Saturday, September 3, 2011

कषाय मंद करने का पर्व है क्षमा-याचनाः आचार्यश्री महाश्रमण


कषाय मंद करने का पर्व है क्षमा-याचनाः आचार्यश्री महाश्रमण
केलवा में चातुर्मास, श्रावक समाज का उमडा हुजूम, लगभग पांच हजार श्रावक-श्राविकाओं ने पौषध कर रचा कीर्तिमान, दिनभर चला खमत खामना का दौर, केन्द्रीय दूरसंचार राज्यमंत्री पायलट ने लिया आचार्यश्री से आशीर्वाद, शिक्षकों की कार्यशाला आज

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आज हमारे सामने वर्ष का सबसे बडा पर्व आया है। क्षमा याचना का यह महापर्व व्यक्ति के मन के भीतर व्याप्त कटु वचनों को शुद्ध करने का एक उपक्रम है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी लोगांे से अतीत में जाने अनजाने हुई त्रुटियों के लिए खमत खामना कर क्षमा मांगे और आने वाले समय के लिए बेहतर करने का प्रण लें। उक्त उद्गार आचार्यश्री ने यहां तेरापंथ समवसरण के खचाखच भरे पांडाल में शनिवार को क्षमापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हजारों की तादाद में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि उत्तराध्यन में उल्लेखित है कि क्षमापना करने से चित्त में प्रसन्नता की अनुभूति होती है। सभी जीवों के साथ मैत्री का भाव रखने की आवश्यकता है। आत्मा का भाव पुष्ट करने की दृष्टि से भाव की विशुद्धि होना जरुरी है। हमने पिछले आठ दिन के भीतर पर्युषण महापर्व के दौरान धर्म आराधना, तप, उपवास और साधना कर जीवन को धार्मिक बनाने का अच्छा प्रयास किया है। आज उसका प्रयोगात्मक विश्लेषण का समय है। गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ दोनों से वे प्रत्यक्ष रुप से वंचित है, लेकिन परोक्ष से उनका सान्निध्य मिला हुआ है। हमारे सिर पर तेरापंथ धर्मसंघ का साया है। आत्मा हमेशा हमारे साथ है। यह हमारा सौभाग्य है। यह व्यवहारिक रुप से धर्मसंघ है। क्षमापना पर्व को लेकर आचार्यश्री ने साधु-साघ्वियों, श्रावक-श्राविकाओं, देशभर में चातुर्मास कर रहे मुनियों, साध्वियों, तेरापंथ धर्मसंघ, चातुर्मास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों सहित अन्य से खमत खामना की। इस दौरान पहले साध्वियों ने साधुओं से और उसके बाद साधुओं ने साध्वियों से वर्षभर के दरम्यान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से हुई त्रुटियों के लिए खमत खामना की। इसके बाद श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्यश्री से क्षमायाचना की।
जहर को अमृत बनाती है क्षमा
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने विभिन्न कठिनाईयों के दौर से गुजरने के बाद एवरेस्ट पर पहुंचने वाले व्यक्ति को सफलता मिलती है तो वह घ्वजारोहण करता है। आज हमें आठ दिन के पर्युषण की समाप्ति पर इसी तरह की अनुभूति हो रही है। इसलिए हमें भी ध्वज फहराने की आवश्यकता है। कल हमने संवत्सरी मनाई और पूरी रात आत्मलोचन और आत्म निरीक्षण किया। यह महान पर्व है। इसकी तुलना किसी अन्य पर्व से नहीं की जा सकती। हमारे मन में व्याप्त अहंकार के पहाडों को ढहाने की व्यक्ति को आवश्यकता है। क्षमा व्यक्ति के भीतर फैले जहर को अमृत बनाने का माध्यम है। हमारे यहां तीन चिकित्सा पद्धति का सहारा है। एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद। क्षमा भी एक चिकित्सा है, जो व्यक्ति को भीतर से स्वस्थ और मजबूत बनाता है। उन्होंने कहा कि हमें कायाकल्प की प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता है। हमारा जीवन शांति की साधना के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। मुख्य संयोजिका साध्वी विश्रुतप्रभा ने कहा कि आज के परिवेश में क्षमाशील व्यक्ति मैत्री के पथ पर जा सकता है। जिस तरह दो हृदयों को जोडकर कुल की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया जाता है उसी तरह क्षमा हमें परिवार, समाज और देश के विकास की ओर बढाती है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि क्षमापना को मन को टटोलने का समय बताते हुए कहा कि हमारी पर्युषण महापर्व के दौरान भावना बनी रही। उसकी आज के दिन आत्मालोचन करने की आवश्यकता है। हम अर्न्तःभाव से क्षमा याचना और आचार्य की ओर से इंगित आराधना में तल्लीन रहने का प्रयास करें। हमारे गुरुप्रवह बडे शलीन है। हमसे कोई त्रुटि हो जाती है तो कहते नहीं, बल्कि महसूस करते है। हमें गुरु की आराधना और उनकी दृष्टि पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आज इस चातुर्मास का पूवार्द्ध पूरा हो चुका हैं। अब उतरार्द्ध शुरू होने वाला है। यह चातुर्मास मेवाड के लिए ऐतिहासिक बने। इसके प्रयास करने की जरूरत है। मुनि दिनेश कुमार ने गीत का संगान किया। इस अवसर पर व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, स्वागताध्यक्ष परमेश्वर बोहरा, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, बाबूलाल कोठारी, लक्की कोठारी, लवेश मादरेचा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष फूलीदेवी कोठारी, मंत्री रत्ना कोठारी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी की सदस्य मंजूदेवी बडोला, रमेश बोहरा आदि ने विचार व्यक्त किए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।

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