Monday, May 11, 2009

बालक की पहली अध्यापिका मां : मुनि जतन कुमार

राजसमन्द। मुनि जतन कुमार लाडनूं ने कहा कि मां वात्सल्य व ममता की प्रतिमूर्ति होती है। मां का अपनापन वात्सल्य व ममता प्रथम शिशु के लिए संजीवनी बुटी की तरह होती है। यह विचार उन्होने रविवार रात्रि को बोरज स्थित तेरापंथ भवन में मातृ दिवस पर आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि बालक की पहली अध्यापिका मां होती है। नारी जाति को जननी का शौभाग्य मिला है, मगर वह महिला धन्य होती है जिसे मां का दर्जा प्राप्त होता है। क्याेंकि शिशु के लिए सर्वांगीण विकास के लिए मां की ही जिम्मदारी होती है।
इस अवसर पर मुनि आनन्द कुमार कालू ने कहा कि प्रथम महाविद्यालय मां है। दूसरे का पिता, तीसरे का शिक्षक व चौथे महाविद्यालय के प्रधान संत है। इन चार महाविद्यालयाें में से ही प्रथम महाविद्यालय में संस्कारों की घडाई,शिक्षा, व्यवहारिक ज्ञान व आध्यात्म की योति मिलती है। उन्होने कहा कि मां का प्यार सागर से गहरा और हिमालय से ऊंचा है। पिता के मुकाबले माता का गौरव सौ गुना अधिक होता है। उन्होने उपस्थित श्रावक-श्राविकाआें से आखिरी श्वास तक माता पिता का आदर सम्मान, अपनी जननी, जनक और जन्म भूमि का गौरव बढाने का आह्वान किया।

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