Tuesday, July 19, 2011

निर्मलता के बिना मोक्ष का मार्ग आसान नहींः आचार्य महाश्रमण

केलवा में चातुर्मास कार्यक्रम, सोमवार रात को आयोजित हुई कार्यशालाबुधवार को होगी उपासना प्रशिक्षण शिविर के लिए प्रवेश परीक्षा
मन में निर्मल चेतना का भाव और आज के भौतिकतावादी परिवेश से परिपूर्ण जीवन को त्यागने की क्षमता मनुष्य में हो तो उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति अवष्य होती है। एकाग्रचित्त होकर की गई साधना से भी मोक्ष मार्ग के द्वार स्वतः ही खुल जाते है। यह उद्गार आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को केलवा में भिक्षु विहार में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्हांेने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित निर्मल चेतना के संदर्भ में कहा कि जिस मनुष्यके चित्त में निर्मल का भाव नहीं हैं और जो वर्तमान जीवन के भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड नहीं सकता। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया- मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा। आचार्य ने जाति स्मृति ज्ञान की व्याख्या करते हुए कहा कि संधि अवस्था में होने वाला ज्ञान पिछले जन्म के दौरान किए गए रचनात्मक कार्यांे से मिल सकता हैं। जाति के तीन कारणों के संदर्भ में उन्हांेने कहा कि तीर्थंकर के माध्यम से प्राप्त होने वाली जानकारी से पूर्व जन्म में किए गए कार्यों और धर्म का ज्ञान हो सकता हैं। यही नहीं तीर्थंकर की बातों को सुनकर आए किसी अन्य व्यक्ति की बातों से भी इस तरह का ज्ञान मिल सकता हैं। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से अपने परिवार को स्वर्ग बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि मनुष्य में किसी प्रकार का ज्ञान हो अथवा ना हो, लेकिन उसे साधना अवष्य करनी चाहिए। परिवार स्वर्ग तभी बन सकता हैं जब पति-पत्नी, भाई-भाई, पिता-पुत्र में किसी तरह का राग द्वेष न हो। उनमें संपत्ति इत्यादि को लेकर किसी तरह खींचतान का भाव ना हो, क्यों कि इस तरह के भाव जीवन में आने से घर का वातावरण स्वर्ग की बजाय नरक बन जाता है। दो भाईयों के बीच संपत्ति को लेकर छिडे विवाद का उदाहरण देते हुए उन्हांेने कहा कि कोई भी परिवार स्वर्ग की राह पर तभी चल सकता है जब सदस्यों में कटुता के भाव का समावेश न हो। परिवार में संस्कार अच्छे होना आवष्यक है। इसके बिना अच्छे परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती। संस्कारित जीवन के अभाव में कलह, विपत्ति, नशाखोरी और परस्पर झगडे की नौबत हमेशा बनी रहेगी। आचार्य ने पांडाल में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं से आग्रह किया कि वे परिवार की सुख शांति के लिए भौतिक लालसाओं का परित्याग कर जीवन का कुछ समय उपासना में लगाएं, क्योंकि धार्मिकता के साथ साधना भी आवष्यक हैं। स्वर्ग सुख और शांति का प्रतीक हैं। मोक्ष में जाना बडी बात है। इसके लिए वर्तमान को न देखें, बल्कि यह देखें कि साधना निर्मल है या नहीं। व्यवहार में लाएं मधुरतामंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से अपने रोजमर्रा के जीवन में मधुरता लाने का आग्रह करते हुए कहा कि मनुष्य की पहचान उसके कार्यों, बोलचाल, रहन-सहन से होती है। ऐसे में यदि वह असभ्य बातों का उच्चारण अपने जीवन में करेगा तो उसका असर परिवार के साथ समाज पर भी पडेगा। इससे बचने के लिए वे अपने घर का वातावरण धर्ममय बनाने की दिशा में पहल करे। दैनिक जीवन में धार्मिक क्रिया की पहल की जाए तो देवता भी उस घर में निवास करते हैं। कलह से भरे वातावरण में देवता भी आने से कतराते हैं। इसलिए चिन्तन करने की महत्ती आवष्यकता है क्यों कि धर्म देखने की नहीं वरन् जीने की वस्तु हैं। उन्होंने हिंसा को अनावष्यक बताते हुए लोगों को इससे सदा परे रहने का आग्रह किया। उपासक प्रशिक्षण शिविर बुधवार से मुनि योगेश कुमार ने कार्यक्रम के दौरान बुधवार से शुरु हो रहे उपासक प्रशिक्षण शिविर की जानकारी दी। उन्हांेने बताया कि इस शिविर में शामिल होने से पूर्व दोपहर एक बजे प्रवेश परीक्षा होगी। इसमें 70 फीसदी अंक प्राप्त करने वाले संभागी दस दिन तक चलने वाले शिविर में शिरकत कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 270 उपासक जुडे हुए है और देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा कर चुके है। अंत में मंगलगान हुआ। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया। जैन विद्या कार्यशाला का आयोजनइससे पूर्व सोमवार रात को तेरापंथ युवक परिषद् की ओर से आयोजित जैन विद्या कार्यशाला में जैन धर्म महान क्यों ? विषय पर चर्चा की गई। इस दौरान आचार्य महाश्रमण ने कहा कि राग, द्वेष, विजेता, अनंतज्ञान से संपन्न साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चार तीर्थों की स्थापना करने वाले तीर्थंकर जिन कहलाते हैं। उन्होंने आज के युग को बुद्धि और तर्क की संज्ञा देते हुए आचार्य तुलसी के ष्लोक के माध्यम से जैनधर्म की महानता को परिभाषित किया। साथ ही सात मानकों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यशाला के प्रशिक्षक मुनि दिनेश कुमार ने आयोजन की उपादेयता और आज के परिवेश में इसकी आवष्यकता पर प्रकाश डाला। रात साढे नौ बजे तक चली कार्यशाला में व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी व तेरापंथ यु.प.के अध्यक्ष विकास कोठारी ने आचार्य महाश्रमण को कीट भेट किया। इस दौरान तेरापंथ यु.प.के मंत्री लक्की कोठारी सहित सदस्य मौजूद थे।

No comments: