Monday, August 1, 2011

शासन में बनें अहिंसा की नीतिः महाश्रमण


आचार्य महाश्रमण ने देश सहित राज्यों में शासन चलाने वालों से आहृान किया कि वे अहिंसा की नीति को अपनी अन्य नीतियों के समान प्रभावी बनाने की दिशा में योजना को मूर्तरुप दें। उन्होंने शुद्ध नीति की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वार्थ की नीति में फंसने से उन्हें आरोप-प्रत्यारोप का सामना भी करना पड सकता है। अहिंसा धर्म नीति तो है ही यह कुटनीति भी है। इसे शासन के साथ राजनीति में भी शामिल करने का प्रयास होना चाहिए। साथ ही परिवारों की भी निर्धारित आचार संहिता हो। आचार्य ने यह उद्गार सोमवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि किसी भी शासन की सफलता उस प्रांत अथवा राज्य की जनता के विश्वास पर टिकी होती है। जनता अविश्वासी हो गई तो मानो सब कुछ समाप्त। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्मों का परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि समस्त कमो्रं को आठ वर्गीकरण में बांटा गया है। आठों कर्म अशुभ है ही, लेकिन नेक कर्म के कारण चार कर्मों को शुभ भी माना है। जीवन व्यवहार में धार्मिकता का पुट होगा तो आचरण और व्यवहार में परिवर्तन आएगा। आयुष्य कर्म में अच्छी वस्तुओं का जीवन में समावेश होगा। मोहत्मक कर्म में आसक्तिपूर्ण व्यवहार से अशुभबंध का बंधन होने की संभावनाएं बनी रहती है। मैं और मेरा परिवार की अभिलाषा मोहकर्म का उजागर करती है और अमोह की आकांक्षा मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। व्यक्ति को व्यवहार में अहिंसा का प्रयोग करने की आवश्यकता है। साथ ही यह विचार करंे कि क्यूं मैं मोह कर्म में जाऊं और धर्म से दूरियां बनाऊं, क्यों न संयम से ओत प्रोत जीवन का निर्वाह करुं। आसक्ति प्रबल होने से पाप का उदय होता है। इससे त्रस्त व्यक्ति अपराध, हिंसा के पथ पर अग्रसर हो सकता है।
उन्होंने अनाशक्ति को धार्मिक भावना से महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि व्यक्ति स्वयं सहित परिवार में जीवन को जीने का तरीका ईजाद करें और संयम की चेतनायुक्त जीवन का निर्वाह करने का प्रयास करें। संस्कृत शास्त्रों में वर्णित है कि व्यक्ति का मन संकल्पशील बने।
इससे व्यवहार व आचार में मृदुता के भाव का समावेश होगा। यह वांछनीय भी है। हमारा जीवन संकल्प व्यवहार से परिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को स्वयं अथवा परिवार के समक्ष यदा कदा उत्पन्न होने वाली समस्याओं से परेशान नहीं होना चाहिए। वे ध्यान, संयम, साधना और तप की ओर मन लगाने का प्रयास करें। महापुरुषों के जीवन में भी आए कठिनाईयों के दौर का उदाहरण देते हुए आचार्य ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में संघर्ष आते हैं, महापुरुष भी इससे अछूते नहीं रहते। परेशानियों के कारण डिप्रेशन अर्थात मानसिक अवसाद में आने की आवश्यकता नहीं हैं। जहां क्षमा है वहां पाप कर्म से बचा जा सकता है और जहां मोह का भाव है वहां पाप भी चिपकने के लिए आतुर रहते है। इनसे बचते हुए मनुष्य निर्मोह का अभ्यास कर जीवन को कल्याणमय बनाए और कर्मों के बंधन से मुक्त होने का प्रयास करें।
घर को बनाएं स्वर्ग
मंत्री मुनि सुमेरमल ने श्रावक-श्राविकाओं से अपना घर और वातावरण धर्ममय बनाने का आहृान करते हुए कहा कि इससे घर स्वर्ग बनेगा और देवता भी उस घर में आने की इच्छा रखते है। जो धार्मिक होते है। वे यदा कदा सोचते है कि धर्म करने के लिए मनुष्य का शरीर धारण करना होगा। वे यह भी इच्छा रखते है कि अनवरत साधना, तप और उपासना में तल्लीन रहने वाले परिवार में उनका जन्म हो, ताकि वे पुर्नजीवित हो जाए। जिस घर में झगडा, विकार, हिंसा का वातावरण होगा वहां देवता कदापि आना पसंद नहीं करते है। इसलिए घर को स्वर्गमय बनाएं और वातावरण में धार्मिकता का समावेश करने का मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिए। जीवन में परिवर्तन आएगा तो आनंद की अनुभूति होगी। उन्होंने कहा कि किसी धार्मिक आयोजन में कुछ घडी धर्म की बातें सुन घर जाने पर परस्पर तू-तू मैं-मैं, कहासुनी और झगडे की प्रवृति से पारिवारिक सदस्यों को कभी आनंद की अनुभूति नहीं होगी। उनका जीवन सदैव परेशानियों के बोझ तले दबा रहेगा। हमेशा विनम्र और संयम का भाव मन में रखें। इससे उनकी संतान भी गौरव का अनुभव करेगी।
संयम और संकल्प की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए मंत्री मुनि ने कहा कि इन सभी क्रियाओं के साथ जीवन में आगे बढने का लक्ष्य बनाना होगा। संकल्प के द्वारा जीवन को मर्यादित करें। जहां संकल्प की पाल है, वहां व्यक्ति पूर्णतया सुरक्षित है। संकल्प से घबराने की बजाय उसे जीवन में उतारने की जरुरत है। घर-परिवार को धार्मिक बनाएं। धर्म से परम आनंद की अनुभूति इसी जीवन में प्राप्त की जा सकती है। कार्यक्रम के दौरान मुनि विजयराज की प्रेरणा से तेरापंथ हरियाणा के संरक्षक सुरेन्द्र कुमार जैन, अध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र कुमार जैन व सह संरक्षक लक्ष्मण कुमार ने नशामुक्ति अभियान के तहत भरवाए गए 13 हजार 578 संकल्प पत्र आचार्य महाश्रमण को भेंट किए। निर्मला जैन ने सदैव धर्म को आगे बढाने का संकल्प लेते हुए अपने विचार प्रकट किए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।

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