Monday, September 6, 2010

'खोज से स्वाध्याय का जन्म'

राजसमंद। जैन समाज के चल रहे पर्वाधिराज पर्युषण के दूसरे दिन सोमवार को जिले के विभिन्न स्थानों पर जैन साधु-साघ्वियों के सान्निध्य में स्वाध्याय के रूप में मनाया गया। श्रावक-श्राविकाओं ने जप, तप किए तथा तपाधिनन्दन किए। भिक्षु बोधि स्थल राजनगर में साध्वी कंचन कुमारी के सान्निध्य में हुए कार्यक्रम में साध्वी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन स्वाध्याय करना चाहिए। साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि व्यक्ति दैनिक नित्य कर्म से कुछ समय साधु-संतों व समाज के लिए भी निकालें। मनुष्य जीवन बडा दुर्लभ है, इसे सांसारिक कार्योü में ही पूरा न करें।
तेरापंथ युवक परिषद् के अध्यक्ष डॉ. विमल कावडिया ने बताया कि रविवार रात्रिकालीन कार्यक्रम के तहत अन्त्याक्षरी का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि शिक्षाविद् चतुर कोठारी थे। कार्यक्रम में अचल धर्मावत, मदन धोका, सागर कावडिया, निर्मला कोठारी, लता मादरेचा, प्रेमलता कावडिया, मंजू दक ने भी रोचक प्रस्तुतियां दी। बोधि स्थल के अध्यक्ष गणपत धर्मावत ने बताया कि बोधि स्थल में नमस्कार महामंत्र का अखण्ड जाप जारी है।
दयालशाह जैन तीर्थ के तलेटी मन्दिर पर मुम्बई से आए साधर्मिक स्वाध्यायी बन्धु जैनम शासनम् राजकुमार जैन कल्पसूत्र के व्याख्यान दे रहे हैं। जैन श्तेताम्बर मूर्तिपूजक संघ दयालशाह किला तीर्थ के अध्यक्ष अरविन्द चतर ने बताया कि प्रतिदिन प्रभुजी के अंगरचना प्रतिक्रमण आरती व शाम को भक्ति कार्यक्रम दक्षिण केसरी गुरूदेव संगीत पार्टी घाणेराव की ओर से प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका बडी संख्या में श्रोता आनन्द उठा रहे हैं।
तेरापंथ सभा भवन कांकरोली में मुनि जतन कुमार लाडनू ने कहा कि हमारी संस्कृति को जीवित रखने का सुन्दरतम उपक्रम है पर्व। लोक चेतना में समन्वय, सौहार्द, भाईचारा एवं दायित्व आदि बोध अन्तर्विशुद्घ हो इसके लिए पर्वो की श्रृंखला में पर्युषण महापर्व है, जो अहिंसा की प्रतिष्ठा का प्रतीक है। स्वाध्याय पर बोलते हुए उन्होने कहा कि स्वयं की खोज के साथ स्वाध्याय का जन्म होता है। स्वाध्याय वह दर्पण है जिसमें अपने रूप को देखकर उसे संवारने की व्यवस्था की जा सकती है।

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