राजसमन्द। जिले के पीपली अहीरान गांव के मेघाखेड़ा गांव के लोग रविवार सुबह समाचार पत्रों में कुम्भलगढ़ उपखण्ड क्षेत्र के कालिंजर गांव में जमीन से मूर्ति निकालने वाली घटना को पढ़कर हैरान रह गए। खबर में उसके नाम पते को देख कर ग्रामीणों के मुंह से यही निकला कि अरे यह तो वही संत रामदास है जो 10-12 दिन पहले मेघाखेड़ा में आया और शंकरलाल अहीर के मकान से हिंगलाज माता की मूर्ति निकाली थी। अब तक उस कथित संत रामदास पर अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर गुणगान कर रहे थे वे ही लोग असलियत जानकर अपने आप को कोसने लगे। मेघाखेड़ा निवासी माधवलाल अहीर ने बताया कि करीब 10-12 दिन पहले संत रामदास उनके गांव में लूढकते-लूढकते हुए आया और गांव के चारभुजा मंदिर के बाहर चबूतरे पर डेरा जमाया। संत रामदास अपने आप को मध्यप्रदेश के जबलपुर गांव से आना बताया। यहां आकर उसने लोगों को चमत्कार दिखाए जिससे कई ग्रामीण उससे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मिलने लगे।इसी दौरान गांव का शंकर लाल पुत्र परसराम अहीर भी रामदास से मिला और अपनी बीमार रहने वाली बेटी की समस्या के निदान के बारे में चर्चा की। संत रामदास ने शंकर लाल से उसके घर का नक्शा मंगवाया और देखने के बाद कहा कि मकान के पोल में माताजी की मूर्ति दबी हुई है । उसे निकालने के बाद ही बीमार बेटी ठीक हो सकेगी। माधवलाल ने बताया कि संत रामदास ने 19 दिसम्बर की रात सात बजे मकान की पोल से मूर्ति निकालने का समय निर्धारित कर खुदाई की। करीब चार फीट तक खोदने के बाद अंदर पूजा-अर्चना कर खड्ड को कपड़े से ढंका और कुछ देर बाद अंदर से छह-सात इंüच ऊंची हिंगलाज माता की मूर्ति लेकर बाहर आया। मूर्ति बाहर लाते ही मौजूद ग्रामीणों ने माताजी के जयकारे लगाने लगे। इसके बाद संत रामदास ने उसकी मूर्ति की पूजा की और मल मास होने की वजह से मूर्ति को गेहूं के ढेर में रखवा दी। इधर मूर्ति निकलने से प्रसन्न होकर शंकर लाल अहीर ने संत रामदास को 11 सौ रुपए भेंट किए जबकि अन्य ग्रामीणों ने भी दो-तीन हजार भेंट किए। इसके बाद संत रामदास मेघाखेडा से गोगाथला गया और वहां दो-तीन दिन रहने के बाद नदारद हो गया। इस घटना के कुछ दिन बाद जब ग्रामीणों ने कौतुहलवश हिंगलाज माताजी की मूर्ति वापस गेहूं के ढेर से निकाल कर देखी तो वहां मौजूद एक आदिवासी व्यक्ति ने बताया कि गांव के समीप भीलों के देवरे में हिंगलाज माता की यह मूर्ति है जो पिछले दिनों गायब हो गई थी। हालांकि तब ग्रामीणों ने उस आदिवासी युवक की काफी खिल्ली उडाई लेकिन अब कालिंजर की घटना का खुलासा होते ही ग्रामीणों को यकिन हो गया कि वह संत के भेष में ठग था।
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