आचार्य महाश्रमण ने ज्ञान की आराधना को बडी साधना के रुप में परिभाषित करते हुए विद्यार्थियों से आहृान किया कि वे ज्ञान का अर्जन करने के साथ-साथ चरित्र के निर्माण की ओर भी समुचित ध्यान आकृष्ट करें। ज्ञान पूरा और जीवन में चरित्र का समावेश पूरा नहीं तो सर्वागीण विकास भी ठहर जाता है। व्यवहार और विचार अच्छे होने चाहिए। बुद्धि अच्छी है, पर बुद्धि में भी शुद्धि होनी चाहिए। संस्कृत ग्रंथों में शुद्ध बुद्धि को कामधेनु की संज्ञा दी गई है। आचार्य ने यह उद्गार शनिवार को यहां तेरापंथ समवसरण में चातुर्मास प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपनी इंन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेता है तो वह विकास के पथ पर अग्रसर हो जाता है। अगर इंन्द्रियां उसके वश में नहीं रहती है तो वह पतन की ओर चला जाता है। यह उसकी प्रतिष्ठा को समाप्त कर देती है। तपस्या की नीति को समाप्त करके यह विवेक के विकास को विराम देती है। इसलिए इस पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है।
विद्यार्थी वर्ग अपने जीवन में इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि वह कभी भी कुसंगत वाले संगी-साथियों के साथ मेलजोल न बढाएं। इसके परिणाम स्वयं के लिए घातक साबित हो सकते है। साथियों से अच्छी संगति मिलेगी तो उसके फल भी अच्छे आएंगे। जीवन में व्यसन, बुराईयों का आगमन नहीं होगा। कॉलेज जीवन में खराब संस्कार आने की संभावना जताते हुए आचार्य ने प्रवचन स्थल पर उपस्थित विद्यार्थियों से जीवन में कभी भी नशा नहीं करने, शराब का सेवन नहीं करने और मांसाहार का सेवन नहीं करने का संकल्प दिलाया।
हमेशा जागरूक रहें मनुष्य
उन्होंने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्मों की बद्धता को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो कर्मों से बंधा हुआ है वह शरीर को धारण करता है। जहां शरीर होता है वहां शक्ति की स्फुरता होती है जहां शक्ति होती है वहां प्रवृति होती है और जहां प्रवृति होती है वहां मोह घेर लेता है। मोह की स्थिति में प्रमाद से बचने की साधना होनी चाहिए और हमेशा जागरूक रहें। इससे विनाश नहीं अपितु विकास होगा। शरीर, मन, वचन हमारे साथ है। जीवन में कभी भी मोह का योग नहीं होना चाहिए। संयम से की गई साधना को बडा बताते हुए मेधावी और मेघावी में अन्तर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि मेध का पर्याय है कुशाग्र बुद्धि वाला और मेघ है बादल। मेधावी जुड जाता है तो इसका तात्पर्य है विशिष्टता है। विशिष्टता तभी हो सकती है जब आई क्यू और एम क्यू के साथ ई क्यू एवं एस क्यू का विकास होगा। इनके विकास से ही सर्वागीनता आ सकती है उन्होंने कहा कि भाग्य के भरोसे कुछ भी नहीं मिलता। इसके लिए अच्छा पुरूषार्थ करना आवश्यक है। आदमी बडा तभी बन सकता है जब उसमें स्वयं का हित नहीं बल्कि यह भावना हो कि वह दूसरों की सेवा करने के बारे में मनन करें। उसके मन में पर कल्याण का भाव हो। आचार्य ने श्रावक-श्राविकाओं से अपने मन में अहंकार का भाव नहीं लाने का आहृान करते हुए कहा कि स्वयं का काम स्वयं करने की आदत अपने जीवन में डालें। दूसरों के अधीन रहने से काम पूरा भी नहीं होगा और यदि हो गया तो उससे आत्म संतुष्टि नहीं मिल सकेगी। जीवन में निरन्तर धर्म का विकास हो, परिवार के संस्कार अच्छे हो। इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
आप में से बने कोई महात्मा गांधी
आचार्य महाश्रमण ने महात्मा गांधी के जीवन से जुडा एक प्रयोग प्रस्तुत करते हुए कहा गांधीजी पर जैन धर्म का प्रभाव था। उनका ननिहाल जैन परिवार में था। जब गांधीजी विदेश गए थे तब उनकी नानी ने जैन संस्कारों के अनुसार कुछ संकल्प दिलाए थे। वैसे ही संकल्प मेरे सामने बैठे मेधावी विद्यार्थी धारण करें और जीवन को संस्कारित बनाएं, ताकि आप में से कोई महात्मा गांधी भी बन जाए।
चरित्र पर निर्भर विश्वसनीयता
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसे माता-पिता और परिवार का सहयोग मिलता है। जीवन की तमाम विपत्तियों का सामना करते हुए आगे बढता है तो समाज का सहयोग मिलता है और शनैः शनैः वह शीर्ष स्थान पर पहुंच जाता है। जीवन को सर्वागीन बनाने के लिए ज्ञान का होना भी आवश्यक है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है चरित्र का निर्माण। इसके बिना आदमी आगे नहीं बढ सकता। जीवन में चरित्र नहीं होगा तो पढा-लिखा इंसान भी अपराधी बन जाता है और यह अनपढ से भी ज्यादा खतरनाक साबित होता हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी ज्ञान अर्जन में सदैव आगे रहे, लेकिन चरित्र निर्माण में भी अग्रणी रहने की आवश्यकता है। पढाई पूर्ण कर वे जहां भी जाएंगे। विश्वसनीयता से काम कर सकेंगे। तेरापंथ जैन महासभा की ओर से समाज के मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा दिलाने और धन के अभाव में आगे पढाई नहीं कर पा रहे विद्यार्थियों को छात्रवृति उपलब्ध कराने के कार्यों को समाजापयोगी बताते हुए उन्होंने इसे वटवृक्ष की छाया देने वाला बताया। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि जीवन में उन्हें पढ लिखकर परिवार, समाज और देश के लिए बहुत कुछ करना है।
मेधावी आज होंगे पुरस्कृत
देेश के अधिकांश प्रांतों से 200 मेधावी छात्र-छात्राओं को रविवार को प्रवचन के बाद आयोजित होने वाले कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा। आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा इन विद्यार्थियों को मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ स्वर्ण पदक, आचार्य महाश्रमण स्वर्ण पदक, तेरापंथ महासभा द्वारा रजत पदक, आदि विभिन्न श्रेणियों में बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। इसके साथ प्रतिभा संपन्न योग्य विद्यार्थी को स्कॉलरशिप भी प्रदान की जाएगी। परियोजना के नियोजक के. सी. जैन ने बताया कि इस परियोजना के अन्तर्गत आरएएस, आईएएस सहित प्रोफेशनल डिग्री प्राप्त करने वाले को विशेष तौर पर प्रोत्साहित किया जाता है। उन्होंने बताया कि महासभा की ओर वर्ष 2006 में 212, 2007 में 385, 2008 में 310, 2009 में 315, 2010 में 258 तथा 2011 में 5 अगस्त तक 327 विद्यार्थियों का पंजीकरण किया गया। वहीं वर्ष 2006 में 45 विद्यार्थियों को 9 लाख 72 हजार, 2007 में 115 को 26 लाख 50 हजार 175, 2008 में 149 को 38 लाख 20 हजार 800, 2009 में 177 को 27 लाख 44 हजार 400, 2010 में 39 लाख 2 हजार तथा 2011 में 139 को 19 लाख 31 हजार 500 रुपए की छात्रवृति राशि वितरित की गई।
जैन विद्या कार्यशाला के पुरस्कार वितरित
कस्बे के तेरापंथ समवसरण में गुरुवार शाम को आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा और मुनि जयंत कुमार की प्रेरणा से आयोजित कार्यक्रम में जैन विद्या कार्यशाला के पुरस्कार वितरित किए गए। तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने बताया कि प्रथम- श्रीमती चेतना बोहरा, द्वितीय- वनिता चपलोत तथा तृतीय- किरण कोठारी व विकास गांग तथा पांच अन्य को सांत्वना पुरस्कार वितरित किए गए। इस अवसर पर पूरण गांग, नीरू कोठारी और हेमलता कोठारी ने 18 जुलाई से 30 जुलाई तक आयोजित हुई कार्यशाला के दौरान प्राप्त अनुभवों की जानकारी दी। संचालन तेयुप के मंत्री लक्की कोठारी ने किया। आभार रुपेन्द्र बोहरा ने जताया।
कान, नाक और गला रोग का निःशुल्क जांच शिविर आज
आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में रविवार को कॉन्फ्रेन्स हॉल, भिक्षु विहार में कान, नाक और गला रोग का निःशुल्क जांच शिविर आयोजित किया जाएगा। सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक आयोजित होने वाले इस शिविर में डॉ. सतीश जैन एवं सहयोगी विशेषज्ञ द्वारा रोगियों की जांच की जाएगी। जांच के बाद ऑपरेशन के लिए योग्य रोगियों का पंजीयन कर अत्यंत रियायती दरों पर जैन ई.एन. टी हॉस्पीटल, जयपुर में आधुनिक उपकरणों से ऑपरेशन किया जाएगा।
विद्यार्थी वर्ग अपने जीवन में इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि वह कभी भी कुसंगत वाले संगी-साथियों के साथ मेलजोल न बढाएं। इसके परिणाम स्वयं के लिए घातक साबित हो सकते है। साथियों से अच्छी संगति मिलेगी तो उसके फल भी अच्छे आएंगे। जीवन में व्यसन, बुराईयों का आगमन नहीं होगा। कॉलेज जीवन में खराब संस्कार आने की संभावना जताते हुए आचार्य ने प्रवचन स्थल पर उपस्थित विद्यार्थियों से जीवन में कभी भी नशा नहीं करने, शराब का सेवन नहीं करने और मांसाहार का सेवन नहीं करने का संकल्प दिलाया।
हमेशा जागरूक रहें मनुष्य
उन्होंने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्मों की बद्धता को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो कर्मों से बंधा हुआ है वह शरीर को धारण करता है। जहां शरीर होता है वहां शक्ति की स्फुरता होती है जहां शक्ति होती है वहां प्रवृति होती है और जहां प्रवृति होती है वहां मोह घेर लेता है। मोह की स्थिति में प्रमाद से बचने की साधना होनी चाहिए और हमेशा जागरूक रहें। इससे विनाश नहीं अपितु विकास होगा। शरीर, मन, वचन हमारे साथ है। जीवन में कभी भी मोह का योग नहीं होना चाहिए। संयम से की गई साधना को बडा बताते हुए मेधावी और मेघावी में अन्तर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि मेध का पर्याय है कुशाग्र बुद्धि वाला और मेघ है बादल। मेधावी जुड जाता है तो इसका तात्पर्य है विशिष्टता है। विशिष्टता तभी हो सकती है जब आई क्यू और एम क्यू के साथ ई क्यू एवं एस क्यू का विकास होगा। इनके विकास से ही सर्वागीनता आ सकती है उन्होंने कहा कि भाग्य के भरोसे कुछ भी नहीं मिलता। इसके लिए अच्छा पुरूषार्थ करना आवश्यक है। आदमी बडा तभी बन सकता है जब उसमें स्वयं का हित नहीं बल्कि यह भावना हो कि वह दूसरों की सेवा करने के बारे में मनन करें। उसके मन में पर कल्याण का भाव हो। आचार्य ने श्रावक-श्राविकाओं से अपने मन में अहंकार का भाव नहीं लाने का आहृान करते हुए कहा कि स्वयं का काम स्वयं करने की आदत अपने जीवन में डालें। दूसरों के अधीन रहने से काम पूरा भी नहीं होगा और यदि हो गया तो उससे आत्म संतुष्टि नहीं मिल सकेगी। जीवन में निरन्तर धर्म का विकास हो, परिवार के संस्कार अच्छे हो। इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
आप में से बने कोई महात्मा गांधी
आचार्य महाश्रमण ने महात्मा गांधी के जीवन से जुडा एक प्रयोग प्रस्तुत करते हुए कहा गांधीजी पर जैन धर्म का प्रभाव था। उनका ननिहाल जैन परिवार में था। जब गांधीजी विदेश गए थे तब उनकी नानी ने जैन संस्कारों के अनुसार कुछ संकल्प दिलाए थे। वैसे ही संकल्प मेरे सामने बैठे मेधावी विद्यार्थी धारण करें और जीवन को संस्कारित बनाएं, ताकि आप में से कोई महात्मा गांधी भी बन जाए।
चरित्र पर निर्भर विश्वसनीयता
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसे माता-पिता और परिवार का सहयोग मिलता है। जीवन की तमाम विपत्तियों का सामना करते हुए आगे बढता है तो समाज का सहयोग मिलता है और शनैः शनैः वह शीर्ष स्थान पर पहुंच जाता है। जीवन को सर्वागीन बनाने के लिए ज्ञान का होना भी आवश्यक है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है चरित्र का निर्माण। इसके बिना आदमी आगे नहीं बढ सकता। जीवन में चरित्र नहीं होगा तो पढा-लिखा इंसान भी अपराधी बन जाता है और यह अनपढ से भी ज्यादा खतरनाक साबित होता हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी ज्ञान अर्जन में सदैव आगे रहे, लेकिन चरित्र निर्माण में भी अग्रणी रहने की आवश्यकता है। पढाई पूर्ण कर वे जहां भी जाएंगे। विश्वसनीयता से काम कर सकेंगे। तेरापंथ जैन महासभा की ओर से समाज के मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा दिलाने और धन के अभाव में आगे पढाई नहीं कर पा रहे विद्यार्थियों को छात्रवृति उपलब्ध कराने के कार्यों को समाजापयोगी बताते हुए उन्होंने इसे वटवृक्ष की छाया देने वाला बताया। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि जीवन में उन्हें पढ लिखकर परिवार, समाज और देश के लिए बहुत कुछ करना है।
मेधावी आज होंगे पुरस्कृत
देेश के अधिकांश प्रांतों से 200 मेधावी छात्र-छात्राओं को रविवार को प्रवचन के बाद आयोजित होने वाले कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा। आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा इन विद्यार्थियों को मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ स्वर्ण पदक, आचार्य महाश्रमण स्वर्ण पदक, तेरापंथ महासभा द्वारा रजत पदक, आदि विभिन्न श्रेणियों में बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। इसके साथ प्रतिभा संपन्न योग्य विद्यार्थी को स्कॉलरशिप भी प्रदान की जाएगी। परियोजना के नियोजक के. सी. जैन ने बताया कि इस परियोजना के अन्तर्गत आरएएस, आईएएस सहित प्रोफेशनल डिग्री प्राप्त करने वाले को विशेष तौर पर प्रोत्साहित किया जाता है। उन्होंने बताया कि महासभा की ओर वर्ष 2006 में 212, 2007 में 385, 2008 में 310, 2009 में 315, 2010 में 258 तथा 2011 में 5 अगस्त तक 327 विद्यार्थियों का पंजीकरण किया गया। वहीं वर्ष 2006 में 45 विद्यार्थियों को 9 लाख 72 हजार, 2007 में 115 को 26 लाख 50 हजार 175, 2008 में 149 को 38 लाख 20 हजार 800, 2009 में 177 को 27 लाख 44 हजार 400, 2010 में 39 लाख 2 हजार तथा 2011 में 139 को 19 लाख 31 हजार 500 रुपए की छात्रवृति राशि वितरित की गई।
जैन विद्या कार्यशाला के पुरस्कार वितरित
कस्बे के तेरापंथ समवसरण में गुरुवार शाम को आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा और मुनि जयंत कुमार की प्रेरणा से आयोजित कार्यक्रम में जैन विद्या कार्यशाला के पुरस्कार वितरित किए गए। तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री लक्की कोठारी ने बताया कि प्रथम- श्रीमती चेतना बोहरा, द्वितीय- वनिता चपलोत तथा तृतीय- किरण कोठारी व विकास गांग तथा पांच अन्य को सांत्वना पुरस्कार वितरित किए गए। इस अवसर पर पूरण गांग, नीरू कोठारी और हेमलता कोठारी ने 18 जुलाई से 30 जुलाई तक आयोजित हुई कार्यशाला के दौरान प्राप्त अनुभवों की जानकारी दी। संचालन तेयुप के मंत्री लक्की कोठारी ने किया। आभार रुपेन्द्र बोहरा ने जताया।
कान, नाक और गला रोग का निःशुल्क जांच शिविर आज
आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में रविवार को कॉन्फ्रेन्स हॉल, भिक्षु विहार में कान, नाक और गला रोग का निःशुल्क जांच शिविर आयोजित किया जाएगा। सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक आयोजित होने वाले इस शिविर में डॉ. सतीश जैन एवं सहयोगी विशेषज्ञ द्वारा रोगियों की जांच की जाएगी। जांच के बाद ऑपरेशन के लिए योग्य रोगियों का पंजीयन कर अत्यंत रियायती दरों पर जैन ई.एन. टी हॉस्पीटल, जयपुर में आधुनिक उपकरणों से ऑपरेशन किया जाएगा।
No comments:
Post a Comment