Sunday, August 28, 2011

वाणी श्रवण से मिल सकता है वैराग्यः आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि मनुष्य में धार्मिक कार्यक्रमों से प्रवाहित होने वाली वाणी से भी वैराग्य का भाव उत्पन्न हो सकता है। नवसार ने साधुओं की संगति में आकर उनके मुखवृंद से धर्म की बातों को श्रवण किया और सम्यक् को प्राप्त किया। ऐसा पुण्य आत्माओं में ही संभव है। आचार्यश्री ने यह उद्गार रविवार को तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे आगमों के स्वाध्याय को याद करने का प्रयास करें। इससे हमारी वाणी पर नियंत्रण होगा और विचारों में शुद्धता आएगी। अच्छे विचार आचार का प्रादुर्भाव होगा और व्यवहार में आशातीत परिवर्तन का बोध होगा। पांच कर्मों में बंध हो सकता है। इसके लिए संयम रखने की आवश्यकता है। इससे कर्मों की निर्जरता हो सकती है। जिस तरह आदमी का भाव होगा उसी के अनुरुप वह कर्मों के बंधन में बंधता है। कर्म वह चेतना है जो आकर्षण को पैदा करता है। इसे दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने तपस्या को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मनुष्य को इसका पालन करने के लिए संयम बरतने की जरूरत है। तपस्या हमें निर्मलता की ओर ले जाती है। हमारा स्वभाव निर्मल होगा तो परिवार में भी शांति की अनुभूति होगी। नैतिकता, संयमता, शालीनता और व्यवहार में मधुरता जीवन को सुन्दर
बनाती है। नेक व अच्छे कर्म करने में विश्वास करे। मन ही मनुष्य के बंधन और कर्मों को उजागर करता है। जैसा भाव होगा, मनुष्य का कर्म भी उसी अनुरुप सामने आएगा। जन्म-मरण का चक्र हमेशा चलता रहता है। जिस व्यक्ति में धर्मयुक्त और त्याग की भावना का समावेश होता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
उन्होंने कहा कि श्रावक समाज स्वाध्याय को कंठस्थ करने की भावना मन में जागृत करें। इसे करने के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। यह हम अंधेरे में भी कर सकते है। अच्छा जीव तभी जी सकता है, जब वह बाहरी गतियों को दमन करें। देवता मनुष्यों के पास भी आ सकते हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि वह धर्मयुक्त हो। जिस मनुष्य के चित्त में निर्मल का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। उन्होंने भगवती सूत्र आगम को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि साधु के मन के भीतर चंदन का लेप लगा है। मनुष्य अपने बाहरी काया पर इस लेप को लगाने का प्रयास करें।
कर्म निर्धारित करते है गति
आचार्यश्री ने कहा कि एकाग्रचित्त होकर ध्यान-साधना करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। जो व्यक्ति आत्मीयता के बलबूते आराधना करता है उसे निर्वाण की प्राप्ति होती है। संबोधि काल में जिस व्यक्ति का ध्यान धर्म और समाज की ओर जाग्रत होता है उसे निर्वाण का मार्ग अवश्य मिलता है। इसके लिए आवश्यक है कि वह मन को स्थिर रखकर ईश्वर का ध्यान करें।
यह कर्मों का स्वभाव है कि वर्तमान में हम कौनसी गति के प्राणी है। इसकी विवेचना कर सकते है। मृत्यु के बाद आदमी की आत्मा किस रुप में जन्म लेगी। इसका भी एक विधान है। मनुष्य अगले जन्म में पुनः मनुष्य के रुप में अवश्य जन्म लेता हैं, लेकिन देवता वापस देव रुप में जन्म नहीं ले सकता है। उन्होंने तीन कर्मों से सदैव बचने का आहृान करते हुए गति को भी विधान बताया और कहा कि मनुष्य के कर्म में जैसा भाव होगा, उसे कर्मों का वैसा ही फल मिलता है। आयुष कर्म से अगली गति का निर्धारण संभव हो सकता है। मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे पानी के महत्व को समझते हुए इसके अपव्यय को रोकने की दिशा में अभियान चलाएं। पानी का दुरुपयोग इसी तरह से होता रहा तो आने वाली पीढी को बडी कठिनाईयों का सामना करना पडेगा। आज की स्थिति को देखते हुए हमें थोडे पानी में ज्यादा कार्य करने के प्रति जागरूकता लानी होगी। हमें स्नानादि करते समय कम पानी उपयोग करने की आदत विकसित करने की महत्ती आवश्यकता है। कम पानी में किस तरह से ज्यादा कार्य संपादित किए जाए। इस ओर मनन करने की जरूरत है। सभी कार्यों के निष्पादन के बाद यदि कुछ पानी शेष रह जाए तो उसे फेंके नहीं, बल्कि उसका संग्रहण करके पुनः उसका उपयोग करने की आदत डालें।
सर्वज्ञान का खजाना है भगवती सूत्र
मंत्री मुनि सुमेरमल ने भगवती सूत्र को सर्वज्ञान के खजाने के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि वर्तमान में उपलब्ध आगमों में भगवती सूत्र सबसे बडा है। इसे पढने से जीव अजीव को सतद्रव्य का ज्ञान होता है। यह ऐसा गं्रथ है जिसमें प्रश्नोत्तर शैली में रचा गया है। इसमें 36 हजार प्रश्न और उत्तर है। इससे हमारे ज्ञान में आशातीत वृद्धि होती है। इसमें अनेक विषयों के समावेश कर विवेचन किया गया है। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।


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