Tuesday, April 7, 2009

गुरू बिना घोर अन्धकार : मुनि तत्वरूचि

राजसमन्द। मुनि तत्वरूचि तरूण ने कहा कि जीवन में गुरू बिन घोर अन्धकार है। गुरू अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट कर ज्ञान का आलोक करते हैं। गुरू की महिमा अपरम्पार है। गुरू भवरूपी सागर में तरण-तारण जहाज है। जीवन में माता-पिता और गुरू का महान उपकार है। इसलिए हमें अपकारी के प्रति सदा कृतज्ञ होना चाहिए। मुनि सोमवार को तेरापंथ भवन कांकरोली में त्रिदिवसीय महावीर व्याख्यान माला के दूसरे दिन गुरू की महिमा और शिष्य की पवित्रता विषय पर प्रवचन कर रहे थे। उन्होने कहा कि गुरू के प्रति विनयवान ही जीवन में फलवान होता है। जीवन में सफलता विनय ओर समर्पण से अर्जित की जा सकती है। जो शिष्य गुरू की आज्ञा, निर्देश इंगित संकेत को समझ कर कार्य करता है वह योग्य और सुविनीत शिष्य कहलाता है। जैसे माता पिता अपनी सन्तान की चिंता करते है वैसे ही गुरू शिष्य के निर्माण के लिए सतत जागरूक रहते हैं। प्रवचन के पश्चात मुनि तत्व सहवर्ती संतो के साथ स्टेशन रोड पर मांगीलाल, योगेन्द्र कुमार चोरडिया के निवास पर पहुंचे। स्टेशन रोड पर मुनि का त्रिदिवसीय प्रवास रहेगा।

No comments: