Thursday, August 25, 2011

पर्युषण में बढाएं अपनी साधनाः आचार्यश्री महाश्रमण

तेासपंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने श्रावक समाज से आहृान किया कि वे शुक्रवार से शुरु हो रहे पर्युषण महापर्व के दरम्यान भौतिक संसाधनों से परे रहकर संयम की आराधना में अपना चित्त लगाएं और अपनी साधना में आशातीत इजाफा करने का प्रयास करें। वर्षभर में महज एक मर्तबा जीवन में आने वाला यह महापर्व व्यक्ति के अर्न्तःमन को पूरी तरह से धर्ममय बनाता है। एक तरह से यह भी कह सकते है कि यह संयम की आराधना का समय है। इसका पूरा-पूरा लाभ अर्जित करने की आवश्यकता है।
उक्त उद्गार आचार्यश्री ने यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान गुरुवार को दैनिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लोग धर्म की साधना करने के लिए घरों की सुख-सुविधाओं को छोडकर यहां उपासना कर रहे है। अस्थाई रुप से निर्मित कुटीर में रहकर साधारण जीवन व्यतीत करने में लगे हुए है। धर्मोपासना कर रहे है। यह सिनेमा, चलचित्र टेलीविजन और भौतिक संसाधनों से यह दूर है। इनकी ओर से की जा रही आराधना उन्हें कुछ अंशों में साधु जीवन व्यतीत करने की दिशा में अग्रसर कर रही है।
उन्होंने कहा कि संयम का अभ्यास करना और धर्म आराधना में तल्लीन रहना भी एक साधना है। व्यक्ति को अपने रहन-सहन, खान-पान के प्रति संयमता बरतने की आवश्यकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी कालातंर में पर्युषण महापर्व की महत्ता को जानते हुए इस दौरान पूरी तरह से धर्ममय जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी थी। उसी की पालना करते हुए आज पर्युषण को आराधना महाशिविर के रुप में मनाया जाने लगा है। इसलिए श्रावक-श्राविकाओं को चाहिए कि वे इस महापर्व के आठ दिनों में अपने जीवन को पूरी तरह से संयमित रखने का प्रयास करें।
फिर भी लोग जमीन से उगने वाली सब्जियों यथा मूली, आलू, गाजर, जमीकंद इत्यादि का प्रयोग करने से बचे। सूर्यास्त के बाद भोजन करने की प्रवृति को त्यागने की आवश्यकता है। उन्होंने समता की साधना को पुष्ट करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि पर्युषण में साधना का अच्छा समय है। केलवा चातुर्मास में इस दौरान प्रतिदिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा तय हो चुकी है। बस आवश्यकता है पूरे दिन होने वाले कार्यक्रमों का लाभ उठाने की।
कषाय विजय की साधना करें
आचार्यश्री ने व्यक्तियों के मन में व्याप्त होने वाले कषायों को मंद करने का आहृान करते हुए कहा कि इस पर विजय पाना भी एक तरह से साधना है। आदमी जितना विकृतियों से दूर रहने का प्रयास करेगा उतनी ही उसकी धार्मिक भावना पुष्ट होगी। इस पर नियंत्रण हो जाता है तो व्यक्ति को आत्मा की अनुभूति का अहसास होता है। संबोधि के चौथे अध्याय में उल्लेखित सहजानंद को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह वाणी का विषय नहीं हैं इसे अनुभव किया जाता है। यह अपने आप में विशिष्ट है। किसी व्यक्ति से बात करने के लिए भी एक तरीका होता है। बात में सारगर्भिता न हो तो सामने वाला प्रभावित नहीं हो सकता। व्यक्ति यह सोचता है कि जैसा मैंने दिया उसी के अनुरुप उसे मिले। यह संभव नहीं है। उन्होंने एक वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि जीवन में जिस तरह से मनुष्य स्वप्न को देखता है, लेकिन उसे किसी के हाथ पर रखकर साबित नहीं कर सकता कि जो उसने देखा है वह सही है। उसी तरह आत्मा का अनुभव किया जा सकता है, उसे दिखाया नहीं जा सकता। इसी तरह सहजानंद की अनुभूति ही की जा सकती है। मन संयमित रखने से आत्मानंद को भोगा जा सकता है। अर्थात् उसका आनंद उठाया जा सकता है। व्यक्ति के जीवन में स्वयं के ऊपर कभी अहंकार का भाव नहीं आना चाहिए। जितना हम विनम्र रहने का प्रयास करेंगे उतना ही हमारी वैशिष्ट्य प्रदर्शित होगी। शास्त्रों में गुरु को महान् माना गया है। यदि गुरु रूष्ट हो जाए तो उसे मनाने का प्रयास व्यक्ति को करना चाहिए। उलाहना देना उनका काम है। हमें उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयत्न करने की आवश्यकता है। हमसे जो गल्ती हुई है उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इससे समता का विकास होगा। यह उलाहने को झेलने से ही संभव हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पर्युषण के दौरान प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा धर्म की आराधना करने की जरूरत है। यह महापर्व अतीत का प्रतिक्रमण करने का पर्याय है। हमें स्वयं को देखने का प्रयास करना चाहिए। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जीवन प्रकृति का नाम है। प्रवृति जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है। धार्मिक व्यक्ति को प्रवृति के साथ निवृति का अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने अणुव्रत आंदोलन के घोष संयमः खलु जीवनम् का उल्लेख करते हुए कहा कि संयम के जागरण से जीवन सफल हो सकता हे। व्यक्ति को लक्ष्य पूर्वक चलना चाहिए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
खाद्य संयम दिवस आज
आचार्यश्री के सान्निध्य में शुक्रवार से तेरापंथ समवसरण भिक्षु विहार में पर्युषण पर्व दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम शुरु होंगे। पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रुप में मनाया जाएगा। इस दौरान सुबह सवा पांच बजे से सवा छह बजे तक जप, अर्हत्-वंदना, गुरु वंदना, वृहद् मंगलपाठ, पाथेय, साढे छह बजे से सवा सात बजे तक आसन-प्राणायाम, साढे आठ से नौ बजे तक आगम-वाचन, नौ से ग्यारह बजे तक प्रवचन, सवा ग्यारह बजे से दोपहर बारह बजे तक प्रेक्षाध्यान सिद्धांत प्रयोग, दो से ढाई बजे तक नमस्कार महामंत्र जाप, ढाई से सवा तीन बजे तक व्याख्यान, साढे तीन बजे से चार बजे तक ध्यान, अनुप्रेक्षा, शाम पौने सात बजे से पौने आठ बजे तक गुरु वंदना-प्रतिक्रमण तथा रात आठ बजे से साढे नौ बजे तक अर्हत् वंदना-वक्तव्य होगा।



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