केलवाः आचार्य महाश्रमण ने कर्म के बंधन में हिंसा-अहिंसा का बडा योग बताते हुए कर्म को परिभाषित किया और कहा कि आज के परिवेश में अहिंसा के सूत्र को अपनाने की महत्ती आवश्यकता है। प्राणियों को अपने समान समझे और ऐसे किसी शब्द का उच्चारण न करें जिससे उसके मन में द्वेष की भावना पैदा न हो।
उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में गुरुवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित कर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि शुभ से पुण्य और अशुभ से पाप की अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति में हिंसा से परे रहकर अहिंसा का मार्ग अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता।
सभी सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब हम ध्यान-साधना करते हुए अपनी आत्मा की शुद्धि करें। जिन शासन में स्पष्ट है कि मनुष्य जो अपने लिए सोचता है और मनन करता है वैसा ही वह दूसरों के बारें में भी सोचे। कभी उसके प्रति द्वेष या वैर भाव न रखें। धर्म की बातों का श्रवण कर यह ग्रहण करने की आवश्यकता है कि जो स्वयं के लिए प्रतिकूल है उसका प्रभाव दूसरों के जीवन पर न पडे। वाणी में संयम बरतें। ऐसे शब्दों का उपयोग न हो कि सामने वाला स्वयं को अपमानित महसूस करे।
एक दूसरे के पूरक हैं अहिंसा-समता
अहिंसा-समता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए आचार्य ने कहा कि समता के बिना अहिंसा का पालन संभव नहीं होता। जब समता विकसित होती है, तभी अहिंसा फलीभूत होती है और जब अहिंसा का पालन होता है तो समता सुदृढ बनती है। उन्होंने कहा कि सभी प्राणियों के साथ मैत्री भाव रखें, ताकि राग, द्वेष, हिंसा, पाप सरीखे आचरण का जीवन में समावेश न हो। अहिंसक रहने से मनुष्य को अगली गति सुधर जाती है। अहिंसा का प्रयोग भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नहीं हो। अहिंसा का वर्णन हालांकि सभी धार्मिक ग्रथों में देखने को मिलता है, लेकिन जैन शास्त्रों में इसे सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। अहिंसा की साधना आत्म कल्याण, मोक्ष और शुभ कार्यों के लिए हो, तभी साधक निर्जरा की ओर अग्रसर होगा।
मैत्री का भाव रखने की आवश्यकता
आचार्य ने हिंसा को परिभाषित करते हुए कहा कि मनुष्य मन में मर्म भरे भाव का बोध न कर मैत्री का भाव रखता हैं तो उसे मैत्री अहिंसा कहा जाता है। भोजन बनाते समय या कृषि कार्य के दौरान यदि किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तो उसे अनिवार्य हिंसा की श्रेणी में रखा गया है। देश एवं परिवार की रक्षा के लिए की गई हिंसा को प्रतिरक्षात्मक हिंसा माना है, जबकि आवेश में आकर हिंसा करने को संकल्प या हिंसा माना गया है। सभी प्रकार की हिंसा से बचना आवश्यक है। पर गृहस्थ प्रथम दो प्रकार की हिंसा से बच नहीं पाता। उसे जीवन निर्वाह के लिए हिंसा करनी पडती हैं। उसे संकल्प या हिंसा से तो बचना ही चाहिए। उन्होंने आध्यात्मिक उपकार को मैत्री की संज्ञा देते हुए अभयदान को सभी दान क्रिया में श्रेष्ठ बताया।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अपनी आत्मा को निर्मल रखें। किसी कार्य को शुरू करने से पहले उसकी तैयारी करें। सामान्य क्रिया से ही हम विशेषता की ओर अग्रसर होते है। एक तरह से मन के भीतर विस्फोट होने के बाद हमारा रास्ता निर्भीक हो जाएगा और आगे बढने मंे कोई रूकावट नहीं आएगी। इससे हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेंगे।
उन्होंने किसी क्रिया को प्रारंभ करने के पहले सामान्य क्रिया अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि भावयुक्त क्रिया फल देने वाली होती है। सामयिक से आत्मज्ञान करने में कर्म की निर्जरा होती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने भोजन को भी मनोयोग से करने की बात कही हैं। इससे किसी तरह की विडम्बना हमारे मन में नहीं आती। भाव क्रिया को जोडने से आत्मा उज्जवल होती है। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
पारिवारिक सौहार्द शिविर दो अगस्त से
समाज में अनवरत बढ रही वैमनस्यता, विघटनता और परिवार की एकलवृति को लेकर आगामी दो अगस्त से भिक्षु विहार में पारिवारिक सौहार्द शिविर का आयोजन किया जाएगा। मुनि किशन कुमार ने बताया कि तीन दिन तक रात आठ से दस बजे तक आयोजित होने वाले इस शिविर में आचार्य महाश्रमण सहित मुनि जन परिवार के विघटन को रोकने की दिशा में व्याख्यान देंगे। इस दौरान सौहार्द के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
व्यवस्था समिति ने लिया जायजा
आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास के दौरान बाहर से आने वाले धर्मावलम्बियों के ठहराव को लेकर बनी कोटडियों और यहां की व्यवस्थाओं की स्थिति को लेकर व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों ने जायजा लिया। समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी, उपाध्यक्ष बाबूलाल कोठारी, महामंत्री सुरेन्द्र कुमार कोठारी, संयुक्त महामंत्री मूलचंद मेहता, मंत्री लवेश मादरेचा, कुन्दन सामर, राजकुमार कोठारी, महेन्द्र कोठारी अपेक्ष, नरेन्द्र कोठारी, राजेन्द्र कोठारी, प्रकाश चपलोत ने कोटडियों मंे बिजली, पानी, सफाई, निर्माण, सुपरवाइजर आदि का जायजा लेकर सबंधित को व्यवस्थाएं सृदृढ करने के निर्देश दिए।
केलवा में दोहराया जाएगा इतिहासः आगामी सात सितम्बर को केलवा में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह को लेकर एक बार फिर ऐतिहासिक पलों की पुनरावृति होगी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि आज से 51 वर्ष पूर्व गुरुदेव आचार्य तुलसी तीन हजार किलोमीटर चलकर 8 जुलाई 1960 को केलवा पहुंचे। कोठारी ने आचार्य महाश्रमण से दीक्षा समारोह में 13 दीक्षा दिलाने का आग्रह किया। इस पर आचार्य ने कहा कि कुछ मुमुक्षु मारवाड अंचल के है। उनके परिजन उनकी दीक्षा वहीं दिलाना चाहते है। इसलिए अभी संख्या को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता।
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