Wednesday, December 10, 2008

पराक्रमी व्यक्ति परतंत्रता से मुक्त

मुनि तत्वरूचि तरूण ने कहा कि परावलम्बन परतत्रता है। स्वतत्रता के लिए स्वावलम्बी बनने का प्रयास करना चाहिए। उन्होने कहा पराक्रमी व्यक्ति ही परतत्रता के बन्धन से मुक्त हो सकता है। वे भिक्षु बोधिस्थल में तेरापंथ महिला मंडल की संगोष्ठी का सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा सुविधावाद स्वतत्रता में बाधक है। सुविधावादी दृष्टि व्यक्ति को परावलम्बी बनाती है। आज आधुनिक विज्ञान ने मनुष्य की साधन सुविधा को सम्पन्न बना दिया। मुनि विकास कुमार ने कहा पहला सुख निरोगी काया यह तभी सम्भव है जब श्रम करते रहेंगे। महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती लाड मेहता ने बताया कि गुरूवार 11 दिसम्बर को संगोष्ठी प्रातः दस बजे अनुशासन के दीप जीवन में कैसे जलाएं विषय पर होगी। श्रम के लिए शर्म किस बात की ःहर व्यक्ति सुविधा चाहता है । अपेक्षा हर व्यक्ति में होती है मगर उसके पीछे लक्ष्य क्या है लक्ष्य ये है उससे विदेह सुख मिले। जैन धर्म की तात्विक दृष्टि से विचार करें तो सुविधा का सम्बन्ध है पुण्य से, शुभ कर्म के उदय से जब आदमी को शुभ का उदय होता है तो सुख के साधन मिलते हैं । हमारी सोच में श्रमशीलता होनी चाहिए श्रम के लिए शर्म किस बात की। समस्या का समाधान स्वस्थ रहने के लिए श्रमशीलता में है। सतत् श्रम करने वाला हर दृष्टि से सफल होता है। उक्त विचार मुनि तत्वरूचि तरूण ने भिक्षु बोधि स्थल राजसमन्द में तेरापंथ महिला मंडल की साप्ताहिक संगोष्ठी में व्यक्त किए। मासिक विज्ञप्ति का वाचन सह मंत्री ललिता चपलोत ने किया। कोषाध्यक्ष सीमा धोका ने मासिक पत्रोत्तर की जानकारी दी। उपाध्यक्ष श्रीमती उर्मिला सोनी, हेमलता कोठारी ने मंगलाचरण किया। अध्यक्षता पूर्व अध्यक्ष श्रीमती पानी बाई बडोला ने की। आभार अध्यक्ष श्रीमती लाड़ मेहता ने किया।

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