Monday, April 13, 2009

मासिक काव्य संगोष्ठी में बही रसधार

राजसमन्द। राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकराली के तत्वावधान में अणुव्रत विश्व भारती कांकरोली में मासिक काव्य संगोष्ठी परिषद के अध्यक्ष शेख अब्दुल हमीद की अध्यक्षता में आयोजित की गई। प्रथम चरण में गोष्ठी का शुभारंभ नगेन्द्र मेहता की चुनावी माहौल पर आधारित रेवडियें की घोषणा, उखाड-पछाड, शब्द बाण बौछाराें की कुण्डलियाें द्वारा किया गया। भंवर लाल पालीवाल बोस ने बरगद कविता के माध्यम से पक्षियाें का बसेरा स्थली की अभिव्यक्ति की। जवानसिंह सिसोदिया ने जनम लो मोटावो, भणीन नोकरी करो, पेंशन लो ओर परा मरों, सुनाकर सभी को गदगद किया। किशन कबीरा ने जहां तुमने मेरा जोडा बनाया वो मुझे निभाना नहीं आया प्रस्तुत की, माधव नागदा ने भू्रण हत्या आधारित दो लघुकथा बातचीत हम है ना, मनोहर सिंह आशिया ने अपनी मृत मां को श्रध्दांजली व्यक्त करते हुए मेरे जीवन को हरियाली की सौगात मिले मुझे तो चैन झोपडी में बारह मास मिले के साथ मैं अप्रेल फूल हूं कविता सुनाई। राधेश्याम सरावगी समूदिया ने घरेलू चिडिया की व्यथा को कहते वृक्षाें की बाढ के साथ साथ मानव जाति द्वारा सडकाें का जाल बिछाना, चौराहे तिराहे बनाना, भव्य कोलोनीयाें का निर्माण कर प्रकृति के साथ किये गये खिलवाड को कविता के माध्यम से व्यक्त किया। शेख अब्दुल हमीद ने जुल्माें सितम के आगे अमनो अमां की बाते हम कर रहे हैं गजल पेश की साथ ही गजल के चन्द्र मुखडे पेश किए।गोपालकृष्ण गर्ग क्या सिखूं, किसपे लिखूं कौन सुनता है यहां, कविता प्रस्तुत की, अब्दुल रहीस ने प्यास तो उन्हें भी लगती रचना पेश की।
दूसरे चरण में साहित्य जगत को गीतकार नईम, साहित्यकार विष्णु प्रभाकर और कवि सुधीप बेनर्जी के देहावसान से होने वाली क्षति पर कमर मेवाडी ने विस्तार से चिचार व्यक्त करते हुए साहित्य क्षेत्र के संक्रमण काल को स्पष्ट किया। साथ ही साथ अपने संस्मरणाें के माध्यम से साहित्यकाराें के जीवन दर्शन और कार्यों पर प्रकाश डाला। तीसरे चरण में साहित्यकाराें के देहावसान पर शोक व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा गय। अध्यक्ष द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

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