राजसमन्द। मुनि जतन कुमार लाडनूं ने कहा कि सत्य, शिव और सुन्दरम की त्रिवेणी है अनुशासन। अनुशासन की आंच में तपकर लोहा भी सोना बन जाता है। आत्मानुशासन जगे। जब अनुशासन भीतर से प्रकट होता है, बाह्य अनुशासन अकिंचित्कर हो जाता है। तेरापंथ धर्म शासन आत्मानुशासन की एक मिसाल है। यह विचार उन्होने शुृक्रवार को बोरज के तेरापंथ भवन में श्रावक-श्राविकाआें को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनि आनंद कुमार ने कहा कि अनुशासन की बात बच्चाें से लेकर बुजुर्ग तक सभी के लिए जरूरी है। अनुशासन रखना सभी चाहते हैं लेकिन अनुशासन में रहना कोई नहीं चाहता। अहंकार व ममकार इसके बाधक तत्व है। मुनि ने कहा कि आत्मानुशासन से अनुशासन सम्भव है क्याेंकि समय पर नियंत्रण होगा तो वाणी की मृदुता, विनम्रता सहज व्यवहार में आएंगे। प्रवचन सुनने के लिए बोरज के तेरापंथ भवन में बडी संख्या मेें श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
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