Thursday, August 18, 2011

तेरापंथी शिक्षण संस्था प्रतिनिधि सम्मेलन का आयोजन



तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि वर्तमान में विद्यालय कमाई का माध्यम बन चुके हैं। केवल कमाई के माध्यम नहीं होने चाहिए। इसमें अच्छी शिक्षा की व्यवस्था और संस्कार देने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षक चाहिए और अच्छे शिक्षकों के लिए अच्छा वेतनमान चाहिए। वेतन आदि खर्चों को पूरा करने के लिए फीस बढाई जाती है। पर यह सब होते हुए भी शिक्षा अच्छी नहीं दी जाती है और बच्चें के सर्वांगीण निर्माण पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो वह विद्यालय अभिभावकों के सपनों के अनुरूप अपनी छवी नहीं बना सकता है।
उक्त विचार उन्होंने तेरापंथी शिक्षण प्रतिनिधि सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि जैनों से संबंधित विद्यालयों में जैनिज्म की पढाई होनी चाहिए। जब ईसाई धर्म से जुडी स्कूलों में ईसाई धर्म के संस्कार दिये जा सकते हैं तो जैन धर्म से, तेरापंथ से जुडी विद्यालयों में जैनिज्म के संस्कार क्यों नहीं दिये जा सकते। इन विद्यालयों में जैनिज्म पढाई जायेगी तभी जैन धर्म के संस्कार आयेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे ओर किसी से आशा नहीं है, किसी अन्य विद्यालयों में जैनिज्म के संस्कार दिये जाये यह सोच नहीं सकते। मुझे वहीं से आशा है जहां जैनों के विद्यालय है। वहां पर ही जैनिज्म के संस्कार दिये जा सकते हैं। जैन तेरापंथ से जुडे विद्यालयों में प्रवेश करते ही अहसास हो जाना चाहिए कि यह जैनों का विद्यालय है। वहां पर प्रार्थना सभा में नवकार महामंत्र का जप होना चाहिए विद्यालय परिसर में भगवान महावीर का चित्र,आचार्य भिक्षु आदि आचार्यों के चित्र लगे होने चाहिए। जैनिज्म की क्लासे भी चलनी चाहिए। पर्युषण पर्व के दोरान स्कूल में व्याख्यान माला का आयोजन होना चाहिए शोति दुत आचार्य श्री महाश्रमण ने कानोड आवासीय विधालय का उदघाटन प्रस्तुत करते हुए कहा की वहा पर अछे संस्कार दिए जाते है। हॉस्टल में रहने वाले बच्चे सामायिक करते है। यह सुदंर व्यवस्था हैं इस तरह की गतिविधियो जैनो के सभी विधालयो में चलनी चाहिए उन्होने कहा कि इस शिक्षा संस्कार प्रतिनिधि सम्मेलन में ऐसा किंतन चले जिसमे सभी तेंरापथी विधालय सामूहिक निर्णय लेने की स्थिती में आ सके। हमारे विधालय में क्या चलना चाहिए और क्या नही इस पर किंतन होना चाहिए।
जीवन विज्ञान की शिक्षा हो अनिवार्य
आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि जीवन जीवन विज्ञान की शिक्षा किसी भी धर्म से सम्बध रखने वाली शिक्षन सस्थाओ में दि जासकती है तो तेरापथी विधालयो में क्यो पिछे रहे । इन विधालयो में इसे अनिवार्य शिक्षा करनी चाहिए। जीवन विज्ञान से बच्चो का सर्वागीण होता है। यह शिक्षा बच्चों के जीवन को व्यवस्थित एवं सस्ंकारी बनाती है। उन्होने कहा कि भारतीय विधालयो में एक विधा है जैन विधा ज्ञान का अनुप खजाना है। भरा हैं,तेरापथं विधालयो में इस विधा के मूल्या कन होने चाहिए।
आत्म दर्शन से मिलता है,परम आनंद
आचार्य श्री महाश्रमण ने सम्बोधि पर प्रवचन देते हुए कहा कि आत्म दर्शन से परम आनन्द की अनुमती होती है इस आंनद की अनुमती मन से,होती है इंिन्दयो से नही हो सकती परम आनंद अकल्पनीय है। अनुक्रति होने के बादव्यक्ति में न अहंकार रहता हैं और न बुदि का अस्तित्व । उन्होने कहा कि साधरन व्यक्ति इन्दिया विषयो में झमता है,और विशिष्ट साधन इन्दियो से परम आनंद पाने का प्रयास करना है।

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