राजसमंद । जिले के अनेक स्थानों पर फडका पैर फैलाने लगा है। कई जगह फडका शिशु व प्रथम अवस्था में है। इससे फसलों को नुकसान की आशंका है। वर्षा नहीं होने या एक-दो दिन के अंतराल से होने से इसका प्रकोप बढ रहा है। फसल बचाने के लिए इस पर नियंत्रण जरूरी है। राजसमंद तहसील क्षेत्र के अलावा देवगढ, देलवाडा, खमनोर सहित अनेक क्षेत्रों में फडके का प्रकोप है। यह पालियों में लगे घास के बाद मक्का, ज्वार आदि को नुकसान पहुंचाने लगा है। इस पर इस अवस्था में ही नियंत्रण जरूरी है।
क्या है फडका
यह खरीफ को खराब करने वाला कीट है। जो पत्तों को चटकर फसल को नष्ट कर देते हैं। इसका प्रकोप जून-जुलाई से अक्टूबर तक चलता है। एक मादा फडका जीवन काल में दो से छह अण्डपिण्ड भूमि में रख देती है। एक अण्डपिण्ड में करीब 40 अंडे होते है। अण्डपिण्ड मानसून शुरू होने के 10 से 15 दिन बाद निकलते है। यह मक्का, ज्वार आदि के पत्ते व फल दोनों चट कर फसल को बरबाद कर देता है।
जीवन चक्र
शिशु कीट पंख रहित हरे पीले रंग का मच्छर के समान होता है। ये भूमि की सतह पर आ कर पालियों व धोरों में उगने वाली घास खाना शुरू कर देते है। यह अपनी द्वितीय अवस्था तक पंख रहित रहता है तथा इसकी चलने की गति बहुत कम होती है। करीब 45 से 50 दिन बाद शिशु से प्रौढ कीट बन जाता है। इस अवस्था में आने के बाद ये धोरों में उगी घास छोडकर मक्का, ज्वार आदि की फसल पर आक्रमण कर फसल को चौपट कर देते हैं। प्रौढ कीट का जीवन काल 55 से 65 दिन का होता है।
नियंत्रण के उपाय
कीट से बचने के उपाय इसके शैशव काल में कर लेने चाहिए। किसानों को खेतों में पालियां छोटी रखनी चाहिए तथा संभव हो तो इन्हेंं काट लेना चाहिए। इससे कीट को छिपने की जगह नहीं मिलेगी।
रासायनिक नियंत्रण
घास, चारे में मच्छर के आकार के जीव दिखाई दें तो बिना देरी किए इन पर मिथाइल पैराथियॉन दो प्रतिशत चूर्ण या मेलाथियॉन पांच प्रतिशत व अन्य उपलब्ध रासायनिक का प्रयोग करना चाहिए। एक बीघा क्षेत्र के लिए चार किलो पैराथियॉन दो प्रतिशत चूर्ण का छिडकाव करना चाहिए। इन रासायनिक का प्रयोग वर्षा में नहीं करे।
क्या है फडका
यह खरीफ को खराब करने वाला कीट है। जो पत्तों को चटकर फसल को नष्ट कर देते हैं। इसका प्रकोप जून-जुलाई से अक्टूबर तक चलता है। एक मादा फडका जीवन काल में दो से छह अण्डपिण्ड भूमि में रख देती है। एक अण्डपिण्ड में करीब 40 अंडे होते है। अण्डपिण्ड मानसून शुरू होने के 10 से 15 दिन बाद निकलते है। यह मक्का, ज्वार आदि के पत्ते व फल दोनों चट कर फसल को बरबाद कर देता है।
जीवन चक्र
शिशु कीट पंख रहित हरे पीले रंग का मच्छर के समान होता है। ये भूमि की सतह पर आ कर पालियों व धोरों में उगने वाली घास खाना शुरू कर देते है। यह अपनी द्वितीय अवस्था तक पंख रहित रहता है तथा इसकी चलने की गति बहुत कम होती है। करीब 45 से 50 दिन बाद शिशु से प्रौढ कीट बन जाता है। इस अवस्था में आने के बाद ये धोरों में उगी घास छोडकर मक्का, ज्वार आदि की फसल पर आक्रमण कर फसल को चौपट कर देते हैं। प्रौढ कीट का जीवन काल 55 से 65 दिन का होता है।
नियंत्रण के उपाय
कीट से बचने के उपाय इसके शैशव काल में कर लेने चाहिए। किसानों को खेतों में पालियां छोटी रखनी चाहिए तथा संभव हो तो इन्हेंं काट लेना चाहिए। इससे कीट को छिपने की जगह नहीं मिलेगी।
रासायनिक नियंत्रण
घास, चारे में मच्छर के आकार के जीव दिखाई दें तो बिना देरी किए इन पर मिथाइल पैराथियॉन दो प्रतिशत चूर्ण या मेलाथियॉन पांच प्रतिशत व अन्य उपलब्ध रासायनिक का प्रयोग करना चाहिए। एक बीघा क्षेत्र के लिए चार किलो पैराथियॉन दो प्रतिशत चूर्ण का छिडकाव करना चाहिए। इन रासायनिक का प्रयोग वर्षा में नहीं करे।
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