Thursday, August 11, 2011

स्वास्थ्य के लिए सुव्यवस्थित दिनचर्या आवश्यकः आचार्यश्री महाश्रमण



आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति सुखाकांक्षी होता है और भौतिक सुखों की कामना करता है। शरीर सुखानुभूति का साधन है तो व्याधियों का घर भी है। जिस व्यक्ति का उठना निश्चित है दिनचर्या निश्चित है। उसका शरीर स्वाध्याय रह सकता है और साधना ठीक रह सकती है।
आचार्यश्री ने यह उद्गार गुरुवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भागवत गीता में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि जिस व्यक्ति के आहार का क्रम संतुलित होता है, घूमने की दिनचर्या होती है उसका शरीर दूसरों की अपेक्षा काफी ठीक रहता है। ऐसे में उसके द्वारा की गई साधना अच्छी मानी जाती है। आदमी के जीवन में किसी तरह की रुकावट न आ जाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि उसे प्रेरणा की घुटी दी जाए। संबोधि के चौथे अध्याय में बताया गया है कि हमारा चलना अहिंसा से युक्त हो और किसी जीव की हत्या हमारे से न हो जाए। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
आचार्यश्री ने हाजरी वाचन करते हुए फरमाया कि संत हृदय नवनीत के समान माना जाता है, परन्तु नवनीत स्वयं तृप्त होने पर पिघलता है और संत का हृदय तो दूसरों को तृप्त होते देखकर भी पिघल जाता है। उन्होंने साधु-साध्वियों की सेवा की सराहना करते हुए कहा कि हमारे साधु-साध्वी बहुत सेवाभावी है। उनको संघ के कार्यों के लिए तैयार रहना चाहिए। संघ की सेवा का रात को 12 बजे भी सेवा का अवसर मिले तो ना नहीं करनी चाहिए।
वाणी पर संयम जरूरी
व्यक्ति से सदैव अपनी वाणी पर संयम रखने का आहृान करते हुए उन्होंने कहा कि विचार पूर्वक बोलना चाहिए। भाषा का संयम हमें हिंसा और असत्य से बचाती है। उन्होंने तेरापंथ के पांच स्तम्भों की जानकारी देते हुए कहा कि संगठन के प्रति हमारी सम्मान की भावना बना रहनी चाहिए। शिष्य प्रथा संगठन को तोडने वाली होती है। तेरापंथ में कोई अपना शिष्य नहीं बना सकता। सभी शिष्य-शिष्याएं एक मात्र आचार्य के होते है। संघ के प्रति समर्पण भाव होना आवश्यक है। संगठन की यह पॉलिसी है कि आज का काम आज ही निपटा दो। कल पर मत छोडो। ऐसा करने से काम निर्विध्न तरीके से होते रहेंगे।
मुनि महावीर बने गीत गायन प्रतियोगिता के विजेता
आचार्य महाश्रमण के अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित साधु-साध्वियों की गीत गायन प्रतियोगिता के विजेता मुनि महावीरकुमार बने। मुनि महावीर ने भिक्षु स्वामी पधारो गीत की प्रस्तुति दी तो जनता उनके भावों में बह गई और ओम् अर्हम की हर्षध्वनि से पूरा पंडाल गंूज उठा।
प्रतियोगिता में 38 साधु-साध्वियों ने गीतों को स्वर दिया। प्रस्तुतियां एक से बढकर एक थी, जिससे निर्णायकों को निर्णय देने में मशक्कत करनी पडी। प्रतियोगिता में द्वितीय साध्वी चरित्रयशा एवं तृतीय मुनि जंबूकुमार रहे। प्रोत्साहन स्थान के लिए मुनि प्रशमकुमार, बालमुनि अनुशासनकुमार, मुनि सुधांशुकुमार, साध्वी विवेकश्री, साध्वी संगीतप्रभा का चयन किया गया। निर्णायक मुनि सुखलाल, मुनि विजयकुमार, साध्वी जिनप्रभा एवं साध्वी सारदाश्री थे।
प्रतियोगिता के दूसरे चरण में मुनि नीरजकुमार, मुनि महावीरकुमार, मुनि जंबूकुमार, मुनि सुधांशुकुमार, मुनि अनुशासनकुमार, मुनि मृदुकुमार, मुनि हितेन्द्रकुमार, मुनि अनंतकुमार, मुनि भवभूति, साध्वी ज्ञानप्रभा, साध्वी संगीतप्रभा, साध्वी अतुलयशा, साध्वी कार्तिकयशा, साध्वी सविताश्री, साध्वी जयविभा, साध्वी मुकुलयशा, साध्वी सुमंगलप्रभा, साध्वी वसुधाश्री ने अपनी प्रस्तुतियां दी।
इस मौके पर आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहने वाले प्रतियोगियों के गायन की सराहना करते हुए कहा कि गायन एक कला है। इसमें इतनों ने उत्साह दिखाया बहुत अच्छी बात है। आचार्य ने मुनि महावीर को 31 कल्याणक, साध्वी चरित्रयशा को 21 कल्याणक, मुनि जंबूकुमार को 11 कल्याणक, प्रोत्साहन स्थान पर रहने वालों को 9 कल्याणक एव सभी प्रतिभागियों को 7-7 कल्याणक प्रदान किए। मुनि सुखलाल ने कहा कि नाद अथवा स्वर को लंबा करने की साधना महत्वपूर्ण है। सबने अच्छा प्रयास किया। हम निर्णायकों को अंक देने में कठिनाई महसूस हुई। ऐस कार्यक्रम होते रहने चाहिए। साध्वी जिनप्रभा ने प्रतियोगिता का निर्णय घोषित किया। संचालन मुनि जितेन्द्रकुमार ने किया।
मोहन भागवत आज केलवा में
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को आचार्यश्री महाश्रमण की उत्तराध्ययन एवं श्रीमद भागवत गीता आधारित पुस्तक सुखी बनों के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शरीक होने केलवा आएंगे।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेन्द्र कोठारी ने बताया कि मोहन भागवत आचार्य महाश्रमण की इस चर्चित कृति पर व्याख्यान देंगे एवं देश की वर्तमान स्थितियों से आचार्यप्रवर को रूबरू कराने के साथ ही समाधान भी जानेंगे। कोठारी ने बताया कि जैन विश्व भारती लाडनंू से प्रकाशित सुखी बनों प्रकाशन के पूर्व ही चर्चित हो गई है। इसकी अग्रिम बुकिंग के लिए सैंकडों लोग कतार में है। कोठारी ने बताया कि आचार्य की यह उदारवृति का परिचायक है कि उन्होंने अनेक धर्म ग्रंथों पर प्रवचन दिए है। गीता पर आने वाली यह कृति नए रहस्य प्रकट करने वाली है। इस मौके पर मोहन भागवत संस्कृत की पत्रिका भारती को आचार्यश्री को समर्पित करेंगे। यह पत्रिका आचार्य महाप्रज्ञ विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुई है।
अणुव्रत समिति केलवा की प्रथम बैठक
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य एवं मुनि सुखलाल स्वामी के निर्देशन से भिक्षु विहार के प्रांगण में गुरुवार को अणुव्रत समिति केलवा की प्रथम बैठक आयोजित की गई। इसमें मुनि सुखलाल स्वामी ने अणुव्रत की व्यापकता को बताते हुए आचार्य के स्वपन संपूर्ण केलवा ग्राम को नशामुक्त कराने की रुपरेखा प्रस्तुत की। मुनि अशोक कुमार ने आचार्य के एक सूत्रीय कार्यक्रम नशामुक्ति केलवा के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किए। मुनि जयंत कुमार ने अणुव्रत की कार्ययोजना बनाकर इसे प्रत्येक व्यक्ति से जोडने का आहृान किया। बैठक में समस्त पदाधिकारी एवं सदस्य मौजूद थे।

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