आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं सहित राजनीति से जुडे लोगों से आहृान किया कि वे समाज ओर देश को विकास की धारा पर ले जाने के लिए कथनी और करनी में भेद नहीं बल्कि समानता रखें। उन्होंने कथनी को मीठी खांड अर्थात शक्कर के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि हम मीेठे वाक चातुर्य से बातें तो अच्छी-अच्छी कर लेते है। साथ ही समस्याओं के निदान का आश्वासन भी दे देते हैं, लेकिन जब कथनी को करनी में बदलने की बारी आती है तो कदम पीछे की ओर बढने लगते है। ऐसा जीवन में नहीं होना चाहिए। यदि कोई काम नहीं हो सकता तो उसके बारे में कुछ कहना गलत है। आचार्य ने यह उद्गार मंगलवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि राजनीति सेवा का माध्यम है। बहुत से लोग सेवा करते है। जनता की समस्याएं सुनते है। उनका यथा संभव समाधान करने का प्रयास करते है। सब जगह यह क्रम चलता हो या शुद्धि हो। यह तो नहीं कहता। कहीं अशुद्धि भी हो सकती है। राजनीति के स्वार्थ से उपर उठकर परार्थ की दृष्टि से ही लेना चाहिए। जो सेवा का दायित्व मिला है उसे पूरा करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि जो मनुष्य कर्मबंध में रहते है उसी की आत्मा के कर्म का बंध होता है। आत्मा हमेशा जन्म लेती है और व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका शरीर त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। आत्मा की शुद्धि प्रायः बनी रहे। इसके लिए मनुष्य को धर्म, साधना, तपस्या और आराधना करने की आवश्यकता है। शुभ कर्मों के बंधन को स्वर्ण की बेडियों के समान बताते हुए उन्होंने कहा कि शुभ कर्म की बंधन हैं, लेकिन इनसे इतना खतरा नहीं है जितना धाती कर्मों के बंधन में है। यह मानव की चेतना, ध्यान, उपासना को बाधित करते है।
अशुभ कर्मों से मुक्ति के लिए शुद्ध आचार-विचार पर ध्यान देने की आवश्यकता है, तभी वह घर शुद्ध होगा। जिसके वचन में नैतिकता, तपस्या और साधना का भाव होगा उसे अश्वमेव यज्ञ से भी बडा माना गया है। बुरे आचरण अशुभ कर्मों को को गति देते है। इनसे बचने की आवश्यकता है।
जैसा हमारा चित, वैसी हो बात
आचार्य ने कहा कि जैसा हमारा चित होगा वैसी ही भावना हमारे मन में विद्यमान रहेगी। इसलिए चित को धार्मिक बनाने की आवश्यकता है, ताकि मन विकारों से ग्रसित न हो। पाप कर्म करने की ओर ध्यान आकृष्ट न हो। हमारी वाणी में जो बात हो वही आचरण में भी नजर आए। एकता का रूप हो। इसकी कमी से व्यवहार में कुटिलता, झूठ, कपट की स्थिति बन सकती है। हमें इस तरह के व्यवहार से बचना चाहिए। किसी का भाव, भावना शुद्ध है तो उसे अगली गति में अन्य स्थिति प्राप्त होती हैं। गलत बातों को मन में स्थान न दें। उन्होंने कहा कि गलत राह पर जाने वाले व्यक्ति को सदाचार के मार्ग पर ले जाना भी एक सेवा है। दुखी का दुख दूर करने और उसे सहारा देने का प्रयास सामाजिक सेवा हैं। स्वयं के जीवन में स्वार्थ का बोध आने से रोंके और परमार्थ की ओर जीवन को ले जाने के उपायों को अपनाने का श्रम करें। साथ ही परमार्थ की चेतना आत्म कल्याण के लिए हो। इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है।
व्यवहार में हो शालीनता का पुट
मंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से जीवन में शालीनता का पुट लाने का आहृान करते हुए कहा कि मनुष्य की पहचान उसके कार्यों, बोलचाल, रहन-सहन से होती है। ऐसे में यदि वह असभ्य बातों का उच्चारण अपने जीवन में करेगा तो उसका असर परिवार के साथ समाज पर भी पडेगा। इससे बचने के लिए वे अपने घर का वातावरण धर्ममय बनाए। दैनिक जीवन में धार्मिक क्रिया की पहल की जाए तो देवता भी उस घर में निवास करते हैं। धर्म देखने की नहीं वरन् जीने की वस्तु हैं। हिंसा को अनावश्यक बताते हुए उन्होंने लोगों को इससे सदा दूर रहने की सलाह दी।
’पीडित की सेवा सबसे बडा धर्म’
प्रदेश के सार्वजनिक निर्माण मंत्री प्रमोद जैन ’भाया’ ने पीडित मानवता की सेवा को सबसे बडा धर्म बताते हुए कहा कि आज वे जिस मुकाम तक पहुंचे है उसके पीछे सबसे बडा हाथ पीडितों की सेवा के बाद मिले पुण्य का प्रताप है। उन्होंने प्रवचन के दौरान उपस्थित लोगांे से कहा कि वे अपने जीवन का कुछ अंश दुखी व्यक्तियों की सेवा में लगाने का प्रयास करे। इससे आत्मा की अनुभूति होगी और पीडित को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष उन्होंने अपने बारां जिले में सर्वधर्म समाज के साढे सात सौ वर-वधुओं का विवाह स्वयं के ट्रस्ट के माध्यम से करवाया था। इस वर्ष 5 मई को यह आंकडा बाईस सौ से अधिक जा पहुंचा। अब इसे ओर ज्यादा करने के लिए पत्नी उर्मिला जैन सहित ट्रस्ट के पदाधिकारियों के साथ जुटे हुए है। मंत्री जैन ने आचार्य महाश्रमण से आशीर्वाद भी लिया।
नशा नहीं करने का संकल्प दिलाया
कार्यक्रम के दौरान महाप्रज्ञ सेवा प्रकल्प और गुलाब कौशल्या ट्रस्ट, जयपुर की ओर से फुट प्राप्त करने वाले विकलांगों को आचार्य महाश्रमण ने व्यसन से दूर रहने, हिंसा नहीं करने, झगडे से दूर रहने और नशे का आज से ही त्याग करने का संकल्प दिलाया। ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं प्रधान ट्रस्टी नरेश मेहता ने ट्रस्ट की ओर से पीडित मानवता की सेवा के लिए चलाए जा रहे अभियानों की विस्तार से जानकारी दी। साथ ही बताया कि एक हजार फुट देने के लक्ष्य के मुकाबले अब तक साढे सात सौ विकलांगों को इसका वितरण किया जा चुका है। प्रारंभ में व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने आगन्तुक अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि केलवा वही धर्म नगरी है, जहां से तेरापंथ का प्रादुर्भाव हुआ था। यहां पर 191 वर्ष बाद लोगों को चातुर्मास का लाभ मिल रहा है। इससे पहले आचार्य भारीमल का चातुर्मास हुआ था। तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने विकलांग शिविर की जानकारी दी। अंत में व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी ने आभार की रस्म अदा की।
कार्यक्रम में जिला कलक्टर प्रीतम बी यशवंत, बारां के जिला प्रमुख रामचरण, सुबोध जैन, पीडब्लयूडी के एसीई अनिल शर्मा आदि भी मौजूद थे। संचालन महाप्रज्ञ सेवा प्रकल्प के मंत्री राकेश नौलखा ने किया।
स्कूलों में देंगे निःशुल्क प्रतियां
चारभुजा क्षेत्र के लांबोडी निवासी श्रद्धानिष्ठ श्रावक तखतमल धोखा की ओर से राजसमंद जिले के 101 माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तकालय के लिए तीन साल तक अणुव्रत पत्रिका की निःशुल्क प्रतियां दी जाएगी। इस आशय की घोषणा उन्होंने किशन मेवाडा के अथक प्रयासों के बाद मंगलवार को अणुव्रत अधिवेशन के समापन अवसर पर की।
उन्होंने कहा कि राजनीति सेवा का माध्यम है। बहुत से लोग सेवा करते है। जनता की समस्याएं सुनते है। उनका यथा संभव समाधान करने का प्रयास करते है। सब जगह यह क्रम चलता हो या शुद्धि हो। यह तो नहीं कहता। कहीं अशुद्धि भी हो सकती है। राजनीति के स्वार्थ से उपर उठकर परार्थ की दृष्टि से ही लेना चाहिए। जो सेवा का दायित्व मिला है उसे पूरा करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि जो मनुष्य कर्मबंध में रहते है उसी की आत्मा के कर्म का बंध होता है। आत्मा हमेशा जन्म लेती है और व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका शरीर त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। आत्मा की शुद्धि प्रायः बनी रहे। इसके लिए मनुष्य को धर्म, साधना, तपस्या और आराधना करने की आवश्यकता है। शुभ कर्मों के बंधन को स्वर्ण की बेडियों के समान बताते हुए उन्होंने कहा कि शुभ कर्म की बंधन हैं, लेकिन इनसे इतना खतरा नहीं है जितना धाती कर्मों के बंधन में है। यह मानव की चेतना, ध्यान, उपासना को बाधित करते है।
अशुभ कर्मों से मुक्ति के लिए शुद्ध आचार-विचार पर ध्यान देने की आवश्यकता है, तभी वह घर शुद्ध होगा। जिसके वचन में नैतिकता, तपस्या और साधना का भाव होगा उसे अश्वमेव यज्ञ से भी बडा माना गया है। बुरे आचरण अशुभ कर्मों को को गति देते है। इनसे बचने की आवश्यकता है।
जैसा हमारा चित, वैसी हो बात
आचार्य ने कहा कि जैसा हमारा चित होगा वैसी ही भावना हमारे मन में विद्यमान रहेगी। इसलिए चित को धार्मिक बनाने की आवश्यकता है, ताकि मन विकारों से ग्रसित न हो। पाप कर्म करने की ओर ध्यान आकृष्ट न हो। हमारी वाणी में जो बात हो वही आचरण में भी नजर आए। एकता का रूप हो। इसकी कमी से व्यवहार में कुटिलता, झूठ, कपट की स्थिति बन सकती है। हमें इस तरह के व्यवहार से बचना चाहिए। किसी का भाव, भावना शुद्ध है तो उसे अगली गति में अन्य स्थिति प्राप्त होती हैं। गलत बातों को मन में स्थान न दें। उन्होंने कहा कि गलत राह पर जाने वाले व्यक्ति को सदाचार के मार्ग पर ले जाना भी एक सेवा है। दुखी का दुख दूर करने और उसे सहारा देने का प्रयास सामाजिक सेवा हैं। स्वयं के जीवन में स्वार्थ का बोध आने से रोंके और परमार्थ की ओर जीवन को ले जाने के उपायों को अपनाने का श्रम करें। साथ ही परमार्थ की चेतना आत्म कल्याण के लिए हो। इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है।
व्यवहार में हो शालीनता का पुट
मंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से जीवन में शालीनता का पुट लाने का आहृान करते हुए कहा कि मनुष्य की पहचान उसके कार्यों, बोलचाल, रहन-सहन से होती है। ऐसे में यदि वह असभ्य बातों का उच्चारण अपने जीवन में करेगा तो उसका असर परिवार के साथ समाज पर भी पडेगा। इससे बचने के लिए वे अपने घर का वातावरण धर्ममय बनाए। दैनिक जीवन में धार्मिक क्रिया की पहल की जाए तो देवता भी उस घर में निवास करते हैं। धर्म देखने की नहीं वरन् जीने की वस्तु हैं। हिंसा को अनावश्यक बताते हुए उन्होंने लोगों को इससे सदा दूर रहने की सलाह दी।
’पीडित की सेवा सबसे बडा धर्म’
प्रदेश के सार्वजनिक निर्माण मंत्री प्रमोद जैन ’भाया’ ने पीडित मानवता की सेवा को सबसे बडा धर्म बताते हुए कहा कि आज वे जिस मुकाम तक पहुंचे है उसके पीछे सबसे बडा हाथ पीडितों की सेवा के बाद मिले पुण्य का प्रताप है। उन्होंने प्रवचन के दौरान उपस्थित लोगांे से कहा कि वे अपने जीवन का कुछ अंश दुखी व्यक्तियों की सेवा में लगाने का प्रयास करे। इससे आत्मा की अनुभूति होगी और पीडित को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष उन्होंने अपने बारां जिले में सर्वधर्म समाज के साढे सात सौ वर-वधुओं का विवाह स्वयं के ट्रस्ट के माध्यम से करवाया था। इस वर्ष 5 मई को यह आंकडा बाईस सौ से अधिक जा पहुंचा। अब इसे ओर ज्यादा करने के लिए पत्नी उर्मिला जैन सहित ट्रस्ट के पदाधिकारियों के साथ जुटे हुए है। मंत्री जैन ने आचार्य महाश्रमण से आशीर्वाद भी लिया।
नशा नहीं करने का संकल्प दिलाया
कार्यक्रम के दौरान महाप्रज्ञ सेवा प्रकल्प और गुलाब कौशल्या ट्रस्ट, जयपुर की ओर से फुट प्राप्त करने वाले विकलांगों को आचार्य महाश्रमण ने व्यसन से दूर रहने, हिंसा नहीं करने, झगडे से दूर रहने और नशे का आज से ही त्याग करने का संकल्प दिलाया। ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं प्रधान ट्रस्टी नरेश मेहता ने ट्रस्ट की ओर से पीडित मानवता की सेवा के लिए चलाए जा रहे अभियानों की विस्तार से जानकारी दी। साथ ही बताया कि एक हजार फुट देने के लक्ष्य के मुकाबले अब तक साढे सात सौ विकलांगों को इसका वितरण किया जा चुका है। प्रारंभ में व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने आगन्तुक अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि केलवा वही धर्म नगरी है, जहां से तेरापंथ का प्रादुर्भाव हुआ था। यहां पर 191 वर्ष बाद लोगों को चातुर्मास का लाभ मिल रहा है। इससे पहले आचार्य भारीमल का चातुर्मास हुआ था। तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने विकलांग शिविर की जानकारी दी। अंत में व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी ने आभार की रस्म अदा की।
कार्यक्रम में जिला कलक्टर प्रीतम बी यशवंत, बारां के जिला प्रमुख रामचरण, सुबोध जैन, पीडब्लयूडी के एसीई अनिल शर्मा आदि भी मौजूद थे। संचालन महाप्रज्ञ सेवा प्रकल्प के मंत्री राकेश नौलखा ने किया।
स्कूलों में देंगे निःशुल्क प्रतियां
चारभुजा क्षेत्र के लांबोडी निवासी श्रद्धानिष्ठ श्रावक तखतमल धोखा की ओर से राजसमंद जिले के 101 माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तकालय के लिए तीन साल तक अणुव्रत पत्रिका की निःशुल्क प्रतियां दी जाएगी। इस आशय की घोषणा उन्होंने किशन मेवाडा के अथक प्रयासों के बाद मंगलवार को अणुव्रत अधिवेशन के समापन अवसर पर की।
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