Tuesday, April 6, 2010

बढे तो कहां गए श्याहगोश !

कुंभलगढ। अभयारण्यों में गत वर्ष की वन्यजीव गणना के आंकडों मे विरोधाभास सामने आने से संशय की स्थिति पैदा हो गई है। वर्ष 1996 से 2004 के बीच हुई वन्यजीव गणना के वन विभाग के आंकडों में अभयारण्य में एक भी श्याहगोश (फेलिफ केरेकल-जंगली बिल्ली की एक प्रजाति) की उपस्थिति नहीं दर्शाई गई जबकि 2005 की गणना में अचानक एक श्याहगोश की उपस्थिति दर्ज हुई।
वर्ष 2007 की गणना में श्याहगोश की संख्या बढकर एकाएक 12 होना दर्शा दिया गया, लेकिन 2008 की गणना में यह संख्या 12 से घटकर मात्र 3 रह गई। यानी एक साल में वृद्धि की बजाय 9 श्याहगोश घट गए। मई 2009 की गणना में इनकी संख्या यथावत है।
सैलानियों को क्यों नहीं दिखते!
वन विभाग के आंकडों के मुताबिक अभयारण्य में 87 पैंथर हैं। यही नहीं सियार, जरख, जंगली बिल्ली, भालू, सांभर, चौसिंगा, जंगली सूअर, सेही, रेड स्पर फ्राउ सहित कई जानवर फेहरिस्त में शामिल हैं। आलम यह है कि कई वन अधिकारियो को भी अभयारण्य में इन जानवरों को देखे अरसा बीत गया है।
आंकडों में ही दिखते हैं जानवर
हर वर्ष वन विभाग वन्यजीवों की गणना कर कभी दो माह तो कभी एक वर्ष बाद आंकडे सार्वजनिक करता है। गणना में आने वाले जानवरों के नाम सिर्फ आंकडों में ही दिखते हैं। अभयारण्य की सैर करने वाले पर्यटकों को कभी जंगली मुर्गा तो कभी रोजडा देखकर तसल्ली करनी पडती है, जबकि वन विभाग के वन्यजीव आंकडो में जंगली जानवरों की भरमार दिखती है।
वन्यजीव गणना केवल वॉटर होल पर आने वाले जानवरों की होती है। हो सकता है, उस दौरान श्याहगोश का जोडा वहां नहीं आया हो। आंकडो में दर्शाए गए जानवर लम्बे-चौडे अभयारण्य में विचरण करते हैं।
भंवरसिंह चौहान, क्षेत्रीय वन अधिकारी


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