Wednesday, September 7, 2011

भिक्षु भूमि पर अध्यात्म का नया अध्याय अंकित


देशभर में क्रांतिभूमि का पर्याय बन चुकी केलवा की तपोभूमि पर बुधवार को आध्यात्म का एक ओर नया अध्याय जुड गया। मौका भी ऐसा ही कुछ खास था दो मुमुक्षुओं की दीक्षा समारोह का। अभूतपूर्व जनमैदिनी की साक्षी में तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने दोनों को दीक्षा प्रदान करते हुए संयम के मार्ग पर चलने की अनुमति दी और इस तरह सांसारिक जीवन को त्याग कर अध्यात्म के मार्ग पर चले मुमुक्षु अश्विनी का नामकरण करते हुए मुनि अतुलकुमार और मुमुक्षु चेतना का नाम साध्वी चैतन्ययशा दिया।
कस्बे के तेरापंथ समवसरण में सुबह नौ बजे शुरू हुए दीक्षा समारोह में आचार्यश्री ने दो जैन दीक्षा प्रदान की। उन्होंने पंजाब के मुमुक्षु अश्विनी एवं उदयपुर जिले के सायरा निवासी मुमुक्षु चेतना को दीक्षा प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ की दीक्षा में बहुत पारदर्शिता होती है। अनेक बार स्वर उठता है कि प्रलोभन, जबरदस्ती सन्यासी बना दिया जाता है। इस तरह के प्रयोग तेरापंथ में मान्य नहीं हैं। प्रलोभन देकर दीक्षा देना मुझे पसंद नहीं है। तेरापंथ में प्रारंभ से ही इस पर ध्यान दिया गया है। इसमें लिखित और मौखिक आज्ञा अभिभावकों से ली जाती है। दीक्षार्थी की परीक्षा होती है। उसके बाद योग्य होने पर दीक्षा दी जाती है। उन्होंने हजारों की जनमैदिनी की उपस्थिति में स्पष्ट शब्दों में कहा कि तेरापंथ में दीक्षा होना सरल बात नहीं है। जो भाग्यशाली होता है वही इस संघ में दीक्षा ले सकता है। यहां दीक्षा लेने के बाद गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण करना होता है। अपनी इच्छा गुरु के सम्मुख निवेदित कर सकता है। पर जो गुरु का निर्णय होगा उसे स्वीकार करना जरुरी होता है। आचार्यश्री ने कहा कि बुद्धिमान लोग तर्क में जीते है। यानि इंन्द्रियों और मन के क्षेत्र में जीते है। आत्मा इंद्रियां तीन क्षेत्र उनसे दूर है। दीक्षा तर्कातीत, इंद्रियांतीत में प्रवेश का द्वार है। दीक्षा लेना बडे भाग्य की बात है। आज दो जन दीक्षित होने जा रहे है। तेरापंथ में बहुत पारदर्शिता है। यहां पर प्रलोभन देकर, जबरदस्ती कर दीक्षा नहीं दी जाती। प्रलोभन देकर दी जाने वाली दीक्षाओं को मैं उचित नहीं मानता। पारदर्शिता का प्रमाण यह है कि लिखित आज्ञा पत्र। लिखित के साथ सबसे मौखिक आज्ञा भी ली जाती है। आचार्यश्री ने नव दीक्षितों को संबोधन देते हुए कहा कि संयम के प्रति जागरूकता एवं निर्देश संयम से हर क्रिया करनी है। जागरूकता रखनी है। क्षमा, कल्याण, विनम्रता का भाव विकास से मंगलकामना।
केंशलोच संस्कार
आचार्यश्री ने दीक्षार्थी अश्विनी का केंशलोच संस्कार संपन्न करते हुए कहा कि शिष्य की चोटी गुरु के हाथों में आ गई है। अब इस लोच का तात्पर्य है गुरु के अनुशासन में रहना। साध्वी दीक्षा लेने वाली मुमुक्षु चेतना का केंशलोच संस्कार साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने किया और प्रतीक तौर पर गुरु चरणों में चोटी समर्पित की।
नामकरण संस्कार
आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को नए जन्म का नया नाम प्रदान कर नामकरण संस्कार संपन्न किया। उन्होंने मुमुक्षु अश्विनी को मुनि अतुलकुमार और मुमुक्षु चेतना को साध्वी चैतन्ययशा नाम दिया।
रजोहरण प्रदान किया
आचार्यश्री ने अहिंसा ध्वज रजोहरण को आर्ष वाणी में आशीर्वाद के साथ मुनि अतुलकुमार को प्रदान किया। उन्होंने कहा कि मुनि ज्ञान दर्शन, चरित्र में वर्धमान होता रहे। साध्वी चैतन्ययशा को साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने रजारोहण प्रदान किया।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि दीक्षा एक बदलाव है। बिना बदले दीक्षा तक नहीं पहुंचा जा सकता। अनादि से भक्ति के मार्ग पर चलना दीक्षा है। असंयम से संयम की ओर आने से अर्हता प्राप्त हो सकती है। इस तरह की प्रवृति प्रत्येक व्यक्ति में आए। ऐसी अपेक्षा है।
मेवाड में आ रहा परिवर्तन
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि बदलाव दुनिया का शाश्वत विषय है। समय सब को बदलने के लिए विवश कर देता है। वह स्वयं नहीं बदलता। वह देखता रहता है। मेवाड में बहुत कुछ बदलाव आ गया है। जब 51 वर्ष पूर्व मेरी दीक्षा हुई थी उस समय मेवाड का परिवेश अलग था और अब अलग है। हमें यह सोचना है कि बदलाव कहां जा रहा है। हमें भीतर से बदलाव करना है। दीक्षा एक मार्ग है संयम पर चलने का। स्वयं की खोज के लिए जिस दिशा में प्रस्थान होता है वह दीक्षा है। भारतीय संस्कृति त्याग की संस्कृति हैं इस संस्कृति में दीक्षा का बडा महत्व है। यहां दीक्षा का अर्थ है गुरु चरणों में सब कुछ समर्पित कर देना। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति अपने संदर्भ में कोई निर्णय नहीं ले सकता। अपनी बात गुरु को निवेदित कर सकता है पर निर्णय गुरु का होता है। उस निर्णय के अनुसार जिसमें चलने की क्षमता होती है वही तेरापंथ में दीक्षित होने का अधिकारी होता है। दीक्षा समारोह में महिला मंडल की ओर से गीत का संगान किया गया। इस अवसर पर साध्वी आरोग्यश्री, साध्वी सुमुदाय, साध्वी जिनप्रभा, मुनि शुभंकर, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, बाबूलाल कोठारी, स्वागताध्यक्ष परमेश्वर बोहरा, दीक्षार्थी अश्विनी, दीक्षार्थी चेतना, मुनि तन्मय, मुनि हितेन्द्र ने भी विचार प्रकट किए। कन्हैया लाल छाजेड ने लिखित आज्ञा पत्र का वाचन किया। लिखित आज्ञा पत्रों को दीक्षार्थियों के अभिभावकों द्वारा आचार्यश्री के चरणों में समर्पित किए गए। संयोजन मुनि मोहजीतकुमार ने किया।
उमडा जन सैलाब
सात वर्ष बाद मेवाड की क्रांतिभूति केलवा में दीक्षा समारोह को लेकर लोगों का हुजूम उमड पडा। सवेर दस बजे तक तो यह स्थिति हो गई कि सडक पर तिल रखने तक की जगह नहीं थी। समारोह स्थल खचाखच भरा हुआ था। लोग खडे रहकर इस दीक्षा के साक्षी बनने को आतुर थे।


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