राजसमन्द। मुनि तत्वरूचि तरूण ने कहा कि तप से चेतना की लो प्रावलित होनी चाहिए। शांति का दीप जलना चाहिए। यदि तप द्वारा जीवन मेंे शांति की प्राप्ति नहीं होती है तो तपस्या विचारणी बन जाती है। तपस्या को विचारणीय नहीं अनुकरणीय बनाएं। यह विचार उन्होने सोमवार को अक्षय तृतीया के अवसर पर किशोरनगर में धर्मसभा मे व्यक्त किए। मुनि ने कहा कि तपस्या एक पवित्र गंगा है, जिसमें नहाने से जीवन निर्मल और पवित्र बन जाता है। मुनि ने प्रेरणा देते हुए कहा कि तपस्या में आडम्बर और प्रदर्शन न हो, क्याेंकि तपस्या आत्मशुध्दि के लिए होती है। नाम, यश, ख्याति, पूजा, प्रतिष्ठा से मुक्त केवल आत्मनिष्ठा से कर्म निर्जरा के लिए तपस्या की जानी चाहिए।
मुनि भवभूति ने कहा कि धर्म ध्यान से जीवन में शांति का अवतरण होना चाहिए। शांति की उपलब्धि न हो तो धम्र करने का कोई अर्थ नहीं है। क्याेंकि धर्म का उद्देश्य शांति की स्थापना है। इस अवसर पर मुनि कोमल ने भगवान ऋषभ की अक्षय तृतीया से संबंधित घटना का उल्लेख किया।
मुनि भवभूति ने कहा कि धर्म ध्यान से जीवन में शांति का अवतरण होना चाहिए। शांति की उपलब्धि न हो तो धम्र करने का कोई अर्थ नहीं है। क्याेंकि धर्म का उद्देश्य शांति की स्थापना है। इस अवसर पर मुनि कोमल ने भगवान ऋषभ की अक्षय तृतीया से संबंधित घटना का उल्लेख किया।
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