राजसमन्द। मुनि जतन कुमार लाडनूं ने कहा कि साधुत्व को स्वीकार करने वाले कुछ व्यकित उत्कर्ष को प्राप्त कर लेते हैं और कुछ गृहस्थ जेसा आचरण करने लग जाते हैं। जिसमें अंतर्मुखता क विकास नहीं होता वह उत्कर्ष को प्राप्त नहीं कर सकता। उक्त विचार उन्होने रविवार को तेरापंथ भवन बोरज में प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होने कहा कि राग संसार को चलाने वाला है, पर राग पर विराग का अंकुश भी होना चाहिए। भोग पर योग का और मनोरंजन पर आत्मरंजन का अंकुश जरूरी है। केवल राग होगा केवल भोग होगा तो दु:ख को आमंत्रण देने वाला होगा। इस अवसर पर मुनि आनंद कुमार ने कहा कि दुनिया में राग-द्वेष भी चलता है। राग-द्वेष है तभी यह जीवाें का संसार है। व्यक्ति विशेष के प्रति राग होता है तो किसी के प्रति द्वेष भी हो सकता है। राग और द्वेष की परम्परा समान्तर रूप से एक साधु के मन में किसी को हानि पहुंचाने का भाव कभी नहीं आना चाहिए। इस अवसर पर तेरापंथ भवन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
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