राजसमन्द। मैं इस जीवन से हार गया हूं बाउजी। यह भी कोई जीना है। बीमारी नहीं लगती तो मजदूरी कर दो पैसे जोड़ कर मैं और मेरी पत्नी कम से कम ठीक गुजर बसर तो कर सकते थे। लेकिन मेरी व्यथा को कौन सुने। ऐसी जिदंगी से मौत भली।राजसमन्द जिला कलक्ट्रेट कार्यालय के समीप गुरुवार दिन में अपनी पीडा को बयां कर रहे कुम्भलगढ उपखण्ड के कालिंजर गांव का घासीराम पुत्र उदा गुर्जर की आंखो से आंसू झर-झर बहने लगते है। समाजसेवी कालू सिंह बडगुल्ला के साथ जिला मुख्यालय पर आए पचास वर्षीय घासीराम गुर्जर ने बताया है कि छह वर्ष पूर्व उसे अज्ञात बीमारी ने आगोश में ले लिया। इसके बाद उसके पैर और हाथों की अंगुलियां एक-एक कर सडती हुई आधी हो गई और अब हालात यह हो गई कि पैर व हाथों में अंगुलिया है ही नहीं। बिना अंगुलियों के हाथ पैरो में अब भी जख्म है, जिनसे रिसाव हो रहा है। मक्खी-मच्छरों से बचाने के लिए घाव को कपड़े से ढक कर रखना पड़ता है। बीमारी ने जैसे-जैसे पग पसारने शुरू किए मजदूरी को भी छोड़ इलाज की चिंता पहले सताने लगी। घासीराम के अनुसार गांव से लेकर शहर के डॉक्टरों तक बीमारी को बता चुका है लेकिन कोई चिकित्सक उसे बीमारी का समुचित इलाज नहीं दे पायाँ घासीराम के अनुसार उसे पास डेढ़ बीघा जमीन थी वह भी इस उम्मीद से बेची की बीमारी का इलाज करवा कर फिर मजदूरी कर जमीन वापस खरीद लेगा लेकिन बीमारी से राहत नहीं मिली। घासीराम बताता है कि अब गुजर-बसर पत्नी के जिम्मे है वह भी कई बार बीमार हो जाती है जिससे घर खर्च बमुश्किल चलता है। जर्जर होती झौंपड़ी को भी ठीक करवाना दूर की बात है। राहत नहीं मिली ः घासीराम गुर्जर बताता है कि ग्राम पंचायत मुख्यालय पर आयोजित शिविर में आए अधिकारियों को कई बार व्यथा सुनाई और उनसे बीमारी के इलाज के लिए आर्थिक सहायता दिलवाने की गुजारिश की लेकिन किसी ने राहत के लिए कोई कदम नहीं उठाया।घासीराम गुर्जर ने बताया कि अब राहत की उम्मीद सिर्फ जिला कलक्टर से है। इसलिए कालिंजर से यहां प्रार्थना पत्र देने आया हूं। अब भी कोई राहत नहीं मिलती है तो फिर जिदंगी ईश्वर भरोसे ही छोड़नी होगी।
No comments:
Post a Comment