Friday, July 29, 2011

बिजली, पानी के महत्व को समझें मनुष्यः आचार्य महाश्रमण


केलवाः आचार्य महाश्रमण ने मानव जगत और विभिन्न समाजों से आहृान किया कि वे पानी के महत्व को समझते हुए इनका अपव्यय न हो। इस पर जागरूकता का परिचय दें। पानी का दुरुपयोग इसी तरह से होता रहा तो आने वाली पीढी को बडी कठिनाईयों का सामना करना पडेगा। इनके उपयोग में संयम बरता जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शुक्रवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। आचार्य ने कहा कि पानी का जितना ज्यादा अपव्यय होगा उतनी ही ज्यादा हिंसा होने की संभावना रहेगी। इसलिए स्नानादि करते समय कम पानी उपयोग करने की आदत विकसित करने की महत्ती आवश्यकता है। कम पानी में किस तरह से ज्यादा कार्य संपादित किए जाए। इस ओर मनन करने की जरूरत है। उन्होंने बिजली का भी व्यर्थ उपभोग न करने का आहृान किया।
संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित कर्मवाद के प्रकल्प को परिभाषित करते हुए आचार्य ने कहा कि शुभ-अशुभ कर्मों से जीव वैसी ही प्रवृति करने में जुट जाता है। जब ज्ञाना वरणीय कर्म का उदय होता है तो आदमी की स्मरण शक्ति कम होने लगती है और दिमाग काम करना बंद कर देता है। सत वंदनीय का योग बनने से मनुष्य के सुख में वृद्धि होती है और उसमें सक्रियता के भाव आ जाते है। मोह कर्म से व्यक्ति झगडालु प्रवृति का बन जाता है। उसमें अहंकार की भावना विकसित होती है तथा विकार प्रकट होने लगते है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कर्मों का उदय होता है उसी तरह की स्थिति व्यक्ति में आती है। साधना के विकास की आवश्यकता जताते हुए उन्होंने कहा कि हम मूल लक्ष्यों की प्राप्ति में आगे बढते रहे। जब निष्ककर्म योग की स्थिति बन जाती है तो कर्म बंधन से मुक्ति मिल सकती है। आचार्य प्रवर ने साधु समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि हम अनाशक्ति की साधना में अभी क्या स्थिति है। हमने दीक्षा ली जब और अब में कितना फर्क आया। इसके लिए आत्म परीक्षण कर भीतर व्याप्त कषाय को मंद करने का अभ्यास करें। साथ ही निर्धारित आचार के प्रति जागरूक रहकर पंच निष्ठाओं का पालन करें।
तेरापंथ शासन मरे लिए सर्वोपरि ं
आचार्य ने कहा कि तेरापंथ शासन सबसे पहले है। इसकी सुरक्षा एवं विकास की ओर ध्यान देना मेरी प्राथमिकता है। इसको इग्नोर कर दूसरी गतिविधियों पर ध्यान दिया जाना मुझे काम्य नहीं है। पहले इसके निर्धारित आचार पर ध्यान होना चाहिए। उसके बाद दूसरी गतिविधियों पर समय नियोजित हो। इसमें कोई आपत्ति नहीं है। उपासक श्रेणी का आहृान करते हुए कहा कि यह श्रेणी संघ के प्रति निष्ठावान रहे और कषाय को मंद करने का अभ्यास करें। अहंकार न आने दें और गुस्से पर नियंत्रण रखें। उन्होंने पांच निष्ठाओं को परिभाषित करते हुए कहा कि आत्म निष्ठा मंे आत्म कल्याण की ललक देखने को मिलती है। आत्म साधना जिस संघ में कर रहे है उसके प्रति निष्ठा होनी चाहिए। उसी के अनुरुप कार्य करें। उन्होंने प्रतिक्रमण को सामूहिक अनुष्ठान के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि मण्डली में होने वाला यह कार्य एक स्नान की भांति है। जिस प्रकार मनुष्य स्नान करके ताजगी महसूस करता है उसी प्रकार संत-साध्वी इसे कर तरोताजा होते है। उन्होंने व्यवहार में सदैव निर्मलता का भाव रखने की बात कही।
चेहरे का नहीं, गुणवत्ता का महत्वं
आचार्य ने मनुष्यों से आहृान किया कि वे अपनी गुणवत्ता को विकसित करने की तरफ ध्यान आकृष्ट करें, न कि अपने चेहरे को सुन्दर बनाने में। व्यवहार फूहड होगा तो अच्छा चेहरा काम नहीं कर सकेगा और चेहरा सुन्दर नहीं और गुण अच्छे होंगे तो उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा होगी। उन्होंने चिन्तन की आवश्यकता जताते हुए कहा कि व्यक्ति अपने मन में उच्च विचार का समावेश करें। साधना के प्रति जागरूक रहकर निर्मल बनाने का प्रयास करें।
मर्यादित रहकर हो साधना
मंत्री मुनि सुमरेमल ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे साधना में अनवरत आगे बढना चाहते है तो उनमें मर्यादा का भाव होना आवश्यक है। इससे उनकी ध्यान-साधना में भी निखार आ सकेगा। बाहर की लालसाओं को छोडकर भीतर का ज्ञान अर्जित करने व अन्तर मुखता का प्रयास करें। प्रारंभ में कुछ परेशानियां सामने आएगी, लेकिन इससे विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। एक तरह का ध्यान करने से एक ना एक दिन आत्म अनुभूति का अहसास अवश्य होगा। इससे वह अपनी मंजिल की ओर पहुंच जाएगा। अनुभव की कमी से व्यक्ति निरन्तर गल्तियां करता है और वह ध्यान-साधना से भटक जाता है। व्यक्ति साधना और आध्यात्म में तल्लीन रहने का प्रयास करें। जो दौड लगाएगा वह निश्चित तौर पर आगे बढेगा।
संतों ने किया मर्यादाओं का पुनरावर्तन
आचार्य महाश्रमण ने आज हाजरी वाचन करते हुए साधु-साध्वियों को मर्यादाओं का पुनरावर्तन करवाया। उन्होंने कहा कि तेरापंथ की संगठन की दृष्टि से पांच मौलिक मर्यादाएं है। इसके आधार पर ही धर्म संघ संचालित होता है। बाल मुनि मृदु कुमार एवं मुनि शुभंकर ने लेख पत्र का वाचन किया। इस पर आचार्य ने उनको दो-दो कल्याणक बक्शीश में प्रदान किए।
55 से भरवाए संकल्प पत्र
राजस्थान प्रादेशिक अणुव्रत समिति की ओर से शुक्रवार को प्रवचन सभा स्थल में लगाए गए स्टॉल पर केलवा समिति के अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, मंत्री रणजीत बोहरा, रुपेन्द्र बोहरा, नीरु कोठारी, जयश्री कोठारी सहित अन्य पदाधिकारियों ने 55 जनों से अणुव्रती के लिए संबंधित वर्गीय अणुव्रतों का पालन संबधी प्रपत्र भरवाएं। अध्यक्ष कोठारी ने बताया कि यह अभियान निरन्तर जारी रहेगा।
त्रिदिवसीय अणुव्रत अधिवेशन कल से
तैयारियां अंतिम चरण में
केलवाः 29 जुलाई
मानवीय नैतिक मूल्यों के विकास एवं संवर्द्धन में गत छह दशक से समर्पित अणुव्रत आंदोलन का त्रिदिवसीय अणुव्रत अधिवेशन रविवार से तेरापंथ सभागार केलवा में शुरू होगा। अधिवेशन की तैयारियां अन्तिम चरण में है।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सानिध्य एवं महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की प्रेरणा से आयोजित इस अधिवेशन के प्रथम सत्र में उद्घाटन रविवार को सुबह नौ बजे से ग्यारह बजे तक होगा। इसमें गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे का संबोधन और मंत्री मुनि सुमेरमल का उद्बोधन होगा।
द्वितीय सत्र मंे दोपहर दो से शाम चार बजे तक कार्यकर्ता संगोष्ठी होगी। इसमें अणुविभा, अणुव्रत न्यास, शिक्षक संसद प्रगति विवरण पर चर्चा की जाएगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात बजे से रात दस बजे तक अणुव्रत अलंकरण सम्मान कार्यक्रम होगा। दूसरे दिन सोमवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक आचार्य तुलसी शताब्दी समारोह योजना पर चर्चा और अणुव्रत महासमिति कार्यसमिति की बैठक, द्वितीय सत्र में दोपहर दो बजे से सायं पांच बजे तक अणुव्रत महासमिति साधारण सभा की बैठक अयोजित होगी। तृतीय सत्र में शाम साढे सात बजे से रात दस बजे तक संस्था संचालन, पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा के बाद काव्य गोष्ठी होगी। कोठारी ने बताया कि तीसरे दिन मंगलवार को सुबह नौ से ग्यारह बजे तक अधिवेशन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। साथ ही नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा पदभार ग्रहण एवं उद्बोधन होगा।

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