Wednesday, July 27, 2011

संयम से आत्मा का कल्याणः आचार्य महाश्रमण


केलवाः आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से कर्म बंधन से बचने का आहृान करते हुए कहा कि राग-द्वेष से बचने के लिए संयम और समर्पण का भाव मन में विकसित करें। इससे आत्मा का कल्याण होगा। उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में बुधवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्म के प्रकरण को परिभाषित करते हुए कहा कि जैन दर्शन में आठ कर्म बताए गए है। यह प्रिय-अप्रिय स्थितियों का कारण बनते है। ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कार्य पर्दा डालने का काम करते है। मनुष्य में विकार को स्थान देने का काम मोहनीय कर्म करता है। इसका प्रभाव मानवीय चेतना को विचलित करने में सहायक सिद्ध होता है। इसलिए इस कर्म से परे रहकर हमारा ज्ञान धर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए।
अन्तराय कर्म किसी कार्य में बाधा डालने का काम करता है। शेष कर्मों को घाती कर्म की संज्ञा दी गई है। इन्हें घन घात्य कर्म से भी पुकारा जाता है। आचार्य ने कहा कि यह कर्मों का स्वभाव है कि वर्तमान में हम कौनसी गति के प्राणी है। इसकी विवेचना कर सकते है। मृत्यु के बाद आदमी की आत्मा किस रुप में जन्म लेगी। इसका भी एक विधान है। मनुष्य स्वर्ग एवं नरक में जाता हैं, लेकिन देवता कभी भी नरक में नहीं जाते। मनुष्य अगले जन्म में पुनः मनुष्य के रुप में अवश्य जन्म लेता हैं, लेकिन देवता वापस देव रुप में जन्म नहीं ले सकता है। उन्होंने गति को भी विधान बताते हुए कहा कि मनुष्य के कर्म में जैसा भाव होगा, उसे कर्मों का वैसा ही फल मिलता है। आयुष कर्म से अगली गति का निर्धारण संभव हो सकता है। पांच कर्मों से सदैव बचने का आहृान करते हुए आचार्य ने समर्पण का भाव रखने की बात कही। इससे साधक कर्मों में बंधन से छुटकारा पा सकता है।
धर्म में ज्ञान-साधना का योग आवश्यक
उन्होंने आत्मा रुपी पंछी को शरीर के पिंजरे में से निकालने का आहृान करते हुए उपासक-उपासिकाओं से कहा कि धर्म में ज्ञान-साधना का योग आवश्यक है। व्यक्ति की साधना प्रबल हो जाती है तो वह सशक्त हो जाता है। किसी को धर्म का उपदेश देने के पूर्व इस बात की आवश्यकता है कि वह स्वयं इस संदर्भ में भली-भांति परिचित है अथवा नहीं। उसका स्वयं का जीवन भी उपदेश देने के अनुकूल ज्ञान और साधना युक्त होना चाहिए। जो बातचीत में संयम का भाव रखता है उसका कल्याण अवश्यभावी है। इसलिए कार्यों में निर्जरा करने का प्रयास करें। केवल भाषण देने से वक्तव्य में प्राण नहीं आते और वे निष्प्राणित हो जाते है। संतों को चाहिए कि वे मनुष्य का प्रर्याप्त मार्गदर्शन करें एवं उनमें धर्मोपासना के प्रति भाव जागृत हो। इस दिशा में ध्यान एवं साधना करें। यदि मनुष्य को संतों से ही उचित ज्ञान नहीं मिलेगा तो वह इसे प्राप्त करने के लिए कहां जाएगा।
जिम्मेदारी से नहीं बने कमजोर
आचार्य ने कहा कि व्यक्ति के पास किसी तरह का दायित्व या जिम्मेदारी आ जाती है तो उसके चेहरे पर तनाव, चिंता की लकीरें नहीं आनी चाहिए। वह स्वयं को कमजोर नहीं बल्कि सशक्त मानते हुए अपने दायित्व का सोच विचार कर निर्वाह करें और कर्मवाद को समझे। ऐसा करने से आत्मा सिद्धत्व की ओर अग्रसर होती है। मोक्ष को प्राप्त करने में साधना की अपेक्षा होती है।
साधना से मिलती हैं मुक्ति
मंत्री मुनि सुमेरमल ने शरीर रुपी पिंजरे में कैद आत्मा को मुक्त कराने में संयम एवं साधना की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि इसकी सतत् प्रक्रिया से बंधन से मुक्ति नजदीक आती है। जो इसके गूढ रहस्य को समझ जाता है वह अपनी प्रवृतियों का संयम करता है। व्यक्ति शरीर रूपी पिंजरे से मुक्त होना चाहता है तो उसे अपनी इंन्द्रियों पर संयम रखना होगा। इसे लेकर उन्होंने तोते का प्रसंग भी सुनाया। शाश्वस्त सत्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने इस सूत्र को अपनाने का प्रत्येक व्यक्ति से आहृान किया। मन पर संयम जितना अधिक होगा उतना ही वह बंधन से दूर होने की दिशा में अग्रसर होगा। एक दिन ऐसा आएगा कि शरीर पूरी तरह कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा और आत्मा को शांति का अहसास होगा। कार्यक्रम के दौरान मुनि जयंत कुमार ने ’ जैन विद्या कार्यशाला का भाग तीन ’ पुस्तक आचार्य को विमोचन के लिए समर्पित किया। मुनि ने कहा कि जैन विद्या के अध्ययन से हमारी पहचान कायम होती है। केलवा में प्रतिदिन रात्रि को जैन विद्या कार्यशाला का आयोजन हो रहा है। इसमें आने वाले संभागी इसकी महत्ता को जानते है। यह मनुष्य का ज्ञान बढाता है। उन्होंने कहा कि आगामी एक अगस्त से पूरे देश में एक साथ जैन विद्या कार्यशालाओं का आगाज होगा।
दीक्षा समारोह की घोषणा
आचार्य महाश्रमण ने चातुर्मास के दौरान जैन भागवती दीक्षा समारोह के आयोजन की घोषणा की। आचार्य ने पंजाब निवासी मुमुक्षु अश्विनी एवं सूरत प्रवासी चेतना को 7 सितम्बर को दीक्षा प्रदान करने की अनुमति दी। उन्होंने चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी द्वारा 13 दीक्षाएं कराने पर कहा कि केलवा के भाई-बहिन तैयार हो तो 13 दीक्षाएं हो सकती है। इस मौके पर मुमुक्षु अश्विनी के पारिवारिक जनों ने दीक्षा कराने की अर्ज प्रस्तुत की।



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