Wednesday, August 17, 2011

बच्चों को संस्कारवान बनाने की जरुरतः आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण ने आज के परिवेश में जीवन विज्ञान की आवश्यकता को महत्ती बताते हुए अभिभावकों से आहृान किया कि वे अपने बालकों को बाल्यावस्था से इस तरह की शिक्षा दें कि युवावस्था में पहुंचते ही संस्कारों से लबरेज हो जाए। बचपन से मिलने वाले संस्कार से बालक का सर्वांगीन विकास होता है। जितने अच्छे उसके संस्कार होंगे। उतनी ही उसकी प्रगति की राह आसान हो जाएगी।
आचार्यश्री बुधवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम में दैनिक प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित मुनि मेघ और भगवान महावीर के बीच के वृतांत को प्रस्तुत करते हुए कहा कि मन, वाणी और इंन्द्रियों पर नियंत्रण करने से सुखों की प्राप्ति की कल्पना की जा सकती है। मोक्ष में सुख कैसे मिले ? प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने कहा था कि जो सुख मन से, वाणी से और शरीर से उत्पन्न होता है। इस सुख को एक आम आदमी भी महसूस कर सकता है, लेकिन सुखों से आगे भी एक सुख है परम सुख। यह सिद्धावस्था में ही मिलता है। जो वाणी से पार होता है। धर्म की साधना, आराधना और आध्यात्म के द्वारा भी सुख को प्राप्त किया जा सकता है। शरीर, वाणी और मन में व्याप्त होने वाली आकांक्षाओं का निरोध भी परम सुख की ओर अग्रसर करता है। प्रेक्षाध्यान आध्यात्म और साधना से मानसिक शांति मिलती है। आचार्यश्री ने कहा कि विद्यार्थी वर्ग के सामने पूरा जीवन पडा हुआ है। वे जैसा चाहे वैसा उसे ढाल सकते है। वे टेलीविजन देखते समय ज्ञानवर्धक बातों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। टीवी के माध्यम से उनके जीवन में खराब संस्कार भी आ सकते है। अंधेरपक्ष बच्चों के संस्कारों को विकृत कर सकती है। हिंसा, अश्लीलता और फूहडपन को अपने जीवन से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। टीवी देखना खराब नहीं है। इसका उजला पक्ष भी है। ज्ञान की बातें भी इस पर आती है। उसे ग्रहण किया जाना चाहिए।
आचार्यश्री ने जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान और अणुव्रत को एक सागर के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि जीवन विज्ञान के माध्यम से एक अच्छी पीढी का निर्माण किया जा सकता है। यह जीवन जीने की कला सिखाता है। विपरित परिस्थितियों में किस तरह से हालातों का सामना किया जाए। यही जीवन विज्ञान है। इसका लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग को उठाना चाहिए। जो कार्य योजना से आगे हो उससे निष्पति आ सकती है। जिस व्यक्ति को जीवन जीने का अहसास नहीं हैं उसके लिए सब कुछ मिथ्या है।
आसक्ति को छोडने की आवश्यकता
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे भौतिक सुखों को त्यागने की प्रवृति विकसित करें। आज उन्हें विभिन्न आसक्तियों ने अपने मोहपाश में बांध लिया है। इससे छुटकारा पाने के लिए धर्म, आराधना, तपस्या की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करें। आसक्ति हमें परम सुखों की अनुभूति से पीछे की ओर धकेलती है। स्वाध्याय और ध्यान से भी सुख को प्राप्त किया जा सकता है। अनाशक्ति की साधना से मिलने वाला सुख कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने जीवन विज्ञान अकादमी, जैन विश्व भारती लाडनूं की ओर से आयोजित किए जा रहे जीवन विज्ञान अकादमी कार्यकर्ता सेमिनार में शिरकत करने के लिए देश के अनेक प्रांतों से आए युवाओं को सीख देते हुए कहा कि वे इस प्रशिक्षण शिविर से प्राप्त अनुभवों को परिवार के सदस्यों में बांटने का प्रयास करें। इससे न केवल परिवार का वातावरण धर्ममय बनेगा बल्कि समाज में भी इसका प्रकाश फैलेगा। वह जिस ज्ञान को अभी प्राप्त कर रहे है। वह शिक्षा जगत के लिए महत्ती आवश्यकता बन गया है।
स्वर्णयुग की तरह बनाएं जीवन
मंत्री मुनि सुमेरमल ने प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं से आहृान किया कि उनके जीवन में पूरी तरह से दक्षता का समावेश हो। केवल जबान से किसी को प्रशिक्षण न दें। इस तरह के प्रशिक्षण बौद्धिकता तक ही सीमित होकर रह जाते है। जीवन में उतरकर अन्य लोगांे को प्रशिक्षण देना है। इसका स्वरूप प्रायोगिक हो। हमारे जीवन में जीने की कला जीवन विज्ञान, अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान से आएं और यह स्वर्णयुग की भांति समाज में प्रकाशमान हो।
आचार्य प्रवर की मंशा है कि प्रत्येक घर में श्रम की परपंरा का निर्वाह हो। जो व्यक्ति हाथ से सभी उपक्रम करने की मंशा रखता है। वह सही मायने में अहिंसक है। वह अहिंसा का पालन कर रहा है। जीवन विज्ञान की बदौलत हम जीवन को श्रम से जोड सकते है। इसके बिना सारे उपक्रम अधूरे है। इससे घर का वातावरण स्वर्ग की भांति बनेगा और समाज का विकास संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि जहां कडवाहट को दूर करने का प्रयास किया जाता है वह जीवन विज्ञान है। धर्म को जीवन में उतारने के उपक्रम की सफलता से विपरित परिस्थितियों में व्यवस्थित, संतुलित और प्रसन्न कैसे रहा जाए। इसका भाव मन में आता है। यह स्वयं, परिवार और समाज के लिए लाभप्रद साबित होगा। जीवन विज्ञान प्रभारी मुनि किशनलाल ने दो दिवसीय सेमिनार की जानकारी देते हुए प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं से यहां से मिले ज्ञान का फैलाव देशभर में करने का आगह किया। इस अवसर पर मुनि नीरज कुमार, चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेन्द्र कोठारी, राकेश खटेड, गौतम सेठिया, विक्रम सेठिया ने भी विचार व्यक्त किए।
तेरापंथी शिक्षण संस्थान प्रतिनिधि सम्मेलन आजः आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में गुरुवार को केलवा में देशभर में चल रहे तेरापंथी शिक्षण संस्थान के प्रतिनिधियों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। जीवन विज्ञान अकादमी, जैन विश्व भारती लाडनंू की ओर से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शैक्षणिक उन्नयन और वर्तमान शिक्षा पर गहनता से विचार विमर्श किया जाएगा।
पर्युषण पर्व दिवस 26 से
आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में आगामी 26 अगस्त से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार रोड केलवा में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। 26 अगस्त को पहले दिन खाद्य संयम दिवस, 27 अगस्त को स्वाध्याय दिवस, 28 अगस्त को सामायिक दिवस, 29 अगस्त को वाणी संयम दिवस, 30 अगस्त को अणुव्रत चेतना दिवस, 31 अगस्त को जप दिवस, एक सितम्बर को ध्यान दिवस, दो सितम्बर को संवत्सरी महापर्व तथा तीन सितम्बर को क्षमापना दिवस मनाया जाएगा। इस दरम्यान प्रतिदिन सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।
सुखी बनों का दूसरा अंक भी समाप्त
आचार्यश्री महाश्रमण की पुस्तक सुखी बनों का क्रेज पाठकों में लगातार बना हुआ है। जैन विश्व भारती लाडनंू द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का दूसरे अंक की ग्यारह सौ प्रतियां भी बुधवार को स्टॉल पर पहुंचते ही हाथों-हाथ बिक गई। करीब तीन हजार लोग इस पुस्तक के तीसरे अंक के लिए अभी से ही कतार में है। वहीं सैंकडों लोगों ने अग्रिम बुकिंग कराना शुरु कर दिया है।



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