आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि तेरापंथी सभाओं आदि संघीय संरचनाओं के अध्यक्ष आदि पदों पर नशायुक्त व्यक्ति दूर रहना चाहिए। संस्थाओं के पदाधिकारी अनिवार्यत रुप से नशामुक्त हो। यह अपेक्षित है। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता सेवा करता है यह अच्छी बात है। पर सेवा करने की योग्यता अर्जित करनी चाहिए। संस्थाओं के पदों पर आने वाले आवेश पर नियंत्रण रखें, नशा मुक्त हो और चरित्रशुद्धि हो। यह अपेक्षित है। ऐसी अर्हताएं रखने वाला संस्थाओं के साथ जुडकर सेवा करने के योग्य होता है। जिसको सेवा करने का दायित्व मिलता है वह अपने दायित्व के प्रति जागरुक रहे। समाज और संघ में अपना चिंतन नियोजित करें। संगठन संस्था का नेतृत्व कर्ता अपने जीवन को त्याग, संयम और सादगी से स्थापित कर दूसरों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें तो समाज का चहेता बन सकता है और सम्मान पाने की योग्यता पा सकता है।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में शनिवार को दैनिक प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कार्यकर्ता को तीन रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि एक कार्यकर्ता वह होता जो केवल काम में विश्वास करता है। इसे मैं उच्च श्रेणी में रखता है। दूसरा काम और नाम दोनों में विश्वास करता है। यह मध्यम श्रेणी में आता है और तीसरा काम तो करता नहीं, बस उसे नाम की चेष्टा रहती है। यह निम्न स्तर का कार्यकर्ता होता है। इसलिए व्यक्ति को सदैव कर्म में विश्वास रखना चाहिए। इससे ही उसकी समाज और देश में अपनी पहचान कायम हो सकेगी। कार्यकर्ता सेवा करें और कभी भी फल की इच्छा मन में न आने दंे। उन्होंने ने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित मुनि मेघ और भगवान महावीर की बातचीत का वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि आनंद चार तरह का होता है। पहला सहजन आनंद, दूसरा निरपेक्ष, तीसरा निरविकारण और चौथा अतिन्द्रिय। चौथे आनंद में इंन्द्रियों से भोगा जाने वाला आनंद नहीं होना चाहिए। भोग से अर्जित किए जाने वाले आनंद की अनुभूति क्षणिकभर की होती है। इसलिए भौतिकता की वस्तुओं को त्यागने की आवश्यकता है। जीवन में आनंद के कई स्त्रोत है। कुछ आनंद पदार्थों और इंन्द्रियों के सेवन से प्राप्त होते है, कुछ आनंद स्वतः ही प्राप्त हो जाते है कुछ विकार सहित होते है और कुछ आनंद अतीन्द्रिय होते है। हमें यह प्रयास करना है कि सहज, निरपेक्ष, निर्विकार और अतीन्द्रिय आनंद का महसूस करें। इसकी प्राप्ति तभी हो सकती है जब हमारा चित्त विशुद्ध हो। तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का आधार विषय योगक्षेम की प्राप्ति है। अतीन्द्रिय और आत्मानंद की प्राप्ति ही सबसे बडा योगक्षेम है। हम सभी को अपने दायित्व के प्रति जागरुक होना चाहिए और हममें सेवा की भावना प्रबल होनी चाहिए। हमें अपने जीवन को सदाचार और सत्याचरण से जोडना होगा। खान-पान, आचार-व्यवहार, आतम नियंत्रण और दर्शन। इन सबके प्रति जागरुक रहकर कार्य करना होगा। तेरापंथ धर्मसंघ के प्रत्येक व्यक्ति को यह चिंतन करना चाहिए कि समाज के विकास के लिए कैसे योगदान कर सकते है।
जमीकंद का करें त्याग
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे अहिंसा के मद्देनजर जमीन से पैदा होने वाली सब्जियों और फलों का परित्याग करें। समय-समय पर होने वाले समाज के भोज के दौरान भी इनके उपयोग से बचने का प्रयास करें। मांगलिक कार्यों के आयोजन के दौरान यदि व्यक्ति इन वस्तुओं के परिहार करने का प्रयास करता है तो उसके जीवन में अहिंसा का भाव सदैव बना रहेगा। यह परिवार और समाज के लिए भी अच्छा साबित हो सकता है। व्यवस्थाओं में उचित परिहार करना आज के परिवेश में महत्ती आवश्यकता बन गया है।
मां के समान है महासभा
उन्होंने तेरापंथ महासभा के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वह एक मां की तरह कार्य कर रही है जो अपने बच्चों को संरक्षण प्रदान करती है। आचार्यश्री ने पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को तेरापंथ की आचार संहिता का पालन करना चाहिए। सामायिक, नशामुक्ति, कषायमुक्ति आदि को संघीय प्रवृति का पालन करना चाहिए। तीन दिनों के इस सम्मेलन में खूब चिंतन-मंथन होना चाहिए और कार्यकर्ताओं को अच्छी खुराक मिलनी चाहिए, ताकि वे संघ और समाज के विकास के लिए निर्धारित कार्यक्रमों को लागू करने में पूरी सक्रियता दिखा सकें।
अपने दायित्व के प्रति सचेष्ट हो
मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनंू ने तेरापंथी सभा के प्रतिनिधि सम्मेलन को एक विशेष उपलब्धि मानते हुए कहा कि सभी प्रतिनिधि एवं संपर्ण श्रावक समाज आज अपने दायित्व के प्रति सचेष्ट हों और समाजहित में कार्य करें। योगक्षेम अपने आप में एक महत्वपूर्ण विषय है। इसकी उपलब्धि वात्सल्य और परस्पर हित चिंतन से ही संभव है। योगक्षेम का निर्वाह धार्मिक और व्यावहारिक कल्याण की रक्षा के द्वारा ही हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ से जुडी संस्थाएं यह प्रयास करें कि समाज में शिक्षा का विकास हो। कोई भी छात्र अर्थ के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहे। तभी हमारे धर्मसंघ की नींव मजबूत होगी।
परपंराओं से नई पीढी को अवगत कराएं
साध्वी प्रमुख कनकप्रभा ने कहा कि तेरापंथ का ध्वज तेरापंथ के आधार का प्रतीक है। उसमें जुडे हुए दोनों हाथ भगवान महावीर के प्रति नमन और तेरापंथ के प्रति आस्था और विश्वास दर्शाते है। आज संपूर्ण जैन समाज तेरापंथ का आशाभरी नजरों से देख रहा है। आज हम विचार करें कि हम किस स्तर तक पहुंचे है और कहां पहुंचना है। हम अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य का निर्माण करें। योगक्षेम शब्द पर चर्चा करते हुए साध्वी प्रमुखा ने कहा कि यह तेरापंथ के लिए बहुत परिचित शब्द है जिसका प्रयोग आचार्यश्री तुलसी ने संघ विकास के लिए किया था। हमें विचार करना है कि संघीय आस्था को और अधिक कैसे मजबूत कर सकते है। योगक्षेम की प्राप्ति के लिए यह जरुरी है कि हम आत्म चिंतन करें। यदि बदलाव की जरूरत है तो उस पर भी विचार करें। क्योंकि युगीन बदलाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तेरापंथ का 250 वर्षों का इतिहास स्वयं इसका प्रमाण है। इसमें समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं। आचार्यों ने समय की नब्ज को पहचानते हुए युगीन परिवर्तन किए। आज का युग बौद्धिक और वैज्ञानिक युग है। समाज के विकास के लिए धर्म और अध्यात्म के साथ ही जीवन की वास्तविकताओं का ध्यान रखना आवश्यक है। समय गतिशील है हम उसके साथ गतिमान होकर आगे बढे तो सफलता प्राप्त कर सकते है। साध्वी प्रमुखा ने कहा कि योगक्षेम की उपलब्धि के लिए हमें चार बातों पर विचार करना है। सबसे पहले यह कि हमें जो अब तक प्राप्त नहीं है उसके लिए प्रयास करना है। जो प्राप्त है उसकी सुरक्षा करनी है। जो प्राप्त हो चुका है उसी से आत्म संतुष्ट नहीं होना है। उसे भावी विकास के लिए विनियोजित करना है।
महासभा के प्रभारी मुनि धजंयकुमार ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की शीर्षस्थ संस्था होने का गौरव प्राप्त है। वह अनेक परियोजनाओं का आयोजन कर संघ और समाज के विकास के लिए कार्य करती है। इस प्रतिनिधि सम्मेलन में योगक्षेम प्राप्ति के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार विमर्श किया जाएगा। तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चैनरूप चिंडालिया ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि योगक्षेम की पावना भावना से अणुपा्रणित यह तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन अपनी कई विशिष्टताओं के लिए इतिहास स्वर्णिम पृष्ठ बनेगा। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय योगक्षेम है, जो वर्तमान में हमारे संघ, समाज के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रसंग है। मेवाड कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश बसंती लाल बाबेल ने आचार्यश्री महाश्रमण के प्रज्ञावान व्यक्तित्व और अमृत धारा प्रवाहिनी की अभिवंदना की। तेरापंथी महासभा के महामंत्री भंवरलाल सिंघी ने सभा प्रतिनिधि सम्मेलन की प्रस्तावना प्रस्तुत की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चिंडालिया ने तेरापंथ का ध्वजारोहण और सम्मेलन के सूत्र वाक्य योगक्षेमं प्राप्स्याम के प्रतीक चिन्ह का अनवारण किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने स्वागत की रस्म अदा की। महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी ने आभार जताया। तीन दिन तक चलने वाले प्रतिनिधि सम्मेलन में देशव्यापी सभाओं के लगभग 650 से अधिक प्रतिभागी शिरकत कर रहे है। कार्यक्रम का प्रारंभ आचार्यश्री की ओर से पेश मंगलपाठ से हुआ।
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