Wednesday, August 24, 2011

दूसरों पर गलत आरोप लगाना पाप हैः आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि दूसरों पर गलत आरोप लगाना पाप है। दूसरों की निंदा करना, आलोचना करना सरल है, पर स्वयं की पहचान करना कठिन है। व्यक्ति दूसरों के संदर्भ में सत्य जानकारी न करने के बावजूद आरोप लगा देता है यह उचित नहीं है।
आचार्यश्री ने यह उद्गार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान बुधवार को दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक समाज को संबोधित करते हुए कहा कि किसी की गल्ती होती है तो उसे फैलाना अनुचित है। उस गल्ती का अहसास व्यक्ति को करा देना चाहिए, पर असत्य आरोप नहीं लगाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा गतिशील मन है। मन को साधने का अभ्यास होना चाहिए। शरीर यहां बैठा रहता है और अमरीका की यात्रा करके आ जाता है। मन को नियंत्रित करना आ जाता है तो व्यक्ति दूसरों की गलत आलोचना नहीं करेगा और केवल दूसरों को ही नहीं देखेगा, स्वयं की पहचान करने का प्रयास करेगा। मन नियंत्रित होने से क्रिया करते हुए भी साधना कर सकते है। जिस समय जो क्रिया कर रहे है उसी में मन रम जाए तो एकाग्रता साथ रहती है। भावक्रिया हो सकती है।
आचार्यश्री ने व्यस्त जीवन चर्या में बिन समय नियोजित किए धर्म को कैसे अपनाएं पर चर्चा करते हुए कहा कि ईमानदारी, नैतिकता ऐसे सूत्र है जिनकों जीवन में उतारने के लिए अलग समय नहीं लगाना चाहिए। जब व्यापार में, कार्यों में ईमानदारी, नैतिकता होगी तो धर्म की आराधना अपने आप होने लग जाएगी। अणुव्रत यही सिखाता है कि उसको अपनाने के लिए विशेष समय देने की जरुरत नहीं है। आज की अनेक समस्याओं का समाधान इस अणुव्रत से हो सकता है। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रेक्षाध्यान आत्मिक सुखों को पाने में योगदूत बन सकता है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से हम मन, वचन, काया की प्रवृति को संतुलित कर सकते है। अनावश्यक प्रवृति से बचा जा सकता है। अनावश्यक प्रवृति से बचना बहुत बडी साधना है।
इस मौके पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि मनुष्य जीवन दुधारी तलवार है। मनुष्य बहुत शक्तिशाली प्राणी है। उसके पास मन, वचन और काया की बहुत बडी शक्ति है। आवश्यकता है कि वह इस शक्ति का उपयोग बंधन को तोडने में करें। इसका उपयोग आत्मा को उज्जवल बनाने में हो। 9 की तपस्या करने वाले सुमित सांखला ने भी इस मौके पर अपने विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
पर्युषण पर्व दिवस कल से
आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में 26 अगस्त से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार रोड केलवा में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। 26 अगस्त को पहले दिन खाद्य संयम दिवस, 27 अगस्त को स्वाध्याय दिवस, 28 अगस्त को सामायिक दिवस, 29 अगस्त को वाणी संयम दिवस, 30 अगस्त को अणुव्रत चेतना दिवस, 31 अगस्त को जप दिवस, एक सितम्बर को ध्यान दिवस, दो सितम्बर को संवत्सरी महापर्व तथा तीन सितम्बर को क्षमापना दिवस मनाया जाएगा। इस दरम्यान प्रतिदिन सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।
सुखी बनों पुस्तक के प्रति बढती जा रही तादाद
आचार्यश्री महाश्रमण की पुस्तक सुखी बनों के प्रति पाठकों की तादाद में निरन्तर वृद्धि जारी हैं। इस पुस्तक के प्रथम दो संस्करण के हाथों हाथ बिक जाने के बाद तीसरा संस्करण विक्रय के लिए यहां उपलब्ध है। पुस्तक के लिए पाठकों की कतार हर समय देखी जा सकती है।


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