Sunday, July 31, 2011

कोठारी परिवार ने किया स्वागत


गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे (ANNA HAJARE) का अणुव्रत अधिवेशन का उद्घाटन समारोह की समाप्ति के बाद व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी VIKASH एवं उनके परिवारजन की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया। इस दौरान अन्ना ने भोजन भी ग्रहण किया और परिवार के सदस्यों के बारें में जानकारी ली।
पहले नमन, फिर चर्चा
सुबह करीब पौने नौ बजे गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे भिक्षु विहार पहंुचे। यहां उन्होंने पहले आचार्य महाश्रमण को पहले नमन किया। फिर उनके द्वारा समाज सुधार के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को लेकर चर्चा की। इस दौरान हजारे ने आचार्य से तेरापंथ समाज के बारे में जानकारी ली और कहा कि देश के नेताओं में कथनी और करनी का अंतर हैैं। इसलिए देश रसातल की ओर जा रहा है। भूखमरी निरन्तर बढ रही है और व्यक्ति अपराध की तरफ जा रहा है। इस पर आचार्य ने कहा कि आज के मनुष्य को नैतिकता का पाठ पढाना आवश्यक हो गया है। इसके बिना उसका जीवन सफल नहीं हो सकता। इस दौरान उन्होंने विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।

अंधकार में हो दीप जलाने का प्रयासः महाश्रमण

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जीवन में त्याग, संयम की चेतना जब जागृत हो जाती है तब भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं समाप्त हो जाती है। अणुव्रत आंदोलन एक ऐसा आंदोलन है जो नैतिकता की, संयम चेतना जगाने का कार्य कर रहा है। आचार्य तुलसी द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन को व्यापक सफलता मिली है। यह आंदोलन देश के शीर्ष नेताओं से लेकर अंतिम श्रेणी में जीने वाले व्यक्ति तक पहुंचा हैं। व्यक्ति में व्रत का थोडा अंश भी आ जाता है तो जीवन उत्थान की तरफ बढ जाता है। अणुव्रत आंदोलन के द्वारा मानव उत्थान का कार्य किया जाता है। यह आंदोलन भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं नशामुक्त चेतना को जगाने वाला भी है। आचार्य ने अन्ना हजारे के संकल्प शक्ति की सराहना करते हुए कहा कि हजारे की जब तक प्राण रहेंगे तब तक देश की सेवा करते रहने का संकल्प व्यक्त किया है। देश की सेवा के लिए प्राण देने का संकल्प व्यक्त कर रहे है। यह बहुत बडी बात है। मृत्यु से न डरने वाला ही अपने कार्य को सिद्ध करना जानता है और ऐसा संकल्प वही व्यक्ति कर सकता है जिसमें आत्म बल होता है, मनोबल होता है।
आचार्य ने कहा कि अन्नाजी के यह शब्द मेरे हृदय को छू गए है कि आप देश के लिए जीना चाहते है। इसके लिए प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार है। जीवन में संकल्प का बडा महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि अणुव्रत भी एक संकल्प है। आदमी अच्छा इंसान बन सकता हैै। उन्होंने गत दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज की चर्चा करते हुए कहा कि किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना भी एक सफलता है। अंधकार में रोशनी के लिए एक दीपक जलाने की आवश्यकता है। हिंसा और अपराध जगत की ओर पांव बढाने के तीन कारणों को स्पष्ट करते हुए आचार्य ने कहा कि व्यक्ति प्रायः अज्ञानता, अभाव और आवेश में आकर अपराध करता है। इससे सम्यक ज्ञान के विकास से निजात पाई जा सकती है। किसी व्यक्ति के जीवन में अभाव है तो उसका स्वभाव बिगड जाता है। भूखमरी भी हिंसा का एक महत्वपूर्ण कारण है। उन्होंने अभावों को दूर करने की अपेक्षा का आहृान करते हुए कहा कि इससे अपराध निरुद्ध हो सकता है। आचार्य ने कहा कि भ्रष्टाचार में केवल राजनीतिज्ञ ही लिप्त नहीं है। मुझे तो ऐसा कोई वर्ग नहीं दिख रहा जो भ्रष्टाचार में लिप्त ना हो। जहां पैसा है वहां भ्रष्टाचार है। इसलिए किसी वर्ग विशेष को दोषी नहीं मान सकते। हमें प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक करने का प्रयास करना होगा जब व्यक्ति जागरूक होगा तभी भ्रष्टाचार कम होगा।
भ्रष्टाचार एक दैत्य के समान
मंत्री मुनि सुमेरमल ने भ्रष्टाचार को एक दैत्य की संज्ञा देते हुए कहा कि यह मनोविकार रातों रात बढने वाला कीडा है। इस पर नियंत्रण करना आज के परिवेश में आवश्यक हो गया है। जो मानवता का सूत्र लेकर खडे हो तो वे इतिहास में अपना नाम अंकित कर लेते है। इसलिए पहले धार्मिक और फिर नैतिक बनने की आवश्यकता है। आचार्य तुलसी अणुव्रत के द्वारा मानव उत्थान का कार्य कर इतिहास पुरुष बने। उस कार्य को आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी मनीषा से शक्तिशाली बनाकर संघ को नई ऊंचाईयां प्रदान की। वर्तमान में आचार्य महाश्रमण उसी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए इस मेवाड की दुर्धम घाटियों में पदयात्रा की है और नशामुक्ति, भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं नैतिकता की अलख जलाई है। नैतिक दर्शन जीवन में आने से व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल बदलाव आ सकता है। आध्यात्मिकता का क्रम बनने से देश में नैतिकता का वातावरण बनेगा। मुनि सुखलाल ने कहा कि सारी प्रकृति एक व्यवस्था के अनुरूप चल रही है। इसे ठीक तरह से समझ लिया जाए तो शांति एवं आनंद का वातावरण बन सकता है। आचार्य तुलसी ने चरित्र की मजबूती पर बल देते हुए कहा था कि सुधरे व्यक्ति से समाज जागेगा। इससे देश का सुधार होगा। अणुव्रत भी सोए लोगांे का जगाने का उपक्रम है।
पूरे देश में भ्रष्टाचार का विष
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह से कहावत है कि पूरे कुएं में भांग है वैसे ही आज भ्रष्टाचार का जहर आम आदमी में फैल गया है। देश कठिनाईयों के दौर से गुजर रहा है। नैतिकता आधारहीन हो गई है। ऐसे में विकास की बात करना बेमानी है। पश्चिमी मूल्य अनवरत रूप से हावी होते जा रहे है और भारतीय मूल्य गौण हो गए है। जिस तरह समाज और परिवार में विघटन आ रहा है वह चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत का पदार्पण किया और आचार्य महाप्रज्ञ ने उसे आगे बढाया। अब आचार्य महाश्रमण ने बागडोर संभाल रखी है। इससे पूर्व मुनि नीरज ने संयममय जीवन हो गीत प्रस्तुत किया। स्वागत की रस्म अदा करते हुए व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने अणुव्रत की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि केलवा में भी नशामुक्ति का अभियान चल रहा है। इस अनुकरणीय कार्य में सभी समाजों का सहयोग मिल रहा हैं। अणुव्रत के विजयराज सुराणा ने समिति के उद्देश्यों की जानकारी दी। आगन्तुक अतिथियों का सम्मान निर्मल एम रांका, डॉ. बी एन पांडेय, जी एल नाहर, जुगराज नाहर, महेन्द्र कोठारी और सम्पत शामसुखा ने किया। अंत में आभार मुकेश डी कोठारी ने जताया।

अणुव्रत है महाशक्तिः हजारे

देश के सुप्रसिद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने युवाओं से भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम में अपनी सहभागिता का आहृान करते हुए कहा कि जब तक उनके शरीर में प्राण है तब तक लोकपाल को लेकर चलाया जा रहा आन्दोलन जारी रहेगा। उन्होंने लोकपाल बिल को पारित कराने की कार्रवाई को आजादी की दूसरी लडाई की संज्ञा देते हुए कहा कि पहले गोरे देश को दीमक की तरह चूस रहे थे। अब काले लोग देश को भ्रष्टाचार के दलदल में डालकर स्वयं मौज उडा रहे है। गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे रविवार को यहां तेरापंथ समवसरण में शुरू हुए अणुव्रत के 62 वें अधिवेशन के उद्घाटन अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। स्वामी विवेकानंद के जीवन और संदेशों से स्वयं को प्रभावित बताते हुए अन्ना ने कहा कि उन्होंने वर्ष 1965 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध के बाद इन संदेशों से प्रेरित होकर अपना संपूर्ण जीवन जन सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि वे 26 वर्ष की उम्र से लेकर आज 74 वर्ष की आयु तक लोक सेवा को समर्पित है। हजारे ने खुलासा किया कि उन्होंने देश और जन सेवा की खातिर ही विवाह नहीं किया। उनका कहना था कि यदि वे चौके-चूल्हे के फेर में पड जाते तो शायद देश के लिए यह सब कुछ नहीं कर पाते।
भौतिक सुख सुविधाएं भोगने वाले लखपति और करोडपति व्यक्ति रात को एसी में नींद की गोलियां लेकर सोते है, लेकिन उन्हें आनंद की अनुभूति नहीं होती। मैं दूसरों की सेवा कर उनसे ज्यादा अपने आपको आनंदित महसूस करता हंू। जब तक हम दूसरों को सुखी नहीं करेंगे तब तक स्वयं भी सुखी नहीं रह पाएंगे। विश्व में शांति का सपना केवल बातें करने से साकार नहीं होगा। इसके लिए पहले गांव, फिर व्यक्ति और फिर देश को सुधारना होगा। उन्होंने अणुव्रत को स्वयं के लिए प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में यह बात हमेशा रटता रहता है कि यह मेरा, वो मेरा और दूसरे के हिस्से का भी मेरा, लेकिन हाथ में कुछ आता जाता नहीं है। फिर क्यों इस तरह की आकांक्षा मन में बनाई जाती है।
अणुव्रत है महा शक्ति
उन्होंने कहा कि अणुव्रत में अथाह शक्ति है। इसकों मैंने अनुभव किया और जीया है। इसी कारण वे उम्र के इस पडाव में भी दीन-दुखियों की सेवा में जुटे हुए है। आचार, विचार और त्याग के बिना कुछ भी संभव नहीं है। परम्पराएं त्याग सिखाती आई है। जितना त्याग करोगे तभी शांति की अनुभूति होगी। एक भुट्टे के लिए किसान एक दाना खेत में डालता है और फसल पकने के बाद इसमें कई दाने आ जाते है। जो दाना जमीन में नहीं जाता वह चक्की में पिसकर आटा बन जाता है। उन्होंने कहा कि वे पिछले 35 वर्षों के दौरान एक बार भी अपने गांव नहीं गए। उन्हें अपने भाईयों के पुत्रों का नाम तक नहीं मालूम। वे केवल देश और गरीब की सेवा में जुटे हुए है।
विकास में रोडा भ्रष्टाचार
उन्होंने गांव एवं देश के विकास में रोडा बन रहे भ्रष्टाचार रूपी बेल को नष्ट करने का आग्रह करते हुए कहा कि वे दस वर्ष तक सूचना के अधिकार कानून को पारित कराने के लिए लडते रहे। आखिरकार उन्हें सफलता मिली और आज यह कानून पूरे देश में लागू है। इसके बाद बडे घोटाले निरन्तर सामने आ रहे है। उन्होंने बेदाग छवि के कारण केन्द्रीय मंत्रीमंडल के छह मंत्रियों को घर का रास्ता दिखा दिया और चार सौ से अधिक अफसरों को कार्रवाई के बोझ तले दबा दिया। उन्होंने लोकपाल बिल को परिभाषित करते हुए कहा कि इस बिल के पारित होने से भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी, मंत्री और अन्य को जेल भिजवाया जा सकता है। इसमें आजीवन कारावास के प्रावधान के साथ जितना गबन किया उतनी ही वसूली का प्रावधान किया गया है, लेकिन सरकार मानने को तैयार ही नहीं। उन्होंने सीबीआई को सरकार का एक अंग बताते हुए कहा कि अब तक कितने ही मामलों में सीबीआई ने जांच की, लेकिन कोई जेल तक नहीं पहुंच पाया।
उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह लोकपाल को स्वायत्तता दें दे तो देश में भ्रष्टाचार के तकरीबन साठ से सत्तर प्रतिशत मामलों में ब्रेक लग सकता है। लोकपाल को क्रांतिकारी कदम बताते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पिछले 42 वर्षों के दौरान यह बिल पारित कराने के लिए संसद में लाया गया, लेकिन नेताओं ने इसे पास नहीं होने दिया। आज बढती महंगाई से गरीबों का जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। लोग एक समय भोजन करके जीवन बिता रहे है। किसी नेता को इनकी चिंता ही नहीं है।

Saturday, July 30, 2011

बच्चों को सुसंस्कारित करें माताः समणी चिन्मयप्रज्ञा

केलवा कस्बे के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में शनिवार को जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय की कुलपति समणी चिन्मयप्रज्ञा के सान्निध्य में मां-बेटी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस दौरान समणी ने अपने प्रवचन में माताओं से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को सुसंस्कारित बनाने की दिशा में जीवन का निर्वाह करें। उन्होंने लडके-लडकी में फर्क नहीं करने का आहृान करते हुए कहा कि आज बेटों की अपेक्षा बेटियां आगे बढ रही है। एक बेटी पहले अपने माता-पिता और विवाह के बाद अपने ससुराल व स्वयं का घर संवारती है। विनयप्रज्ञा ने जीवन के विकास को लेकर गीत प्रस्तुत किया। संस्था प्रधान श्रीमती लता खींची ने कार्यक्रम में मौजूद माताओं एवं बालिकाओं को शिक्षा के अधिकार, कानून तथा बालिका शिक्षा की जानकारी दी। इस अवसर पर कुर्सी रेस और मेहंदी प्रतियोगिता आयोजित हुई। इसमें विजेता रही बालिकाओं को नोडल प्रभारी श्रीमती निर्मला सेईवाल द्वारा पुरस्कार वितरित किए गए।

अणुव्रत अधिवेशन आज से

अणुव्रत आंदोलन का त्रिदिवसीय अणुव्रत अधिवेशन रविवार से तेरापंथ सभागार में शुरू होगा। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सानिध्य एवं महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की प्रेरणा से आयोजित इस अधिवेशन के प्रथम सत्र में उद्घाटन रविवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक होगा। इसमें गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे का संबोधन और मंत्री मुनि सुमेरमल का उद्बोधन होगा। द्वितीय सत्र मंे दोपहर दो से शाम चार बजे तक कार्यकर्ता संगोष्ठी होगी। इसमें अणुविभा, अणुव्रत न्यास, शिक्षक संसद प्रगति विवरण पर चर्चा की जाएगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात से रात दस बजे तक अणुव्रत अलंकरण सम्मान कार्यक्रम होगा। दूसरे दिन सोमवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक आचार्य तुलसी शताब्दी समारोह योजना पर चर्चा और अणुव्रत महासमिति कार्यसमिति की बैठक, द्वितीय सत्र में दोपहर दो से सायं पांच बजे तक अणुव्रत महासमिति साधारण सभा की बैठक होगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात से रात दस बजे तक संस्था संचालन, पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा के बाद काव्य गोष्ठी, तीसरे और अंतिम दिन मंगलवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक अधिवेशन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। साथ ही नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा पदभार ग्रहण एवं उद्बोधन होगा।
जैन विद्या परीक्षाओं की तिथियां घोषित
आचार्य महाश्रमण की अनुशासना में जैन विश्व भारती के शिक्षा विभाग समण संस्कृति संकाय द्वारा संपूर्ण देश में आयोजित होने वाली जैन विद्या परीक्षाओं की तिथियां घोषित कर दी गई है। संकाय के सहप्रभारी मुनि जयंत कुमार ने बताया कि जैन विद्या परीक्षाओं के लिए देश के 233 परीक्षा केन्द्रों से 10 हजार विद्यार्थियों द्वारा आवेदन किए जाते है। प्रतिवर्ष होने वाली जैन विद्या भाग-1 से भाग 9 तक की परीक्षाएं इस बार 5 व 6 नवम्बर को आयोजित की जाएगी। इन परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थी विलंब शुल्क सहित 20 सितम्बर तक ही आवेदन कर सकेंगे। इसके बाद आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
पाठ्यक्रम में आशिंक परिवर्तन
मुनि जयंत कुमार ने बताया कि जैन विद्या परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में आंशिक परिवर्तन किया गया है। जैन विद्या भाग 8 के आत्मा के दर्शन की जगह आचार्य भिक्षु जीवन वृंत पुस्तक को रखा गया है। भाग 9 में जैन दर्शन मनन मीमांसा के 5वें खण्ड को परीक्षा से हटा दिया गया हैं।
दीक्षांत समारोह एक अक्टूबर को
मुनि जयंत कुमार ने बताया कि जैन विद्या परीक्षा में भाग 9 तक उत्तीर्ण करने वालों को निज्ञ की उपाधि दीक्षांत समारोह में दी जाती है। इस बार यह समारोह एक अक्टूबर को आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित होगा। इस समारोह में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल के आने की संभावना है।

साधना के रुप में परिभाषित करते हुएआचार्य महाश्रमण

क्वाटिंटी नहीं, हमें क्वालिटी चाहिएः आचार्य महाश्रमण

केलवाः आचार्य महाश्रमण ने मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे सुन्दर रुप और संख्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने की बजाय स्वयं की गुणवत्ता पर ध्यान दें। जीवन में गुणवत्ता होगी तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शनिवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम संघ में गुणवत्ता, योग्यता को ध्यान में रखकर दीक्षा देते है। किसी को दीक्षा देने से पहले उसके व्यक्तित्व, आचरण, ज्ञान की परीक्षा होती है। हम क्वालिटी पर विश्वास रखते है। क्वान्टिटी पर नहीं। उन्होंने कहा कि सामाजिक संस्थाओं, संगठनों में भी योग्य व्यक्ति का पदार्पण हो, अयोग्य का नहीं। संगठन में मनी और मैन पॉवर का सामंजस्य होता है तो कार्य सुचारू रूप से चलता है। इसके लिए बढिया प्रबंधन और नैतिकता पर भी बल दिया जाना चाहिए, अन्यथा अयोग्य व्यक्ति उनके संगठन में प्रवेश कर बट्टा बैठा देंगे। आचार्य ने अर्हता बढाने के लिए निरन्तर साधना करने पर बल दिया और कहा कि ज्ञान का विकास करने के लिए धार्मिक गं्रथों का अध्ययन करें। इससे व्यक्तित्व में निखार आएगा तथा व्याख्यान के दौरान विशिष्टता का भाव नजर आएगा। प्रासंगिक बातों को ज्ञान भी बढेगा। व्याख्यान को प्रभावी बनाने के लिए स्वाध्याय में ध्यान लगाने की जरूरत है। साधना का विकास होने से कषाय मंद होगा और मुक्ति की साधना पुष्ट होगी।
उन्होंने चलने को भी एक साधना के रुप में परिभाषित करते हुए कहा केवल आंखें मंूदकर बैठना ही साधना नहीं है। संयम, चलना, बैठना, सोना, आदि हर गतिविधि साधना बन सकती है। अपेक्षा हर प्रवृति, भावक्रिया के साथ की जाए। इससे लंबे समय तक ध्यान का योग बना रहता है। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित निष्कर्म की बात पर उन्होंने कहा कि निवृतियुक्त प्रवृति से चलते-चलते मनुष्य को ज्ञान रुपी खजाना मिल जाता है और स्वयं से परिचित हो जाता है। निष्कर्म की साधना वह प्रयास है, जिसके माध्यम से मनुष्य स्वयं के भीतर जाकर खजाने को खोद सकता है। इससे उसे आत्म साक्षात्कार होगा व गुणात्मक विकास बढेगा।
सूर्य हमारा नहीं, हम सूर्य का स्वागत करें
आचार्य महाश्रमण ने देरी से उठने वालों को प्रेरणा देते हुए कहा कि सूर्य हमारा स्वागत ना करें। हम सूर्य का स्वागत करें। जब विलंब से उठते है तो सूर्य स्वागत के लिए आसमान में चमक रहा होता है। इसलिए हम सूर्योदय से पूर्व ब्रहम मुहूर्त में जागकर शुभ प्रवृति में लग जाए तो पूरा दिन अच्छा बीतेगा।
एकाग्रचित्त होकर करें साधना
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि वर्तमान परिवेश एकाग्रचित्त होकर की गई साधना से मोक्ष मार्ग के द्वार स्वतः ही खुल जाते है। जिस मनुष्य के चित्त में निर्मलता का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल से दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे परिवार की सुख शांति के लिए भौतिक लालसाओं का परित्याग कर जीवन का कुछ समय उपासना में लगाएं, क्योंकि धार्मिकता के साथ साधना भी आवश्यक हैं।
उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन
कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा द्वारा आयोजित दस दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। डालचंद नवलखा ने शिविर का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसमें बताया कि शिविर के प्रथम चरण में उपासकों का चयन किया गया। दूसरे चरण में कार्यशाला और तेरापंथ दर्शन, जैन विद्या, दर्शन का गहन प्रशिक्षण दिया गया। श्रीमती कमला छाजेड, श्रीमती मंजू पगारिया, रतन लाल जैन व नरेश चोपडा ने शिविर के दौरान प्राप्त अनुभवों को प्रस्तुत किया। महासभा के उपाध्यक्ष ख्यालीलाल तातेड, शिविर प्रभारी विनोद बांठिया ने आयोजन में सहयोग देने वालों का आभार जताया। साध्वी जिनप्रभा ने अपने विचार व्यक्त किए।
सर्वसमाज को दी नशामुक्ति की प्रेरणा
आचार्य महाश्रमण ने शनिवार दोपहर सर्वसमाज के प्रतिनिधियों को नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए इसका उन्मूलन स्वयं के घर से करने का आहृान किया। मुनि सुखलाल की प्रेरणा एवं मुनि जयंत कुमार की उपस्थिति में आयोजित सर्व समाज की बैठक में अणुव्रत समिति के अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, उपाध्यक्ष रामलाल तेली, मंत्री रुपेन्द्र बोहरा, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, अणुव्रत समिति के दिनेश कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, लवेश मादरेचा, प्रकाश चपलोत सहित अन्य पदाधिकारियों ने समाज के प्रतिनिधियों का स्वागत किया। इस अवसर पर सर्व समाज के प्रतिनिधियों ने अपना-अपना परिचय दिया। कैलाश जोशी, शंकरलाल सेवक, भैरूलाल पालीवाल, मोहनलाल टेलर, मांगीलाल भार्गव ने विचार व्यक्त किए।

Friday, July 29, 2011

बिजली, पानी के महत्व को समझें मनुष्यः आचार्य महाश्रमण


केलवाः आचार्य महाश्रमण ने मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे पानी के महत्व को समझते हुए इनका अपव्यय न हो। इस पर जागरूकता का परिचय दें। पानी का दुरुपयोग इसी तरह से होता रहा तो आने वाली पीढी को बडी कठिनाईयों का सामना करना पडेगा। इनके उपयोग में संयम बरता जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शुक्रवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। आचार्य ने कहा कि पानी का जितना ज्यादा अपव्यय होगा उतनी ही ज्यादा हिंसा होने की संभावना रहेगी। इसलिए स्नानादि करते समय कम पानी उपयोग करने की आदत विकसित करने की महत्ती आवश्यकता है। कम पानी में किस तरह से ज्यादा कार्य संपादित किए जाए। इस ओर मनन करने की जरूरत है। उन्होंने बिजली का भी व्यर्थ उपभोग न करने का आहृान किया।
संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित कर्मवाद के प्रकल्प को परिभाषित करते हुए आचार्य ने कहा कि शुभ-अशुभ कर्मों से जीव वैसी ही प्रवृति करने में जुट जाता है। जब ज्ञाना वरणीय कर्म का उदय होता है तो आदमी की स्मरण शक्ति कम होने लगती है और दिमाग काम करना बंद कर देता है। सत वंदनीय का योग बनने से मनुष्य के सुख में वृद्धि होती है और उसमें सक्रियता के भाव आ जाते है। मोह कर्म से व्यक्ति झगडालु प्रवृति का बन जाता है। उसमें अहंकार की भावना विकसित होती है तथा विकार प्रकट होने लगते है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कर्मों का उदय होता है उसी तरह की स्थिति व्यक्ति में आती है। साधना के विकास की आवश्यकता जताते हुए उन्होंने कहा कि हम मूल लक्ष्यों की प्राप्ति में आगे बढते रहे। जब निष्ककर्म योग की स्थिति बन जाती है तो कर्म बंधन से मुक्ति मिल सकती है। आचार्य प्रवर ने साधु समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि हम अनाशक्ति की साधना में अभी क्या स्थिति है। हमने दीक्षा ली जब और अब में कितना फर्क आया। इसके लिए आत्म परीक्षण कर भीतर व्याप्त कषाय को मंद करने का अभ्यास करें। साथ ही निर्धारित आचार के प्रति जागरूक रहकर पंच निष्ठाओं का पालन करें।
तेरापंथ शासन मरे लिए सर्वोपरि ं
आचार्य ने कहा कि तेरापंथ शासन सबसे पहले है। इसकी सुरक्षा एवं विकास की ओर ध्यान देना मेरी प्राथमिकता है। इसको इग्नोर कर दूसरी गतिविधियों पर ध्यान दिया जाना मुझे काम्य नहीं है। पहले इसके निर्धारित आचार पर ध्यान होना चाहिए। उसके बाद दूसरी गतिविधियों पर समय नियोजित हो। इसमें कोई आपत्ति नहीं है। उपासक श्रेणी का आहृान करते हुए कहा कि यह श्रेणी संघ के प्रति निष्ठावान रहे और कषाय को मंद करने का अभ्यास करें। अहंकार न आने दें और गुस्से पर नियंत्रण रखें। उन्होंने पांच निष्ठाओं को परिभाषित करते हुए कहा कि आत्म निष्ठा मंे आत्म कल्याण की ललक देखने को मिलती है। आत्म साधना जिस संघ में कर रहे है उसके प्रति निष्ठा होनी चाहिए। उसी के अनुरुप कार्य करें। उन्होंने प्रतिक्रमण को सामूहिक अनुष्ठान के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि मण्डली में होने वाला यह कार्य एक स्नान की भांति है। जिस प्रकार मनुष्य स्नान करके ताजगी महसूस करता है उसी प्रकार संत-साध्वी इसे कर तरोताजा होते है। उन्होंने व्यवहार में सदैव निर्मलता का भाव रखने की बात कही।
चेहरे का नहीं, गुणवत्ता का महत्वं
आचार्य ने मनुष्यों से आहृान किया कि वे अपनी गुणवत्ता को विकसित करने की तरफ ध्यान आकृष्ट करें, न कि अपने चेहरे को सुन्दर बनाने में। व्यवहार फूहड होगा तो अच्छा चेहरा काम नहीं कर सकेगा और चेहरा सुन्दर नहीं और गुण अच्छे होंगे तो उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा होगी। उन्होंने चिन्तन की आवश्यकता जताते हुए कहा कि व्यक्ति अपने मन में उच्च विचार का समावेश करें। साधना के प्रति जागरूक रहकर निर्मल बनाने का प्रयास करें।
मर्यादित रहकर हो साधना
मंत्री मुनि सुमरेमल ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे साधना में अनवरत आगे बढना चाहते है तो उनमें मर्यादा का भाव होना आवश्यक है। इससे उनकी ध्यान-साधना में भी निखार आ सकेगा। बाहर की लालसाओं को छोडकर भीतर का ज्ञान अर्जित करने व अन्तर मुखता का प्रयास करें। प्रारंभ में कुछ परेशानियां सामने आएगी, लेकिन इससे विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। एक तरह का ध्यान करने से एक ना एक दिन आत्म अनुभूति का अहसास अवश्य होगा। इससे वह अपनी मंजिल की ओर पहुंच जाएगा। अनुभव की कमी से व्यक्ति निरन्तर गल्तियां करता है और वह ध्यान-साधना से भटक जाता है। व्यक्ति साधना और आध्यात्म में तल्लीन रहने का प्रयास करें। जो दौड लगाएगा वह निश्चित तौर पर आगे बढेगा।
संतों ने किया मर्यादाओं का पुनरावर्तन
आचार्य महाश्रमण ने आज हाजरी वाचन करते हुए साधु-साध्वियों को मर्यादाओं का पुनरावर्तन करवाया। उन्होंने कहा कि तेरापंथ की संगठन की दृष्टि से पांच मौलिक मर्यादाएं है। इसके आधार पर ही धर्म संघ संचालित होता है। बाल मुनि मृदु कुमार एवं मुनि शुभंकर ने लेख पत्र का वाचन किया। इस पर आचार्य ने उनको दो-दो कल्याणक बक्शीश में प्रदान किए।
55 से भरवाए संकल्प पत्र
राजस्थान प्रादेशिक अणुव्रत समिति की ओर से शुक्रवार को प्रवचन सभा स्थल में लगाए गए स्टॉल पर केलवा समिति के अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, मंत्री रणजीत बोहरा, रुपेन्द्र बोहरा, नीरु कोठारी, जयश्री कोठारी सहित अन्य पदाधिकारियों ने 55 जनों से अणुव्रती के लिए संबंधित वर्गीय अणुव्रतों का पालन संबधी प्रपत्र भरवाएं। अध्यक्ष कोठारी ने बताया कि यह अभियान निरन्तर जारी रहेगा।
त्रिदिवसीय अणुव्रत अधिवेशन कल से
तैयारियां अंतिम चरण में
केलवाः 29 जुलाई
मानवीय नैतिक मूल्यों के विकास एवं संवर्द्धन में गत छह दशक से समर्पित अणुव्रत आंदोलन का त्रिदिवसीय अणुव्रत अधिवेशन रविवार से तेरापंथ सभागार केलवा में शुरू होगा। अधिवेशन की तैयारियां अन्तिम चरण में है।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सानिध्य एवं महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की प्रेरणा से आयोजित इस अधिवेशन के प्रथम सत्र में उद्घाटन रविवार को सुबह नौ बजे से ग्यारह बजे तक होगा। इसमें गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे का संबोधन और मंत्री मुनि सुमेरमल का उद्बोधन होगा।
द्वितीय सत्र मंे दोपहर दो से शाम चार बजे तक कार्यकर्ता संगोष्ठी होगी। इसमें अणुविभा, अणुव्रत न्यास, शिक्षक संसद प्रगति विवरण पर चर्चा की जाएगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात बजे से रात दस बजे तक अणुव्रत अलंकरण सम्मान कार्यक्रम होगा। दूसरे दिन सोमवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक आचार्य तुलसी शताब्दी समारोह योजना पर चर्चा और अणुव्रत महासमिति कार्यसमिति की बैठक, द्वितीय सत्र में दोपहर दो बजे से सायं पांच बजे तक अणुव्रत महासमिति साधारण सभा की बैठक अयोजित होगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात बजे से रात दस बजे तक संस्था संचालन, पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा के बाद काव्य गोष्ठी होगी। कोठारी ने बताया कि तीसरे दिन मंगलवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक अधिवेशन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। साथ ही नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा पदभार ग्रहण एवं उद्बोधन होगा।

Thursday, July 28, 2011

KELWA CHATURMAS


आचार्य महाश्रमण ने कर्म के बंधन में हिंसा-अहिंसा का बडा योग बताते हुए कर्म को परिभाषित किया और कहा कि आज के परिवेश में अहिंसा के सूत्र को अपनाने की महत्ती आवश्यकता है। प्राणियों को अपने समान समझे और ऐसे किसी शब्द का उच्चारण न करें जिससे उसके मन में द्वेष की भावना पैदा न हो।

सभी प्राणियों को अपने समान समझेंः आचार्य महाश्रमण


केलवाः आचार्य महाश्रमण ने कर्म के बंधन में हिंसा-अहिंसा का बडा योग बताते हुए कर्म को परिभाषित किया और कहा कि आज के परिवेश में अहिंसा के सूत्र को अपनाने की महत्ती आवश्यकता है। प्राणियों को अपने समान समझे और ऐसे किसी शब्द का उच्चारण न करें जिससे उसके मन में द्वेष की भावना पैदा न हो।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में गुरुवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित कर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि शुभ से पुण्य और अशुभ से पाप की अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति में हिंसा से परे रहकर अहिंसा का मार्ग अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता।
सभी सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब हम ध्यान-साधना करते हुए अपनी आत्मा की शुद्धि करें। जिन शासन में स्पष्ट है कि मनुष्य जो अपने लिए सोचता है और मनन करता है वैसा ही वह दूसरों के बारें में भी सोचे। कभी उसके प्रति द्वेष या वैर भाव न रखें। धर्म की बातों का श्रवण कर यह ग्रहण करने की आवश्यकता है कि जो स्वयं के लिए प्रतिकूल है उसका प्रभाव दूसरों के जीवन पर न पडे। वाणी में संयम बरतें। ऐसे शब्दों का उपयोग न हो कि सामने वाला स्वयं को अपमानित महसूस करे।
एक दूसरे के पूरक हैं अहिंसा-समता
अहिंसा-समता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए आचार्य ने कहा कि समता के बिना अहिंसा का पालन संभव नहीं होता। जब समता विकसित होती है, तभी अहिंसा फलीभूत होती है और जब अहिंसा का पालन होता है तो समता सुदृढ बनती है। उन्होंने कहा कि सभी प्राणियों के साथ मैत्री भाव रखें, ताकि राग, द्वेष, हिंसा, पाप सरीखे आचरण का जीवन में समावेश न हो। अहिंसक रहने से मनुष्य को अगली गति सुधर जाती है। अहिंसा का प्रयोग भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नहीं हो। अहिंसा का वर्णन हालांकि सभी धार्मिक ग्रथों में देखने को मिलता है, लेकिन जैन शास्त्रों में इसे सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। अहिंसा की साधना आत्म कल्याण, मोक्ष और शुभ कार्यों के लिए हो, तभी साधक निर्जरा की ओर अग्रसर होगा।
मैत्री का भाव रखने की आवश्यकता
आचार्य ने हिंसा को परिभाषित करते हुए कहा कि मनुष्य मन में मर्म भरे भाव का बोध न कर मैत्री का भाव रखता हैं तो उसे मैत्री अहिंसा कहा जाता है। भोजन बनाते समय या कृषि कार्य के दौरान यदि किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तो उसे अनिवार्य हिंसा की श्रेणी में रखा गया है। देश एवं परिवार की रक्षा के लिए की गई हिंसा को प्रतिरक्षात्मक हिंसा माना है, जबकि आवेश में आकर हिंसा करने को संकल्प या हिंसा माना गया है। सभी प्रकार की हिंसा से बचना आवश्यक है। पर गृहस्थ प्रथम दो प्रकार की हिंसा से बच नहीं पाता। उसे जीवन निर्वाह के लिए हिंसा करनी पडती हैं। उसे संकल्प या हिंसा से तो बचना ही चाहिए। उन्होंने आध्यात्मिक उपकार को मैत्री की संज्ञा देते हुए अभयदान को सभी दान क्रिया में श्रेष्ठ बताया।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अपनी आत्मा को निर्मल रखें। किसी कार्य को शुरू करने से पहले उसकी तैयारी करें। सामान्य क्रिया से ही हम विशेषता की ओर अग्रसर होते है। एक तरह से मन के भीतर विस्फोट होने के बाद हमारा रास्ता निर्भीक हो जाएगा और आगे बढने मंे कोई रूकावट नहीं आएगी। इससे हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेंगे।
उन्होंने किसी क्रिया को प्रारंभ करने के पहले सामान्य क्रिया अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि भावयुक्त क्रिया फल देने वाली होती है। सामयिक से आत्मज्ञान करने में कर्म की निर्जरा होती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने भोजन को भी मनोयोग से करने की बात कही हैं। इससे किसी तरह की विडम्बना हमारे मन में नहीं आती। भाव क्रिया को जोडने से आत्मा उज्जवल होती है। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
पारिवारिक सौहार्द शिविर दो अगस्त से
समाज में अनवरत बढ रही वैमनस्यता, विघटनता और परिवार की एकलवृति को लेकर आगामी दो अगस्त से भिक्षु विहार में पारिवारिक सौहार्द शिविर का आयोजन किया जाएगा। मुनि किशन कुमार ने बताया कि तीन दिन तक रात आठ से दस बजे तक आयोजित होने वाले इस शिविर में आचार्य महाश्रमण सहित मुनि जन परिवार के विघटन को रोकने की दिशा में व्याख्यान देंगे। इस दौरान सौहार्द के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
व्यवस्था समिति ने लिया जायजा
आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास के दौरान बाहर से आने वाले धर्मावलम्बियों के ठहराव को लेकर बनी कोटडियों और यहां की व्यवस्थाओं की स्थिति को लेकर व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों ने जायजा लिया। समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, उपाध्यक्ष बाबूलाल कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कुमार कोठारी, संयुक्त महामंत्री मूलचंद मेहता, मंत्री लवेश मादरेचा, कुन्दन सामर, राजकुमार कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, नरेन्द्र कोठारी, राजेन्द्र कोठारी, प्रकाश चपलोत ने कोटडियों मंे बिजली, पानी, सफाई, निर्माण, सुपरवाइजर आदि का जायजा लेकर सबंधित को व्यवस्थाएं सृदृढ करने के निर्देश दिए।
केलवा में दोहराया जाएगा इतिहासः आगामी सात सितम्बर को केलवा में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह को लेकर एक बार फिर ऐतिहासिक पलों की पुनरावृति होगी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि आज से 51 वर्ष पूर्व गुरुदेव आचार्य तुलसी तीन हजार किलोमीटर चलकर 8 जुलाई 1960 को केलवा पहुंचे। कोठारी ने आचार्य महाश्रमण से दीक्षा समारोह में 13 दीक्षा दिलाने का आग्रह किया। इस पर आचार्य ने कहा कि कुछ मुमुक्षु मारवाड अंचल के है। उनके परिजन उनकी दीक्षा वहीं दिलाना चाहते है। इसलिए अभी संख्या को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता।

Wednesday, July 27, 2011

आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास व्यवस्था समिति ने लिया जायजा

कस्बे में चल रहे आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास के दौरान बाहर से आने वाले धर्मावलम्बियों के ठहराव को लेकर बनी कोटडियों और यहां की व्यवस्थाओं की स्थिति को लेकर मंगलवार रात को व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों ने जायजा लिया। समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, उपाध्यक्ष बाबूलाल कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कुमार कोठारी, संयुक्त महामंत्री मूलचंद मेहता, मंत्री लवेश मादरेचा, कुन्दन सामर, राजकुमार कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, नरेन्द्र कोठारी, राजेन्द्र कोठारी, प्रकाश चपलोत ने कोटडियों मंे बिजली, पानी, सफाई, निर्माण, सुपरवाइजर आदि का जायजा लेकर सबंधित को व्यवस्थाएं सृदृढ करने के निर्देश दिए।
केलवा में दोहराया जाएगा इतिहासः आगामी सात सितम्बर को केलवा में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह को लेकर एक बार फिर ऐतिहासिक पलों की पुनरावृति होगी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने प्रातः आचार्य के प्रवचन के दौरान बताया कि आज से 51 वर्ष पूर्व गुरुदेव आचार्य तुलसी तीन हजार किलोमीटर चलकर 8 जुलाई 1960 को केलवा पहुंचे। कोठारी ने आचार्य महाश्रमण से दीक्षा समारोह में 13 दीक्षा दिलाने का आग्रह किया। इस पर आचार्य ने कहा कि कुछ मुमुक्षु मारवाड अंचल के है। उनके परिजन उनकी दीक्षा वहीं दिलाना चाहते है। इसलिए अभी संख्या को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता।

संयम से आत्मा का कल्याणः आचार्य महाश्रमण


केलवाः आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से कर्म बंधन से बचने का आहृान करते हुए कहा कि राग-द्वेष से बचने के लिए संयम और समर्पण का भाव मन में विकसित करें। इससे आत्मा का कल्याण होगा। उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में बुधवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्म के प्रकरण को परिभाषित करते हुए कहा कि जैन दर्शन में आठ कर्म बताए गए है। यह प्रिय-अप्रिय स्थितियों का कारण बनते है। ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कार्य पर्दा डालने का काम करते है। मनुष्य में विकार को स्थान देने का काम मोहनीय कर्म करता है। इसका प्रभाव मानवीय चेतना को विचलित करने में सहायक सिद्ध होता है। इसलिए इस कर्म से परे रहकर हमारा ज्ञान धर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए।
अन्तराय कर्म किसी कार्य में बाधा डालने का काम करता है। शेष कर्मों को घाती कर्म की संज्ञा दी गई है। इन्हें घन घात्य कर्म से भी पुकारा जाता है। आचार्य ने कहा कि यह कर्मों का स्वभाव है कि वर्तमान में हम कौनसी गति के प्राणी है। इसकी विवेचना कर सकते है। मृत्यु के बाद आदमी की आत्मा किस रुप में जन्म लेगी। इसका भी एक विधान है। मनुष्य स्वर्ग एवं नरक में जाता हैं, लेकिन देवता कभी भी नरक में नहीं जाते। मनुष्य अगले जन्म में पुनः मनुष्य के रुप में अवश्य जन्म लेता हैं, लेकिन देवता वापस देव रुप में जन्म नहीं ले सकता है। उन्होंने गति को भी विधान बताते हुए कहा कि मनुष्य के कर्म में जैसा भाव होगा, उसे कर्मों का वैसा ही फल मिलता है। आयुष कर्म से अगली गति का निर्धारण संभव हो सकता है। पांच कर्मों से सदैव बचने का आहृान करते हुए आचार्य ने समर्पण का भाव रखने की बात कही। इससे साधक कर्मों में बंधन से छुटकारा पा सकता है।
धर्म में ज्ञान-साधना का योग आवश्यक
उन्होंने आत्मा रुपी पंछी को शरीर के पिंजरे में से निकालने का आहृान करते हुए उपासक-उपासिकाओं से कहा कि धर्म में ज्ञान-साधना का योग आवश्यक है। व्यक्ति की साधना प्रबल हो जाती है तो वह सशक्त हो जाता है। किसी को धर्म का उपदेश देने के पूर्व इस बात की आवश्यकता है कि वह स्वयं इस संदर्भ में भली-भांति परिचित है अथवा नहीं। उसका स्वयं का जीवन भी उपदेश देने के अनुकूल ज्ञान और साधना युक्त होना चाहिए। जो बातचीत में संयम का भाव रखता है उसका कल्याण अवश्यभावी है। इसलिए कार्यों में निर्जरा करने का प्रयास करें। केवल भाषण देने से वक्तव्य में प्राण नहीं आते और वे निष्प्राणित हो जाते है। संतों को चाहिए कि वे मनुष्य का प्रर्याप्त मार्गदर्शन करें एवं उनमें धर्मोपासना के प्रति भाव जागृत हो। इस दिशा में ध्यान एवं साधना करें। यदि मनुष्य को संतों से ही उचित ज्ञान नहीं मिलेगा तो वह इसे प्राप्त करने के लिए कहां जाएगा।
जिम्मेदारी से नहीं बने कमजोर
आचार्य ने कहा कि व्यक्ति के पास किसी तरह का दायित्व या जिम्मेदारी आ जाती है तो उसके चेहरे पर तनाव, चिंता की लकीरें नहीं आनी चाहिए। वह स्वयं को कमजोर नहीं बल्कि सशक्त मानते हुए अपने दायित्व का सोच विचार कर निर्वाह करें और कर्मवाद को समझे। ऐसा करने से आत्मा सिद्धत्व की ओर अग्रसर होती है। मोक्ष को प्राप्त करने में साधना की अपेक्षा होती है।
साधना से मिलती हैं मुक्ति
मंत्री मुनि सुमेरमल ने शरीर रुपी पिंजरे में कैद आत्मा को मुक्त कराने में संयम एवं साधना की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि इसकी सतत् प्रक्रिया से बंधन से मुक्ति नजदीक आती है। जो इसके गूढ रहस्य को समझ जाता है वह अपनी प्रवृतियों का संयम करता है। व्यक्ति शरीर रूपी पिंजरे से मुक्त होना चाहता है तो उसे अपनी इंन्द्रियों पर संयम रखना होगा। इसे लेकर उन्होंने तोते का प्रसंग भी सुनाया। शाश्वस्त सत्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने इस सूत्र को अपनाने का प्रत्येक व्यक्ति से आहृान किया। मन पर संयम जितना अधिक होगा उतना ही वह बंधन से दूर होने की दिशा में अग्रसर होगा। एक दिन ऐसा आएगा कि शरीर पूरी तरह कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा और आत्मा को शांति का अहसास होगा। कार्यक्रम के दौरान मुनि जयंत कुमार ने ’ जैन विद्या कार्यशाला का भाग तीन ’ पुस्तक आचार्य को विमोचन के लिए समर्पित किया। मुनि ने कहा कि जैन विद्या के अध्ययन से हमारी पहचान कायम होती है। केलवा में प्रतिदिन रात्रि को जैन विद्या कार्यशाला का आयोजन हो रहा है। इसमें आने वाले संभागी इसकी महत्ता को जानते है। यह मनुष्य का ज्ञान बढाता है। उन्होंने कहा कि आगामी एक अगस्त से पूरे देश में एक साथ जैन विद्या कार्यशालाओं का आगाज होगा।
दीक्षा समारोह की घोषणा
आचार्य महाश्रमण ने चातुर्मास के दौरान जैन भागवती दीक्षा समारोह के आयोजन की घोषणा की। आचार्य ने पंजाब निवासी मुमुक्षु अश्विनी एवं सूरत प्रवासी चेतना को 7 सितम्बर को दीक्षा प्रदान करने की अनुमति दी। उन्होंने चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी द्वारा 13 दीक्षाएं कराने पर कहा कि केलवा के भाई-बहिन तैयार हो तो 13 दीक्षाएं हो सकती है। इस मौके पर मुमुक्षु अश्विनी के पारिवारिक जनों ने दीक्षा कराने की अर्ज प्रस्तुत की।



Tuesday, July 26, 2011

पुस्तक स्टॉल पर बढ रही भीड


केलवा :कस्बे में चल रहे आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास कार्यक्रम में उनके मुखवृंद से बह रही धर्मधारा का श्रवण करने के लिए देश-प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से पहुंच रहे लोगों की भीड पुस्तक स्टॉल की ओर भी निरन्तर बढ रही है। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि तेरापंथ जैन समाज के आचार्य, मुनि, साध्वियों की ओर से लिखित पुस्तकों के प्रति लोगों का प्रेम देखते ही बन रहा है। स्टॉल पर पुस्तकें अस्सी फीसदी छूट के साथ विक्रय की जा रही है।

सत्ता में आने के बाद अहंकारी न बनेः आचार्य महाश्रमण


केलवा : आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वह अपने मन में अहंकार के भाव का प्रवेश न होने दें। अहंकार स्वयं एवं समाज के लिए घातक है। जो लोग सत्ता में आते है उन्हें अहंकारी नहीं बनना चाहिए। विनम्रता के साथ व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में मंगलवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित पुण्य को परिभाषित करते हुए कहा कि मनुष्य की ओर से किए जाने वाले शुद्धकर्म से निर्जरा में आशातीत वृद्धि होती है। पुण्य को बंधन बताते हुए उन्होंने कहा कि पुण्य के साथ पाप का भी प्रादुर्भाव होता है। इसलिए साधक को ध्यान और साधना करते समय इससे प्रायः बचना चाहिए। उसे कभी किसी वस्तु की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। शुद्ध मन से की गई साधना से फल की प्राति अवश्य होती है। उन्होंने पाप कर्म के संदर्भ में कहा कि मन के भीतर कषाय उत्पन्न होने से इसकी उत्पति होती है। इसका दुष्प्रभाव मन को विचलित कर झकझौर देता है।
प्रबल पुण्य से मिलता तेरापंथ का आर्चायत्व
उन्होंने कहा कि प्रबल पुण्य से ही तेरापंथ जैसे शासन का आचार्य बनने का अवसर मिलता है। जो पुण्यशाली होता है उसकी बातों को समाज में तवज्जों दी जाती है। सब जगह सम्मान प्राप्त होता है। अन्यथा उसकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उपासक प्रशिक्षण शिविर में ज्ञान को ग्रहण कर रहे उपासक-उपासिकाओं से उन्होंने आहृान किया कि वे धर्म, साधना और ज्ञान से लोगों को लाभान्वित कराने की दृष्टि से गांव-गांव जाएंगे। ऐसी स्थिति में उनका व्यवहार विनम्रशील बनाना अत्यंत आवश्यक है। व्यवहार में शालीनता और विनम्रता का भाव छलकना चहिए। आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य ने कहा कि हमारा व्यवहार अच्छा हो तो सामने वाला भी प्रभावित होगा। व्यक्ति में अहिंसा का भाव होगा तो उसके दुश्मन के आचरण में भी परिवर्तन आ सकता है। वह भी उसकी अच्छी बातों को ग्रहण करने का प्रयास करेगा। हमारा व्यवहार अच्छा है तो सदाचार और गलत कार्य करने से कदाचार की स्थिति पैदा होती है। कदाचार को छोड सदाचार को अपनाने पर ध्यान दें।
सतत् साधना करने की आवश्यकता
मंत्री मुनि सुमरेमल ने साधना, ध्यान और आराधना की प्रक्रिया को सतत् रखने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि एक ही क्रिया सघनता से करने से हमें आत्मानुभूति का अहसास होता है। बाहरी और दिखावे के तौर पर की गई साधना से किसी तरह की फल की आशा करना बेमानी है। हम भीतर से अपने मन को ज्ञान रुपी खजाने से मजबूत बनाएंगे तो इसकी जीवन में श्रेष्ठ अनुभूति होगी। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे श्रेष्ठ संस्कारों को अपने जीवन में उतारकर सतत् धारा से उपासना करें और आगे बढे। इस दौरान तेरापंथ महिला मंडल भीलवाडा की सदस्याओं ने गीत प्रस्तुत किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
अणुव्रत समिति ने ली शपथ
अणुव्रत समिति केलवा की नवगठित कार्यकारिणी को महासमिति के संरक्षक डॉ. महेन्द्र कर्णावट ने आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में शपथ दिलाई। अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल स्वामी की प्रेरणा से गठित कार्यकारिणी में अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, उपाध्यक्ष रामलाल तेली, रजनीश बोहरा, श्रीमती रेखा सिंघवी, मंत्री रुपेन्द्र बोहरा, सहमंत्री गौतम कोठारी, किरण कोठारी, कोषाध्यक्ष भगवती लाल आंचलिया, संगठन मंत्री नीलेश बोहरा, श्रीमती रत्ना कोठारी, नशामुक्ति संयोजक खुशाल बोहरा सहसंयोजिका जयश्री बोहरा सहित अन्य पदाधिकारियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
’सृष्टि अनादि अनंत है’
तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा आयोजित जैन विद्या कार्यशाला में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि सृष्टि अनादि अनंत है। इसका न तो कोई कर्ता है और न ही यह नष्ट होती है। उन्होंने कहा कि कार्यशाला ज्ञान वृद्धि का माध्यम है। इसमें जिज्ञासा समाधान भी होता है, जो ज्ञान की गहराई को भी बढाता है। करें लोक की यात्रा विषय पर प्रशिक्षण देते हुए मुनि योगेश कुमार ने कहा कि छह द्रव्यों का जहां समावेश होता है वह लोक है। छह द्रव्य है धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुदगलास्तिका एवं जीवास्तिकाय। इन द्रव्यों में प्रथम तीन द्रव्य एक ही है तो अंतिम तीन अनंत है। इनमें केवल पुदगलास्तिकाय ही आंखों का विषय बनता है। बाकी सभी अरुपी है। आंखों से देख नहीं सकते है। मुनि ने सृष्टि के संदर्भ में वैज्ञानिक अवधारणों का विश्लेषण करते हुए जैन दर्शन के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला। राकेश सांखला व रीना बोहरा ने गीतों की प्रस्तुति दी। संचालन मुनि जयंत कुमार ने किया।

Monday, July 25, 2011



राजसमंद जिले के केलवा कस्बे में चल रहे आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास के मद्देनजर व्यवस्था समिति की ओर से बाहर से आने वाले धर्मावलम्बियों के ठहरने को लेकर बनाई गई कोटडियों का विहंगम दृश्य।

AACHARY MAHASRAMAN JI

हमारा परम् लक्ष्य हो मोक्षः आचार्य महाश्रमण

केलवा में चातुर्मास

आचार्य महाश्रमण ने धर्म एवं साधना में तल्लीन श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वह इस तरह की उपासना करें कि मोक्ष में जाने का लक्ष्य और मार्ग सहज ही उपलब्ध हो जाए। उन्हें मोहनीय कर्म से परे रहने की आवश्यकता है, क्यों कि कर्म क्षीण होने से चेतना प्रभावी होती है और कर्मशील होने की अवस्था में चेतना हृास हो जाती हैं। उन्होंने यह उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में सोमवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित चेतना और शरीर के अंतर को परिभाषित करते हुए कहा कि दोनों के स्वरुप में भिन्नता है। चेतना जहां स्थायी व जीव है वहीं शरीर को अस्थायी माना गया है तथा इसे निर्जीव की संज्ञा दी गई हैं। व्यक्ति चेतनाशील है और शरीर-चेतना का परस्पर योग है। शरीर के बिना आदमी का जीवन नहीं है वहीं चेतना के बिना धर्म का संयोग नहीं बन पाता। उन्होंने कहा कि बच्चा जब गर्भ में आ जाता है तभी से मौत उसका पीछा करना शुरु कर देती है। यह पीछा उस समय तक चलता रहता है जब तक वह मौत मानवरुपी शरीर को दबोच न लें। मौत आने के संकेत से कभी भयभीत नहीं होना चाहिए। शरीर तो एक दिन जाना ही है। आत्मा अमर है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन का अधिकांश समय धर्म और साधना में लगाना चाहिए। साधु के मन में कभी आसक्ति के भाव का समावेश नहीं होता। वह कभी अपना पेट भरने के लिए रसोई का उपयोग नहीं करता। वह गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के द्वार पर भिक्षा लेता है और पेट की क्षुधा को शांत करता है। साधु को दान से महान निर्जरा का हेत करता है। द्वार पर भिक्षा के लिए आने वाले किसी साधु संत को इनकार नहीं करना चाहिए। यह भिक्षाजीवी होते है। साधु में त्याग, संयम, आराधना, उपासना की आवश्यकता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने उपासक प्रशिक्षण शिविर में ज्ञान का अर्जन कर रहे उपासक-उपासिकाओं से आहृान किया कि उनकी साधना सिद्धत्व की प्राप्ति के लिए हो। उन्हें भौतिक लालसाओं से परे रहने की आदत डालनी होगी।
धार्मिक व्यक्ति बनता है तेजस्वी
मंत्री मुनि सुमेरमल ने धर्म को जीने की वस्तु की संज्ञा देते हुए उपासक वर्ग को दिए गए इस सूत्र को सभी के लिए उपयोगी बताया। साधु प्रतिदिन चौबीस घंटे ध्यान एवं उपासना में मग्न रहता है तो श्रावकों को भी चाहिए कि वे धर्म को जीने का उपक्रम बनाए। धार्मिक व प्रवचन स्थलों पर विशेषताओं को ग्रहण करें। इससे मन आसक्ति की ओर आत्कृष्ट नहीं होगा। समय व्यर्थ में व्यय करने, खींचतान, कलह और विवाद से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। धर्म साथ रहेगा तो दूसरे लोगों को भी इसकी प्रेरणा मिलती रहेगी। स्वयं का जीवन धर्ममय हो जाएगा तथा देवता भी उसके धर्म कार्य को नमन करेंगे। उन्होंने कहा कि धर्म, साधना, उपासना करने वाला व्यक्ति तेजस्वी बनता है। इससे संघ ओजस्वी बनेगा और समाज में आध्यात्मिकता का रस घुलेगा। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
आत्म कल्याण का मार्ग है तत्वज्ञान
तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से रविवार रात को आयोजित जैन विद्या कार्यशाला में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि तत्वज्ञान आत्म कल्याण का मार्ग है। इसके ज्ञान से हम परमपद की प्राप्ति की ओर बढ सकते है। कार्यशाला में मुनि उदित कुमार ने तत्वज्ञान क्या और क्यों विषय पर प्रशिक्षण देते हुए कहा कि नौ तत्वों का ज्ञान होने से कर्म बंधन की की प्रक्रिया को सजाया जा सकता है। जिस क्रिया में कर्मों का बंधन होता है उससे बचने से भवक्रमण को कम किया जा सकता है। उन्होंने कर्मों को रोकने के लिए संवर करने की प्रेरणा दी एवं आत्मा के बंधे कर्मों को तोडने के लिए तपस्या, स्वाध्याय, ध्यान आदि प्रयोगों से निर्जरा करना जरूरी बताया। संचालन मुनि जयंत कुमार ने किया।
इधर प्रवचन तो उधर मेह की बरसात
कस्बे के तेरापंथ भिक्षु विहार में इन दिनों चल रहा आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास प्रवचन में अजीब ही संयोग देखने को मिल रहा है। पिछले चार दिन प्रातःकाल के समय ज्योंहि आचार्य महाश्रमण के मुखवृंद से प्रवचन की धारा शुरू होती है कि प्रकृति भी प्रसन्न होकर मेघों की बरसात कर देती है। इस स्थिति को देखकर प्रदेश सहित मेवाड अंचल के विभिन्न गांवों से आने वाले श्रावक-श्राविकाएं यह कहने से नहीं चूक रही कि प्रवचन सुनकर जहां उनकी आत्मा का कल्याण हो रहा है। वहीं दूसरी ओर प्रकृति और मेहबाबा भी काफी प्रसन्न है। सोमवार को भी यहां सुबह प्रवचन समय शुरू हुई बरसात की झडी दिनभर लगी रही।

Sunday, July 24, 2011

मनुष्य को आत्मलोचन करने की आवश्यकताः आचार्य महाश्रमण

हमारा विचार, आचार और व्यवहार अच्छा हो। इसके लिए श्रावक-श्राविकाओं को आत्मलोचन करने की आवश्यकता है। इससे भावों में शुद्धता का समावेश होगा और अनेक समस्याओं का स्वतः ही समाधान हो जाएगा।
यह उद्गार आचार्य महाश्रमण ने यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में रविवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उत्तराशक्ति की साधना से हमारे विचारों में शुद्धता आएगी। अच्छे विचार आचार का प्रादुर्भाव होगा और व्यवहार में आशातीत परिवर्तन का बोध होगा। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेख है कि जिस तरह आदमी का भाव होगा उसी के अनुरुप वह कर्मों के बंधन में बंधता है। भागवत गीता में कहा गया है कि आसक्ति के प्रभाव से मनुष्य को माया-मोह के कारण विनाश के पथ पर अग्रसर होना पडता है। गीता ग्रंथ के दूसरे अध्याय में उल्लेख है कि आदमी चिंतन करता है और दूसरों के संग रहकर वह अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। इस दौरान काम की पूर्ति नहीं होने पर उसे गुस्सा आ जाता है , जो उसे धर्म और साधना से दूर कर विकार, कलह की ओर धकेल देता है। साथ ही बुद्धिनाशी गुणात्मक का पतन हो जाता है। कर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह वह चेतना है जो आकर्षण को पैदा करता है। इसे दूर किया जाना चाहिए।
उत्तराकर्म में शरीर की अनुकुलता है तो कार्योे को सफलता मिलती है। इसलिए श्रावक-श्राविकाओं को चाहिए कि वे अच्छे कर्म करने में विश्वास करे। मन ही मनुष्य के बंधन और कर्मों को उजागर करता है। उसके कर्म इस बात को इंगित करते है कि मन के भाव क्या है। संस्कृत साहित्य में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि जैसा भाव होगा, मनुष्य का कर्म भी उसी अनुरुप सामने आएगा। इसलिए अच्छे भाव के नियंत्रण के लिए ध्यान और साधना में कुछ समय लीन रहने अथवा उपासना करने की आवश्यकता है। रागात्मक प्रवृति से द्वेष बढता है और इंद्रियां आसक्ति की ओर अग्रसर होती है।
जैसी भावना होगी वैसी ही सिद्धी
उन्होंने पाप के कारणों को परिभाषित करते हुए श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि मनुष्य के मन के भीतर विद्यमान लालसा उसे दुष्कर्म की ओर ले जाती है और उसमें विपरित कार्यों की क्रियान्विति करवाती है। जिसकी जैसी भावना होगी वैसी ही उसकी सिद्धी होगी। उन्होंने डॉक्टर और डाकू की भावना का जिक्र करते हुए कहा कि जहां एक सर्जन मनुष्य को पेट चीरकर उसका इलाज करता है और उसे नया जीवन प्रदान करता है। वही डाकू भी आदमी का पेट छुरे से फाडता है, लेकिन वह उसे मौत की नींद सुला देता है और स्वर्णाभूषण इत्यादि चुरा लेता है। यहां पेट तो दोनों चीरते है, लेकिन भावना में अंतर है। उन्होंने बिल्ली के भाव पर कहा कि यह चूहे को अपने मुंह से पकड कर उसे मारती है तो वह हिंसा की श्रेणी में आता है और इसी मुंह से बच्चे को दुलारती है पकडती है तो उसमें ममता का भाव होता है। इसलिए हमें भाव के अंतर को समझकर उसके अनुरुप कार्य करने की आवश्यकता है। आचार्य ने कहा कि अभी धर्मोपासना का समय है। श्रावण मास चल रहा है और शीघ्र भादौ आने वाला है। इस समय ज्ञान की ऐसी खुराक ग्रहण करें ताकि ध्यान का झुकाव धर्म और साधना के प्रति हमेशा बना रहे। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जो आस्तिक होता है वह धर्म करने की मानसिकता रखता है। वह धार्मिक कहलाता है। धर्म करने में गौरव का अनुभव होता है। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे धर्म के प्रति हमेशा गंभीर और चिंतनशील रहें। मुनि प्रसन्न कुमार ने तपस्या की प्रेरणा दी। वही मुनि जितेन्द्र कुमार ने श्रावक संघ बोध सीखने को प्रेरित किया। इस दौरान नरेन्द्र सुराणा की ओर से भेंट की गई ’महाप्रज्ञ ने कहा ’शीर्षक की पुस्तक का विमोचन आचार्य ने किया। संयोजन मोहजीत कुमार ने किया।
केलवा में निकाली नशामुक्ति रैली
आमजन को नशे से प्रायः दूर रहने का संदेश देने के उद्देश्य से कस्बे में रविवार को तेरापंथ युवक परिषद्, जयपुर की ओर से नशामुक्ति रैली निकाली गई। आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा से सुबह निकाली गई इस रैली के दौरान परिषद् के कार्यकर्ता संबंधित पत्रक लोगों को देते हुए चल रहे थे। इस दौरान तेयुप जयपुर के अध्यक्ष सुरेन्द्र सेठिया, अभातेयुप के अविनाश नाहर सहित कार्यकर्ता और पदाधिकारी
मौजूद थे।
सम्यक् दर्शन एक हैः भिक्षु विहार में शनिवार रात को तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से आयोजित कार्यशाला में मुनि दिनेश कुमार ने कहा कि सम्यक् दर्शन एक हैं।। इसमें जो साधक तपस्या करता है वह शून्य हो जाता हैं। शून्यों का महत्व है। अन्यथा सारी तपस्या महत्वहीन हो जाती है। मुक्ति का राजपथ विषयक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि सम्यक में निर्मलता का बोध हो। इसके लिए कुछ सूत्र स्मरण करें। संचालन मुनि जयंत कुमार ने किया।
पौने दो सौ रोगियों ने उठाया लाभ
केंसर जांच का निःशुल्क शिविर
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में रविवार को क्रॉन्फेन्स हॉल भिक्षु विहार में केंसर जांच का निःशुल्क जांच शिविर आयोजित किया गया। आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित इस शिविर का आगाज आचार्य और साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा के सान्निध्य में किए मंगलपाठ से हुआ। दिल्ली से आए केंसर विशेषज्ञ डॉ. राजेश जैन ने बताया कि शिविर में जांच कराने आए रोगियों को एक्शन केंसर हास्पिटल की ओर से निःशुल्क दवाइयां वितरित की गई। शिविर में दिल्ली से आए डाक्टरों के दल ने 170 रोगियों की जांच की। शिविर का रणजीत मुनि, मोहजीत मुनि और धर्मेन्द्र मुनि ने अवलोकन किया। इस दौरान शिविर संयोजक मयंक बोहरा, शिविर सहसंयोजक मनोज कोठारी सहित कार्यकर्ता और पदाधिकारी व्यवस्थाओं की देखरेख में जुटे हुए थे।
अणुव्रत अधिवेशन 31 को, अन्ना हजारे करेंगे उद्घाटन
कस्बे के तेरापंथ समवसरण प्रांगण में 31 जुलाई को अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में अणुव्रत अधिवेशन आयोजित होगा। इसका उद्घाटन प्रख्यात गांधीवादी विचारक और समाज प्रचेता अन्ना हजारे करेंगे।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि मानवीय नैतिक मूल्यों के विकास एवं संवर्द्धन में विगत छह दशक से समर्पित अणुव्रत आन्दोलन के मद्देनजर आयोजित इस अधिवेशन में साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की प्रेरणा रहेगी। मंत्री मुनि सुमेरमल उद्बोधन और समाज प्रचेता हजारे संबोधन देंगे। अधिवेशन को लेकर तैयारियां प्रारंभ हो चुकी है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने भेजा शुभकामना संदेश
प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी को पत्र प्रेषित कर केलवा कस्बे में चल रहे आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास की सफलता की कामना की है। मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने संदेश में कहा कि भारतीय संस्कृति में चातुर्मास का महत्व सुविदित है। वे तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य भिक्षु की पावन तपोभूमि और आचार्य महाश्रमण सहित सभी साधक एवं साध्वी समुदाय को नमन करते हुए पावस प्रवास की कामना करते हैं।

Saturday, July 23, 2011

पूर्व राष्ट्रपति ने केलवा में आचार्य महाश्रमण से की मुलाकात


डॉ. कलाम को अध्यक्ष कोठारी, उनकी पत्नी स्नेहलता कोठारी, तेरापंथी समाज के अध्यक्ष बाबू लाल कोठारी, तेयुप के अध्यक्ष विकास कोठारी, अशोक जैन, अरविंद कावडिया सहित युवा परिषद के अनेक पदाधिकारियों ने आचार्य महाप्रज्ञ की तस्वीर भेंट की।

षिक्षा में सृजनशीलता, नैतिकता एवं अध्यात्म का समावेष हो - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

सपने देखने वाले ही आगे बढ़ते हैं क्योंकि सपनों से विचार बनते हैं, विचार से क्रिया का जन्म होता है। क्रिया से व्यवहार बनता है और व्यवहार ही इंसान की पहचान है। जैसा इंसान होगा, वैसा ही समाज एवं राष्ट्र का निर्माण होगा। ऐसा ही सपना अणुविभा के संस्थापक मोहनभाई ने साकार किया है जो ’षिक्षा व नैतिक मूल्यों के समन्वय की जीवन्त प्रयोगषाला है’ ।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अणुव्रत विष्व भारती में आयोजित ’वर्तमान षिक्षा पद्धति और विद्यालयों में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का प्रषिक्षण’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्यार्थियों, षिक्षकों एवं अभिभावकों को संबोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किये। उन्होंने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बालकों में ऐसा साहस होना चाहिये कि वे स्वयं के विकास का मार्ग पहचान सके, उसे खोजपूर्ण तरीकों से विकसित कर सके। उन्होंने रचनात्मकता, तेजस्विता और साहस को ज्ञानार्जन का मूल मंत्र बताया। संगोष्ठी में उपस्थित षिक्षकों से डॉ. कलाम ने आग्रह किया कि षिक्षा में सृजनषीलता एवं नैतिक मूल्यों का सम्मिश्रण हो। षिक्षक अपने ज्ञान को बालकों पर थोपे नहीं वरन बालक की रुचि एवं जिज्ञासा के अनुरूप उनका पथ प्रषस्त करें।

डॉ. कलाम ने राष्ट्रीय नैतिकता के विभिन्न आयामांेे की स्थापना हेतु परिवार एवं समाज को भी उत्तरदायी बताया क्योंकि अभिभावकों के गुण ही बालकों में परिलक्षित होते है। डॉ. कलाम ने अपने वक्तव्य के सारांष में कहा कि षिक्षा वास्तव में सत्य को आत्मसात करना है। षिक्षा, ज्ञान और अध्यात्म का अनन्त सफर है जो कि मानवता के विकास में ’माइल स्टोन’ की तरह है। सही षिक्षा ही मानवता की पहचान है जो उसके आत्मसम्मान को बढ़ाती है।

डॉ. कलाम ने इस अवसर पर ’स्कूल विद ए डिफरेन्स’ प्रायोजना के शुभारम्भ की हस्ताक्षर कर विधिवत घोषणा की। उन्होंने आषा व्यक्त की कि यह प्रायोजना षिक्षा में नैतिक मूल्यों की स्थापना का सषक्त माध्यम बन सकेगी। बालमुकुन्द सनाढ्य, प्रकाष तातेड़ एवं नरेन्द्र निर्मल ने योजना का घोषणा पत्र डॉ. कलाम को प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. कलाम द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। अणुविभा के अध्यक्ष टी. के. जैन ने स्वागत शब्द प्रस्तुत किये। अणुविभा के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एस.एल. गांधी ने अणुविभा की स्थापना के उद्देष्य और इतिहास को रेखांकित किया।

डॉ. कलाम 10.00 बजंे अणुव्र्रत विष्व भारती पहुंचे जहां अणुविभा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्त्ताओं ने माल्यार्पण एवं तिलक द्वारा उनका स्वागत किया। श्री टी. के. जैन, डॉ. एस.एल. गांधी एवं संचय जैन ने डॉ. कलाम को ’चिल्ड्रन्स पीस पेलेस’ स्थित विभिन्न कक्षों व दीर्घाओं का अवलोकन कराया जहाँ विद्यार्थी बालोदय षिविर के अन्तर्गत कक्षानुरूप गतिविधियां कर रहे थे। डॉ. कलाम ने सर्वप्रथम तुलसी अणुव्रत दर्षन, महाप्रज्ञ अहिंसा दर्षन का अवलोकन किया एवं यहां प्रदर्षित प्रेरक चित्र प्रदर्षनी योगा मोड्ल्स को देखा। इसके बाद विष्व दर्षन दीर्घा, पुस्तकालय व विज्ञान कक्ष का अवलोकन किया। यहां डॉ. कलाम ने विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों रुचिपूर्वक देखा एवं बच्चों से संवाद किया। संग्रहालय, गुड़ियाघर, महापुरूष जीवन दर्षन आदि कक्षों के द्वारा बच्चों में किस प्रकार मूल्य बोध विकसित किया जाता है, इसे डॉ. कलाम ने गहराई से समझा। बच्चों का जीवन विज्ञान कक्ष में महाप्राण ध्वनि करते हुए डॉ. कलाम कुछ क्षणों तक मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे। अन्त में डॉ. कलाम बाल संसद पहुंचे जहां बच्चों की मोक पार्लियामेण्ट चल रही थी। यहां कलाम बच्चें के बीच एक सीट पर बैठ गये एवं बाल संसद की पूरी कार्यवाही को देखा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यहां जिस शालीनता व अनुषासन के साथ संसद की कार्यवाही चलती है वैसा मैंने दिल्ली की संसद मंे नहीं देखा। बालोदय दीर्घाओं को देखकर डॉ. कलाम अभिभूत थे और उन्होंने कहा कि बच्चों के विकास के लिए एक अद्भूत केन्द्र है।

डॉ. कलाम ने अणुविभा के संस्थापक मोहनभाई को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन अणुविभा के महामंत्री संचय जैन किया। इस कार्यक्रम में अणुव्रत बालोदय के अध्यक्ष हंसमुख मेहता, कार्याध्यक्ष बालोदय सुरेष कावड़िया, मंत्री बालोदय अषोक डूंगरवाल, जिला षिक्षा अधिकारी राकेष तैलंग, जगजीवन चौरड़िया, गणेष कच्छारा आदि अनेक गणमान्य नागरिक एवं अधिकारी उपस्थित हुए। श्रीमती प्रकाषदेवी तातेड़, बाबुलाल राठोड़ एवं रमेष बोहरा ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। गणेष कच्छारा ने स्मृति चिन्ह प्रदान किया, नरेष मेहता ने साहित्य एवं जगजीवन चौरड़िया व अषोक डूंगरवाल ने मवाड़ी पगड़ी व उपरना भेंट कर स्वागत किया।

पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने केलवा में चातुर्मास की व्यवस्थाओं को लेकर समिति के प्रयासों की प्रशंसा की

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने केलवा कस्बे में आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास को लेकर व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, मंत्री लवेश मादरेचा सहित सदस्यों को धन्यवाद देते हुए कहा कि गुड मैनेजमेंट ऑफ चातुर्मास। शनिवार को तेरापंथ समवसरण प्रांगण भिक्षु विहार में आयोजित अध्यात्म एवं विज्ञान विषयक चिंतन गोष्ठी में भाग लेने आए डॉ कलाम ने यह बात कही।

कोठारी परिवार के साथ बिताए 35 मिनट

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने संगोष्ठी के समापन के बाद पुनः राजसमंद की ओर जाते समय मार्ग में स्थित व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी के आवास पर करीब पैंतीस मिनट तक ठहराव किया। इस दौरान उन्होंने भोज भी ग्रहण किया और राजस्थान की प्रसिद्ध राब का स्वाद चखा। भोजनापरांत डॉ. कलाम को अध्यक्ष कोठारी, उनकी पत्नी स्नेहलता कोठारी, तेरापंथी समाज के अध्यक्ष बाबू लाल कोठारी, तेयुप के अध्यक्ष विकास कोठारी, अशोक जैन, अरविंद कावडिया सहित युवा परिषद के अनेक पदाधिकारियों ने आचार्य महाप्रज्ञ की तस्वीर भेंट की। यहां से बाहर आते वक्त बारिश से बचाने के लिए कुछ पदाधिकारियों ने छाता खोला तो वहां एक बच्चे को देखकर छाते के नीचे खडे होकर डॉ कलाम ने बच्चे को पास बुलाकर ऑटोग्राफ दिया।

आचार्य महाश्रमण की सादगी से प्रभावित हंूः डॉ. कलाम

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. .पी.जे. अब्दुल कलाम ने भिक्षु विहार में अध्यात्म और विज्ञान पर आयोजित संगोष्ठी में कहा कि मैं आज अलौकिक वातावरण में उपस्थित हुआ हंू। आचार्य महाश्रमण एवं उनके साधु-साध्वियां अध्यात्म के शिखर को छू रहे है। आचार्य की सादगी, सरलता ने बहुत प्रभावित किया है। मेरा आचार्य महाप्रज्ञ के साथ एकत्व भाव था। आज महाश्रमण से भी

एकत्व भाव होकर आल्हादित हंू। डॉ कलाम ने कहा कि विज्ञान पदार्थ के बारे में चर्चा करता हंू और अध्यात्म क्षमता के विकास और योजना पर कार्य करता हंू। दोनों के चिन्तन की एकता, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा। मैं प्रबुद्ध संतों के बीच हंू। आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में हंू। इनमें मानवता के प्रति करुणा कूट-कूट कर भरी हुई हैं। इनके साथ अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की बात देश को नई दिशा देगी। डॉ. कलाम ने आचार्य महाप्रज्ञ का स्मरण करते हुए कहा कि उनके इस संदर्भ में अनके बार चर्चाएं हुई। उनका एक वाक्य मुझे हमेशा याद रहता है। उसमें उन्होंने कहा है कि आत्मा ही मेरा भगवान हैैं, तपस्या मेरी प्रार्थना है, मैत्री ही मेरा समर्पण है, संयम मेरी ताकत है और अहिंसा मेरा धर्म है। डा. कलाम ने कहा कि लोग युद्ध से, हिंसा से दूर रहे। यह अध्यात्म से संभव है। जब अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय होगा, तभी विश्व में शांति, समृद्धि और विकास स्थापित होगा।

महाप्रज्ञ के निर्देश पालन कर रहा हंू

मिसाइलमैन ने कहा कि जब मैं पहली बार दिल्ली में आचार्य महाप्रज्ञ से मिला था, तब उन्होंने मुझे शांति की मिसाइल बनाने की कमान सौंपी थी। इतने वर्षों में मैं इस पर शोध कर रहा हंू। आज अणु बम अमेरिका एवं रुस के पास ज्यादा है। अन्य देशों के पास 10 प्रतिशत है। आणविक ऊर्जा को निष्प्रभावी बनाने पर कार्य चल रहा हैं। पर आज अणु बम से ज्यादा खतरनाक साईबर आतंक हो रहा है। अणु बम एक साथ मनुष्यों को खत्म कर सकता है, पर यह आतंक व्यक्ति के विचारों को प्रमाणित करता है। इसके प्रभाव में आने वाले पांच व्यक्ति पचास को प्रभावित करते है इससे बचाव का उपाय खोजना जरुरी है। मैं इसको ध्यान में रखकर आचार्य महाप्रज्ञ के निर्देश पर कार्य कर रहा हंू।

मेरे तीन गुरु

मिसाइलमैन डॉ. कलाम ने कहा कि मैं तीन लोगों से प्रभावित हंू। भगवान महावीर, महात्मा गांधी और आचार्य महाप्रज्ञ। ये तीनों मेरे गुरु है। इनसे मैंने जीने की दृष्टि पाई है। इनका चिंतन मुझे राह दिखाता रहता है।

विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरकः आचार्य महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि अध्यात्म और विज्ञान दोनों एक दूसरे के पूरक है। विज्ञान के बिना आध्यात्म अधूरा है तो आध्यात्म के बिना विज्ञान भी पूर्ण नहीं हैं। अध्यात्म परम लक्ष्य मोक्ष है वहीं विज्ञान केवल पदार्थों तक सीमित हैं। आध्यात्म जहां अन्य शक्ति का संदेश देता है वही विज्ञान पदार्थों के प्रति आकर्षण बढा रहा है। दोनों के समन्वय होने पर ही समान विकास की राह खुल सकती है और पावरफूल राष्ट्र का निर्माण हो सकता हैं।

संगोष्ठी में अणुविभा के सोहन लाल गांधी एवं व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी ने विचार व्यक्त किए। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, संयुक्त मंत्री मूलचंद मेहता, स्वागताध्यक्ष परमेश्वर बोहरा, तेरापंथ सभा अध्यक्ष बाबू लाल कोठारी, मंत्री लवेश मादरेचा, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, प्रकाश चपलोत, राजकुमार कोठारी, राजेन्द्र कोठारी, भगवती लाल बोहरा, तेयुप अध्यक्ष विकास कोठारी, मंत्री लक्की कोठारी, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती फूली देवी बोहरा, मंत्री रत्ना कोठारी, किरण कोठारी ने डॉ कलाम का परपंरागत स्वागत किया। तेजकरण सुराणा ने संचालन किया।

Friday, July 22, 2011

अतिकामना समाज के लिए घातकः आचार्य महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण ने संबोधि के तीसरे अध्याय में ज्ञान को लेकर बताए गए पांच बिन्दुओं की व्याख्या करते हुए श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे ज्ञान अर्जित करते समय दूसरे की सहायता की आकांक्षा नहीं रखें। इस तरह की प्रवृति से इंन्द्रियों पर स्वयं का नियंत्रण नहीं रहता और प्रत्यक्ष की बजाय हम केवल परोक्ष ज्ञान तक ही सीमित होेकर रह जाते हैं। यह उद्गार उन्होंने शुक्रवार को भिक्षुविहार में दैनिक प्रवचन के दौरान व्यकत किए।

उन्होंने अवधिज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति समस्त कामनाओं से विरक्त हो जाता है और ध्यान-साधना की तरफ झुक जाता है। उसे इस तरह के ज्ञान की अनुभूति होती हैं। इस तरह की स्थिति आचार्य भिक्षु के जीवन के अंतिम समय में रही। उन्हें विशेष ज्ञान हुआ, जिसे आचार्य तुलसी ने अवधिज्ञान माना। इसलिए मनुष्य में ज्ञान भले ही न हो, लेकिन साधना के प्रति सदैव सचेत रहे। ज्ञान का विकास करे और विकारों को अपने आस पास नहीं आने दें। माया-मोह को मंद करे तो साधना व ज्ञान का विकास स्वतः ही हो जाएगा।

अतिकामना के परिणाम समाज के लिए घातक

उन्होंने कहा कि अतिकामना के परिणाम समाज के लिए घातक होते है। इससे पाप, अपराध और व्यसन में वृद्धि होती हैैं और ईमानदारी लुप्त हो जाती है। मन में हिंसा का प्रादुर्भाव हो जाता हैं। उन्होंने ईमानदारी के संदर्भ में चन्द्रगुप्त का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस राष्ट्रª का प्रधानमंत्री ईमानदार, उज्जवल भविष्य वाला होता है तो उसकी जनता भी ईमानदारी पर विष्वास करती हैं। उन्होंने कहा कि मानव जाति मौत, कष्ट, वेदना और अवमामना से बहुत डरती है। यह हमारी दुर्बलता का परिचायक है। इस संदर्भ में मात्र सोचकर ही हम भयभीत हो जाते है। यह भय निरन्तर साधना और ध्यान करने से ही दूर हो सकता है। उन्होंने कहा कि आदमी चार कारणों से झूठ बोलता है। इससे उपकृत होने का सभी को प्रयास करना चाहिए। मोहकर्म का प्रभाव हमेशा बना रहे और इसी के आधार पर साधना चलनी चाहिए। इससे ज्ञान का विकास व बुद्धि का सम्मान होगा। जिसमें ज्ञान-ध्यान का समावेश नहीं होता वह व्यक्ति इस मायने में ष्वान की श्रेणी में आ जाता हैं। उन्होंने शिविरार्थियों और विद्यार्थियों को ज्ञान अर्जित करने की सीख देते हुए आहृान किया कि वे धर्म और साधना के प्रति गंभीर रहे।

स्याह में ढंूढे जीवन का प्रकाश

मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति जितनी धर्म में प्रवृति करता है वह निवृति के लिए होती है। सभी धार्मिक दर्शनों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पूरी उपासना और ज्ञानार्जन के बाद आत्मा की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। व्यक्ति इसे तत्काल प्राप्त करने के लिए बाहरी परिप्रेक्ष्य में भटकता है, लेकिन उसे सभी ओर से असफलता मिलती है। उन्होंने कहा कि ज्ञान, ध्यान और अपेक्षानुसार तपस्या का भाव हो तो उस व्यक्ति को इसकी अनुभूति होती है। आदमी आंखे मंूदकर अनुभूति की चाह रखता है। प्रारंभ में अंधेरा दिखता है, लेकिन स्याह में उसे मार्ग को ढंूढने की जरुरत है। ज्यों-ज्यों ज्ञान मिलता जाएगा उसका जीवन प्रकाशमय हो जाएगा। उन्होंने महिला और पुरुषों को तत्व ज्ञान के विकास, जिज्ञासाएं बढाने और स्वयं का मार्ग ढंूढने का आहृान किया। गुजरात से आए वीबी चौहान ने कहा कि हमारी देह स्वस्थ है तो साधना पूरी की जा सकती हे। इसके लिए हमें मन को नियंत्रित करने की आवष्यकता हैं। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।