Saturday, July 23, 2011

षिक्षा में सृजनशीलता, नैतिकता एवं अध्यात्म का समावेष हो - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

सपने देखने वाले ही आगे बढ़ते हैं क्योंकि सपनों से विचार बनते हैं, विचार से क्रिया का जन्म होता है। क्रिया से व्यवहार बनता है और व्यवहार ही इंसान की पहचान है। जैसा इंसान होगा, वैसा ही समाज एवं राष्ट्र का निर्माण होगा। ऐसा ही सपना अणुविभा के संस्थापक मोहनभाई ने साकार किया है जो ’षिक्षा व नैतिक मूल्यों के समन्वय की जीवन्त प्रयोगषाला है’ ।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अणुव्रत विष्व भारती में आयोजित ’वर्तमान षिक्षा पद्धति और विद्यालयों में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का प्रषिक्षण’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्यार्थियों, षिक्षकों एवं अभिभावकों को संबोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किये। उन्होंने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बालकों में ऐसा साहस होना चाहिये कि वे स्वयं के विकास का मार्ग पहचान सके, उसे खोजपूर्ण तरीकों से विकसित कर सके। उन्होंने रचनात्मकता, तेजस्विता और साहस को ज्ञानार्जन का मूल मंत्र बताया। संगोष्ठी में उपस्थित षिक्षकों से डॉ. कलाम ने आग्रह किया कि षिक्षा में सृजनषीलता एवं नैतिक मूल्यों का सम्मिश्रण हो। षिक्षक अपने ज्ञान को बालकों पर थोपे नहीं वरन बालक की रुचि एवं जिज्ञासा के अनुरूप उनका पथ प्रषस्त करें।

डॉ. कलाम ने राष्ट्रीय नैतिकता के विभिन्न आयामांेे की स्थापना हेतु परिवार एवं समाज को भी उत्तरदायी बताया क्योंकि अभिभावकों के गुण ही बालकों में परिलक्षित होते है। डॉ. कलाम ने अपने वक्तव्य के सारांष में कहा कि षिक्षा वास्तव में सत्य को आत्मसात करना है। षिक्षा, ज्ञान और अध्यात्म का अनन्त सफर है जो कि मानवता के विकास में ’माइल स्टोन’ की तरह है। सही षिक्षा ही मानवता की पहचान है जो उसके आत्मसम्मान को बढ़ाती है।

डॉ. कलाम ने इस अवसर पर ’स्कूल विद ए डिफरेन्स’ प्रायोजना के शुभारम्भ की हस्ताक्षर कर विधिवत घोषणा की। उन्होंने आषा व्यक्त की कि यह प्रायोजना षिक्षा में नैतिक मूल्यों की स्थापना का सषक्त माध्यम बन सकेगी। बालमुकुन्द सनाढ्य, प्रकाष तातेड़ एवं नरेन्द्र निर्मल ने योजना का घोषणा पत्र डॉ. कलाम को प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. कलाम द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। अणुविभा के अध्यक्ष टी. के. जैन ने स्वागत शब्द प्रस्तुत किये। अणुविभा के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एस.एल. गांधी ने अणुविभा की स्थापना के उद्देष्य और इतिहास को रेखांकित किया।

डॉ. कलाम 10.00 बजंे अणुव्र्रत विष्व भारती पहुंचे जहां अणुविभा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्त्ताओं ने माल्यार्पण एवं तिलक द्वारा उनका स्वागत किया। श्री टी. के. जैन, डॉ. एस.एल. गांधी एवं संचय जैन ने डॉ. कलाम को ’चिल्ड्रन्स पीस पेलेस’ स्थित विभिन्न कक्षों व दीर्घाओं का अवलोकन कराया जहाँ विद्यार्थी बालोदय षिविर के अन्तर्गत कक्षानुरूप गतिविधियां कर रहे थे। डॉ. कलाम ने सर्वप्रथम तुलसी अणुव्रत दर्षन, महाप्रज्ञ अहिंसा दर्षन का अवलोकन किया एवं यहां प्रदर्षित प्रेरक चित्र प्रदर्षनी योगा मोड्ल्स को देखा। इसके बाद विष्व दर्षन दीर्घा, पुस्तकालय व विज्ञान कक्ष का अवलोकन किया। यहां डॉ. कलाम ने विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों रुचिपूर्वक देखा एवं बच्चों से संवाद किया। संग्रहालय, गुड़ियाघर, महापुरूष जीवन दर्षन आदि कक्षों के द्वारा बच्चों में किस प्रकार मूल्य बोध विकसित किया जाता है, इसे डॉ. कलाम ने गहराई से समझा। बच्चों का जीवन विज्ञान कक्ष में महाप्राण ध्वनि करते हुए डॉ. कलाम कुछ क्षणों तक मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे। अन्त में डॉ. कलाम बाल संसद पहुंचे जहां बच्चों की मोक पार्लियामेण्ट चल रही थी। यहां कलाम बच्चें के बीच एक सीट पर बैठ गये एवं बाल संसद की पूरी कार्यवाही को देखा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यहां जिस शालीनता व अनुषासन के साथ संसद की कार्यवाही चलती है वैसा मैंने दिल्ली की संसद मंे नहीं देखा। बालोदय दीर्घाओं को देखकर डॉ. कलाम अभिभूत थे और उन्होंने कहा कि बच्चों के विकास के लिए एक अद्भूत केन्द्र है।

डॉ. कलाम ने अणुविभा के संस्थापक मोहनभाई को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन अणुविभा के महामंत्री संचय जैन किया। इस कार्यक्रम में अणुव्रत बालोदय के अध्यक्ष हंसमुख मेहता, कार्याध्यक्ष बालोदय सुरेष कावड़िया, मंत्री बालोदय अषोक डूंगरवाल, जिला षिक्षा अधिकारी राकेष तैलंग, जगजीवन चौरड़िया, गणेष कच्छारा आदि अनेक गणमान्य नागरिक एवं अधिकारी उपस्थित हुए। श्रीमती प्रकाषदेवी तातेड़, बाबुलाल राठोड़ एवं रमेष बोहरा ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। गणेष कच्छारा ने स्मृति चिन्ह प्रदान किया, नरेष मेहता ने साहित्य एवं जगजीवन चौरड़िया व अषोक डूंगरवाल ने मवाड़ी पगड़ी व उपरना भेंट कर स्वागत किया।

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