Sunday, July 31, 2011

अंधकार में हो दीप जलाने का प्रयासः महाश्रमण

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जीवन में त्याग, संयम की चेतना जब जागृत हो जाती है तब भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं समाप्त हो जाती है। अणुव्रत आंदोलन एक ऐसा आंदोलन है जो नैतिकता की, संयम चेतना जगाने का कार्य कर रहा है। आचार्य तुलसी द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन को व्यापक सफलता मिली है। यह आंदोलन देश के शीर्ष नेताओं से लेकर अंतिम श्रेणी में जीने वाले व्यक्ति तक पहुंचा हैं। व्यक्ति में व्रत का थोडा अंश भी आ जाता है तो जीवन उत्थान की तरफ बढ जाता है। अणुव्रत आंदोलन के द्वारा मानव उत्थान का कार्य किया जाता है। यह आंदोलन भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं नशामुक्त चेतना को जगाने वाला भी है। आचार्य ने अन्ना हजारे के संकल्प शक्ति की सराहना करते हुए कहा कि हजारे की जब तक प्राण रहेंगे तब तक देश की सेवा करते रहने का संकल्प व्यक्त किया है। देश की सेवा के लिए प्राण देने का संकल्प व्यक्त कर रहे है। यह बहुत बडी बात है। मृत्यु से न डरने वाला ही अपने कार्य को सिद्ध करना जानता है और ऐसा संकल्प वही व्यक्ति कर सकता है जिसमें आत्म बल होता है, मनोबल होता है।
आचार्य ने कहा कि अन्नाजी के यह शब्द मेरे हृदय को छू गए है कि आप देश के लिए जीना चाहते है। इसके लिए प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार है। जीवन में संकल्प का बडा महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि अणुव्रत भी एक संकल्प है। आदमी अच्छा इंसान बन सकता हैै। उन्होंने गत दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज की चर्चा करते हुए कहा कि किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना भी एक सफलता है। अंधकार में रोशनी के लिए एक दीपक जलाने की आवश्यकता है। हिंसा और अपराध जगत की ओर पांव बढाने के तीन कारणों को स्पष्ट करते हुए आचार्य ने कहा कि व्यक्ति प्रायः अज्ञानता, अभाव और आवेश में आकर अपराध करता है। इससे सम्यक ज्ञान के विकास से निजात पाई जा सकती है। किसी व्यक्ति के जीवन में अभाव है तो उसका स्वभाव बिगड जाता है। भूखमरी भी हिंसा का एक महत्वपूर्ण कारण है। उन्होंने अभावों को दूर करने की अपेक्षा का आहृान करते हुए कहा कि इससे अपराध निरुद्ध हो सकता है। आचार्य ने कहा कि भ्रष्टाचार में केवल राजनीतिज्ञ ही लिप्त नहीं है। मुझे तो ऐसा कोई वर्ग नहीं दिख रहा जो भ्रष्टाचार में लिप्त ना हो। जहां पैसा है वहां भ्रष्टाचार है। इसलिए किसी वर्ग विशेष को दोषी नहीं मान सकते। हमें प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक करने का प्रयास करना होगा जब व्यक्ति जागरूक होगा तभी भ्रष्टाचार कम होगा।
भ्रष्टाचार एक दैत्य के समान
मंत्री मुनि सुमेरमल ने भ्रष्टाचार को एक दैत्य की संज्ञा देते हुए कहा कि यह मनोविकार रातों रात बढने वाला कीडा है। इस पर नियंत्रण करना आज के परिवेश में आवश्यक हो गया है। जो मानवता का सूत्र लेकर खडे हो तो वे इतिहास में अपना नाम अंकित कर लेते है। इसलिए पहले धार्मिक और फिर नैतिक बनने की आवश्यकता है। आचार्य तुलसी अणुव्रत के द्वारा मानव उत्थान का कार्य कर इतिहास पुरुष बने। उस कार्य को आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी मनीषा से शक्तिशाली बनाकर संघ को नई ऊंचाईयां प्रदान की। वर्तमान में आचार्य महाश्रमण उसी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए इस मेवाड की दुर्धम घाटियों में पदयात्रा की है और नशामुक्ति, भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं नैतिकता की अलख जलाई है। नैतिक दर्शन जीवन में आने से व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल बदलाव आ सकता है। आध्यात्मिकता का क्रम बनने से देश में नैतिकता का वातावरण बनेगा। मुनि सुखलाल ने कहा कि सारी प्रकृति एक व्यवस्था के अनुरूप चल रही है। इसे ठीक तरह से समझ लिया जाए तो शांति एवं आनंद का वातावरण बन सकता है। आचार्य तुलसी ने चरित्र की मजबूती पर बल देते हुए कहा था कि सुधरे व्यक्ति से समाज जागेगा। इससे देश का सुधार होगा। अणुव्रत भी सोए लोगांे का जगाने का उपक्रम है।
पूरे देश में भ्रष्टाचार का विष
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह से कहावत है कि पूरे कुएं में भांग है वैसे ही आज भ्रष्टाचार का जहर आम आदमी में फैल गया है। देश कठिनाईयों के दौर से गुजर रहा है। नैतिकता आधारहीन हो गई है। ऐसे में विकास की बात करना बेमानी है। पश्चिमी मूल्य अनवरत रूप से हावी होते जा रहे है और भारतीय मूल्य गौण हो गए है। जिस तरह समाज और परिवार में विघटन आ रहा है वह चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत का पदार्पण किया और आचार्य महाप्रज्ञ ने उसे आगे बढाया। अब आचार्य महाश्रमण ने बागडोर संभाल रखी है। इससे पूर्व मुनि नीरज ने संयममय जीवन हो गीत प्रस्तुत किया। स्वागत की रस्म अदा करते हुए व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने अणुव्रत की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि केलवा में भी नशामुक्ति का अभियान चल रहा है। इस अनुकरणीय कार्य में सभी समाजों का सहयोग मिल रहा हैं। अणुव्रत के विजयराज सुराणा ने समिति के उद्देश्यों की जानकारी दी। आगन्तुक अतिथियों का सम्मान निर्मल एम रांका, डॉ. बी एन पांडेय, जी एल नाहर, जुगराज नाहर, महेन्द्र कोठारी और सम्पत शामसुखा ने किया। अंत में आभार मुकेश डी कोठारी ने जताया।

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