राजसमन्द गजल संग्रह `` लम्हा लम्हा जिन्दगी '' के कृतिकार शेख अब्दुल हमीद के सम्मान एवं कृति पर चर्चा के साथ साथ मासिक साहित्य संगोष्ठी का आयोजन तुलसी साधना शिखर के वाचनालय हॉल में आयोजित किया गया। अध्यक्षता एमडी कनेरिया स्नेहिल, मुख्य अतिथि कमर मेवाडी थे तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में चतुर कोठारी उपस्थित थे।प्रथम चरण में कृतिकार शेख अब्दुल हमीद का स्वागत कमर मेवाडी ने उपरना पहनाकर, एमडी कनेरिया स्नेहिल द्वारा महाराणा प्रताप की छवि भेंटकर माधव नागदा द्वारा प्रसाद भेंटकर एवं चतुर कोठारी द्वारा पान का बीडा देकर किया गया। तत्पश्चात लम्हा लम्हा जिन्दगी के कृतिकार ने दरो दीवार है बेहोश, किससे बात करे- तमाम शहर है खामोश, किससे बात करे, `` कैसे टूटी उनसे यारी फिर कभी बताएंगे- चाहिए इक उम्र सारी फिर कभी बतलाएंगे '' जैसी रचनाएं प्रस्तुत कर पुस्तक पर प्रकाश डाला।चर्चा के दौरान अफजल खां अफजल ने तालुक दिल, मोहब्बत, शुकून से है। जिन्दगी की वास्तविकता का बयान किया। नरेन्द्र मेहता ने सम्पूर्ण पुस्तक की समालोचना करते हुए अलग अन्दाज में समीक्षा प्रस्तुत करते हुए उद्दरण प्रस्तुत किए। फतहलाल गुर्जर अनोखा इन गजलों में शायर के अनुभवें का निचोड है। ये गजले वजनदार है। गजल में भाषा पर पूरा अधिकार बतलाया। दुर्गाशंकर मधु ने भी शेख अब्दुल हमीद की प्रसंशा की। साबीर शुक्रिया ने गजलो के उदाहरण प्रस्तुत कर शेख को इश्क मिजाजी बतलाया। चतुर कोठारी ने आलेख वाचन कर कृति पर प्रकाश डालते हुए भारतीय शायरी के गुलदस्ते का एक और फूल शेख अब्दुल हमीद को बतलाया। भंवर बोस ने कहा कि लम्हा लम्हा जिन्दगी की गजलें जीवन से जुडी है जिसे एकान्त में गुनगुनाने को जी चाहता है। पुष्पेन्द्र मादरेचा ने गजल संग्रह को विविध रंगो से सजी कृति बताते हुए कृतिकार पूर्ण रूप में गजलें में डूबा बतलाया। मोहम्मद इलियास ने बताया कि शेख अब्दुल हमीद की गजलों के वे प्रथम श्रोता है। जवान सिंह सिसोदिया कृतिकार को गजलें को बहुआयामी बतलाते हुए `` जबसे जुल्फो में फंसा हूं, सिलसिला जाता रहा'' प्रस्तुत की।
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