Wednesday, August 10, 2011

उतराध्ययन एवं गीता पर आचार्य महाश्रमण की चर्चित कृति

आचार्य महाश्रमण की बहुचर्चित कृति सुखी बनों का विमोचन 12 अगस्त को प्रातः 9 बजे आयोजित समारोह में किया जाएगा। यह जानकारी देते हुए मुनि जयंत कुमार ने बताया कि जैनागम उत्तराध्यन एवं श्रीमद् भागवत गीता पर प्रवचनमाला की प्रथम पुस्तक सुखी बनों प्रकाशन के पूर्व ही चर्चित हो गई है। इस कृति की अग्रिम बुकिंग के लिए जैन विश्व भारती प्रकाशन विभाग के पास बडी तादात में लोगों की इंक्वायरी आ चुकी है। उन्होंने बताया कि विमोचन समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी उपस्थित रहेंगे।
एक जैनाचार्य द्वारा गीता पर विशद विवेचन सुन जैन-जैनेत्तर समाज आश्चर्य चकित है। मुनि ने बताया कि आचार्य ने गीता के स्धित प्रज्ञता के कथन को जैनों के वीतरांगना के समकक्ष माना है।
इस विलक्षण दृष्टि एवं दूसरे सम्प्रदायों के ग्रंथों को सम्मान देने की प्रवृति ने लोगों को कायल बना दिया है। आचार्य की आने वाली यह कृति पिछले रिकार्डों को तोडेगी। ऐसी आम जनता ने धारणा बना ली है।
तेरापंथ प्रोफेशनल सम्मेलन 14 से
केलवाः 10 अगस्त
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में चौथा तेरापंथ प्रोफेशनल सम्मेलन 14 व 15 अगस्त को आयोजित होगा। उक्त जानकारी देते हुए प्रोफेशनल फॉर्म के प्रभारी मुनि रजनीश कुमार ने बताया कि इस सम्मेलन में संपूर्ण देश से इंजीनियर, डॉक्टर, सीए, एमबीए, आर्किटेक्ट आदि 400 प्रोफेशनल सम्मिलित होंगे।
ये प्रोफेशनल्स समाज एवं व्यक्तिगत स्तर पर आने वाली चुनौतियों का समाधान खोजेंगे और मिलने वाले अवसरों को भुनाने सबंधी उपायों पर चिन्तन करेंगे। मुनि ने बताया कि तेरापंथ प्रोफेशनल फॉर्म ऐसी संस्था है जो स्वविकास, संघ विकास की थीम पर काम करती है। इस संस्था द्वारा विभिन्न जगहों पर समाज के प्रोफेशनल लोगों को नियोजित किया जाता है।
साधना में बाधक है अहंकारः आचार्य महाश्रमण
केलवा में चातुर्मास, साधु-साध्वियों की गीत गायन प्रतियोगिता ने मोहा मन

आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे साधना और तपस्या करते समय जागरुक रहे और अपने भीतर अहंकार का भाव न आने दें। मन अहंकार मुक्त होगा तो उसे धर्म लगन हो सकेगी। अहंकार का भाव साधना और तपस्या में सबसे बडा बाधक है। मोक्ष को प्राप्त करने के लिए साधना करनी आवश्यक है। मनुष्य को हमेशा अपने गुरु के चरणों में कठोर तपस्या करनी चाहिए। एकांत में की गई साधना और इंद्रियों पर काबू पाने का अभ्यास भी शास्त्रों में मोक्ष मार्ग पर जाना बताया गया है।
आचार्य ने यह उद्गार बुधवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मुक्ति की साधना के लिए अकर्म बनने की आवश्यकता है। मुंह से कुछ बोलना नहीं और जीवन में वैराग्य भाव का समावेश हो। आत्मा की शुद्धि के लिए मनुष्य को धर्म, साधना, तपस्या और आराधना करने की जरूरत है। चित को धार्मिक बनाने की आवश्यकता है, ताकि मन विकारों से ग्रसित न हो। पाप कर्म करने की ओर ध्यान आकृष्ट न हो। स्वयं के जीवन में स्वार्थ का बोध आने से रोंके और परमार्थ की ओर जीवन को ले जाने के उपायों को अपनाने का श्रम करें। साथ ही परमार्थ की चेतना आत्म कल्याण के लिए हो। इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि भीतर के पाप को समाप्त करने के लिए वैराग्य भाव का होना जरूरी है। यदि जीवन में भौतिकता का प्रभाव होगा तो पाप पर नियंत्रण पाना संभव नहीं होगा। आचार्य रविन्द्रनाथ टैगोर की कृति एकला चलो का उदाहरण देते हुए आचार्य ने कहा कि साथियों का मोह छोडकर व्यक्ति को अकेले साधना करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए एकाकी भाव आवश्यक है। व्यक्ति को तप, साधना करते समय इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि उसका मन मकान, शरीर की ओर आसक्त न हो। कपडों के मोह का त्याग करने की प्रवृति होनी चाहिए। यह गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है। मनुष्य जितना विनम्र रहेगा उसकी साधना में उतना ही इजाफा होगा।

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