Wednesday, April 22, 2009

जीवन में दर्शन को स्थान दो प्रदर्शन को नहीं : मुनि संजय कुमार

राजसमन्द। स्वयं को पहचानो, आदमी आत्मा की प्रवृति में स्वयं जागरूक नहीं रहेगा तो संसार का भव भ्रमण और बढाएगा। किचड में जन्म लेने वाला कमल का फूल पानी के उपर रहता है। इस तरह हमें संसार में व गृहस्थ में रहते हुए किस तरह जीना है। ऐसा लगता है गौण प्रमुख हो गया है व प्रमुख को गौण कर रहे हैं। इसलिए हमारे जीवन का प्रमुख लक्ष्य खोजना बहुत जरूरी है। सत्य के पुजारी बने बिना, तथ्य की खिडकी से तथ्य को खोज सकते है। धर्म ध्यान करने वाले व्यक्ति भी यह कहते है हमारे घर में बिलकुल शांति नहीं है। शांति कैसे आएगी, यथार्थ को समझे बिना वास्तविकता का जीवन व्यक्ति नहीं जी सकता। सूरज के सामने मोमबत्ती का क्या महत्व है। रोजाना यह अभ्यास हो कि मुझे अहंकार न छुए, इगो को प्रबल ना होने दे जीवन में दर्शन को स्थान दो प्रदर्शन को नहीं। हमारी दिनचर्या में ध्यान को स्थान दो ध्यान की एक सौ बारह पद्यतियां संसार में बताई जाती है। शस्त्राें के आधार उसमें सर्वश्रेष्ठ प्रेक्षाध्यान पद्यति हे जो आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दृष्टियाें से सम्पूर्ण पद्यति है। उक्त विचार मुनि संजय कुमार ने किशोर नगर में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
आगन्तुक चन्द्र लोक के जमाने की बहु :परिवार में सबसे यादा जिम्मेदारी महिला की होती है। यदि केन्द्र में पदार्थ है व यथार्थ है तो क्लेश नहीं होगा। केन्द्र में स्वार्थ की भावना नहीं रहनी चाहिए। केन्द्र मेंे आत्मा है। आत्मार्थी नहीं। केन्द्र में मुख्यत: आत्मा निवास करती है। किसी भी तरह की प्रतिक्रिया में व्यक्ति समभाव से रहता है, वह सच्चा इन्सान है। उक्त विचार मुनि संजय कुमार ने किशोरनगर में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल की साप्ताहिक संगोष्ठी में व्यक्त किए। उन्होने कहा हर परिवार में नई बहु के आगमन का बेसबरी से इन्तजार होता है। आगंतुक चन्द्र लोक के जमाने की बहु भी ससुराल पूरी तैयारी के साथ आती है। दोनो प्रसन्न व उत्सुक होते हैं। उसके बाद सास बहु के बीच आपसी संबंधाें में अमृत और जहर गोलने वाला कौनसा तत्व हे उसे जानना जरूरी है। वह है सकारात्मक चिन्तन, पोजेटिव सोच जो दोनो के संबंधाें में अमृत गोल देता है। नेगेटीव चिन्तन जहर गोल देता है।

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