Tuesday, July 26, 2011

सत्ता में आने के बाद अहंकारी न बनेः आचार्य महाश्रमण


केलवा : आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वह अपने मन में अहंकार के भाव का प्रवेश न होने दें। अहंकार स्वयं एवं समाज के लिए घातक है। जो लोग सत्ता में आते है उन्हें अहंकारी नहीं बनना चाहिए। विनम्रता के साथ व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने यह उद्गार कस्बे के तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में मंगलवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित पुण्य को परिभाषित करते हुए कहा कि मनुष्य की ओर से किए जाने वाले शुद्धकर्म से निर्जरा में आशातीत वृद्धि होती है। पुण्य को बंधन बताते हुए उन्होंने कहा कि पुण्य के साथ पाप का भी प्रादुर्भाव होता है। इसलिए साधक को ध्यान और साधना करते समय इससे प्रायः बचना चाहिए। उसे कभी किसी वस्तु की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। शुद्ध मन से की गई साधना से फल की प्राति अवश्य होती है। उन्होंने पाप कर्म के संदर्भ में कहा कि मन के भीतर कषाय उत्पन्न होने से इसकी उत्पति होती है। इसका दुष्प्रभाव मन को विचलित कर झकझौर देता है।
प्रबल पुण्य से मिलता तेरापंथ का आर्चायत्व
उन्होंने कहा कि प्रबल पुण्य से ही तेरापंथ जैसे शासन का आचार्य बनने का अवसर मिलता है। जो पुण्यशाली होता है उसकी बातों को समाज में तवज्जों दी जाती है। सब जगह सम्मान प्राप्त होता है। अन्यथा उसकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उपासक प्रशिक्षण शिविर में ज्ञान को ग्रहण कर रहे उपासक-उपासिकाओं से उन्होंने आहृान किया कि वे धर्म, साधना और ज्ञान से लोगों को लाभान्वित कराने की दृष्टि से गांव-गांव जाएंगे। ऐसी स्थिति में उनका व्यवहार विनम्रशील बनाना अत्यंत आवश्यक है। व्यवहार में शालीनता और विनम्रता का भाव छलकना चहिए। आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य ने कहा कि हमारा व्यवहार अच्छा हो तो सामने वाला भी प्रभावित होगा। व्यक्ति में अहिंसा का भाव होगा तो उसके दुश्मन के आचरण में भी परिवर्तन आ सकता है। वह भी उसकी अच्छी बातों को ग्रहण करने का प्रयास करेगा। हमारा व्यवहार अच्छा है तो सदाचार और गलत कार्य करने से कदाचार की स्थिति पैदा होती है। कदाचार को छोड सदाचार को अपनाने पर ध्यान दें।
सतत् साधना करने की आवश्यकता
मंत्री मुनि सुमरेमल ने साधना, ध्यान और आराधना की प्रक्रिया को सतत् रखने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि एक ही क्रिया सघनता से करने से हमें आत्मानुभूति का अहसास होता है। बाहरी और दिखावे के तौर पर की गई साधना से किसी तरह की फल की आशा करना बेमानी है। हम भीतर से अपने मन को ज्ञान रुपी खजाने से मजबूत बनाएंगे तो इसकी जीवन में श्रेष्ठ अनुभूति होगी। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे श्रेष्ठ संस्कारों को अपने जीवन में उतारकर सतत् धारा से उपासना करें और आगे बढे। इस दौरान तेरापंथ महिला मंडल भीलवाडा की सदस्याओं ने गीत प्रस्तुत किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
अणुव्रत समिति ने ली शपथ
अणुव्रत समिति केलवा की नवगठित कार्यकारिणी को महासमिति के संरक्षक डॉ. महेन्द्र कर्णावट ने आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में शपथ दिलाई। अणुव्रत प्रभारी मुनि सुखलाल स्वामी की प्रेरणा से गठित कार्यकारिणी में अध्यक्ष मुकेश डी कोठारी, उपाध्यक्ष रामलाल तेली, रजनीश बोहरा, श्रीमती रेखा सिंघवी, मंत्री रुपेन्द्र बोहरा, सहमंत्री गौतम कोठारी, किरण कोठारी, कोषाध्यक्ष भगवती लाल आंचलिया, संगठन मंत्री नीलेश बोहरा, श्रीमती रत्ना कोठारी, नशामुक्ति संयोजक खुशाल बोहरा सहसंयोजिका जयश्री बोहरा सहित अन्य पदाधिकारियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
’सृष्टि अनादि अनंत है’
तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा आयोजित जैन विद्या कार्यशाला में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि सृष्टि अनादि अनंत है। इसका न तो कोई कर्ता है और न ही यह नष्ट होती है। उन्होंने कहा कि कार्यशाला ज्ञान वृद्धि का माध्यम है। इसमें जिज्ञासा समाधान भी होता है, जो ज्ञान की गहराई को भी बढाता है। करें लोक की यात्रा विषय पर प्रशिक्षण देते हुए मुनि योगेश कुमार ने कहा कि छह द्रव्यों का जहां समावेश होता है वह लोक है। छह द्रव्य है धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुदगलास्तिका एवं जीवास्तिकाय। इन द्रव्यों में प्रथम तीन द्रव्य एक ही है तो अंतिम तीन अनंत है। इनमें केवल पुदगलास्तिकाय ही आंखों का विषय बनता है। बाकी सभी अरुपी है। आंखों से देख नहीं सकते है। मुनि ने सृष्टि के संदर्भ में वैज्ञानिक अवधारणों का विश्लेषण करते हुए जैन दर्शन के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला। राकेश सांखला व रीना बोहरा ने गीतों की प्रस्तुति दी। संचालन मुनि जयंत कुमार ने किया।

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