Friday, August 5, 2011

वाणी पर संयम आवश्यकः आचार्य महाश्रमण


आचार्य महाश्रमण ने कहा कि वाणी पर संयम होना चाहिए। कटु वचनों के प्रयोग से आपसी संबंधों में कटुता आती है। वचन सत्य हो और मधुर हो, यह आवश्यक है। यह विचार उन्होंने प्रतिदिन के प्रवचन कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साधना के क्षेत्र में संयम का महत्व है, पर इसकी साधना कठिन होती है। पांच इंद्रियों में जीभ को जीतना कठिन है। आठ कर्मों में मोहनी कर्म को तोडना मुश्किल है। पांच महाव्रतों में ब्रह्नाचार्य की साधना दुष्कर है। तीन गुप्तियों में मनोगुप्ति की साधना कठिन है। परन्तु जिसे आगे बढना होता है उसे कठिन से कठिन कार्यों को भी निष्पादित करना होता है। आचार्य ने कहा कि खाद्य संयम का साधना और स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टियों से महत्व है। लंघन को परम औषध माना गया है। यह औषध किसी भूमि में पैदा नहीं होती और न ही आकाश में लगती है।
आलस्य है महान शत्रु
प्रार्थना सभा में जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण लेने पहुंचे विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि विद्यार्थियों का लक्ष्य विद्याअर्जन होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वाणी संयम एवं खाद्य संयम के साथ आलस्य से बचने का प्रयास भी होना चाहिए। आलस्य हमारा महान शत्रु होता है, जो हमारे शरीर में रहते हुए हमारा नुकसान करता है। पुरुषार्थ के समान कोई बंधु नहीं होता। हम अपने जीवन को सम्यक पुरुषार्थ आनंदित करें। पुरुषार्थ का आश्रय लेने वाला कभी दुःखी नहीं होता। उन्होंने कहा कि जीवन को महत्वपूर्ण बनाने के लिए ज्ञान और आचार का विकास आवश्यक है।
अर्थ और काम पर हो धर्म का अंकुश
आचार्य ने अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश होना जरूरी बताते हुए कहा कि जिस आदमी के जीवन में धर्म नहीं है तो वह एक दृष्टि से जिंदा नहीं, मरा हुआ है। जागृत एवं अच्छा जीवन जीने के लिए धर्म को स्वीकारना चाहिए। गृहस्थ के लिए अर्थ और काम दोनों जरूरी होते है, पर जब धर्म पर अंकुश इन पर नहीं होता है तो यह उच्छंखल बन जाते है। धर्म की विद्यमानता से व्यक्ति सीमा में रहता है।
संयम की साधना है सामायिक
आचार्य ने विधिवत एवं सामायिक की वेशभुषा में सामाजिक करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि संयम की साधना है सामायिक। प्रवृति का संयम होता हैं, सावध योग का त्याग होता है तब आत्मा के कर्म बंध नहीं होते। सामायिक निष्कर्मता की ओर बढने का माध्यम है। सामान्यतया दो करण तीन योग से सामायिक की जाती है परन्तु दृढ संकल्प हो तो इसे तीन करण योग्य के निरुद्ध के साथ भी कर सकते है। इससे अशुभ योगों से बचने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि सामायिक में घर गृहस्थी एवं व्यापार की चिंता नहीं होनी चाहिए और न ही अखबार आदि का पठन होना चाहिए। इसमें चिंतन को स्वस्थ रखने वाले धार्मिक ग्रंथों का स्वाध्याय किया जाना चाहिए।
इससे पूर्व मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने कहा कि जीवन सभी जीते है, किन्तु जीवन जीना ही मूल्य नहीं है। जीवन में गुणात्मकता आए तभी मूल्यवत्ता बनती है, अन्यथा केवल श्वांस लेने वाला पुतला बनकर रह जाता है। जीवन को मूल्यवान बनाने के लिए सत्य बोलना जरुरी है तो साथ ही जो कहा जाता है उसे पूरा करना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि केवल लेना ही नहीं जाने, कुछ छोडना भी जाने। जब तक क्या लेना क्या छोडना इसका विवेक जागृत नहीं होगा तब तक जीवन सार्थक न होगा। केवल लेने की प्रवृति से अच्छा और बुरा सब ग्रहण हो जाता है। हमें केवल गुणों को ग्रहण करने की आदत विकसित करने करनी होगी जिससे जीवन सुन्दर बन सकेगा और हम समान देश के गुणात्मक विकास में अपना योगदान दे सकेंगे। इस मौके पर इरोड तेरापंथ परिवार निर्देशिका भाई रमेश ने आचार्य प्रवर को समर्पित की। रतनगढ से समागत संघ का प्रतिनिधित्व करते हुए बहिनों ने गीत का संगान कर अपनी अर्ज प्रस्तुत की। संचालन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
जीवन को कलापूर्ण बनाने की शिक्षा है जीवन विज्ञान
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में प्रार्थना सभा में जीवन विज्ञान का प्रायोगिक प्रशिक्षण लेने पहुंचे 10 विद्यालयों के सौ विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को मुनि किशनलाल ने प्रशिक्षण प्रदान किया। उन्होंने कहा कि जीवन विज्ञान जीवन को कलापूर्ण बनाने की शिक्षा है। जैसी मुद्रा होती है वैसा भाव बन जाता है। जैसा भाव होता है वैसा सा्रव होता है, जैसा सा्रव वैसा स्वभाव जैसा स्वभाव वैसा व्यवहार जैसा व्यवहार वैसा ही प्रभाव होता है। स्वभाव और व्यवहार को अच्छा बनाने के लिए विद्यार्थियों को जीवन विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। प्रार्थना सभा में जीव विज्ञान के प्रयोग इसमें कारगर सिद्ध होते है। ओमप्रकाश सारस्वत ने जीवन विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। प्रेक्षा प्रशिक्षक गिरजा शंकर दुबे ने प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया। राजकीय प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती लता खींची ने जीवन विज्ञान आकदेयी का आकार बताया एवं विद्यालय में जीवन विज्ञान के प्रयोग करवाने का संकल्प व्यक्त किया।
पारिवारिक सौहार्द कार्यशाला का समापन
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित त्रिदिवसीय पारिवारिक सौहार्द कार्यशाला का समापन गुरुवार रात को हुआ। आचार्य ने ऐसी कार्यशालाओं को सौहार्द का वातावरण बनाने में सहायक बताया। मुनि किशनलाल ने परस्पर सौहार्द स्थापित करने के लिए हमारी सोच को व्यापक बनाने और मस्तिष्क तनाव मुक्त रखने की बात कही। इसके लिए प्रेक्षाध्यान के प्रयोग सहायक सिद्ध होते हैं। इस कार्यशाला में मुनि उदित कुमार, मुनि मोहजीत कुमार एवं बजरंग जैन ने प्रशिक्षण प्रदान किया। मुनि नीरज कुमार, मुनि विजय कुमार, मुनि महावीर कुमार ने गीत का संगान किया। देवीलाल कोठारी ने संयोजन किया।
400 मेधावी छात्र आचार्य की शरण में
देेश के अधिकांश प्रांतों से 400 मेधावी छात्र-छात्राएं आचार्य महाश्रमण की शरण में पहुंचे है। यह सभी बच्चे 10वीं और 12वीं में 85 प्रतिशत से ज्यादा अंक अर्जित कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके है। मेधावी छात्र आचार्य से जीवन मंत्र प्राप्त करने एवं जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना में शामिल होने के लिए पहुंचे है। इस प्रोत्साहन परियोजना के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ स्वर्ण पदक, आचार्य महाश्रमण स्वर्ण पदक, तेरापंथ महासभा द्वारा रजत पदक, आदि विभिन्न श्रेणियों में बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। इसके साथ प्रतिभा संपन्न योग्य विद्यार्थी को स्कॉलरशिप भी प्रदान की जाएगी। पिछले 5 सालों में महासभा द्वारा अब तक 40 लाख की स्कॉलरशिप प्रदान की जा चुकी है। इस परियोजना के अन्तर्गत प्रोफेशनल डिग्री प्राप्त करने वाले को विशेष तौर पर प्रोत्साहित किया जाता है।

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