Wednesday, April 1, 2009

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में भोर तक जमे रहे दर्शक

राजसमन्द। जिला मुख्यालय पर पांच दिवसीय गणगौर महोत्सव के चौथे दिन आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कवि व कवयित्रियों ने विभिन्न रसों में काव्य पाठ कर बालकृष्ण स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। रात नौ बजे से शुरू हुआ कवि सम्मेलन ने बुधवार सुबह पांच बजे तक दर्शकों को बांधे रखा।
कवि देवकरण देव ने कवि सम्मेलन की शुरूआत मां सरस्वती एवं मातृभाषा राजस्थानी को मानपूर्वक शिरोधार्य करते हुए मायड शारदे हिवडा में करे वास, किरपा री राख आस सुनाकर दर्शकों को भक्ति एवं मातृभाषा प्रेम के प्रति विभोर कर दिया।
हाथरस से आए कवि अनिल बोहरे ने मोटापे से लाभ होता है, मै भी गणेश था लेकिन सूंड गायब हो गई, तथा विश्व मंदी के हालात पर विदेश में जमा भारत का काला धन मंगवाई सुनाकर दर्शकों की काफी तालिया बटोरी। अशोक हंगामा ने नेताजी पैराशूट लेकर कूद गए सुनाकर दर्शकों को पेट पकड-पकड कर हंसने पर मजबूर कर दिया। हंगामा की मिट्ठू गंगाराम कविता प्रस्तुत की तो दर्शक ने खडे होकर खूब दाद दी।
कवयित्रि वेदांजली ने श्रृंगार रस की बौछार करते हुए राजस्थानी गीत पिया म्हारे मन री बात सुनजा सुनाकर युवा-युवतियों की काफी तालियां बटोरी। उन्होंने मां शब्द को दुनिया का सबसे प्रिय शब्द बताते हुए जो कविता प्रस्तुत की उससे अधिकांश दर्शक भाव विभोर हो गए। सूत्रधार एवं स्थानीय कवि सुनील जी सुनील ने मिट्टी तो महंगी है इंसान मगर सस्ते है और तम्बाकु व हकले की सीटीज सुनाई जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया और लगातार इन कविताओं को एक बार फिर से सुनाने की मांग करते रहे।
राजकुमार बादल ने व्यंग्यबाण छोडते हुए म्हारे तितरी को वेलवेट को लहंगों लादों और लारे आती लारे जाती थोडो मुण्डो मलकाती, म्हारे सीली पडती छाती सुनाकर कवि सम्मेलन का रंग जमाना शुरू किया। सबरस मुलतानी अलीगढ ने अपने विचित्र अंदाज में हास्य पैदा कर अपने नये अंदाज में श्रोताओं को खूब हंसाया। उन्होंने शास्त्रिय संगीत की विडम्बना और पैरोडिया गाकर तबले में नेता की आत्मा का समावेश कर कवि सम्मेलन में श्रोताओं की तालियां बटोरी।
कवयित्री स्वेता सरगम ने गजल से शुरूआत करते हुए कोई बिकता यहां भूखे तन के लिए कोई ठगता यहां धन के लिए, गीत बादल बरस जा अब तो सुनाकर समां बांध दिया। श्वेता ने बेटी के प्रति माता-पिता के प्यार को अपने शब्दों में यूं प्रस्तुत किया कि है पराया धन वो लगती नही कोई बेटी पिता को खटकती नही।
लाफ्टर चैम्पियन सुरेश अलबेला ने अपनी ही स्टाइल में ताली पीटते हुए ठहाकों की बरसात कर दी। अलबेला ने चिंतन की कविता मुम्बई हमले व ताज पर हमला नहीं होता सुनाकर तालियां बटोरी। उन्होंने चिराग आंधियों के सामने भी जलाए होते तो तूफानों की सूरज को ललकारने की हिम्मत नहीं होती कविता सुनाईं। मल्लिका शेरावत व इमरान हाशमी पर उनकी चिरपरिचित रचना सुनाई जिन्हें दर्शकों ने काफी सराही। केकडी के देवकरण ने राजस्थानी मस्ती का सैलाब लाते हुए अपना रंग जमाया। बन-ठन चाली म्हारे काळजा री कोर और नाराणी होगी सतरा की सुनाकर श्रोताओं को नाचने पर मजबूर कर दिया।
लखनऊ से आए वीर रस के शीर्ष कवि वेदव्रत वाजपेयी ने जोश का धमाका करते हुए श्रोताओं में देशभक्ति ज्वार उबार दिया। देश नहीं बनता मिट्टी-गिट्टी ईंट और मकानों से, मां का मस्तक ऊंचा होता बेटो के बलिदानों से। उन्होंने भारत माता का जयकारा लगाकर कवि सम्मेलन के मंदिर पर कलश रखा। अंत में संचालन की डोर संभालने वाले बुद्धिप्रकाश दाधीच ने मंगल ग्रह पर कविताएं सुनाई। दाधीच ने आगे-पाछे डोल-डोल बाल दियो पेट्रोल गीत सुनाकर रंग जमा दिया।

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