आईडाणा। मेवाड के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्नाधाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामीभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था।
अफसोस कि इस वीरांगना का गांव कमेरी, विकास के साथ वीरांगना के इतिहास की जानकारी कराने से आज भी कोसों दूर है। यहां पन्नाधाय व नन्हें चंदन का स्मारक, स्मृति या चबूतरा तक नहीं है, जिससे यहां आने वाले पर्यटकों को कुछ जानकारी हो सके। यहां तक कि अधिकतर लोगो को इसकी जानकारी तक नहीं है।
अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना की यह धरा अपने गौरव के लिए महरूम है। आजादी के 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद प्रशासनिक व राजनीतिक उदासीनता के चलते दुर्दशा का शिकार है। यह स्थिति देख गांव वालों सहित पन्नाधाय के वंशजों का मन भी द्रवित हो उठता है।
अफसोस कि इस वीरांगना का गांव कमेरी, विकास के साथ वीरांगना के इतिहास की जानकारी कराने से आज भी कोसों दूर है। यहां पन्नाधाय व नन्हें चंदन का स्मारक, स्मृति या चबूतरा तक नहीं है, जिससे यहां आने वाले पर्यटकों को कुछ जानकारी हो सके। यहां तक कि अधिकतर लोगो को इसकी जानकारी तक नहीं है।
अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना की यह धरा अपने गौरव के लिए महरूम है। आजादी के 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद प्रशासनिक व राजनीतिक उदासीनता के चलते दुर्दशा का शिकार है। यह स्थिति देख गांव वालों सहित पन्नाधाय के वंशजों का मन भी द्रवित हो उठता है।
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