Monday, December 15, 2008

विद्यालयों में मिल रहा है छूआछूत का सबक

राजसमन्द। ``अस्पृश्यता पाप है अपराध है'' देश की पाठ्युपुस्तकों में विगत कई वर्षें से इन पंक्तियें का उल्लेख सरकार ने यह सोचकर किया कि इन पुस्तकें को पढने वाले विद्यार्थी सजग हो और वर्षो से चली आ रही जातिगत आधारित छूआछूत की परम्परा समूल नष्ट करने में सहयाग दे सके। हालांकि शहरी क्षेत्रों में अब लोग समझने लगे है और दलित वर्ग के लोगें को अपना सहयोगी मानते है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रो में छूआछूत के हालात जस के तस बने हुए है।सर्व विदित है कि भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रो मे दलित वर्ग को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनके हाथ से पानी पीना या अन्य खाद्य पदार्थ लेना भीएक अपमान महसूस करने के बरराबर माना जाता है। यही नहीं इन दलित वर्ग को मंदिर में दर्शन नहीं करने देने, शादी के वक्त बिन्दोली घोडे पर नहीं निकालने देने की गैर दलितों ने परम्परा कायम की वह आज भी बदस्तूर जारी है।चिन्ताजनक स्थिति तब बन जाती है जब जिन विद्यालयें में बालक `छूआछूत को पाप और अपराध है' को सबक के रूप में पढता है वहां आज भी ग्रामीणों के दकियानुसी खयालात हावी है।सरकारी विद्यालयें में मिड डे मील (राष्ट्रीय पोषाहार)योजना के तहत पकने वाले पोषाहार के लिए राज्य सरकार द्वार मिड डे मील कार्यक्रम 2006 के जारी दिशा निर्देशें में अनुसूचित जाति एवं जनजातिवर्ग को प्राथमिकता देने के स्पष्ट निर्देश होने के बावजूद हालात यह है कि राजसमन्द जिले में शून्य के बराबर उक्त वर्ग को पोषाहार पकाने के कार्य में प्राथमिकता दी गई है।दलितों की व्यथा आंकडें की जुबानी : राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक सोहनलाल भाटी द्वारा हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत राजसमन्द जिले के सरकारी विद्यालयें में मिड डे मील योजना मे भोजन पकाने वाले महिला पुरूषें की जातिवार जानकारी ली। इस सूचना में जो आंकडे आए है वह न केवल राजसमन्द जिले के दलित वर्ग की अपितु राजस्थान राज्य के ग्रामीण इलाकों में दलित वर्ग की व्यथा को साफ बयान करते है।सूचना का अधिकार के तहत राजसमन्द जिले के 1749 सरकारी विद्यालयों में भोजन पकाने वाले महिला-पुरूषें के आंकडे उपलब्ध हुए। उनमें से दलित वर्ग के मात्र 21 महिला-पुरूष है जो कुल विद्यालयें में भोजन पकाने वालों का मात्र 1.37 प्रतिशत है। आंकडें के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग के मात्र 129 लोग भोजन पकाने में लगे है जिससे इनका प्रतिशत 7.37 बैठता है। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के भोजन पकाने वालें का राजसमन्द जिले के ब्लॉकवार आंकडे देखे तो आमेट ब्लॉक में कुल 156 विद्यालयें में पोषाहार पकाया जा रहा है जिनमें से एससी का कोई भी महिला-पुरूष नहीं है जबकि जनजाति वर्ग के दो लोग पोषाहार बनाने में लगे हुए है। भीम ब्लॉक के 337 विद्यालयो में एससी वर्ग के दो जन जबकि एसटी वर्ग का कोई नहीं है। देवगढ ब्लॉक के 194 विद्यालयें मे एससी वर्ग के सात तथा एसटी वर्ग केदो लोग पोषाहार बनाने मे लगे है। कुंभलगढ ब्लॉक के 317 विद्यालयों में एससी वर्ग के मात्र तीन जने है जबकि एसटी वर्ग के 52 व्यक्ति लगे हुए है। खमनोर में एससी वर्ग का एक तथा एसटी वर्ग के 38 लोग लगे है। राजसमन्द बलॉक के 285 विद्यालयें में एससी वर्ग केतीन और एसटी वर्ग के 26 लोग पोषाहार बना रहे है। चूंकि कुंभलगढ, खमनोर और राजसमन्द ब्लॉक में कई विद्यालय ऐसे है जहां सभी दलित वर्ग के बालक-बालिका ही पढ रहे हैं ऐसे में इन्हीं वर्ग का भोजन पका रहा है तो किसी के कोई आपत्ति नहीं। इधर रेलमगरा ब्लॉक के 187 विद्यालयें में एससी वर्ग के पांच और एसटी वर्ग के नौ जने पोषाहार पका रहे हैं।उपरोक्त भोजन पकाने दलित वर्गें के लोगों के बारे में साहनलाल भाटी ने अपने निजी सर्वे में पाया कि जिन विद्यालयें में दलित वर्ग के छात्र-छात्राआंð का शत प्रतिशत प्रवेश है उन्हीं विद्यालयें में भोजन पकाने के लिए उक्त वर्ग के लोगो को प्राथमिकता दी गई है।सरकार के निर्देशों का उल्लंघन : मिड डे मील योजना के तहत राजस्थान सरकार द्वारा दिशा निर्देश की पुस्तिका जारी की है जिसमें बिन्दु संख्या 11 में उल्लेख किया है कि पोषाहार पकाने के लिए शिक्षकों को पूर्णतया मुक्त रखा जावे और उनके एवज में गांव के अनुसूचित जाति , जनजाति वर्ग, बीपीएल, स्वयं समूह से नियमित मानदेय के आधार पर पोषाहार पकाया जावे। लेकिन सरकारी विद्यालयें में ही नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।

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