Tuesday, September 6, 2011

अनुशासनात्मक विकास महत्वपूर्णः आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि अनुशासन मूल मंत्र है। फल और फूल उस वृक्ष का विकास है। जब मूल नहीं बचेगा तो फल और फूल कैसे प्राप्त किया जा सकता है। तेरापंथ में अनुशासन का बहु विकास हो रहा है, जो बहुत महत्वपूर्ण है। जिस संगठन में इस ओर ध्यान दिया जाता है वह विकास के नए आयाम उद्घाटित कर सकता है।
आचार्यश्री ने उक्त उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान मंगलवार को आयोजित विकास महोत्सव को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि तेरापंथ में विकास के हर कोण पर गहराई से ध्यान दिया जाता है। हमारे यहां पर युवा और भावी पीढी को संस्कारी बनाने के लिए ज्ञान शाला का एक महत्वपूर्ण उपक्रम संचालित हो रहा है। जिस समाज और राष्ट्र के युवा और बाल पीढी में संस्कारों के विकास पर ध्यान दिया जाता है वह भविष्य को उज्जवल बना लेता है। अन्यथा उज्जवल भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
आचार्यश्री ने ज्ञान शाला के माध्यम से बच्चों में संस्कार निर्माण करने वाले कार्यकर्ताओं को साधुवाद देते हुए कहा कि व्यक्ति को नाम संपति से दूर रहकर काम पर ध्यान देना चाहिए। जब काम बोलेगा तो उसकी आवाज दूर-दूर तक अपने आप चली जाएगी। उन्होंने कहा कि जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा जैन विद्या के प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है। इस पर ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने विकास महोत्सव के मूल में आचार्यश्री तुलसी के पदाभिषेक दिवस का योग होने का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरुदेव तुलसी बहुत प्रबुद्ध और ंिचंतनशील थे। वे यह जानते थे कि किस समय कौनसा कार्य करना है। 22 वर्ष की उम्र में तेरापंथ का आचार्य बन जाना विलक्षण घटना है। सबसे ज्यादा तेरापंथ का शासन करने के बाद पद का विसर्जन कर दिया यह भी अनाशक्ति का दुर्लभ प्रयोग है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने आचार्य बनने के बाद गुरुदेव तुलसी के पदारोहण दिवस को विकास महोत्सव के तौर पर मनाने की शुरूआत कर नई सोच प्रदान की। यह महोत्सव तेरापंथ के विकास का प्रतीक है। आज के दिन सभी संस्थाओं को समीक्षा करनी चाहिए कि कितना विकास किया है। विकास परिषद् इस महोत्सव से जुडी संस्था है। यह संस्था सभी की नीति वियामक है।
संघ की मौलिकता बरकरार रहे
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने हम विकास के पथ पर आगे और तेरापंथ धर्मसंघ की मौलिकता बरकरार रहे। इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा संघ विलक्षणता से परिपूर्ण है। यंू तो जैन समाज में कई धर्म संघ क्रियाशील है, लेकिन तेरापंथ धर्म संघ ने एक अलग ही पहचान कायम की हैं। इसे सतत् क्रियाशील बनाए रखने की आवश्यकता है। आचार्यश्री भिक्षु ने इस संघ की नींव रखते समय जिस तरह के संघ की कल्पना की थी। वह आज सभी के सामने है। वे स्वयं विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और उसी तरह विलक्षण संघ के विकास में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि ढाई सौ वर्ष पुराने इस संघ में यंू तो अनेक आचार्यों ने इसके विकास में अपना योगदान दिया, लेकिन तीन आचार्यों आचार्यश्री भिक्षु, जयाचार्य और गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी ने इसे ऊंचाईयों तक पहुंचाने का काम किया। आज तेरापंथ धर्मसंघ विकास का प्रतीक बन गया है। संघ में विकास की अवधारणाएं गुरुदेव तुलसी के समय में बनी थी। वे कहा करते थे कि इसके विकास का जिम्मा केवल साधु-संतों का ही नहीं है। इसमें श्रावक समाज को सहभागिता का निर्वाह करने की आवश्यकता है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ निरन्तर विकास के पथ की ओर अग्रसर है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह धारणा होती है कि मैं बुलन्दियों तक पहुंच जाऊं। इसके लिए कार्य को लक्ष्य देने की आवश्यकता है। काम बिखरा होगा तो हम लक्ष्य की ओर नहीं बढ पाएंगे। उन्होंने अनावश्यक प्रवृतियों से बचने की सीख देते हुए कहा कि हम सब आचार्यश्री महाश्रमण के नेतृत्व में आगे बढ रहे है। धीरे-धीरे हम शिखर तक पहुंच जाएंगे। तेरापंथ धर्मसंघ ऐसा संघ है, जहां एक नेतृत्व है लक्ष्य है उसे अर्जित करना है। इस अवसर पर साध्वी फूलकंवर के परिजनों ने उनके जीवन से जुडी एक पुस्तक आचार्यश्री को भेंट की, जिसका विमोचन किया गया। समारोह में मुनि विश्रुतकुमार, मुनि सुखलाल, महावीरकुमार, विकास महोत्सव के संयोजक लालचंद सिंघवी ने भी विचार प्रकट किए। मुनि विजयकुमार ने गीत का संगान किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
शासनश्री की उपाधि से अलंकृत
आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रवचन के दौरान चार मुनियों को उनकी कार्यक्षमता और विशेषताओं का बखान करते हुए शासनश्री की उपाधि से अलंकृत किया। इस उपाधि से सुशोभित होने वाले मुनियों में मुनि सुमेरमल सुदर्शन, मुुनि सुखलाल, मुनि पानमल एवं मुनि किशनलाल शामिल है। इनके अलावा मुनि कीर्तिकुमार और मुनि विश्रुत कुमार को आचार्यश्री ने अनिश्चितकाल तक समुचर्य कार्य की बक्शीश दी।

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