Thursday, May 28, 2009

प्रताप के पहरूए गाड़ोलिया लौहार अब भी है खानाबदोश

राजसमन्द। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या आठ पर शहर के सनवाड़ चौराहा के समीप गाड़ोलिया लौहार के अस्थाई बसेरों में न कोई उत्साह का माहौल था और न ही उन्हें बसेरे से मात्र दो सौ मीटर दूर फव्वारा चौक से निकाली जाने वाली शोभायात्रा से कुछ लेना देना था। वह मस्त थे अपनी परस्पर चर्चाओं में और आज के दिन की जीविका के लिए कुछ श्रम करने में। इसी दौरान फव्वारा चौक से घरेलू सामग्री खरीद कर लाए युवक ने जब गाडोलिया लौहार के बसेरे के समीप बैठे अपने जातिबंधु से प्रताप जयंती के बारे में उल्लेख किया। उस वक्त सभी के चेहरे पर हल्की सी मुस्तकराहट तो आई और पल भर में हवा हो गई। महाराणा प्रताप के पहरूए गाडोलिया लौहार जिन्होंने महाराणा प्रताप के साथ ही मेवाड़ की आजादी तक घुमक्कड ज़ीवन व्यतीत करने का कठोर प्रण किया था। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को आजाद करवा दिया और उसके बाद अंग्रेजों से भारत को आजाद हुए साठ से यादा बरस हो गए लेकिन अब तक इनका घुमक्कड़ जीवन जारी है।
इनके बसरों में कलात्मक बैलगाड़ी के आसपास कच्चा पक्का निर्माण और ऊपर पतरे, केलू या प्लास्टिक की तरपाल लगा कर धूप से बचने के यत्न कर रखे है। बाहर लोहा पकाने और उनसे विविध सामग्री बनाने के लिए भट्टी और अन्य औजार रखे है। सुबह होते ही उदर की आग इन्हीं से जुझने के लिए अग्रसर करती है। कही कोई बच्चा नहा रहा तो कही कोई जूट की रस्सी से बुनी खाट पर अपनी मां के ध्यान नहीं देने पर रो-रोकर बुरा हाल किए हुए है। हालांकि दूर से कोई उसे आवाज देकर उसे चुप कराने की कोशिश में लेकिन ममता भरा स्नेह नहीं पाकर उस मासूम की अश्रुधारा अविरल सी बहती रही। बसेरे के पास परिवार के लोग भी चर्चा में रत है मगर उनकी बातों में महाराणा प्रताप और अपने पूर्वजों द्वारा किए गए प्रण का कोई पुट नहीं। बस उनकी बातों में तो कहां क्या चल रहा है। इस पर विशेष जोर है। राणा प्रताप के पहरूए अब तो आम होने लगे है पर वह अपना प्रण कब छोडेंगे इस पर लाजवाब है।

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