राजसमन्द। मुनि तत्वरुचि तरूण ने कहा कि दुनियां में अधिकांश लोग धन कमाने की कला में प्रवीण है लेकिन जीने की कला बहुत कम लोग जानते है। जीने की कला आए बिना जीवन में शांति संभव नहीं। जीने की कला धन से नहीं धर्म से आती है। धर्म की कला जीने की कला है। मुनि तत्वरुचि शनिवार के सौ फीट रोड स्थित महाप्रज्ञ विहार में प्रवचन कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज भौतिक विकास तो बहुत हुआ परंतु उसके अनुपात में आध्यात्मिक विकास नहीं हेने से अनेक समस्याएं पैदा हुई। तनाव, असंतुलन, असहिष्णुता, असामांजस्य, अस्वास्थ्य, आवेश, आवेग, असंवेदनशीलता आदि अति भौतिकता और भावात्मक विकास के अभाव का दुष्परिणाम है। केवल बौध्दिक या भौतिक विकास निरावरण तलवार और नंगे बिजली के तार की तरह खतरनाक होते है इनकी सार्थकता के लिए भावात्मक और आध्यात्मिक विकास जरूरी है। मुनि ने कहा कि जीवन के केवल जीना ही नहीं बल्कि कलात्मक ढंग से जीकर सार्थकता को सिध्द करना है।
अंत्याक्षरी प्रतियोगिता आज : मुनि तत्वरुचि के सान्निध्य में सौ फीट रोड़ स्थित महाप्रज्ञ विहार पर रविवार को आध्यात्मिक अंत्याक्षरी प्रतियोगिता रखी गई है। यह जानकारी हिम्मतमल कोठारी ने दी। प्रतियोगिता रात साढे अाठ बजे से प्रारंभ होगी।
उन्होंने कहा कि आज भौतिक विकास तो बहुत हुआ परंतु उसके अनुपात में आध्यात्मिक विकास नहीं हेने से अनेक समस्याएं पैदा हुई। तनाव, असंतुलन, असहिष्णुता, असामांजस्य, अस्वास्थ्य, आवेश, आवेग, असंवेदनशीलता आदि अति भौतिकता और भावात्मक विकास के अभाव का दुष्परिणाम है। केवल बौध्दिक या भौतिक विकास निरावरण तलवार और नंगे बिजली के तार की तरह खतरनाक होते है इनकी सार्थकता के लिए भावात्मक और आध्यात्मिक विकास जरूरी है। मुनि ने कहा कि जीवन के केवल जीना ही नहीं बल्कि कलात्मक ढंग से जीकर सार्थकता को सिध्द करना है।
अंत्याक्षरी प्रतियोगिता आज : मुनि तत्वरुचि के सान्निध्य में सौ फीट रोड़ स्थित महाप्रज्ञ विहार पर रविवार को आध्यात्मिक अंत्याक्षरी प्रतियोगिता रखी गई है। यह जानकारी हिम्मतमल कोठारी ने दी। प्रतियोगिता रात साढे अाठ बजे से प्रारंभ होगी।
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