Monday, September 5, 2011

विद्यार्थियों में तार्किक विकास जरूरीः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज के प्रतिस्पर्द्धा के युग में यह आवश्यक हो गया है कि विद्यार्थियों में तार्किकता का विकास हो। इससे उसकी बुद्धि में आशातीत विकास होगा और वह समय के साथ कदम से कदम मिलकर आगे की ओर बढ सकेगा। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक समुदाय से आहृान किया कि वे इस बात का संकल्प लें कि देश के सर्वागीण विकास में अपनी सहभागिता का निर्वाह करते हुए ज्ञान के साथ विद्यार्थियों को संस्कारों से परिपूर्ण शिक्षा भी देने का प्रयास करेंगे, तभी इस दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी।
आचार्यश्री ने उक्त उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में सोमवार को झुंझुनंू जिले के सौ गांवों से आए विद्यार्थियों और अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान से जुडे शिक्षकों को सबोधित करते हुए व्यक्त किए। विद्यार्थियों को सदैव नशामुक्त रहने का संकल्प दिलाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आज का दिन इस बात की ओर इंगित करता है कि शिक्षक और विद्यार्थी संयुक्त रुप से ज्ञान की साधना करने का प्रयास करें, ताकि देश और समाज का कल्याण हो सके। विद्यार्थियों के भविष्य का बेहतर निर्माण हो। इसकी जिम्मेदारी शिक्षक समुदाय की है।
उन्होंने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित तर्क और बुद्धि को परिभाषित करते हुए कहा कि जहां तर्क हो वहां इसकी विवेचना करनी चाहिए और जहां तर्कातीत की स्थिति बनती हैं वहां श्रद्धा होती है। इस समय तर्क की बात करना गलत है। अहेतुगम्य और हेतुगम्य की स्थिति आत्मानुभूति का अहसास कराती है। यह तर्क का विषय है। कहां तर्क करना है और कहां इससे मुक्त होना है। यह एक विवेचन का विषय है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को हमेशा कर्म में विश्वास करना चाहिए। उसका फल क्या मिलेगा। इसमें व्यर्थ में समय गंवाने की आवश्यकता नहीं है। काम ठीक होगा तो उसका मूल्यांकन भी होगा। प्रायः कार्य इस तरह का करने की आदत डालें कि वह बोले। इसमें निराश होना कर्म में व्यवधान डालता है। कार्य में आत्मा होती है। उसकी आवाज को दूर-दराज में बैठे लोगों तक पहुंचनी चाहिए। व्यक्ति गृहस्थ जीवन जीता है। इसमें इतना समय मिल जाता है कि वह शक्ति के साथ किसी भी काम को पूरा करने में जुटे। आज आदमी क्या नहीं कर सकता। यदि मन में धुन हो तो असंभव काम भी संभव हो सकता है।
कषाय मंद की साधना करें
आचार्यश्री ने श्रावक समाज से आहृान किया कि वे कषायमंद की साधना करने का प्रयास करें। इंन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। आत्मा से साक्षात्कार तभी हो सकता है जब हमारा जीवन तप, आराधना और साधना के प्रति समर्पित हो। 12 व्रतों की आराधना करते हुए श्रावक समाज आगे बढ सकता है। अहिंसा हमें जीवन दर्शन का ज्ञान कराती है। शाखाएं तो अनेक मिल जाएगी, लेकिन सभी का मूल कार्य एक है। अणुव्रत का कार्य स्कूलों में अच्छा चल रहा है। यह बडी प्रसन्नता की बात है, लेकिन इसमें ओर तेजी लाने की आवश्यकता है। लक्ष्य का निर्धारण कर आगे बढे। अंतिम लक्ष्य की तरफ गति होती है तो मंजिल अपने आप मिल जाती है।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि अणुव्रत गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी की देन है। समय के साथ इसने व्यापक स्थान बना लिया है। प्रेक्षाध्यान और अणुव्रत से जुडे व्यक्ति देश में कहीं भी जाए उन्हें कोई रोकता नहीं है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने तेरापंथ को व्यापक रुप प्रदान किया है। संतों के आशीर्वाद के बिना आगे का काम नहीं हो सकता। अब कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा है कि वह अणुव्रत की अलख देशभर में जगाएं। अहिंसा और जीवन विज्ञान स्वयं का काम है। इसके सर्वव्यापीकरण के लिए श्रावक समाज में लगन की आवश्यकता है। मेवाड के कुछ गांवों में इस विषय पर काम करने की जरुरत है। इससे संघ, समाज और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। बिना किसी शोरगुल यह व्यापक बने और लोगों में जागृति आए। यह एक लक्ष्य होना चाहिए। जो व्यक्ति अभी इस कार्य में जुटे हुए हैं वे साधुवाद के पात्र है। मुनि किशनलाल ने कहा कि वर्तमान में देश के तीन सौ स्कूलों में लाखों विद्यार्थी ध्यान, साधना, तप, प्रेक्षाध्यान आदि का प्रशिक्षण ले रहे है। इनकी संख्या में वृद्धि के प्रयास में कार्यकर्ता पूरी तरह से जुटे हुए है। मुनि सुखलाल ने अहिंसा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि छह हजार संस्थाए विश्वभर में अहिंसा के विचारों को आमजन तक पहुंचाने का काम कर रही है। कार्यकर्ताओं के पास आधुनिक साधनों का अभाव है। फिर भी वे अलख जगाने में लगे हुए है। उत्तरप्रदेश, झारखंड और बिहार सरीखे राज्यों में भी यह काम तेजी से चल रहा है। इस अवसर पर अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान के सहसंयोजक धर्मचंद जैन ”अनजाना” और रतनगढ के रुपचंद सेठिया ने भी विचार प्रकट किए। अहिंसा पर्यवेक्षक रमेश जीनगर ने विद्यार्थियों को संकल्प का प्रयोग करवाया। छात्रों ने अणुव्रत गीत का संगान किया। मंत्री सोहनलाल धाकड ने आभार की रस्म अदा की। संयोजन शिक्षक संसद संस्थान के अध्यक्ष भीखमचंद नखत ने किया।
नशामुक्ति के लिए शिक्षकों का दृढ संकल्प
शिक्षक समुदाय का एक प्रतिष्ठित समुदाय है। उसके पास विशिष्ठ बौद्धिक क्षमता होती है। अपनी बौद्धिक क्षमता का समुचित उपयोग करना उसका दायित्व है। सरकार शिक्षक की समुचित सुरक्षा करे यह आवश्यक है। पर यदि शिक्षक उसके बावजूद भी अपनी क्षमता का सदुपयोग नहीं करता है तो अपने दायित्व के प्रति बेपरवाह हो जाता है। अणुव्रत शिक्षक संसद अपने दायित्व के प्रति जागरुक शिक्षकों का राष्ट्रव्यापी संगठन है। राजसमंद जिले के शिक्षक भी उसके साथ जुडे हुए है। वे इस आंदोलन को पूरे जिले में फैलाएं। यह जरुरी है। उक्त विचार मंत्री मुनि सुमेरमल ने राजसमंद जिले के अणुव्रत शिक्षक संसद के शिक्षकों की संगोष्ठी के समापन समारोह में प्रकट किए। अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल ने कहा कि आज सारी दुनियां में अपराध बढ रहे है। उसके अनेक कारण है। पर गहराई से देखा जाए तो नशा प्रमुख कारण है। यह भयंकर रुप से बढ रहा है। इस पर रोक लगाई जानी आवश्यक है। इसके लिए विद्यालय सक्षम स्थल है। यदि प्रारंभ से ही उनमें सुसंस्कार भरे जा सके तो बहुत काम हो सकता है। अणुव्रत शिक्षक संसद इसी दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। राजसमंद जिले के स्कूलों में भी नशामुक्ति का यह अभियान सशक्त रुप से चलना चाहिए। इस अवसर पर संसद के अध्यक्ष भीखमचंद नखत, धर्मचंद अंजाना, रचना तैलंग, चतर कोठारी आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए। सभी शिक्षकों ने अत्यंत उत्साह के साथ इस अभियान में अपना योगदान प्रदान करने का दृढ संकल्प किया।
प्रतियोगिता में छाया उत्साह
तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से रविवार रात को आयोजित पैसा ही परमेश्वर है विषयक वाद-विवाद प्रतियोगिता को लेकर प्रतियोगियों में उत्साह बना रहा। परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने बताया कि मुनि दिनेशकुमार के सान्निध्य में आयोजित इस प्रतियोगिता के पक्ष में प्रथम जीवन मादरेचा, द्वितीय श्रेया हिंगड, तृतीय श्रीमती राजतिलक, विपक्ष में प्रथम आयुषी हिंगड, द्वितीय पूजा दक और तृतीय श्रीमती लता मादरेचा रही। प्रतियोगिता के दौरान आचार्यश्री महाश्रमण भी मौजूद थे। कार्यक्रम में परिषद के सदस्य सहित सभी पदाधिकारी उपस्थित थे।

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