राजसमन्द। मुनि तत्वरुचि ने कहा कि साधु संयम से ही शोभायमान होता है। संयम के अभाव में तो साधुत्व की कल्पना भी संभव नहीं है। संयम का पर्याय होने से साधु पूजनीय और वंदनीय होता है।
शहर के सौ फीट रोड स्थित महाप्रज्ञ विहार में आयोजित धर्मसभा में मुनि ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साधु में संयम सर्वोपरि होता है जबकि श्रावक संयमासंयमी होता है। संत का उठना, बैठना, चलना, बोलना, खाना, पीना, सोना, देखना संयमपूर्वक होता है। संयमी पुरूष अपनी इंद्रियों तथा मन को सुसमाहित रखते हुए ध्यान और स्वाध्याय में लीन रहते है। इससे पहले मुनि तत्वरुचि अपने सहवर्ती संत भवभूति, मुनि कोमल, मुनि विकास के साथ तुलसी साधना शिखर अणुविभा केन्द्र से विहार कर यहां पहुंचे।
शहर के सौ फीट रोड स्थित महाप्रज्ञ विहार में आयोजित धर्मसभा में मुनि ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साधु में संयम सर्वोपरि होता है जबकि श्रावक संयमासंयमी होता है। संत का उठना, बैठना, चलना, बोलना, खाना, पीना, सोना, देखना संयमपूर्वक होता है। संयमी पुरूष अपनी इंद्रियों तथा मन को सुसमाहित रखते हुए ध्यान और स्वाध्याय में लीन रहते है। इससे पहले मुनि तत्वरुचि अपने सहवर्ती संत भवभूति, मुनि कोमल, मुनि विकास के साथ तुलसी साधना शिखर अणुविभा केन्द्र से विहार कर यहां पहुंचे।
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