Thursday, September 8, 2011

ठाठ-बाठ से निकली भगवान चारभुजानाथ की शोभायात्रा

राजसमंद, । धर्मनगरी चारभुजा में जलझुलनी एकादशी पर गुरुवार को मेवाड़ के प्रसिद्ध धार्मिक लक्खी मेले में श्रद्धा का ज्वार उमड़ पड़ा। धर्मनगरी छोगाला छेल के जयकारों से गूंजती रही। इस अवसर पर भगवान चारभुजानाथ की पूरे ठाठ-बाठ से शोभायात्रा निकाली गई तथा भगवान को परम्परागत तरीके से दूधतलाई में पवित्र स्नान कराया गया।
भगवान के दर्शनार्थ लोगों का सैलाब सुबह चार बजे से ही मंदिर परिसर में उमडऩा शुरू हो गया। सुबह पांच बजे भगवान चारभुजा के मंगला आरती के दर्शन खुले जो एक घंटे तक रहे। इसके बाद साढ़े आठ बजे से ग्यारह बजे तक भी दर्शन खुले रहे इसके साथ ही मंदिर परिसर में पूजारीगण शोभायात्रा के लिए भगवान को श्रृंगारित करने में जुटे रहे। परम्परानुसार भगवान चतुर्भुज की बाल स्वरूप प्रतिमा को वस्त्र एवं आभुषणों का श्रृंगार धराने के बाद स्वर्ण पालकी में बिराजित किया गया। इस दौरान मंदिर चौक में हजारों की तादाद में भक्तजन जमा हो गए जो चारभुजानाथ के गगनभेदी जयकारों के साथ नाच गाकर असीम हर्ष को प्रदर्शित कर रहे थे। सभी गुलाल से सरोबार होकर भक्तिभाव में लीन दिखाई दिए। सभी की निगाहें मंदिर द्वार पर टिकी थी कारण उन्हें भगवान की पालकी के आने का इंतजार था। पालकी के आने का ज्यों ज्यों समय नजदीक आता गया। श्रद्धालुओं की उत्सुकता द्विगुणित होती गई। ठीक पौने बारह बजे मंदिर से पूजारीगण बाहर आए तो उन्हें पालकी के आने का आभास हो गया। दर्शनों की उत्सुकता से वशीभुत भक्तजनों ने ‘छोगाला छेल की जै,’ ‘हाथी घोड़ा पालकी, जै कन्हैयालाल की’ आदि के जयकारे लगाए। जयकारों के समवेत स्वर से समूचा परिवेश गुंजायमान हो उठा। कुछ ही पल बाद भगवान की स्वर्ण पालकी मंदिर की सीढिय़ों से होते हुए चौक की ओर बढ़ती दिखी तो वहां मौजूद हरेक भक्तजन भगवान चतरर्भुज के स्वरूप को एक पल निहारने के लिए आतुर हो उठा किसी ने निकट से निहार कर स्वयं को धन्य माना तो किसी ने भीड़ की वजह से दूर से नतमस्तक किया। इस बीच शोभायात्रा की रवानगी हो गई। शोभायात्रा में सबसे आगे निवाण एवं ऊंट पर नंगारखाना, गजराज, अश्व एवं प्रभु के लिए रजत पालकी शामिल थी तो पीछे बैण्डबाजे भक्तिगीतों की स्वर लहरियां बिखरते चल रहे थे। उनके पीछे पारम्परिक वेशभुषा में सैंकड़ो पूजारीगण चल रहे थे जो अपने गले में सोने की कंठी व डोरा तथा पगड़ी एवं पछेवड़ी व चन्द्रमा धारण किए हुए थे। पूजारीगण हाथों में चांदी की छंडिया, गोटे, तलवारे, भाले आदि लिए पालकी के आगे भगवान की सेवामें खम्माघणी करते हुए चल रहे थे। मार्ग में छतरी पर भगवान को अमल का भोग धराया गया। शोभायात्रा के दूधतलाई पहुंचने पर पूजारीगण भगवान को पवित्र स्नान कराने दौड़ पड़े। भक्तजनों में भी होड लगी हुई थी कि वे भी भगवान को पानी के छींटे लगाकर स्नान कराएं। स्नान कराने के बाद पूजारीगण बाल स्वरूप प्रतिमा को छतरी में लाए तथा प्रभु के भीगे वस्त्रों को उतारा। पूजारी गोर्वधन राजावत ने प्रतिमा को केवड़े के फुल में लपेट कर अपने सिर पर धारण कर दूधतलाई की परिक्रमा शुरू की। परिक्रमा के दौरान दूधतलाई के पानी में खड़े श्रद्धालुओं ने प्रतिमा व पूजारीगण पर पानी उड़ेल कर आनन्द लिया। परिक्रमा मार्ग में स्थित छतरी में परम्परानुसार झीलवाड़ा ठिकाने की ओर से दौलतसिंह सौलंकी ने भगवान को अमल अरोगाई।
परिक्रमा पूर्ण होने पर पूजारीगण ने प्रभु को नए वस्त्र और आभूषणों से श्रृंगारित कर पूजारियों ने हरजस गाया। रजत पालकी में बिराजित किया तथा मंदिर के लिए रवानगी की। पूजारीगण भजन कीर्तन करते वापस मंदिर पहुंचे तथा आरती के साथ भगवान की बाल प्रतिमा को पुन: गर्भ गृह में बिराजित किया।
किरण ने किए चारभुजानाथ के दर्शन : चारभुजा में गुरुवार को आयोजित जलझुलनी एकादशी मेले में राजसमन्द विधायक किरण माहेश्वरी व अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी भागीदारी की तथा भगवान चारभुजानाथ के दर्शन किए। किरण के साथ पूर्व प्रधान कुम्भलगढ़ कमला जोशी, पूर्व उप प्रधान निर्भय सिंह झाला, पूर्व जिला परिषद सदस्य ललित चोरडिय़ा आदि ने भी भगवान के दर्शन किए।
जयकारों से गुंजती रही धर्मनगरी, दिनभर रही रैलमपेल : जलझुलनी एकादशी के अवसर पर धर्मनगरी में दिनभर रैलमपेल रही एवं समूचा परिवेश भगवान चारभुजानाथ के जयकारों से गुंजायमान रहा। सुबह से ही धर्मनगरी में श्रद्धालुओं की अपार आवक शुरू हो गई थी जो दोपहर तक जारी रही। बस स्टेण्ड से मंदिर तक एवं मंदिर के आसपास के क्षेत्र में दिनभर भारी रेलमपेल लगी रही। ग्यारह बजे बाद से एक घण्टे तक तो बस स्टेण्ड से मंदिर तक रास्ते में तिलभर भी जगह खाली नहीं थी। शोभायात्रा के दौरान दूधतलाई जाने के लिए मुख्य मार्ग के अलावा यहां कि संकड़ी गलियों एवं इससे आगे दो अन्य वैकल्पिक मार्गो पर भी लोगों की आवाजाही लगी रही।
गुलाल से श्रद्धालु सरोबार, रास्ते भी रंग गए : जलझुलनी एकादशी के मेले के अवसर पर धर्मनगरी में खुब गुलाल उड़ी, इस दौरान सभी श्रद्धालु सरोबार थे तो रास्ते रंग गए। शोभायात्रा से पूर्व एक घंटे तक मंदिर चौक में प्रभु की पालकी के इंतजार में आतुर श्रद्धालुओं ने इतनी गुलाल उड़ेली की सभी श्रद्धालु तो इससे सरोबार हुए ही पूरा चौक भी रंगीन हो गया। यही नहीं शोभायात्रा के मार्ग एवं अन्य गली मौहल्लों में भी रास्ते गुलाल से सरोबार हो गए।
प्रशासन, पुलिस ने की चौकसी : धर्मनगरी चारभुजा में जलझुलनी एकादशी मेले में कानूनी एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन एवं पुलिस चौकस रही। मंदिर के पास नियंत्रण स्थापित किया गया जहां से व्यवस्था का संचालन किया गया।


व्यक्ति का तर्कवाद होना आवश्यकः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज के परिवेश में व्यक्ति का तर्कवादी होना अत्यंत आवश्यक है। आध्यात्म के क्षेत्र में तार्किकता का भाव होना चाहिए। मैं स्वयं तर्कवाद को काम में लेता हंू। तर्कवाद मनुष्य को ज्ञानी और विषयविद् बनाने में मदद करता है। आचार्यश्री ने उक्त उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान अमृत महोत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को आयोजित कार्यक्रम में मौजूद हजारों लोगांे को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्द्धात्मक इस युग में आदमी के दिमाग में तर्क पैदा होना चाहिए। तार्किक व्यक्ति बात को अच्छी तरह से समझता है और परस्पर बातचीत में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि सामने वाला तर्क की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाता और निरुत्तर हो जाता है। जो व्यक्ति तर्क करना नहीं जानता वह मूक प्राणी है। आज जिस व्यक्ति के पास भाषा है, लेकिन उस पर नियंत्रण नहीं है तो भाषा का ज्ञान होना अनावश्यक हो सकता है। जिसके पास शब्द भंडार है वह ब्रहृा है। जिसके पास साहित्यक शक्ति नहीं है वह पंगु है और जिसके पास तर्क नहीं है। वह अपनी बात कहने में असमर्थ होता है। आचार्यश्री ने कहा कि अध्यात्म के क्षेत्र में श्रद्धा का बडा महत्व है। दो प्रकार के पदार्थ है हेतु गम्य और अहेतु गम्य। आचार्यश्री भिक्षु की भूमि पर बैठे है। वे बेजोड थे और उनमें श्रद्धा भरी हुई थी। तेरापंथ में तर्क और श्रद्धा दोनों का प्रयोग होता है। धर्म संघ में सर्वोच्च आचार्य होते है। मेरा 50 वां वर्ष चल रहा है। जन्म दिन को मनाना आवश्यक नहीं मानता। जन्म लेना बडी बात नहीं है। कृतत्व का शताब्दी समारोह मनाया जाए तो अच्छी बात होती है। मेरा अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। मैं संघ की बात को ना नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि 12 व्रतों को धारण करने की लहर चल रही है। नशामुक्ति का कार्य भी चल रहा है। संस्कृत भाषा का अभ्यास मंद न पडे। इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता है। इसका अभ्यास निरन्तर चलता रहना चाहिए। मैं अनुभव करता हंू कि तेरापंथ के आचार्य के पास कितनी शक्ति है। यह बडा वैभव है। इस वैभव का उपयोग धर्मसंघ के विकास में होता रहे और समाज विकास के पथ पर अग्रसर हो। केन्द्रीय संस्थाएं निरन्तर काम कर रही है। यह फूलों से भी बडी संस्था संस्था है। यह नीति निर्धारण का मंच है। महासभा भी कार्य कर रही है। तेरापंथ युवक परिषद् में युवाओं की फौज है। एक अच्छा नेटवर्क बना हुआ है। यह युवा हमारी शक्ति है। इस अवसर पर साघ्वी सुमतिप्रभा, साध्वी शशिप्रभा, साध्वी सदुप्रभा, साध्वी स्वस्तिकप्रभा, मुनि पुलकित कुमार, शासन गौरव मुनि धनंजय कुमार, मुनि अशोककुमार, साध्वी सुभ्रयशा और मुनि महावीर ने गीत का संगान और अपने विचार प्रकट किए। प्रारंभ में मुमुक्षु परिवार की ओर से मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया और अमृत महोत्सव के दूसरे दिन का आगाज हुआ। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में तेरापंथ विकास परिषद् की ओर से कन्हैयालाल छाजेड, जय तुलसी फाउन्डेशन की ओर से हीरालाल मालू, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चैनरूप चंडालिया, जैन विश्व भारती के विजयसिंह चौरडिया, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की कुलपति समकी चरित्रप्रज्ञा, अणुव्रत महासमिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबूलाल गोलछा, राष्ट्रीय अणुव्रत शिक्षक संसद के धर्मचंद जैन अनजाना, पारमार्थिक शिक्षक संस्था के बजरंग जैन, प्रेक्षा विश्व भारती अहमदाबाद के जसराज वुरड, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के सलील लोढा, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के अध्यक्ष गौतम डागा और अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कनक परमेचा ने विचार व्यक्त किए।
आचार्य तुलसी कर्तव्य पुरस्कार उदयपुर की नीलिमा खेतान को
इस अवसर पर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कनक परमेचा ने वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा करते हुए बताया कि इस वर्ष का आचार्य तुलसी व्यक्तित्व पुरस्कार सेवा सदन संस्था उदयपुर की नीलिमा खेतान को उनके द्वारा आदिवासी क्षेत्रों के विकास में किए गए कार्यों को लेकर दिया जाएगा। इसके साथ ही श्राविका गौरव पुरस्कार मुंबई की प्रेम सिसोदिया और सुशीला कच्छारा को दिया जाएगा। प्रतिभा पुरस्कार मीनाक्षी बुतोडिया को प्रदान किया जाएगा। तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से इस वर्ष प्रदान किए जाने वाले पुरस्कारों की भी घोषणा कार्यक्रम के दौरान की गई। आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार प्रमोद घोडावत व आचार्य महाश्रमण पुरस्कार जयपुर के सुधीर चौरडिया को दिया जाएगा।
रक्तदान शिविर आज
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् व तेरापंथ किशोर मंडल के तत्वावधान में आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के द्वितीय चरण में शुक्रवार को केलवा में रक्त दान शिविर आयोजित किया जाएगा। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के सदस्य और शिविर संयोजक डॉ. विमल कावडिया ने बताया कि सुबह नौ बजे से दोपहर तीन बजे तक आचार्यश्री महाश्रमण के प्रवचन पांडाल के पास स्थित का्रॅन्फेन्स हॉल में शिविर आयोजित होगा। केलवा तेयुप के अध्यक्ष विकास कोठारी ने बताया कि इस शिविर में 18 से 55 वर्ष की आयु और 40 किलोग्राम से अधिक वजन वाले स्त्री-पुरूष रक्तदान कर सकेगा। तेयुप मंत्री लक्की कोठारी ने बताया कि तेरापंथ युवक परिषद् के विशेष सहयोग से आयोजित होने वाले इस शिविर में भीलवाडा, गंगापुर, ब्यावर, भीम, देवगढ, राजसमंद, केलवा, उदयपुर, सरदारगढ, दिवेर, नाथद्वारा, आमेट, रेलमगरा, शिशोदा, चित्तौडगढ और आसींद आदि युवक परिषद् की सहभागिता रहेगी।


Wednesday, September 7, 2011

केलवा में गणपति विसर्जन

भिक्षु भूमि पर अध्यात्म का नया अध्याय अंकित


देशभर में क्रांतिभूमि का पर्याय बन चुकी केलवा की तपोभूमि पर बुधवार को आध्यात्म का एक ओर नया अध्याय जुड गया। मौका भी ऐसा ही कुछ खास था दो मुमुक्षुओं की दीक्षा समारोह का। अभूतपूर्व जनमैदिनी की साक्षी में तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने दोनों को दीक्षा प्रदान करते हुए संयम के मार्ग पर चलने की अनुमति दी और इस तरह सांसारिक जीवन को त्याग कर अध्यात्म के मार्ग पर चले मुमुक्षु अश्विनी का नामकरण करते हुए मुनि अतुलकुमार और मुमुक्षु चेतना का नाम साध्वी चैतन्ययशा दिया।
कस्बे के तेरापंथ समवसरण में सुबह नौ बजे शुरू हुए दीक्षा समारोह में आचार्यश्री ने दो जैन दीक्षा प्रदान की। उन्होंने पंजाब के मुमुक्षु अश्विनी एवं उदयपुर जिले के सायरा निवासी मुमुक्षु चेतना को दीक्षा प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ की दीक्षा में बहुत पारदर्शिता होती है। अनेक बार स्वर उठता है कि प्रलोभन, जबरदस्ती सन्यासी बना दिया जाता है। इस तरह के प्रयोग तेरापंथ में मान्य नहीं हैं। प्रलोभन देकर दीक्षा देना मुझे पसंद नहीं है। तेरापंथ में प्रारंभ से ही इस पर ध्यान दिया गया है। इसमें लिखित और मौखिक आज्ञा अभिभावकों से ली जाती है। दीक्षार्थी की परीक्षा होती है। उसके बाद योग्य होने पर दीक्षा दी जाती है। उन्होंने हजारों की जनमैदिनी की उपस्थिति में स्पष्ट शब्दों में कहा कि तेरापंथ में दीक्षा होना सरल बात नहीं है। जो भाग्यशाली होता है वही इस संघ में दीक्षा ले सकता है। यहां दीक्षा लेने के बाद गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण करना होता है। अपनी इच्छा गुरु के सम्मुख निवेदित कर सकता है। पर जो गुरु का निर्णय होगा उसे स्वीकार करना जरुरी होता है। आचार्यश्री ने कहा कि बुद्धिमान लोग तर्क में जीते है। यानि इंन्द्रियों और मन के क्षेत्र में जीते है। आत्मा इंद्रियां तीन क्षेत्र उनसे दूर है। दीक्षा तर्कातीत, इंद्रियांतीत में प्रवेश का द्वार है। दीक्षा लेना बडे भाग्य की बात है। आज दो जन दीक्षित होने जा रहे है। तेरापंथ में बहुत पारदर्शिता है। यहां पर प्रलोभन देकर, जबरदस्ती कर दीक्षा नहीं दी जाती। प्रलोभन देकर दी जाने वाली दीक्षाओं को मैं उचित नहीं मानता। पारदर्शिता का प्रमाण यह है कि लिखित आज्ञा पत्र। लिखित के साथ सबसे मौखिक आज्ञा भी ली जाती है। आचार्यश्री ने नव दीक्षितों को संबोधन देते हुए कहा कि संयम के प्रति जागरूकता एवं निर्देश संयम से हर क्रिया करनी है। जागरूकता रखनी है। क्षमा, कल्याण, विनम्रता का भाव विकास से मंगलकामना।
केंशलोच संस्कार
आचार्यश्री ने दीक्षार्थी अश्विनी का केंशलोच संस्कार संपन्न करते हुए कहा कि शिष्य की चोटी गुरु के हाथों में आ गई है। अब इस लोच का तात्पर्य है गुरु के अनुशासन में रहना। साध्वी दीक्षा लेने वाली मुमुक्षु चेतना का केंशलोच संस्कार साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने किया और प्रतीक तौर पर गुरु चरणों में चोटी समर्पित की।
नामकरण संस्कार
आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को नए जन्म का नया नाम प्रदान कर नामकरण संस्कार संपन्न किया। उन्होंने मुमुक्षु अश्विनी को मुनि अतुलकुमार और मुमुक्षु चेतना को साध्वी चैतन्ययशा नाम दिया।
रजोहरण प्रदान किया
आचार्यश्री ने अहिंसा ध्वज रजोहरण को आर्ष वाणी में आशीर्वाद के साथ मुनि अतुलकुमार को प्रदान किया। उन्होंने कहा कि मुनि ज्ञान दर्शन, चरित्र में वर्धमान होता रहे। साध्वी चैतन्ययशा को साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने रजारोहण प्रदान किया।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि दीक्षा एक बदलाव है। बिना बदले दीक्षा तक नहीं पहुंचा जा सकता। अनादि से भक्ति के मार्ग पर चलना दीक्षा है। असंयम से संयम की ओर आने से अर्हता प्राप्त हो सकती है। इस तरह की प्रवृति प्रत्येक व्यक्ति में आए। ऐसी अपेक्षा है।
मेवाड में आ रहा परिवर्तन
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि बदलाव दुनिया का शाश्वत विषय है। समय सब को बदलने के लिए विवश कर देता है। वह स्वयं नहीं बदलता। वह देखता रहता है। मेवाड में बहुत कुछ बदलाव आ गया है। जब 51 वर्ष पूर्व मेरी दीक्षा हुई थी उस समय मेवाड का परिवेश अलग था और अब अलग है। हमें यह सोचना है कि बदलाव कहां जा रहा है। हमें भीतर से बदलाव करना है। दीक्षा एक मार्ग है संयम पर चलने का। स्वयं की खोज के लिए जिस दिशा में प्रस्थान होता है वह दीक्षा है। भारतीय संस्कृति त्याग की संस्कृति हैं इस संस्कृति में दीक्षा का बडा महत्व है। यहां दीक्षा का अर्थ है गुरु चरणों में सब कुछ समर्पित कर देना। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति अपने संदर्भ में कोई निर्णय नहीं ले सकता। अपनी बात गुरु को निवेदित कर सकता है पर निर्णय गुरु का होता है। उस निर्णय के अनुसार जिसमें चलने की क्षमता होती है वही तेरापंथ में दीक्षित होने का अधिकारी होता है। दीक्षा समारोह में महिला मंडल की ओर से गीत का संगान किया गया। इस अवसर पर साध्वी आरोग्यश्री, साध्वी सुमुदाय, साध्वी जिनप्रभा, मुनि शुभंकर, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, बाबूलाल कोठारी, स्वागताध्यक्ष परमेश्वर बोहरा, दीक्षार्थी अश्विनी, दीक्षार्थी चेतना, मुनि तन्मय, मुनि हितेन्द्र ने भी विचार प्रकट किए। कन्हैया लाल छाजेड ने लिखित आज्ञा पत्र का वाचन किया। लिखित आज्ञा पत्रों को दीक्षार्थियों के अभिभावकों द्वारा आचार्यश्री के चरणों में समर्पित किए गए। संयोजन मुनि मोहजीतकुमार ने किया।
उमडा जन सैलाब
सात वर्ष बाद मेवाड की क्रांतिभूति केलवा में दीक्षा समारोह को लेकर लोगों का हुजूम उमड पडा। सवेर दस बजे तक तो यह स्थिति हो गई कि सडक पर तिल रखने तक की जगह नहीं थी। समारोह स्थल खचाखच भरा हुआ था। लोग खडे रहकर इस दीक्षा के साक्षी बनने को आतुर थे।


Tuesday, September 6, 2011

अनुशासनात्मक विकास महत्वपूर्णः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि अनुशासन मूल मंत्र है। फल और फूल उस वृक्ष का विकास है। जब मूल नहीं बचेगा तो फल और फूल कैसे प्राप्त किया जा सकता है। तेरापंथ में अनुशासन का बहु विकास हो रहा है, जो बहुत महत्वपूर्ण है। जिस संगठन में इस ओर ध्यान दिया जाता है वह विकास के नए आयाम उद्घाटित कर सकता है।
आचार्यश्री ने उक्त उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान मंगलवार को आयोजित विकास महोत्सव को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि तेरापंथ में विकास के हर कोण पर गहराई से ध्यान दिया जाता है। हमारे यहां पर युवा और भावी पीढी को संस्कारी बनाने के लिए ज्ञान शाला का एक महत्वपूर्ण उपक्रम संचालित हो रहा है। जिस समाज और राष्ट्र के युवा और बाल पीढी में संस्कारों के विकास पर ध्यान दिया जाता है वह भविष्य को उज्जवल बना लेता है। अन्यथा उज्जवल भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
आचार्यश्री ने ज्ञान शाला के माध्यम से बच्चों में संस्कार निर्माण करने वाले कार्यकर्ताओं को साधुवाद देते हुए कहा कि व्यक्ति को नाम संपति से दूर रहकर काम पर ध्यान देना चाहिए। जब काम बोलेगा तो उसकी आवाज दूर-दूर तक अपने आप चली जाएगी। उन्होंने कहा कि जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा जैन विद्या के प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है। इस पर ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने विकास महोत्सव के मूल में आचार्यश्री तुलसी के पदाभिषेक दिवस का योग होने का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरुदेव तुलसी बहुत प्रबुद्ध और ंिचंतनशील थे। वे यह जानते थे कि किस समय कौनसा कार्य करना है। 22 वर्ष की उम्र में तेरापंथ का आचार्य बन जाना विलक्षण घटना है। सबसे ज्यादा तेरापंथ का शासन करने के बाद पद का विसर्जन कर दिया यह भी अनाशक्ति का दुर्लभ प्रयोग है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने आचार्य बनने के बाद गुरुदेव तुलसी के पदारोहण दिवस को विकास महोत्सव के तौर पर मनाने की शुरूआत कर नई सोच प्रदान की। यह महोत्सव तेरापंथ के विकास का प्रतीक है। आज के दिन सभी संस्थाओं को समीक्षा करनी चाहिए कि कितना विकास किया है। विकास परिषद् इस महोत्सव से जुडी संस्था है। यह संस्था सभी की नीति वियामक है।
संघ की मौलिकता बरकरार रहे
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने हम विकास के पथ पर आगे और तेरापंथ धर्मसंघ की मौलिकता बरकरार रहे। इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा संघ विलक्षणता से परिपूर्ण है। यंू तो जैन समाज में कई धर्म संघ क्रियाशील है, लेकिन तेरापंथ धर्म संघ ने एक अलग ही पहचान कायम की हैं। इसे सतत् क्रियाशील बनाए रखने की आवश्यकता है। आचार्यश्री भिक्षु ने इस संघ की नींव रखते समय जिस तरह के संघ की कल्पना की थी। वह आज सभी के सामने है। वे स्वयं विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और उसी तरह विलक्षण संघ के विकास में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि ढाई सौ वर्ष पुराने इस संघ में यंू तो अनेक आचार्यों ने इसके विकास में अपना योगदान दिया, लेकिन तीन आचार्यों आचार्यश्री भिक्षु, जयाचार्य और गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी ने इसे ऊंचाईयों तक पहुंचाने का काम किया। आज तेरापंथ धर्मसंघ विकास का प्रतीक बन गया है। संघ में विकास की अवधारणाएं गुरुदेव तुलसी के समय में बनी थी। वे कहा करते थे कि इसके विकास का जिम्मा केवल साधु-संतों का ही नहीं है। इसमें श्रावक समाज को सहभागिता का निर्वाह करने की आवश्यकता है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ निरन्तर विकास के पथ की ओर अग्रसर है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह धारणा होती है कि मैं बुलन्दियों तक पहुंच जाऊं। इसके लिए कार्य को लक्ष्य देने की आवश्यकता है। काम बिखरा होगा तो हम लक्ष्य की ओर नहीं बढ पाएंगे। उन्होंने अनावश्यक प्रवृतियों से बचने की सीख देते हुए कहा कि हम सब आचार्यश्री महाश्रमण के नेतृत्व में आगे बढ रहे है। धीरे-धीरे हम शिखर तक पहुंच जाएंगे। तेरापंथ धर्मसंघ ऐसा संघ है, जहां एक नेतृत्व है लक्ष्य है उसे अर्जित करना है। इस अवसर पर साध्वी फूलकंवर के परिजनों ने उनके जीवन से जुडी एक पुस्तक आचार्यश्री को भेंट की, जिसका विमोचन किया गया। समारोह में मुनि विश्रुतकुमार, मुनि सुखलाल, महावीरकुमार, विकास महोत्सव के संयोजक लालचंद सिंघवी ने भी विचार प्रकट किए। मुनि विजयकुमार ने गीत का संगान किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
शासनश्री की उपाधि से अलंकृत
आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रवचन के दौरान चार मुनियों को उनकी कार्यक्षमता और विशेषताओं का बखान करते हुए शासनश्री की उपाधि से अलंकृत किया। इस उपाधि से सुशोभित होने वाले मुनियों में मुनि सुमेरमल सुदर्शन, मुुनि सुखलाल, मुनि पानमल एवं मुनि किशनलाल शामिल है। इनके अलावा मुनि कीर्तिकुमार और मुनि विश्रुत कुमार को आचार्यश्री ने अनिश्चितकाल तक समुचर्य कार्य की बक्शीश दी।

Monday, September 5, 2011

राजसमंद पालिकाध्यक्ष पालीवाल ने लिया आशीर्वाद

राजसमंद नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती आशा पालीवाल ने सोमवार दोपहर केलवा पहंुचकर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण से आशीर्वाद लिया। उनके साथ मनोनीत पार्षद एवं कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रदीप पालीवाल, पार्षद रमेश पहाडिया और अशोक टांक भी थे। उन्होंने भी आचार्यश्री से आशीर्वाद लिया।
पंच मेवे का भोग
केलवा में इन दिनों गणेश महोत्सव की धूम मची हुई हैं। जीएमएम ग्रुप की ओर से रविवार शाम को विशेष आतिशबाजी की गई। इसके बाद सैंकडों लोगों की मौजूदगी में आरती की गई। इधर, महाराणा प्रताप सेना और शिवदल मेवाड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाले गणेश महोत्सव को लेकर गली और मोहल्लों में आयोजन हो रहे है। सात दिवसीय गणपति महोत्सव के तहत विद्या निकेतन स्कूल के विद्यार्थियों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। मंगलवार को भजन संध्या होगी। इसमें विनोद गुर्जर की ओर से प्रस्तुति दी जाएगी। बुधवार को गणपति की शोभायात्रा निकाली जाएगी। यह जानकारी महोत्सव के संयोजक कैलाश जोशी ने दी।

दो मुमुक्षुओं को दी जाएगी आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में दीक्षा

तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में बुधवार को तेरापंथ की उदगम स्थली के रुप में विख्यात केलवा में दीक्षा महोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही इस भूमि पर एक स्वर्णिम अध्याय ओर जुड जाएगा। दीक्षा समारोह को लेकर श्रावक समाज में उत्साह का माहौल है। इस दौरान गुजरात राज्य के सूरत निवासी और उदयपुर जिले के सायरा गांव में जन्मी मुमुक्षु चेतना और पंजाब के जगराओं निवासी मुमुक्षु अश्विनी कुमार को दीक्षा दी जाएगी। कार्यक्रम की सफल क्रियान्विति को लेकर की जा रही तैयारियां अब अंतिम चरण में है। मंगलवार दोपहर में दोनों मुमुक्षुओं का वरधोडा निकाला जाएगा।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि सूरत निवासी मुमुक्षु सुश्री चेतना की शोभायात्रा तेरापंथ समाज केलवा के तत्वावधान में मंगलवार को दोपहर दो बजे निकाली जाएगी। मंगल भावना समारोह शाम साढे सात बजे शांतिदूत आचार्यश्री के सान्निध्य में आयोजित होगा। कोठारी ने बताया कि मुमुक्षु चेतना का जन्म 12 मई 1991 को उदयपुर जिले के सायरा कस्बे में हुआ था। बीए द्वितीय वर्ष तक अध्ययन कर चुकी इस मुमुक्षु के मन में वैराग्य का भाव 10 वर्ष की उम्र में उत्पन्न हुआ था। इन्हंे वैराग्य की प्रेरणा मुनिश्री देवराज स्वामी और उनके दादा-दादी, मम्मी-पापा से मिली। चांदमल-राजश्रीबेन कावडिया की सुपुत्री चेतना ने आचारबोध, व्यवहारबोध, संस्कारबोध, भक्तामर, श्रावक प्रतिक्रमण, श्रावक बोल, तत्व चर्चा, कालू तत्वशतक, आलम्बनसूत्र, संघीयगीत, इक्कीस द्वार,जैन तत्व प्रवेश, कर्तव्य षट्त्रिशिता, साधु प्रतिक्रमण, तेरापंथ प्रबोध और 50 श्लोक का ज्ञान अर्जित है। उन्हे प्रतिक्रमण आदेश चूरू जिले के राजलदेसर कस्बे में 8 फरवरी 2011 को और दीक्षा आदेश 9 जुलाई को राजसमंद जिले के रीछेड गांव में दिया गया था।
कोठारी ने बताया कि मुमुक्षु अश्विनी का जन्म एक सितम्बर 1983 को पंजाब जिले के जगराओं गांव में हुआ था। प्रेमचंद और संतोष जैन के परिवार में जन्में इस मुमुक्षु ने स्नातक तक शिक्षा और छट्ठी तक तत्वज्ञान द्वितीय वर्ष का ज्ञान अर्जित किया है। इन्होंने भक्तामर स्त्रोत, कल्याण मंदिर, आलम्बन सूत्र, रत्नाकर-पंचविंशिका, कर्तव्य-षद् त्रिंशिका, चतुर्विंशति-गुण,गेय गीति, पच्चीस बोल, पच्चीस बोल पर चर्चा, कालू तत्व शतक, इक्कीस द्वार, पच्चीस बोल पर चतुर्भंगी, आचार बोध, व्यवहार बोध, संस्कार बोध, तेरापंथ प्रबोध, अष्टकम् चार, विघ्नहरण ढाल, मुणिन्द मोरा ढाल, सिन्दूर प्रकार और श्रमण प्रतिक्रमण का ज्ञान अर्जित किया है। कोठारी ने बताया कि इन्होंने 11 मार्च 2011 को संस्था में प्रवेश किया था। 20 जून को चारभुजा में प्रतिक्रमण और 27 जुलाई को केलवा में दीक्षा का आदेश हुआ था।
छह दल की नियुक्ति
आचार्यश्री महाश्रमण के चातुर्मास के अर्न्तगत अणुव्रत समिति की ओर से केलवा में एक सघन नशामुक्ति अभियान चलाया जा रहा है। अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल एवं मुनि अशोक कुमार, मुनि जयंतकुमार के निर्देशन में अणुव्रत कार्यकर्ताओं के छह दल नियुक्त किए गए है। इसमें मुकेश कोठारी, प्रवीण कोठारी, रजनीश बोहरा, गौतम कोठारी, श्रीमती रेखा कोठारी, श्रीमती नीलू कोठारी को प्रमुख बनाया गया है। गांव के प्रत्येक मौहल्ले में अणुव्रत कार्यकर्ता प्रमुख व्यक्तियों को साथ लेकर घर-घर नशामुक्ति की दस्तक दे रहे है। काफी लोगों ने इनकी प्रेरणा से व्यसन त्याग दिया है। आचार्यश्री के निर्देशानुसार यह निर्णय किया गया है कि केलवा के लोगों को नशामुक्त करने के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसके अन्तर्गत केलवा से शराब ठेका बंद करवाया जाएगा।

विद्यार्थियों में तार्किक विकास जरूरीः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज के प्रतिस्पर्द्धा के युग में यह आवश्यक हो गया है कि विद्यार्थियों में तार्किकता का विकास हो। इससे उसकी बुद्धि में आशातीत विकास होगा और वह समय के साथ कदम से कदम मिलकर आगे की ओर बढ सकेगा। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक समुदाय से आहृान किया कि वे इस बात का संकल्प लें कि देश के सर्वागीण विकास में अपनी सहभागिता का निर्वाह करते हुए ज्ञान के साथ विद्यार्थियों को संस्कारों से परिपूर्ण शिक्षा भी देने का प्रयास करेंगे, तभी इस दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी।
आचार्यश्री ने उक्त उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में सोमवार को झुंझुनंू जिले के सौ गांवों से आए विद्यार्थियों और अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान से जुडे शिक्षकों को सबोधित करते हुए व्यक्त किए। विद्यार्थियों को सदैव नशामुक्त रहने का संकल्प दिलाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आज का दिन इस बात की ओर इंगित करता है कि शिक्षक और विद्यार्थी संयुक्त रुप से ज्ञान की साधना करने का प्रयास करें, ताकि देश और समाज का कल्याण हो सके। विद्यार्थियों के भविष्य का बेहतर निर्माण हो। इसकी जिम्मेदारी शिक्षक समुदाय की है।
उन्होंने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित तर्क और बुद्धि को परिभाषित करते हुए कहा कि जहां तर्क हो वहां इसकी विवेचना करनी चाहिए और जहां तर्कातीत की स्थिति बनती हैं वहां श्रद्धा होती है। इस समय तर्क की बात करना गलत है। अहेतुगम्य और हेतुगम्य की स्थिति आत्मानुभूति का अहसास कराती है। यह तर्क का विषय है। कहां तर्क करना है और कहां इससे मुक्त होना है। यह एक विवेचन का विषय है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को हमेशा कर्म में विश्वास करना चाहिए। उसका फल क्या मिलेगा। इसमें व्यर्थ में समय गंवाने की आवश्यकता नहीं है। काम ठीक होगा तो उसका मूल्यांकन भी होगा। प्रायः कार्य इस तरह का करने की आदत डालें कि वह बोले। इसमें निराश होना कर्म में व्यवधान डालता है। कार्य में आत्मा होती है। उसकी आवाज को दूर-दराज में बैठे लोगों तक पहुंचनी चाहिए। व्यक्ति गृहस्थ जीवन जीता है। इसमें इतना समय मिल जाता है कि वह शक्ति के साथ किसी भी काम को पूरा करने में जुटे। आज आदमी क्या नहीं कर सकता। यदि मन में धुन हो तो असंभव काम भी संभव हो सकता है।
कषाय मंद की साधना करें
आचार्यश्री ने श्रावक समाज से आहृान किया कि वे कषायमंद की साधना करने का प्रयास करें। इंन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। आत्मा से साक्षात्कार तभी हो सकता है जब हमारा जीवन तप, आराधना और साधना के प्रति समर्पित हो। 12 व्रतों की आराधना करते हुए श्रावक समाज आगे बढ सकता है। अहिंसा हमें जीवन दर्शन का ज्ञान कराती है। शाखाएं तो अनेक मिल जाएगी, लेकिन सभी का मूल कार्य एक है। अणुव्रत का कार्य स्कूलों में अच्छा चल रहा है। यह बडी प्रसन्नता की बात है, लेकिन इसमें ओर तेजी लाने की आवश्यकता है। लक्ष्य का निर्धारण कर आगे बढे। अंतिम लक्ष्य की तरफ गति होती है तो मंजिल अपने आप मिल जाती है।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि अणुव्रत गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी की देन है। समय के साथ इसने व्यापक स्थान बना लिया है। प्रेक्षाध्यान और अणुव्रत से जुडे व्यक्ति देश में कहीं भी जाए उन्हें कोई रोकता नहीं है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने तेरापंथ को व्यापक रुप प्रदान किया है। संतों के आशीर्वाद के बिना आगे का काम नहीं हो सकता। अब कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा है कि वह अणुव्रत की अलख देशभर में जगाएं। अहिंसा और जीवन विज्ञान स्वयं का काम है। इसके सर्वव्यापीकरण के लिए श्रावक समाज में लगन की आवश्यकता है। मेवाड के कुछ गांवों में इस विषय पर काम करने की जरुरत है। इससे संघ, समाज और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। बिना किसी शोरगुल यह व्यापक बने और लोगों में जागृति आए। यह एक लक्ष्य होना चाहिए। जो व्यक्ति अभी इस कार्य में जुटे हुए हैं वे साधुवाद के पात्र है। मुनि किशनलाल ने कहा कि वर्तमान में देश के तीन सौ स्कूलों में लाखों विद्यार्थी ध्यान, साधना, तप, प्रेक्षाध्यान आदि का प्रशिक्षण ले रहे है। इनकी संख्या में वृद्धि के प्रयास में कार्यकर्ता पूरी तरह से जुटे हुए है। मुनि सुखलाल ने अहिंसा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि छह हजार संस्थाए विश्वभर में अहिंसा के विचारों को आमजन तक पहुंचाने का काम कर रही है। कार्यकर्ताओं के पास आधुनिक साधनों का अभाव है। फिर भी वे अलख जगाने में लगे हुए है। उत्तरप्रदेश, झारखंड और बिहार सरीखे राज्यों में भी यह काम तेजी से चल रहा है। इस अवसर पर अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान के सहसंयोजक धर्मचंद जैन ”अनजाना” और रतनगढ के रुपचंद सेठिया ने भी विचार प्रकट किए। अहिंसा पर्यवेक्षक रमेश जीनगर ने विद्यार्थियों को संकल्प का प्रयोग करवाया। छात्रों ने अणुव्रत गीत का संगान किया। मंत्री सोहनलाल धाकड ने आभार की रस्म अदा की। संयोजन शिक्षक संसद संस्थान के अध्यक्ष भीखमचंद नखत ने किया।
नशामुक्ति के लिए शिक्षकों का दृढ संकल्प
शिक्षक समुदाय का एक प्रतिष्ठित समुदाय है। उसके पास विशिष्ठ बौद्धिक क्षमता होती है। अपनी बौद्धिक क्षमता का समुचित उपयोग करना उसका दायित्व है। सरकार शिक्षक की समुचित सुरक्षा करे यह आवश्यक है। पर यदि शिक्षक उसके बावजूद भी अपनी क्षमता का सदुपयोग नहीं करता है तो अपने दायित्व के प्रति बेपरवाह हो जाता है। अणुव्रत शिक्षक संसद अपने दायित्व के प्रति जागरुक शिक्षकों का राष्ट्रव्यापी संगठन है। राजसमंद जिले के शिक्षक भी उसके साथ जुडे हुए है। वे इस आंदोलन को पूरे जिले में फैलाएं। यह जरुरी है। उक्त विचार मंत्री मुनि सुमेरमल ने राजसमंद जिले के अणुव्रत शिक्षक संसद के शिक्षकों की संगोष्ठी के समापन समारोह में प्रकट किए। अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल ने कहा कि आज सारी दुनियां में अपराध बढ रहे है। उसके अनेक कारण है। पर गहराई से देखा जाए तो नशा प्रमुख कारण है। यह भयंकर रुप से बढ रहा है। इस पर रोक लगाई जानी आवश्यक है। इसके लिए विद्यालय सक्षम स्थल है। यदि प्रारंभ से ही उनमें सुसंस्कार भरे जा सके तो बहुत काम हो सकता है। अणुव्रत शिक्षक संसद इसी दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। राजसमंद जिले के स्कूलों में भी नशामुक्ति का यह अभियान सशक्त रुप से चलना चाहिए। इस अवसर पर संसद के अध्यक्ष भीखमचंद नखत, धर्मचंद अंजाना, रचना तैलंग, चतर कोठारी आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए। सभी शिक्षकों ने अत्यंत उत्साह के साथ इस अभियान में अपना योगदान प्रदान करने का दृढ संकल्प किया।
प्रतियोगिता में छाया उत्साह
तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से रविवार रात को आयोजित पैसा ही परमेश्वर है विषयक वाद-विवाद प्रतियोगिता को लेकर प्रतियोगियों में उत्साह बना रहा। परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने बताया कि मुनि दिनेशकुमार के सान्निध्य में आयोजित इस प्रतियोगिता के पक्ष में प्रथम जीवन मादरेचा, द्वितीय श्रेया हिंगड, तृतीय श्रीमती राजतिलक, विपक्ष में प्रथम आयुषी हिंगड, द्वितीय पूजा दक और तृतीय श्रीमती लता मादरेचा रही। प्रतियोगिता के दौरान आचार्यश्री महाश्रमण भी मौजूद थे। कार्यक्रम में परिषद के सदस्य सहित सभी पदाधिकारी उपस्थित थे।

Saturday, September 3, 2011

केन्द्रीय मंत्री पायलट ने लिया आचार्यश्री से आशीर्वाद

केन्द्रीय दूरसंचार राज्यमंत्री सचिन पायलट (SACHIN PAILOT) शनिवार सुबह केलवा पहुंचे और यहां चातुर्मास कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण से आशीर्वाद लिया। इस दौरान मंत्री पायलट ने संवत्सरी महापर्व, खमत खामना, तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, गुरुदेव आचार्यश्री द्वारा देश में चलाए गए अणुव्रत आंदोलन और आचार्यश्री महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा की विस्तृत जानकारी ली। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी एवं पदाधिकारियों ने स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका स्वागत किया। मंत्री के साथ राजसमंद जिला कांग्रेस अध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर भी थे।
केलवा में बना अविस्मरणीय इतिहास
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में शनिवार को क्रांतिभूति केलवा का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया। पर्युषण महापर्व में संवत्सरी के दिन यहां पर लगभग पांच हजार श्रावक-श्राविकाओं ने विभिन्न तरह के पौषध किए। इसके अलावा व्यवस्था समिति की ओर से बाहर से आने वाले लोगों के अस्थाई ठहराव को लेकर बनाई गई कोटडियों में रहकर पौषध करने वालों की संख्या इससे अलग रही। इतनी ज्यादा संख्या में पौषध को देखकर आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं को सदैव इस तरह के उपक्रम जीवन में करते रहने की प्रेरणा दी। साथ ही कहा कि इतने छोटे कस्बे में इतनी बेहतर व्यवस्था करना व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों की मेहनत का फल है। पौषध के प्रति श्रावक समाज की उत्सुकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां देखो वहां पौषध करने वाले ही नजर आ रहे थे। कॉन्फ्रेन्स हॉल, पांडाल, घरों के बाहर और भीतर वे ही नजर आ रहे थे। सुबह नौ बजे भोजनशाला में सामूहिक पारणा का आयोजन किया गया। इसमें साढे छह हजार का पारणा कराया गया।
शिक्षकों की कार्यशाला आज
अणुव्रत आंदोलन नैतिकता का एक असाम्प्रदायिक अभियान है। शिक्षकों के लिए अणुव्रत शिक्षक संसद का एक राष्ट्रीय अभियान अणुव्रत के अर्न्तगत चलाया जा रहा है। राजसमंद जिले के शिक्षकों की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन रविवार को आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल एवं सहप्रभारी मुनि अक्षयप्रकाश के निर्देशन में होगा। संसद के अध्यक्ष भीकमचंद नखत ने बताया कि इस कार्यशाला में जिला शिक्षा अधिकारी राकेश तैलंग एवं घनश्याम दैया भी भाग लेंगे। इसमें अणुव्रत के विविध पक्षों पर विचार-मंथन किया जाएगा।


कषाय मंद करने का पर्व है क्षमा-याचनाः आचार्यश्री महाश्रमण


कषाय मंद करने का पर्व है क्षमा-याचनाः आचार्यश्री महाश्रमण
केलवा में चातुर्मास, श्रावक समाज का उमडा हुजूम, लगभग पांच हजार श्रावक-श्राविकाओं ने पौषध कर रचा कीर्तिमान, दिनभर चला खमत खामना का दौर, केन्द्रीय दूरसंचार राज्यमंत्री पायलट ने लिया आचार्यश्री से आशीर्वाद, शिक्षकों की कार्यशाला आज

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज हमारे सामने वर्ष का सबसे बडा पर्व आया है। क्षमा याचना का यह महापर्व व्यक्ति के मन के भीतर व्याप्त कटु वचनों को शुद्ध करने का एक उपक्रम है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी लोगांे से अतीत में जाने अनजाने हुई त्रुटियों के लिए खमत खामना कर क्षमा मांगे और आने वाले समय के लिए बेहतर करने का प्रण लें। उक्त उद्गार आचार्यश्री ने यहां तेरापंथ समवसरण के खचाखच भरे पांडाल में शनिवार को क्षमापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हजारों की तादाद में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि उत्तराध्यन में उल्लेखित है कि क्षमापना करने से चित्त में प्रसन्नता की अनुभूति होती है। सभी जीवों के साथ मैत्री का भाव रखने की आवश्यकता है। आत्मा का भाव पुष्ट करने की दृष्टि से भाव की विशुद्धि होना जरुरी है। हमने पिछले आठ दिन के भीतर पर्युषण महापर्व के दौरान धर्म आराधना, तप, उपवास और साधना कर जीवन को धार्मिक बनाने का अच्छा प्रयास किया है। आज उसका प्रयोगात्मक विश्लेषण का समय है। गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ दोनों से वे प्रत्यक्ष रुप से वंचित है, लेकिन परोक्ष से उनका सान्निध्य मिला हुआ है। हमारे सिर पर तेरापंथ धर्मसंघ का साया है। आत्मा हमेशा हमारे साथ है। यह हमारा सौभाग्य है। यह व्यवहारिक रुप से धर्मसंघ है। क्षमापना पर्व को लेकर आचार्यश्री ने साधु-साघ्वियों, श्रावक-श्राविकाओं, देशभर में चातुर्मास कर रहे मुनियों, साध्वियों, तेरापंथ धर्मसंघ, चातुर्मास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों सहित अन्य से खमत खामना की। इस दौरान पहले साध्वियों ने साधुओं से और उसके बाद साधुओं ने साध्वियों से वर्षभर के दरम्यान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से हुई त्रुटियों के लिए खमत खामना की। इसके बाद श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्यश्री से क्षमायाचना की।
जहर को अमृत बनाती है क्षमा
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने विभिन्न कठिनाईयों के दौर से गुजरने के बाद एवरेस्ट पर पहुंचने वाले व्यक्ति को सफलता मिलती है तो वह घ्वजारोहण करता है। आज हमें आठ दिन के पर्युषण की समाप्ति पर इसी तरह की अनुभूति हो रही है। इसलिए हमें भी ध्वज फहराने की आवश्यकता है। कल हमने संवत्सरी मनाई और पूरी रात आत्मलोचन और आत्म निरीक्षण किया। यह महान पर्व है। इसकी तुलना किसी अन्य पर्व से नहीं की जा सकती। हमारे मन में व्याप्त अहंकार के पहाडों को ढहाने की व्यक्ति को आवश्यकता है। क्षमा व्यक्ति के भीतर फैले जहर को अमृत बनाने का माध्यम है। हमारे यहां तीन चिकित्सा पद्धति का सहारा है। एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद। क्षमा भी एक चिकित्सा है, जो व्यक्ति को भीतर से स्वस्थ और मजबूत बनाता है। उन्होंने कहा कि हमें कायाकल्प की प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता है। हमारा जीवन शांति की साधना के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। मुख्य संयोजिका साध्वी विश्रुतप्रभा ने कहा कि आज के परिवेश में क्षमाशील व्यक्ति मैत्री के पथ पर जा सकता है। जिस तरह दो हृदयों को जोडकर कुल की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया जाता है उसी तरह क्षमा हमें परिवार, समाज और देश के विकास की ओर बढाती है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि क्षमापना को मन को टटोलने का समय बताते हुए कहा कि हमारी पर्युषण महापर्व के दौरान भावना बनी रही। उसकी आज के दिन आत्मालोचन करने की आवश्यकता है। हम अर्न्तःभाव से क्षमा याचना और आचार्य की ओर से इंगित आराधना में तल्लीन रहने का प्रयास करें। हमारे गुरुप्रवह बडे शलीन है। हमसे कोई त्रुटि हो जाती है तो कहते नहीं, बल्कि महसूस करते है। हमें गुरु की आराधना और उनकी दृष्टि पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आज इस चातुर्मास का पूवार्द्ध पूरा हो चुका हैं। अब उतरार्द्ध शुरू होने वाला है। यह चातुर्मास मेवाड के लिए ऐतिहासिक बने। इसके प्रयास करने की जरूरत है। मुनि दिनेश कुमार ने गीत का संगान किया। इस अवसर पर व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, स्वागताध्यक्ष परमेश्वर बोहरा, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, बाबूलाल कोठारी, लक्की कोठारी, लवेश मादरेचा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष फूलीदेवी कोठारी, मंत्री रत्ना कोठारी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी की सदस्य मंजूदेवी बडोला, रमेश बोहरा आदि ने विचार व्यक्त किए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।