आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि मानव जीवन को इंद्रियगत, मनोगत और पदार्थगत के क्षणिक सुखों से विरत् रहकर आत्मिक और शाश्वत सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही अपनी सभाओं-संस्थाओं तथा अपने क्षेत्र में स्थित परिवारों को यह प्रेरणा दें कि अपने कार्यों में इसी आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए चेष्टारत रहे। उक्त उद्गार आचार्यश्री ने सोमवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने 26 अगस्त से शुरू हो रहे पयुर्षण महापर्व के दौरान श्रावक-श्राविकाओं को धर्माराधना करने की प्रेरणा देते हुए पौषध, उपवास, चारित्रात्माओं के व्याख्यान, अखंड जप आदि को नियमित दैनिक क्रम बनाने की बात कही। उन्होंने समाज में योगक्षेम की प्राप्ति के लिए यह पाथेय दिया कि सभी पदाधिकारी एवं संपूर्ण श्रावक-श्राविका समाज श्रावक संबोध को सीखने और कंठस्थ करने का प्रयास करने की बात कही। साथ ही बारहव्रत को धारण करने का प्रयास करने का आहृान करते हुए उन्होंने अपने परिवार के लोगों में भी विशेषकर युवाओं को प्रेरणा देने की बात कही। आचार्यश्री ने कहा कि तीन दिनों के इस सम्मेलन के दौरान मैंने समय-समय पर जो विचार व्यक्त किए है उन्हें सभी प्रतिनिधिगण ध्यान में रखें और उसके अनुरूप अपनी सभाओं में कार्य करें, तभी हम अपने समाज, परिवार और संघ के योगक्षेम के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर पाएंगे। इससे पूर्व मुनि किशनलाल ने महासभा और सभाओं की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि महासभा जिस प्रकार पूरी निष्ठा के साथ मां के दायित्व का निर्वहन करती है उसी प्रकार सभाओं का भी यह दायित्व है कि अपनी मां के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करें। महासभा जिस ममत्व और जागरूकता के साथ सभाओं का ध्यान रखती है उनके संवर्धन और विकास के प्रति सजग रहती है। सभाओं में महासभा और केन्द्र के प्रति आभार कृतज्ञता का भाव आवश्यक है। मुनि मोहजीतकुमार ने कहा कि यह सम्मेलन जिन प्रयोजनों से आयोजित किया गया है उसकी उपलब्धि का प्रयास करने की आवश्यकता है। महासभा के अध्यक्ष चैनरुप चिंडालिया ने सम्मेलन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने आभार प्रकट किया।
समाज के आध्यात्मिक उन्नयन की महत्ती आवश्यकता
तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन 2011 का समापन
केलवाः 22 अगस्त
तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में सोमवार को तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का समापन हुआ। तीन दिन तक चले सम्मेलन में समाज के आध्यात्मिक उन्नयन के विभिन्न पहलुओं पर गहनता से विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार रात तक चले कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने समाज के विकास के सूत्र और योगक्षेम का प्रवर्तन करते हुए कहा कि जिन संस्थाओं के पास ठोस परियोजनाएं होती है वे दीर्घायु होती है। वे अपनी विकासमान परियोजनाओं के माध्यम से अपने सदस्यों और समाज के लोगों का हितचिंतन करती है।
महासभा के अध्यक्ष चैनरुप चिंडालिया ने महासभा द्वारा संचालित विभिन्न प्रवृतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समाज को संस्कारित बनाने में मील का पत्थर साबित हो रही है। संस्कारित समाज के बिना किसी तरह की प्रगति कोई मायने नहीं रखती। इसीलिए महासभा ज्ञानशाला के संचालन पर विशेष बल दे रही है। उपासक श्रेणी के विकास के संदर्भ में उन्होंने कहा कि समाज के आध्यात्मिक उन्नयन की महत्ता को महसूस करते हुए महासभा आचार्यश्री महाश्रमण के दिशा निर्देश में इसके विकास के लिए प्रयासरत है। महासभा के प्रधान न्यासी राजेन्द्र बछावत ने कहा कि महासभा की आर्थिक स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने पदाधिकारियों एवं सदस्यों से आग्रह किया कि वे महासभा की सभी गतिविधियों को सुचारू रुप से संचालित करने और भावी योजनाओं की क्रियान्विति में समर्पण भाव से सहयोग करें। महासभा के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय विसर्जन प्रभारी रतन दुगड ने विसर्जन के मूल उद्देश्य को उद्घाटित किया और कहा कि हमें विसर्जन उपक्रम के माध्यम से समाज के हर परिवार को जोडने का प्रयास करने की आवश्यकता है। मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना के संयोजक एवं जैन विश्व भारती के अध्यक्ष सुरेन्द्र चोरडिया ने मेधावी छात्रों को आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ और आचार्यश्री महाश्रमण के नाम से दिए जाने वाले पदकों का उल्लेख करते हुए बताया कि आज तक कुल 154 पदक प्रदान किए जा चुके है। ज्ञानशाला के प्रभारी मुनि उदितकुमार ने कहा कि ज्ञानशाला का प्रभाव अचूक है। इसने आचार्यश्री तुलसी द्वारा देखे गए सपनों को साकार किया है। आज ज्ञानशाला एक मिशन बन गया है। इसका निरन्तर विकास हमारा सामूहिक दायित्व है। मुनिश्री ने कहा कि ज्ञानशाला की प्रशिक्षिका के रूप में हमारे समाज की जिन महिलाओं का योगदान है वे अधिकांशतः गृहणियां है। उन्हें प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। उन्होंने बडी सभाओं का आहृान किया कि वे अपने आस पास के गांवों में ज्ञानशाला के प्रचार प्रसार में सहयोगी बनें। इस अवसर पर जय तुलसी फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी सुरेन्द्र दुगड, ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चौपडा, प्रदीप चौपडा आदि ने भी विचार प्रकट किए।
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