ऐसे आन्दोलनों से भ्रष्टाचार के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ सकती है और भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है।
शांतिदूत आचार्य महाश्रमण ने बाल मन में भ्रष्टाचार के प्रति उठ रहे उग्र भावों को समझते हुए कहा कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए जरूरी है व्यक्ति व्यक्ति जागे। व्यक्ति ईमानदारी के प्रति निष्टावान बने। अणुव्रत के छोटे छोटे नियमों को जागरूकता के साथ अपनाया जाएगा तो इस समस्या से निजात मिल सकती है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार केवल अमीरों की वजह से हो ऐसा नहीं है। जिसको जितना अवसर मिलता है वह उतना ही इसमें लिप्त हो जाता है। हो सकता हो अमीरों को ऐसे अवसर ज्यादा मिलते हो। आचार्यप्रवर ने स्वयं को भ्रष्टाचार से कैसे दूर रखें? प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि हमारे भीतर निष्टा प्रगाढ़ हो, संकल्प सुदृढ़ हो तो, जब प्रलोबभन मिलने का अवसर आता है तो हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे। इसीलिए प्रामाणिकता के प्रति निष्ठा का जागरण करना चाहिए


हर आत्मा में है परमात्मा बनने की शक्ति

आचार्य महाश्रमण ने भगवान को पाने के सन्दर्भ में की गई जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा कि हर आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है। जब हम राग द्वेष रूपी विकारों को खत्म कर देते है, उनको जीत लेते है तो स्वयं भगवान बन जाते है। राग द्वेष को जीतने के लिए साधना जरूरी है।
वर्तमान समय में इतनी सघन साधना नहीं है। परन्तु साधना करते करते हम मोक्ष के नजदीक पहुंच सकते है, जल्दी ही, बहुत कम जन्मों में ही परमात्मा बनने की अर्हता प्राप्त कर सकते है। स्वयं की पहचान के सन्दर्भ में पुछे गये प्रश्न पर आचार्यप्रवर ने कहा कि मनुष्य अनेक योनियों में भ्रमण करता है। जब वह सम्यक् श्रद्धा, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र को अपनाता है तब भव भ्रमण को कम करता है और सघन साधना कर जब मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो स्वयं की पहचान अपने आप हो जाती है। उन्होंने भगवान द्वारा प्रार्थना न सुने जाने के सन्दर्भ में की गई जिज्ञासा पर कहा कि सुख दुःख के सन्दर्भ में ऐसा कोई भगवान नहीं है जो हस्तक्षेप करता हो। हमारी मान्यता के अनुसार भगवान किसी के साथ बूरा नहीं करते। अपनी आत्मा ही सुख दुःख की कर्ता होती है। वही भोक्ता होती है। व्यक्ति खुद को ही पुरूषार्थ करना होता है। वह पुरूषार्थ से दुःख को कम कर सकता है।

जीवन को स्वर्ग बनाने के गुर
शांतिदूत ने जीवन को स्वर्ग बनाने के गुर के सन्दर्भ में कहा कि नशामुक्ति, ईमानदारी सौहार्द का वातावरण एवं गरीबी न रहे तो जीवन स्वर्ग तूल्य हो सकता है। नशा वातावरण को नरक समान बना देता है। सौहार्द को खत्म कर देता है। आचार्य श्री महाश्रमण ने चिंता मुक्ति एवं क्रोध को कम करने के उपायों पर कहा कि चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए। चिंता से क्या मिलेगा? मन को समझाना चाहिए। शांति से समाधान खोजना चाहिए। क्रोध से छुटकारा पाने के लिए सोते समय संकल्प करें गुस्सा नहीं करूंगा। फिर उठते ही संकल्प को दोहराएं और लम्बे श्वास का अभ्यास करें। ऐसा करने से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है, चिड़चिड़ेपन को दूर किया जा सकता है।


चरित्रवान बनने के मानक तŸवों की चर्चा

आचार्य महाश्रमण ने आलोक स्कूल के विद्यार्थियों को संबोध देते हुए कहा कि बौद्धिक विकास हो रहा है। यह अच्छा है। परन्तु इसके साथ भावात्मक विकास भी होना चाहिए। इस विश्वास के लिए जीवन विज्ञान का प्रकल्प प्रस्तुत किया गया। यह शिक्षा विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करती है। इसके साथ विद्यार्थी को नैतिकता, ईमानदारी, चरित्र के प्रति निष्ठा जागनी चाहिए। चरित्रवान बनने के लिए जरूरी है विद्यार्थी अनैतिक तरीकों से परीक्षाओं में पास होने का मानस नहीं रखना चाहिए। श्रमशीलता होनी चाहिए और नशामुक्ति होनी चाहिए। आचार्य श्री ने इस मौके पर सभी विद्यार्थियों को नशामुक्ति का संकल्प दिया।


प्रथम लक्ष्य हो अच्छा इंसान बनना

अणुव्रत अनुशास्ता ने कहा कि विद्यार्थी जीवन में लक्ष्य निर्धारित करता। कोई डॉक्टर बनना चाहिता है तो कोई वकील, कोई इंजीनीयर तो कोई राजनेता। यह सब लक्ष्य अच्छे है पर सबसे पहला लक्ष्य अच्छा इंसान बनने का होना चाहिए। अणुव्रत मानव को मानव बनाने का, अच्छा इंसान बनाने का आंदोलन है। इसके छोटे छोटे नियम जीवन में स्वीकार कर जीवन का निर्माण कर सकते है। चरित्रवान बन सकते है। अणुव्रत के नियमों में भारतीय संस्कृति को, चरित्र की संस्कृति को जीवत रखने की अद्भुत क्षमता है।


Thursday, August 18, 2011

विचित्र जुड़वा पाडे पाडी


समीपवर्ती डुंगा काखेड़ा गांव में रविवार को जवाहरलाल पिता मेघाराम जाट के नोहरे में एक भैस के विचित्र जुड़वा पाडे पाडी को देखकर ग्रामीण अचरज में पड़ गये सरदारगढ़ के पशुचिकित्सक डांॅ राजकुमार भारद्धाज व झौर चिकित्सक
ड़ॅंा राधेश्याम सैनी दोनो ने मिलकर भैस का कन्सेशन सेंशन ऑपरेशन किया दो घण्टे के अथक प्रयास के बाद भैस के पेट मेसें दो मंह, दो पुछ, व आठ टंागों वाला मृत पाडे पाडी का जुड़वा जोड़ा बाहर निकाला बताया की भैस के पेट पर डेड फीट का चीरा लगाकर बच्चे दानी से एक विचित्र जुड़वा पाडे़-पाड़ी का जोडा निकाला गया दोनो पाडे़-पाड़ी पेट से मृत निकले है वे पीछे के पुठे से चिपके थै जुड़वा पाडा-पाडी के दो मुंह आठ पैर दो पुंछ को देखकर मौके पर खडे़ अम्बालाल जाट, रतनलाल जाट,शिवलाल जाट, भैरूलाल जाट, सहित कई लोग विचित्र पाडे-पाडी के जोड़े को देखकर दंग रह गये। भैस के विचित्र पाडे पाडी की सुचना गांव में आग की तरह फैल गई तो आसपास के कई लोग देखकर हतप्रभ रह गये। भेैस का स्वास्थ्य अच्छा है।
वर्जन- ऐसी स्थिति भैस के एक अण्डाशय में दो शुक्राणुओं के निषेचन किये जाने से हुई है। हमने भी भेस के एक जैसा जुड़वा पाडे पाडी का जोड़ा प्रथम बार ऐसा केश देखा है।- डांॅ राजकुमार भारद्धाज प्रभारी पशुचिकित्सालय सरदारगढ़।

तेरापंथी शिक्षण संस्था प्रतिनिधि सम्मेलन का आयोजन



तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि वर्तमान में विद्यालय कमाई का माध्यम बन चुके हैं। केवल कमाई के माध्यम नहीं होने चाहिए। इसमें अच्छी शिक्षा की व्यवस्था और संस्कार देने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षक चाहिए और अच्छे शिक्षकों के लिए अच्छा वेतनमान चाहिए। वेतन आदि खर्चों को पूरा करने के लिए फीस बढाई जाती है। पर यह सब होते हुए भी शिक्षा अच्छी नहीं दी जाती है और बच्चें के सर्वांगीण निर्माण पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो वह विद्यालय अभिभावकों के सपनों के अनुरूप अपनी छवी नहीं बना सकता है।
उक्त विचार उन्होंने तेरापंथी शिक्षण प्रतिनिधि सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि जैनों से संबंधित विद्यालयों में जैनिज्म की पढाई होनी चाहिए। जब ईसाई धर्म से जुडी स्कूलों में ईसाई धर्म के संस्कार दिये जा सकते हैं तो जैन धर्म से, तेरापंथ से जुडी विद्यालयों में जैनिज्म के संस्कार क्यों नहीं दिये जा सकते। इन विद्यालयों में जैनिज्म पढाई जायेगी तभी जैन धर्म के संस्कार आयेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे ओर किसी से आशा नहीं है, किसी अन्य विद्यालयों में जैनिज्म के संस्कार दिये जाये यह सोच नहीं सकते। मुझे वहीं से आशा है जहां जैनों के विद्यालय है। वहां पर ही जैनिज्म के संस्कार दिये जा सकते हैं। जैन तेरापंथ से जुडे विद्यालयों में प्रवेश करते ही अहसास हो जाना चाहिए कि यह जैनों का विद्यालय है। वहां पर प्रार्थना सभा में नवकार महामंत्र का जप होना चाहिए विद्यालय परिसर में भगवान महावीर का चित्र,आचार्य भिक्षु आदि आचार्यों के चित्र लगे होने चाहिए। जैनिज्म की क्लासे भी चलनी चाहिए। पर्युषण पर्व के दोरान स्कूल में व्याख्यान माला का आयोजन होना चाहिए शोति दुत आचार्य श्री महाश्रमण ने कानोड आवासीय विधालय का उदघाटन प्रस्तुत करते हुए कहा की वहा पर अछे संस्कार दिए जाते है। हॉस्टल में रहने वाले बच्चे सामायिक करते है। यह सुदंर व्यवस्था हैं इस तरह की गतिविधियो जैनो के सभी विधालयो में चलनी चाहिए उन्होने कहा कि इस शिक्षा संस्कार प्रतिनिधि सम्मेलन में ऐसा किंतन चले जिसमे सभी तेंरापथी विधालय सामूहिक निर्णय लेने की स्थिती में आ सके। हमारे विधालय में क्या चलना चाहिए और क्या नही इस पर किंतन होना चाहिए।
जीवन विज्ञान की शिक्षा हो अनिवार्य
आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि जीवन जीवन विज्ञान की शिक्षा किसी भी धर्म से सम्बध रखने वाली शिक्षन सस्थाओ में दि जासकती है तो तेरापथी विधालयो में क्यो पिछे रहे । इन विधालयो में इसे अनिवार्य शिक्षा करनी चाहिए। जीवन विज्ञान से बच्चो का सर्वागीण होता है। यह शिक्षा बच्चों के जीवन को व्यवस्थित एवं सस्ंकारी बनाती है। उन्होने कहा कि भारतीय विधालयो में एक विधा है जैन विधा ज्ञान का अनुप खजाना है। भरा हैं,तेरापथं विधालयो में इस विधा के मूल्या कन होने चाहिए।
आत्म दर्शन से मिलता है,परम आनंद
आचार्य श्री महाश्रमण ने सम्बोधि पर प्रवचन देते हुए कहा कि आत्म दर्शन से परम आनन्द की अनुमती होती है इस आंनद की अनुमती मन से,होती है इंिन्दयो से नही हो सकती परम आनंद अकल्पनीय है। अनुक्रति होने के बादव्यक्ति में न अहंकार रहता हैं और न बुदि का अस्तित्व । उन्होने कहा कि साधरन व्यक्ति इन्दिया विषयो में झमता है,और विशिष्ट साधन इन्दियो से परम आनंद पाने का प्रयास करना है।

साध्वी सरल प्रभा ने किया 32 दिनांे का उपवास

आचार्य श्री महाश्रमण की शिष्या साध्वी सरलप्रभा ने 32 दिनो का उपवास कर केलवा चातुर्मास में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। साध्वी ने 32 दिनों तक पानी के सिवाय कुछ भी ग्रहण नही किया। उन्होने इस तपस्या को करने में आचार्य महाश्रमण के आशीर्वाद को शक्ति प्रदापक माना साध्वी सरलप्रभा इस तपस्या के अवसर तप अनुमोदन का कार्य कर्म चला। इसमें आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि जिसमें आत्म बल,प्रेरणा बल होता है वही ऐसी तपस्या कर सकता है। साध्वी सरलप्रभा ने इतनी बडी तपस्या का बहुत महत्वपूर्ण काम किया है,यह साध्ुवाद की पात्र है।
इस मौके पर साध्वी नित प्रभा ने साध्वी की तपस्या पर कहा कि साध्वी सरलप्रभा ने नाम के अथ विपरित कठिन कार्य किया है। साध्वी प्रज्ञा श्री ने साध्वी की तपस्या को आचार्य श्री महाश्रमण अमृत महोत्सव के अवसर पर पंचाचार की साधना में तपराधना का उदाहरण बताया,सरोज देवी कोधरा,सरिता देवी बोरढ,मुक्ति मण्डल केलवा एवं साध्वी के संस्कारीत परिवार के सदस्यो ने गीतो के द्वारा तत्प अनुमोदना की आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द कोठारी नें कहा कि जहॉ अनहार करने वाले दो चार दिनों में हि अस्वाध हो जाते है,नही साध्वी सरलप्रभा नें 32 दिनों की तपस्या कर विलक्षण काम किया है,मुनि प्रशन्न कुमार नें तपस्या करने की प्रेरणा दी ।

Wednesday, August 17, 2011

राजसमंद के विविध समाचार


जिले में उचित मूल्य दुकानदारों की नियुक्ति
राजसमन्द, 17 अगस्त। जिले की विभिन्न तहसीलों में उचित मूल्य दुकान आवंटन सलाहकार समिति की जिला रसद अधिकारी की अध्यक्षता में आयोजित बैठकों एवं सदस्यों की सर्वसम्मत राय/बहुमत के आधार पर निम्नांकित आवेदकों को उनके सम्मुख अंकित स्थानों के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
जिला कलक्टर (रसद) डॉ.प्रीतम बी.यशवंत ने बताया कि देवगढ़ तहसील में श्री दिनेश चन्द्र गुर्जर को अनोपेपुरा ग्राम पंचायत कुन्दवा के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है। इसी प्रकार श्री सुरेश चन्द्र गुर्जर को कांकरोद में ग्राम पंचायत कांकरोद के लिये तथा श्री गोवर्धन नाथ को सालियाखेड़ा ग्राम पंचायत आंजना के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
एक अन्य आदेश में आमेट तहसील में जी.एस.एस.गोवल को बीकावास ग्राम पंचायत बीकावास की उचित मूल्य दुकान के लिए यह व्यवस्था की गई है। यहीं पर प्रहलादसिंह सौलंकी को आरक्षित लगाया है। इसी प्रकार श्रीमती रामूदेवी जाट को पनोतिया उचित मूल्य दुाकान के लिए लगाया गया है। यहां रोशनलाल लौहार को आरक्षित के रूप में लगाया है।
कुम्भलगढ़ तहसील के श्री नाथूराम मेघवाल को बोरड़ ग्राम पंचायत के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है। इसी प्रकार रेलमगरा तहसील के श्री पूरणमल जाट को सोनियाणा ग्राम पंचायत पछमता के लिए, श्री मांगीलाल रेगर को चावण्डिया ग्राम पंचायत धनेरिया के लिए तथा श्री लेहरूलाल को मदारा ग्राम पंचायत सकरावास के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
इसी प्रकार भीम तहसील में श्री देवीसिंह रावत को नालोई ग्राम पंचायत अजीतगढ़ के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है। श्री रोशनलाल खटीक को भरतू ग्राम पंचायत भीम के लिए, श्री सोहनसिंह रावत को डूंगरखेड़ा ग्राम पंचायत डूंगरखेड़ा के लिए, श्री लक्ष्मण सिंह को डांसरिया ग्राम पंचायत भीम के लिए, श्री पप्पुलाल खटीक को धोली घाटी ग्राम पंचायत भीम के लिए, श्री प्रभुलाल खटीक को कालेटरा ग्राम पंचायत कुकरखेड़ा के लिए तथा श्री चेतन सिंह रावत को जालपा ग्राम पंचायत कूकड़ा के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
नाथद्वारा तहसील में मगन सिंह चदाणा को चौकड़ी की भागल ग्राम पंचायत गांवगुड़ा के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है। इसी प्रकार फतहलाल भील को उषाण ग्राम पंचायत घोड़च के लिए, पर्वत सिंह को शिवसिंह का गुड़ा ग्र्राम पंचायत नेड़च के लिए, नानालाल खटीक को कामां ग्राम पंचायत फतहपुर के लिए, बाबूलाल बैरागी को निचली ओडन ग्राम पंचायत उपली ओडन के लिए, भगवतीलाल लखारा को सर की भागल ग्राम पंचायत सलोदा के लिए, भंवर सिंह राजपूत को बलीचा ग्राम पंचायत उनवास के लिए, नरेश कुमार वीरवाल को खमनोर-1 ग्राम पंचायत खमनोर के लिए, जसवंत सिंह को सरदारपर ग्राम पंचायत उथनोल के लिए, श्रीमती सुनीता देवी खटीक को गंुजोल ग्राम पंचायत कुचौली के लिए, श्रीमती शारदा देवी खटीक पत्नी भूरालाल खटीक को मोड़वा-प्प्प् ग्राम पंचायत कोठारिया के लिए तथा जय मॉ करणी सालोर, म0 सहा0 समूह, उषा पालीवाल, अध्यक्ष को सालोर के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
इसी प्रकार तहसील राजसमन्द में डालचन्द कुमावत को लवाणा ग्राम पंचायत भाणा के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है तथा यहां पर गोपीलाल कुमावत को आरक्षित रखा गया है। इसी प्रकार किशनलाल की को पीपली आचार्यान के लिए, अमर सिंह राठौड़ को कानादेव का गुड़ा ग्राम पंचायत फरारा के लिए, किशनलाल गाडरी को अमलोई ग्राम पंचायत राज्यावास के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है तथा यही पर मदनलाल साहु को आरक्षित रखा गया है। जागृति महिला स्वयं सहातयता समूह, कुवारियां को कुंवारियां-के लिए, मनोहरलाल कुमावत को नोगामा ग्राम पंचायत एमड़ी के लिए, रमेश चन्द्र को दोवड़ा ग्राम पंचायत सुन्दरचा के लिए तथा शम्भुलाल खटीक को तारोट ग्राम पंचायत साकरोद के लिए उचित मूल्य दुकानदार नियुक्त किया गया है।
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मृतक आश्रितों को मुख्यमंत्री कोष से 60 हजार की आर्थिक सहायता
राजसमन्द, 17 अगस्त। जिला कलक्टर (आ.प्र. एवं सहायता) डॉ.प्रीतम बी.यशवंत ने अलग-अलग आदेश जारी कर सड़क दुर्घटना में मरने वालांें के आश्रितों को 60 हजार की आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री कोष से स्वीकृत की है।
आदेशों के अनुसार मृतक ख्याली लाल पुत्र श्री रतन लाल निवासी अमरतिया पंचायत जनावद तहसील कुंभलगढ़ को उसके पिता रतन लाल को 20 हजार की आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री कोष से स्वीकृत की है। इसी प्रकार मृतक पूरणमल पुत्र चम्पा लाल जी निवासी मोही तहसील राजसमन्द के लिए उसके पिता चम्पा लाल तथा मृतक हरिश पुत्र लहरी लाल निवासी मोही तहसील राजसमन्द के लिए उसकी माता श्रीमती मांगी बाई प्रत्येक को 20-20 हजार रूपये की आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री सहायता कोष से स्वीकृत की है।
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बीपीएल परिवारों के लिए लेवी चीनी का उप आंवटन
राजसमन्द, 17 अगस्त। जिला रसद अधिकारी गोŸाम चन्द जैन ने एक आदेश के तहत सितम्बर माह के लिए बीपीएल परिवारों (अन्त्योदय अन्न योजना चयनित परिवारों सहित) को चीनी वितरण करने के लिए थोक विक्रेतावार चीनी उठाने के लिए 186.4 मैट्रिक टन चीनी का उप आंवटन किया गया है।
उन्होंने बताया कि उचित मूल्य दुकानदारों द्वारा 500 ग्राम चीनी बीपीएल परिवारों को 13 रूपये 50 पैसे की दर से वितरित की जाएगी।

नाथद्वारा में 42 मि.मी. वर्षा
राजसमन्द, 17 अगस्त। जिला बाढ़ नियंत्रण कक्ष से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के नाथद्वारा तहसील में बुधवार को सुबह आठ बजे समाप्त हुंए पिछले 24 घण्टों के दौरान 42 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई है।
इसी प्रकार देवगढ़ में 39, रेलगरा में 2, कुंभलगढ़ में 24, भीम में 29, आमेट में 4 तथा राजसमन्द में 6 मिलीमीटर वर्षा रिकार्ड की गई।

बच्चों को संस्कारवान बनाने की जरुरतः आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण ने आज के परिवेश में जीवन विज्ञान की आवश्यकता को महत्ती बताते हुए अभिभावकों से आहृान किया कि वे अपने बालकों को बाल्यावस्था से इस तरह की शिक्षा दें कि युवावस्था में पहुंचते ही संस्कारों से लबरेज हो जाए। बचपन से मिलने वाले संस्कार से बालक का सर्वांगीन विकास होता है। जितने अच्छे उसके संस्कार होंगे। उतनी ही उसकी प्रगति की राह आसान हो जाएगी।
आचार्यश्री बुधवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम में दैनिक प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित मुनि मेघ और भगवान महावीर के बीच के वृतांत को प्रस्तुत करते हुए कहा कि मन, वाणी और इंन्द्रियों पर नियंत्रण करने से सुखों की प्राप्ति की कल्पना की जा सकती है। मोक्ष में सुख कैसे मिले ? प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने कहा था कि जो सुख मन से, वाणी से और शरीर से उत्पन्न होता है। इस सुख को एक आम आदमी भी महसूस कर सकता है, लेकिन सुखों से आगे भी एक सुख है परम सुख। यह सिद्धावस्था में ही मिलता है। जो वाणी से पार होता है। धर्म की साधना, आराधना और आध्यात्म के द्वारा भी सुख को प्राप्त किया जा सकता है। शरीर, वाणी और मन में व्याप्त होने वाली आकांक्षाओं का निरोध भी परम सुख की ओर अग्रसर करता है। प्रेक्षाध्यान आध्यात्म और साधना से मानसिक शांति मिलती है। आचार्यश्री ने कहा कि विद्यार्थी वर्ग के सामने पूरा जीवन पडा हुआ है। वे जैसा चाहे वैसा उसे ढाल सकते है। वे टेलीविजन देखते समय ज्ञानवर्धक बातों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। टीवी के माध्यम से उनके जीवन में खराब संस्कार भी आ सकते है। अंधेरपक्ष बच्चों के संस्कारों को विकृत कर सकती है। हिंसा, अश्लीलता और फूहडपन को अपने जीवन से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। टीवी देखना खराब नहीं है। इसका उजला पक्ष भी है। ज्ञान की बातें भी इस पर आती है। उसे ग्रहण किया जाना चाहिए।
आचार्यश्री ने जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान और अणुव्रत को एक सागर के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि जीवन विज्ञान के माध्यम से एक अच्छी पीढी का निर्माण किया जा सकता है। यह जीवन जीने की कला सिखाता है। विपरित परिस्थितियों में किस तरह से हालातों का सामना किया जाए। यही जीवन विज्ञान है। इसका लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग को उठाना चाहिए। जो कार्य योजना से आगे हो उससे निष्पति आ सकती है। जिस व्यक्ति को जीवन जीने का अहसास नहीं हैं उसके लिए सब कुछ मिथ्या है।
आसक्ति को छोडने की आवश्यकता
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे भौतिक सुखों को त्यागने की प्रवृति विकसित करें। आज उन्हें विभिन्न आसक्तियों ने अपने मोहपाश में बांध लिया है। इससे छुटकारा पाने के लिए धर्म, आराधना, तपस्या की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करें। आसक्ति हमें परम सुखों की अनुभूति से पीछे की ओर धकेलती है। स्वाध्याय और ध्यान से भी सुख को प्राप्त किया जा सकता है। अनाशक्ति की साधना से मिलने वाला सुख कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने जीवन विज्ञान अकादमी, जैन विश्व भारती लाडनूं की ओर से आयोजित किए जा रहे जीवन विज्ञान अकादमी कार्यकर्ता सेमिनार में शिरकत करने के लिए देश के अनेक प्रांतों से आए युवाओं को सीख देते हुए कहा कि वे इस प्रशिक्षण शिविर से प्राप्त अनुभवों को परिवार के सदस्यों में बांटने का प्रयास करें। इससे न केवल परिवार का वातावरण धर्ममय बनेगा बल्कि समाज में भी इसका प्रकाश फैलेगा। वह जिस ज्ञान को अभी प्राप्त कर रहे है। वह शिक्षा जगत के लिए महत्ती आवश्यकता बन गया है।
स्वर्णयुग की तरह बनाएं जीवन
मंत्री मुनि सुमेरमल ने प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं से आहृान किया कि उनके जीवन में पूरी तरह से दक्षता का समावेश हो। केवल जबान से किसी को प्रशिक्षण न दें। इस तरह के प्रशिक्षण बौद्धिकता तक ही सीमित होकर रह जाते है। जीवन में उतरकर अन्य लोगांे को प्रशिक्षण देना है। इसका स्वरूप प्रायोगिक हो। हमारे जीवन में जीने की कला जीवन विज्ञान, अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान से आएं और यह स्वर्णयुग की भांति समाज में प्रकाशमान हो।
आचार्य प्रवर की मंशा है कि प्रत्येक घर में श्रम की परपंरा का निर्वाह हो। जो व्यक्ति हाथ से सभी उपक्रम करने की मंशा रखता है। वह सही मायने में अहिंसक है। वह अहिंसा का पालन कर रहा है। जीवन विज्ञान की बदौलत हम जीवन को श्रम से जोड सकते है। इसके बिना सारे उपक्रम अधूरे है। इससे घर का वातावरण स्वर्ग की भांति बनेगा और समाज का विकास संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि जहां कडवाहट को दूर करने का प्रयास किया जाता है वह जीवन विज्ञान है। धर्म को जीवन में उतारने के उपक्रम की सफलता से विपरित परिस्थितियों में व्यवस्थित, संतुलित और प्रसन्न कैसे रहा जाए। इसका भाव मन में आता है। यह स्वयं, परिवार और समाज के लिए लाभप्रद साबित होगा। जीवन विज्ञान प्रभारी मुनि किशनलाल ने दो दिवसीय सेमिनार की जानकारी देते हुए प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं से यहां से मिले ज्ञान का फैलाव देशभर में करने का आगह किया। इस अवसर पर मुनि नीरज कुमार, चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, राकेश खटेड, गौतम सेठिया, विक्रम सेठिया ने भी विचार व्यक्त किए।
तेरापंथी शिक्षण संस्थान प्रतिनिधि सम्मेलन आजः आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में गुरुवार को केलवा में देशभर में चल रहे तेरापंथी शिक्षण संस्थान के प्रतिनिधियों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। जीवन विज्ञान अकादमी, जैन विश्व भारती लाडनंू की ओर से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शैक्षणिक उन्नयन और वर्तमान शिक्षा पर गहनता से विचार विमर्श किया जाएगा।
पर्युषण पर्व दिवस 26 से
आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में आगामी 26 अगस्त से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार रोड केलवा में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। 26 अगस्त को पहले दिन खाद्य संयम दिवस, 27 अगस्त को स्वाध्याय दिवस, 28 अगस्त को सामायिक दिवस, 29 अगस्त को वाणी संयम दिवस, 30 अगस्त को अणुव्रत चेतना दिवस, 31 अगस्त को जप दिवस, एक सितम्बर को ध्यान दिवस, दो सितम्बर को संवत्सरी महापर्व तथा तीन सितम्बर को क्षमापना दिवस मनाया जाएगा। इस दरम्यान प्रतिदिन सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।
सुखी बनों का दूसरा अंक भी समाप्त
आचार्यश्री महाश्रमण की पुस्तक सुखी बनों का क्रेज पाठकों में लगातार बना हुआ है। जैन विश्व भारती लाडनंू द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का दूसरे अंक की ग्यारह सौ प्रतियां भी बुधवार को स्टॉल पर पहुंचते ही हाथों-हाथ बिक गई। करीब तीन हजार लोग इस पुस्तक के तीसरे अंक के लिए अभी से ही कतार में है। वहीं सैंकडों लोगों ने अग्रिम बुकिंग कराना शुरु कर दिया है।



Saturday, August 13, 2011

पार्टी नहीं, राष्ट्र रहे नम्बर एक-आचार्य महाश्रमण


शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समागम को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के सामने राष्ट्रीय एक नम्बर पर रहना चाहिए, पार्टी नहीं। जब पार्टी नम्बर एक होती है तो राष्ट्र हितों का लक्ष्य धूमिल हो सकता है। उन्होंने आर.एस.एस की व्यवस्थाओं की सराहना करते हुए कहा कि मैं संघ की व्यवस्थाओं से बहुत प्रभावित हूं। अनुशासन बद्धता है और राष्ट्रभक्ति के संस्कार दिये जाते है।
आचार्य श्री ने कार्यकर्ताओं की कसौटियों के सन्दर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि जो कार्य करता है वह कार्यकर्ता होता है, पर अपने लिए नहीं दूसरों के लिए कार्य करता है वह इस श्रेणी में आता है। दूसरों की सेवा करता है, उपकार करता है ऐसे कार्यकर्ताओ के भीतर सबसे पहले जरूरी है सेवा भावना हो। उसके बाद जरूरी है उसमें सहिष्णुता हो। सेवा करते हुए हो सकता है अनेक सम्मान, पुरस्कार मिल जाये और हो सकता है अपमान भी मिल जाये। इस मान अपमान की स्थितियों को सहन करना अपेक्षित होता है। कार्यकर्ता के लिए तीसरी बात जरूरी है विनम्रता। विनम्रभाव से पेश आना चाहिए। उदंडता नहीं होनी चाहिए। चौथी बात है दक्षता। कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में अपने कार्यों में दक्षता का परिचय दें। योग्यता का विकास करें। इस सबके साथ सर्वोपरी है नैतिकता का होना। अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से आचार्य तुलसी ने भारत की पद यात्रा कर नैतिकता का सन्देश जन-जन तक पहुंचाया था। इन गुणों को हम अपने आप में विकसित करने का प्रयास करें। जब हमारे से सुधार की बात प्रारम्भ होगी तो समाज अपने आप सुधार पर पहुंच जायेगा। व्यक्ति समाज का ही हिस्सा होता है। जब समाज सुधरेगा तो राष्ट्र भी स्वयं सुधर जायेगा।
आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति में अनुकम्पा की चेतना का विकास हो, यह जरूरी है। समाज में लौकिक अनुकंपा जरूरी है ना अध्यात्म की दृष्टि से लोकोŸार अनुकम्पा। उन्होंने कहा कि बड़े हितों के आगे छोटे हितों को गोण कर देना चाहिए।


प्रथम सन्देश: कन्या भू्रण हत्या रोके
आचार्य श्री महाश्रमण ने अपने संबोधन में सबसे पहला सन्देश कन्या भू्रण हत्या रोकने का सन्देश किया। उन्होंने कहा कि आज रक्षाबंधन का पर्व है। भाई-बहिन के मधुर संबंधों को पुष्टि करने वाला उत्सव है। मैं कन्या भू्रण हत्या की बात काफी सुनता हूं। अगर इस तरह का घिनोना कृत्य होता रहेगा तो बहिन का रिश्ता कहां से लाएंगे। हम अपनी यात्रा में भू्रण हत्या न करने का सन्देश देते है और इस सन्दर्भ में कार्य चल रहा है। सब संकल्प करें कि ऐसा घिनोना कार्य नहीं करेंगे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को ऐसा वातावरण बनाने की प्रेरणा दी जिससे देश में स्वर्ग उतर आये।

Thursday, August 11, 2011

स्वास्थ्य के लिए सुव्यवस्थित दिनचर्या आवश्यकः आचार्यश्री महाश्रमण



आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति सुखाकांक्षी होता है और भौतिक सुखों की कामना करता है। शरीर सुखानुभूति का साधन है तो व्याधियों का घर भी है। जिस व्यक्ति का उठना निश्चित है दिनचर्या निश्चित है। उसका शरीर स्वाध्याय रह सकता है और साधना ठीक रह सकती है।
आचार्यश्री ने यह उद्गार गुरुवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भागवत गीता में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि जिस व्यक्ति के आहार का क्रम संतुलित होता है, घूमने की दिनचर्या होती है उसका शरीर दूसरों की अपेक्षा काफी ठीक रहता है। ऐसे में उसके द्वारा की गई साधना अच्छी मानी जाती है। आदमी के जीवन में किसी तरह की रुकावट न आ जाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि उसे प्रेरणा की घुटी दी जाए। संबोधि के चौथे अध्याय में बताया गया है कि हमारा चलना अहिंसा से युक्त हो और किसी जीव की हत्या हमारे से न हो जाए। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
आचार्यश्री ने हाजरी वाचन करते हुए फरमाया कि संत हृदय नवनीत के समान माना जाता है, परन्तु नवनीत स्वयं तृप्त होने पर पिघलता है और संत का हृदय तो दूसरों को तृप्त होते देखकर भी पिघल जाता है। उन्होंने साधु-साध्वियों की सेवा की सराहना करते हुए कहा कि हमारे साधु-साध्वी बहुत सेवाभावी है। उनको संघ के कार्यों के लिए तैयार रहना चाहिए। संघ की सेवा का रात को 12 बजे भी सेवा का अवसर मिले तो ना नहीं करनी चाहिए।
वाणी पर संयम जरूरी
व्यक्ति से सदैव अपनी वाणी पर संयम रखने का आहृान करते हुए उन्होंने कहा कि विचार पूर्वक बोलना चाहिए। भाषा का संयम हमें हिंसा और असत्य से बचाती है। उन्होंने तेरापंथ के पांच स्तम्भों की जानकारी देते हुए कहा कि संगठन के प्रति हमारी सम्मान की भावना बना रहनी चाहिए। शिष्य प्रथा संगठन को तोडने वाली होती है। तेरापंथ में कोई अपना शिष्य नहीं बना सकता। सभी शिष्य-शिष्याएं एक मात्र आचार्य के होते है। संघ के प्रति समर्पण भाव होना आवश्यक है। संगठन की यह पॉलिसी है कि आज का काम आज ही निपटा दो। कल पर मत छोडो। ऐसा करने से काम निर्विध्न तरीके से होते रहेंगे।
मुनि महावीर बने गीत गायन प्रतियोगिता के विजेता
आचार्य महाश्रमण के अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित साधु-साध्वियों की गीत गायन प्रतियोगिता के विजेता मुनि महावीरकुमार बने। मुनि महावीर ने भिक्षु स्वामी पधारो गीत की प्रस्तुति दी तो जनता उनके भावों में बह गई और ओम् अर्हम की हर्षध्वनि से पूरा पंडाल गंूज उठा।
प्रतियोगिता में 38 साधु-साध्वियों ने गीतों को स्वर दिया। प्रस्तुतियां एक से बढकर एक थी, जिससे निर्णायकों को निर्णय देने में मशक्कत करनी पडी। प्रतियोगिता में द्वितीय साध्वी चरित्रयशा एवं तृतीय मुनि जंबूकुमार रहे। प्रोत्साहन स्थान के लिए मुनि प्रशमकुमार, बालमुनि अनुशासनकुमार, मुनि सुधांशुकुमार, साध्वी विवेकश्री, साध्वी संगीतप्रभा का चयन किया गया। निर्णायक मुनि सुखलाल, मुनि विजयकुमार, साध्वी जिनप्रभा एवं साध्वी सारदाश्री थे।
प्रतियोगिता के दूसरे चरण में मुनि नीरजकुमार, मुनि महावीरकुमार, मुनि जंबूकुमार, मुनि सुधांशुकुमार, मुनि अनुशासनकुमार, मुनि मृदुकुमार, मुनि हितेन्द्रकुमार, मुनि अनंतकुमार, मुनि भवभूति, साध्वी ज्ञानप्रभा, साध्वी संगीतप्रभा, साध्वी अतुलयशा, साध्वी कार्तिकयशा, साध्वी सविताश्री, साध्वी जयविभा, साध्वी मुकुलयशा, साध्वी सुमंगलप्रभा, साध्वी वसुधाश्री ने अपनी प्रस्तुतियां दी।
इस मौके पर आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहने वाले प्रतियोगियों के गायन की सराहना करते हुए कहा कि गायन एक कला है। इसमें इतनों ने उत्साह दिखाया बहुत अच्छी बात है। आचार्य ने मुनि महावीर को 31 कल्याणक, साध्वी चरित्रयशा को 21 कल्याणक, मुनि जंबूकुमार को 11 कल्याणक, प्रोत्साहन स्थान पर रहने वालों को 9 कल्याणक एव सभी प्रतिभागियों को 7-7 कल्याणक प्रदान किए। मुनि सुखलाल ने कहा कि नाद अथवा स्वर को लंबा करने की साधना महत्वपूर्ण है। सबने अच्छा प्रयास किया। हम निर्णायकों को अंक देने में कठिनाई महसूस हुई। ऐस कार्यक्रम होते रहने चाहिए। साध्वी जिनप्रभा ने प्रतियोगिता का निर्णय घोषित किया। संचालन मुनि जितेन्द्रकुमार ने किया।
मोहन भागवत आज केलवा में
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को आचार्यश्री महाश्रमण की उत्तराध्ययन एवं श्रीमद भागवत गीता आधारित पुस्तक सुखी बनों के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शरीक होने केलवा आएंगे।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि मोहन भागवत आचार्य महाश्रमण की इस चर्चित कृति पर व्याख्यान देंगे एवं देश की वर्तमान स्थितियों से आचार्यप्रवर को रूबरू कराने के साथ ही समाधान भी जानेंगे। कोठारी ने बताया कि जैन विश्व भारती लाडनंू से प्रकाशित सुखी बनों प्रकाशन के पूर्व ही चर्चित हो गई है। इसकी अग्रिम बुकिंग के लिए सैंकडों लोग कतार में है। कोठारी ने बताया कि आचार्य की यह उदारवृति का परिचायक है कि उन्होंने अनेक धर्म ग्रंथों पर प्रवचन दिए है। गीता पर आने वाली यह कृति नए रहस्य प्रकट करने वाली है। इस मौके पर मोहन भागवत संस्कृत की पत्रिका भारती को आचार्यश्री को समर्पित करेंगे। यह पत्रिका आचार्य महाप्रज्ञ विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुई है।
अणुव्रत समिति केलवा की प्रथम बैठक
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य एवं मुनि सुखलाल स्वामी के निर्देशन से भिक्षु विहार के प्रांगण में गुरुवार को अणुव्रत समिति केलवा की प्रथम बैठक आयोजित की गई। इसमें मुनि सुखलाल स्वामी ने अणुव्रत की व्यापकता को बताते हुए आचार्य के स्वपन संपूर्ण केलवा ग्राम को नशामुक्त कराने की रुपरेखा प्रस्तुत की। मुनि अशोक कुमार ने आचार्य के एक सूत्रीय कार्यक्रम नशामुक्ति केलवा के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किए। मुनि जयंत कुमार ने अणुव्रत की कार्ययोजना बनाकर इसे प्रत्येक व्यक्ति से जोडने का आहृान किया। बैठक में समस्त पदाधिकारी एवं सदस्य मौजूद थे।