राजसमंद। गला काट प्रतिस्पद्र्धा के दौर में व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए ही जीता है ऐसे में परिवार के वृद्ध मुखिया की कदर को भी लोग भुलते जाते है। ऐसे में राजसमंद जिले के धानीन निवासी मोहन सिंह दसाणा ने मात्र तपस्वी द्वारा दिए स्वप्न दर्शन को अपनी प्रेरणा बनाया और माता-पिता को न केवल कावड़ द्वारा चारभुजानाथ के दर्शन करवाए अपितु रथ मेें माता-पिता को सवार करवा रथ अपने हाथों से खेंचते हुए रूणेचा (जैसलमेर) तक यात्रा करवा कर बाबा रामदेव के दर्शन करवाए।मोहन सिंह दसाणा गत 11 अगस्त को धानीन गांव से अपने पिता देवनारायण सिंह दसाणा एवं माता श्रीमती होनी बाई को कावड़ में बैठाकर चार दिवसीय पैदल यात्रा करते हुए 15 अगस्त को चारभुजानाथ पहुंचे और वहां माता-पिता को चारभुजानाथ के दर्शन करवाएंगे। दसाणा ने बताया कि माता-पिता को जिस कावड़ में बिराजमान करवाया उसका वजन 21 किलो था जबकि पिता का वजन 50 किलो एवं माता का वजन 40 किलो था। अलौकिक शक्ति की मदद से कुल 111 किलो वजन उठा कर वह चार दिन तक चलने के उपरांत चारभुजानाथ पहुंचे और दिली ख्वाईश को अंजाम दिया।मोहन सिंह दसाणा ने 15 अगस्त को चारभुजा कस्बे से ही माता-पिता को रिक्शानुमा रथ में सवार करवा कर अपने हाथों से खेंचते हुए रूणेचा जैसलमेर की यात्रा शुरू की। करीब दस दिन तक रथ को खेंचते हुए 24 अगस्त रक्षाबंधन पर्व पर रामदेवरा पहुंचे और वहां पर वृद्ध-माता पिता को बाबा रामदेव के दर्शन करवाए। दर्शन के उपरांत जहां मोहन सिंह दसाणा अपनी इस सफलता के पीछे फूले नहीं समाएं वहीं पिता देवनारायण सिंह दसाणा एवं माता श्रीमती होनी बाई अपने जीवन को सार्थक मानते हुए रह-रह कर मोहन सिंह के इस कर्म पर भगवान का शुक्रिया अदा करते रहे।हर वृद्ध माता-पिता की यह दिली ख्वाईश होती है कि रामायण तथा शास्त्रों में उल्लेखित श्रवण पात्र जैसा बेटा हो ताकि उनका बुढ़ापा अच्छा निकल सके और कम से कम वह भगवान का नाम जाप करते हुए मोक्ष प्राप्त कर सके। हालांकि वर्तमान परिपेक्ष्य में किसी पुत्र के लिए यह काफी कठिन काम है लेकिन इस काम को चुनौति के तौर पर लेते हुए धानीन के मोहन सिंह दसाणा ने अपने वृद्ध माता-पिता को कावड़ एवं रथ यात्रा से रूणिचा बाबा रामदेव के दर्शन करवाने का संकल्प लेते हुए पूर्ण भी किया।तीन वर्ष पूर्व मिली प्रेरणा : मोहन सिंह दसाणा ने बताया कि तीन वर्ष पूर्व रामदेवरा के लिए बंदर यात्रा पर निकले इस दौरान सुबह आठ से नौ बजे तक तथा शाम छह से सात बजे तक ही बोलने का प्रण लेकर निकले। इस दौरान उन्होंने प्रण किया कि वह खाना भी रूणेचा जाकर ही खाएगा लेकिन झीलवाड़ा पहुंचने पर विश्राम के दौरान स्वप्न में एक संत ने दर्शन देकर कहा कि तेरी यात्रा यही सफल हुई यही से पुन: लौट जा कहकर प्रण तुड़वा दिया लेकिन इसके बाद भी मोहन सिंह के मन में टीस रही और हर बार यही ख्याल आता कि किस तरह अधूरी यात्रा को पूर्ण की जाए।मोहन सिंह ने बताया कि इसके छह माह बाद स्वप्न में उसे एक तपस्वी ने दर्शन दिए और श्रवण की अधूरी यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि माता-पिता को कावड़ से चारभुजानाथ के दर्शन करवाए तो उसकी अधूरी यात्रा का प्रण भी पूरा हो जाएगा। इसके बाद वह कावड़ यात्रा केे लिए अपने आप को तैयार किया।संघ भी चला साथ : मोहन सिंह दसाणा की यात्रा को लेकर उनका स्वयं का संघ भी एक ट्रैक्टर में साथ चला। इस संघ में करीब 50 जने शामिल थे जो जय चारभुजानाथ, जय बाबा री आदि के जयघोष के साथ मोहन सिंह का उत्साहवद्र्धन करते हुए चल रहे थे।गुजरात में कला प्रदर्शन करते है सिंह : आधुनिक श्रवण पुत्र के रूप में ख्यातनाम हुए धानीन निवासी मोहन सिंह दसाणा गुजरात में धार्मिक कार्यक्रमों में अपनी कला का प्रदर्शन करते है।
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