केलवाः आचार्य महाश्रमण ने मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे सुन्दर रुप और संख्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने की बजाय स्वयं की गुणवत्ता पर ध्यान दें। जीवन में गुणवत्ता होगी तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शनिवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम संघ में गुणवत्ता, योग्यता को ध्यान में रखकर दीक्षा देते है। किसी को दीक्षा देने से पहले उसके व्यक्तित्व, आचरण, ज्ञान की परीक्षा होती है। हम क्वालिटी पर विश्वास रखते है। क्वान्टिटी पर नहीं। उन्होंने कहा कि सामाजिक संस्थाओं, संगठनों में भी योग्य व्यक्ति का पदार्पण हो, अयोग्य का नहीं। संगठन में मनी और मैन पॉवर का सामंजस्य होता है तो कार्य सुचारू रूप से चलता है। इसके लिए बढिया प्रबंधन और नैतिकता पर भी बल दिया जाना चाहिए, अन्यथा अयोग्य व्यक्ति उनके संगठन में प्रवेश कर बट्टा बैठा देंगे। आचार्य ने अर्हता बढाने के लिए निरन्तर साधना करने पर बल दिया और कहा कि ज्ञान का विकास करने के लिए धार्मिक गं्रथों का अध्ययन करें। इससे व्यक्तित्व में निखार आएगा तथा व्याख्यान के दौरान विशिष्टता का भाव नजर आएगा। प्रासंगिक बातों को ज्ञान भी बढेगा। व्याख्यान को प्रभावी बनाने के लिए स्वाध्याय में ध्यान लगाने की जरूरत है। साधना का विकास होने से कषाय मंद होगा और मुक्ति की साधना पुष्ट होगी।
उन्होंने चलने को भी एक साधना के रुप में परिभाषित करते हुए कहा केवल आंखें मंूदकर बैठना ही साधना नहीं है। संयम, चलना, बैठना, सोना, आदि हर गतिविधि साधना बन सकती है। अपेक्षा हर प्रवृति, भावक्रिया के साथ की जाए। इससे लंबे समय तक ध्यान का योग बना रहता है। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित निष्कर्म की बात पर उन्होंने कहा कि निवृतियुक्त प्रवृति से चलते-चलते मनुष्य को ज्ञान रुपी खजाना मिल जाता है और स्वयं से परिचित हो जाता है। निष्कर्म की साधना वह प्रयास है, जिसके माध्यम से मनुष्य स्वयं के भीतर जाकर खजाने को खोद सकता है। इससे उसे आत्म साक्षात्कार होगा व गुणात्मक विकास बढेगा।
सूर्य हमारा नहीं, हम सूर्य का स्वागत करें
आचार्य महाश्रमण ने देरी से उठने वालों को प्रेरणा देते हुए कहा कि सूर्य हमारा स्वागत ना करें। हम सूर्य का स्वागत करें। जब विलंब से उठते है तो सूर्य स्वागत के लिए आसमान में चमक रहा होता है। इसलिए हम सूर्योदय से पूर्व ब्रहम मुहूर्त में जागकर शुभ प्रवृति में लग जाए तो पूरा दिन अच्छा बीतेगा।
एकाग्रचित्त होकर करें साधना
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि वर्तमान परिवेश एकाग्रचित्त होकर की गई साधना से मोक्ष मार्ग के द्वार स्वतः ही खुल जाते है। जिस मनुष्य के चित्त में निर्मलता का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल से दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे परिवार की सुख शांति के लिए भौतिक लालसाओं का परित्याग कर जीवन का कुछ समय उपासना में लगाएं, क्योंकि धार्मिकता के साथ साधना भी आवश्यक हैं।
उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन
कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा द्वारा आयोजित दस दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। डालचंद नवलखा ने शिविर का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसमें बताया कि शिविर के प्रथम चरण में उपासकों का चयन किया गया। दूसरे चरण में कार्यशाला और तेरापंथ दर्शन, जैन विद्या, दर्शन का गहन प्रशिक्षण दिया गया। श्रीमती कमला छाजेड, श्रीमती मंजू पगारिया, रतन लाल जैन व नरेश चोपडा ने शिविर के दौरान प्राप्त अनुभवों को प्रस्तुत किया। महासभा के उपाध्यक्ष ख्यालीलाल तातेड, शिविर प्रभारी विनोद बांठिया ने आयोजन में सहयोग देने वालों का आभार जताया। साध्वी जिनप्रभा ने अपने विचार व्यक्त किए।
सर्वसमाज को दी नशामुक्ति की प्रेरणा
आचार्य महाश्रमण ने शनिवार दोपहर सर्वसमाज के प्रतिनिधियों को नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए इसका उन्मूलन स्वयं के घर से करने का आहृान किया। मुनि सुखलाल की प्रेरणा एवं मुनि जयंत कुमार की उपस्थिति में आयोजित सर्व समाज की बैठक में अणुव्रत समिति के अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, उपाध्यक्ष रामलाल तेली, मंत्री रुपेन्द्र बोहरा, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, अणुव्रत समिति के दिनेश कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, लवेश मादरेचा, प्रकाश चपलोत सहित अन्य पदाधिकारियों ने समाज के प्रतिनिधियों का स्वागत किया। इस अवसर पर सर्व समाज के प्रतिनिधियों ने अपना-अपना परिचय दिया। कैलाश जोशी, शंकरलाल सेवक, भैरूलाल पालीवाल, मोहनलाल टेलर, मांगीलाल भार्गव ने विचार व्यक्त किए।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शनिवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम संघ में गुणवत्ता, योग्यता को ध्यान में रखकर दीक्षा देते है। किसी को दीक्षा देने से पहले उसके व्यक्तित्व, आचरण, ज्ञान की परीक्षा होती है। हम क्वालिटी पर विश्वास रखते है। क्वान्टिटी पर नहीं। उन्होंने कहा कि सामाजिक संस्थाओं, संगठनों में भी योग्य व्यक्ति का पदार्पण हो, अयोग्य का नहीं। संगठन में मनी और मैन पॉवर का सामंजस्य होता है तो कार्य सुचारू रूप से चलता है। इसके लिए बढिया प्रबंधन और नैतिकता पर भी बल दिया जाना चाहिए, अन्यथा अयोग्य व्यक्ति उनके संगठन में प्रवेश कर बट्टा बैठा देंगे। आचार्य ने अर्हता बढाने के लिए निरन्तर साधना करने पर बल दिया और कहा कि ज्ञान का विकास करने के लिए धार्मिक गं्रथों का अध्ययन करें। इससे व्यक्तित्व में निखार आएगा तथा व्याख्यान के दौरान विशिष्टता का भाव नजर आएगा। प्रासंगिक बातों को ज्ञान भी बढेगा। व्याख्यान को प्रभावी बनाने के लिए स्वाध्याय में ध्यान लगाने की जरूरत है। साधना का विकास होने से कषाय मंद होगा और मुक्ति की साधना पुष्ट होगी।
उन्होंने चलने को भी एक साधना के रुप में परिभाषित करते हुए कहा केवल आंखें मंूदकर बैठना ही साधना नहीं है। संयम, चलना, बैठना, सोना, आदि हर गतिविधि साधना बन सकती है। अपेक्षा हर प्रवृति, भावक्रिया के साथ की जाए। इससे लंबे समय तक ध्यान का योग बना रहता है। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित निष्कर्म की बात पर उन्होंने कहा कि निवृतियुक्त प्रवृति से चलते-चलते मनुष्य को ज्ञान रुपी खजाना मिल जाता है और स्वयं से परिचित हो जाता है। निष्कर्म की साधना वह प्रयास है, जिसके माध्यम से मनुष्य स्वयं के भीतर जाकर खजाने को खोद सकता है। इससे उसे आत्म साक्षात्कार होगा व गुणात्मक विकास बढेगा।
सूर्य हमारा नहीं, हम सूर्य का स्वागत करें
आचार्य महाश्रमण ने देरी से उठने वालों को प्रेरणा देते हुए कहा कि सूर्य हमारा स्वागत ना करें। हम सूर्य का स्वागत करें। जब विलंब से उठते है तो सूर्य स्वागत के लिए आसमान में चमक रहा होता है। इसलिए हम सूर्योदय से पूर्व ब्रहम मुहूर्त में जागकर शुभ प्रवृति में लग जाए तो पूरा दिन अच्छा बीतेगा।
एकाग्रचित्त होकर करें साधना
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि वर्तमान परिवेश एकाग्रचित्त होकर की गई साधना से मोक्ष मार्ग के द्वार स्वतः ही खुल जाते है। जिस मनुष्य के चित्त में निर्मलता का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल से दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे परिवार की सुख शांति के लिए भौतिक लालसाओं का परित्याग कर जीवन का कुछ समय उपासना में लगाएं, क्योंकि धार्मिकता के साथ साधना भी आवश्यक हैं।
उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन
कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा द्वारा आयोजित दस दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। डालचंद नवलखा ने शिविर का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसमें बताया कि शिविर के प्रथम चरण में उपासकों का चयन किया गया। दूसरे चरण में कार्यशाला और तेरापंथ दर्शन, जैन विद्या, दर्शन का गहन प्रशिक्षण दिया गया। श्रीमती कमला छाजेड, श्रीमती मंजू पगारिया, रतन लाल जैन व नरेश चोपडा ने शिविर के दौरान प्राप्त अनुभवों को प्रस्तुत किया। महासभा के उपाध्यक्ष ख्यालीलाल तातेड, शिविर प्रभारी विनोद बांठिया ने आयोजन में सहयोग देने वालों का आभार जताया। साध्वी जिनप्रभा ने अपने विचार व्यक्त किए।
सर्वसमाज को दी नशामुक्ति की प्रेरणा
आचार्य महाश्रमण ने शनिवार दोपहर सर्वसमाज के प्रतिनिधियों को नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए इसका उन्मूलन स्वयं के घर से करने का आहृान किया। मुनि सुखलाल की प्रेरणा एवं मुनि जयंत कुमार की उपस्थिति में आयोजित सर्व समाज की बैठक में अणुव्रत समिति के अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, उपाध्यक्ष रामलाल तेली, मंत्री रुपेन्द्र बोहरा, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, अणुव्रत समिति के दिनेश कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, लवेश मादरेचा, प्रकाश चपलोत सहित अन्य पदाधिकारियों ने समाज के प्रतिनिधियों का स्वागत किया। इस अवसर पर सर्व समाज के प्रतिनिधियों ने अपना-अपना परिचय दिया। कैलाश जोशी, शंकरलाल सेवक, भैरूलाल पालीवाल, मोहनलाल टेलर, मांगीलाल भार्गव ने विचार व्यक्त किए।
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