राजसमन्द। मुनि तत्वरूचि तरूण ने कहा कि फूलों का सार जैसे इत्र से है वैसे ही जिंदगी का सार है चरित्र। चरित्र शून्य जीवन तो निष्प्राण है। उक्त विचार उन्होने सोमवार को किशोरनगर स्थित चन्दन निवास पर प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होने कहा कि चरित्र व्यक्तित्व का आंतरिक सौंदर्य है। शरीर से कोई कितना ही सुंदर हो यदि चरित्रहीन है तो वह अदर्शनीय और अप्रिय है। चरित्र जीवन का वास्तविक और स्थायी सौंदर्य है। मुनि ने कहा कि चित्र उसी का दर्शनीय है जिसका चरित्र अच्छ है। आज बाह्य प्रसाधनाें से चेहरे को सजाने, संवारने और निखारने का प्रयास तो बहुत किया जा रहा है लेकिन चरित्र को सुधारने व संवारने की कोशिश नहीं हो रही है। इस अवसर पर मुनि भवभूति, मुनि कोमल, मुनि विकास, दुलहराज, श्रीमती मीना चण्डालिया सहित अनेक श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।
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